Friday, 28 June 2013




राज्य सरकार  की घोर असंवेदनशीलता व दावो की हकीकत  को उजागर करते उत्तरकाशी के कुछ गाँव
                 हम क्रांतिकारी लोक अधिकार संगठन , परिवर्तन कामी छात्र संगठन व प्रोग्रेसिव मेडकोज फोरम के 8 लोगो की संयुक्त टीम ने 21 जून की रात को देहरादून से उत्तरकाशी को प्रस्थान किया ।  इस टीम में 4 डाक्टर थे ।  मसूरी ,  धनोल्टी ,सुआखेत,भवान, चिन्यालीसौड़  रास्ते से होते हुए हमारी टीम सुबह  7 बजे उत्तरकाशी पेट्रोल पंप के पास लगे राहत शिविर के पास पहुंची    जिस सड़क से होकर हम गुजरे वह जगह जगह- जगह पर कटी हुई थी कंही बह गई थी व कहीं कहीं धँसी हुई थी अस्थायी तौर पर दूरुस्त किए जाने के बावजूद अभी  सड़क  काफी  खराब है जोखिम काफी है ।  



उत्तरकाशी पेट्रोल पंप के पास राहत शिविर के पास हमने देखा कि लगभग 400-500 की तादाद में यात्री ( फंसे हुए पर्यटक) यहाँ इधर उधर बैठे हुए हैं  राहत शिविर के संचालनकर्ता द्वारा बार.बार माइक से चाय,दलिया व चने की सब्जी लेने के लिए पुकारा जा रहा था ।  लोग भूखे प्यासे थे कई कई किमी.  पैदल चलकर यहाँ पहुंचे थे।  लोगों की जरूरत के हिसाब से यह प्रबंध नाकाफी था ।  यह प्रबंध भी सरकार द्वारा नहीं किया गया था बल्कि गैर सरकारी संस्थानो,धार्मिक संस्थाओ व व्यक्तिगत प्रयासों के दम पर चल रहा था । राज्य सरकार ने खुद प्रबंध करने के बजाय इन संस्थानों के रहमों करम पर फंसे हुए यात्रियों को छोड़ रखा था ।  ये लोग यहा पर बड़ी बेचैनी से गाड़ी का इंतजार कर रहे थे ताकि जल्द से जल्द अपने घरों तक पहुँच सकें । ये अधिकांश पर्यटक निम्नमध्यमवर्गीय पृष्ठभूमि के लग रहे थे।  शासन प्रशासन द्वारा इन्हें गाड़ी में पहुचाने  का आश्वाशन दिया जा रहा था लेकिन इंतजार करते करते इनका धैर्य जवाब दे जा रहा था जिसका नतीजा झड़प के रूप में दिखाई दे रहा था।  यहा पर प्रबंध का जिम्मा सम्भाल रहे सिपाहियों व यात्रियों में घंटो से इंतजार करने के बावजूद गाड़ी ना पहुचने पर तीखी बहस हो रही थी । 






चुकीं हमारा मकसद उत्तरकाशी के आसपास के इलाकों में जाकर स्थानीय निवासियों के बीच मेडिकल कैंप लगाने की थी ऐसा इसलिए था कि बार.बार अखबारों व न्यूज चैनलों के माध्यम से स्थानीय लोगों को नज़रअंदाज़ किए जाने व उनके प्रति राज्य व केंद्र सरकार की घोर संवेदनहीनता उजागर हो रही थी ।
                इसी मकसद से हम जानकारी जुटाने के संबंध में जब यहा आपदा से निपटने के लिए बनाए गए रेसक्यू सेंटर में पहुंचे तो पता लगा कि आधा अधूरा स्टाफ़् ही यहा मौजूद था । हमने जब पूछा कि यहा आस पास के कौन से इलाके है जहा मेडिकल कैंप लगाया जा सकता है । तो इसका भी स्पष्ट जवाब नहीं दिया गया । अपनी ज़िम्मेदारी को दूसरे के ऊपर डालते हुए बोले कि हमें नही मालूम  दूसरे अधिकारी से जानकारी ले लीजिये।  अंत में एक अधिकारी बड़े ही रूखेपन से कहा कि जाइये....  मनेरी चले जाइये यहाँ से 12 किमी दूर है ....  आपदा प्रबंधन में आये हो खुद ही आपदा में फ़सने आए हो......   ज्यादा मुझे नहीं पता...... अभी सी.  एम.  ओ.  साहब यहाँ नहीं है.....  थोड़ी देर में आएंगे ... वो सब बता देंगे । हम  1 घंटे तक मुख्य चिकित्सा अधिकारी का इंतजार करते रहे   लेकिन अधिकारी महोदय नही पहुंचे ।  फोन करने पर पता लगा कि दूर दूर से आपदा का हवाई नजारा लेने वाले मंत्रियों.बड़े अधिकारियों ने उन्हे उलझा रखा है ।  बिना जानकारी जुटाये हमें वापस आना पड़ा ।  इस दौरान आपदा पीड़ितों के फोन बार. बार इस कंट्रोल रूम में आ रहे थे लेकिन इनकी आशंका व दिक्कतों को बड़ी लापरवाही व संवेदनहीनता के साथ कुशलता से निपटाया जा रहा था ।



हमें क्षेत्र के बारे में कही से भी कोई स्पष्ट जानकारी नहीं मिल पा रही थी ऐसी स्थिति में हमने हिमालयी पर्यावरण संस्था के सुरेश भाई से संपर्क किया । उन्ही की मदद से हमें जानकारी मिली कि  उत्तरकाशी के सामने नदी के पार दिलसौड़ ,चामकोट व अटाली गाव का संपर्क भी एक हद तक कटा हुआ है तथा इसके अलावा भटवाड़ी व डूँड़ा ब्लाक ज्यादा संकट में है धराली में कई गाडिया व मकान पहाड़ से गिरे  मलवे के नीचे दब  गए है   कीसमपुर, मनेरी,सहस क्षेत्र भी काफी प्रभावित है ।ये यहा से 15 से 40 किमी की दूरी पर हैं ।  संगम चट्टी मार्केट के इर्दगिर्द बसे 9.10 गाँव का संपर्क पूरी तरह कटा हुआ है। संगमचट्टी में गाडिया बह गयी तथा गाव के जिन लोगो ने लोन लेकर गाडिया ली है वह भी  सड़क ध्वस्त हो जाने के चलते इनके सड़क पर  ना चलने से अगले कई महीनो तक गाडियों की क़िस्त नहीं चुका पायेंगे ।

इस इलाके के बारे में जानकारी रखने वाले मातली के दो युवको रोशन व मानवीर के साथ उत्तरकशी के मातली क्षेत्र से हम लोग रवाना हुए  थोड़ा सफर गाड़ी से करने के बाद एक पैदल पुल को पार करने के बाद पैदल पैदल 3- 4 किमी का सफर तय कर हम गाव में पहुंचे इस गाव में तकरीबन 40 नाली जमीन बह गई थी व कुछ मकान तबाह हो गए थे ।  इस गाव में हमने मेडिकल कैंप लगाया । गरीब लोगो की हालत ज्यादा खराब थी वह जैसे तैसे गुजर कर रहे थे। लोगो ने बताया कि  अभी तक शासन.प्रशासन का कोई भी आदमी यंहा नहीं पहुंचा ना ही मुवावजे के संबंध में कोई प्रक्रिया अभी तक चली है । यही हमने अपनी टीम के एक हिस्से को यहा से तकरीबन 3-4 किमी दूर चामकोट के लिए रवाना किया लेकिन देर हो जाने के चलते वहा मेडिकल कैम्प नही लगाया जा सका ।

अगले दिन यहाँ के दुर्गम इलाके की ओर हमने प्रस्थान किया । उत्तरकाशी से 5 किमी दूर गंगोरी क्षेत्र से होकर हम गुजरे । यह क्षेत्र असी गंगा नदी के किनारे बसा है इस बार की तबाही की कहानी को नदी में ध्वस्त हुए जे सी बी मशीन गाड़ी, होटल,  खेत व नदी के बीचोंबीच खड़ा मकान बयां कर रहा था । यह भी समझ में साफ साफ आ रहा था की क्यों इस प्रकार की तबाहिया अब कुछ समय से आम बात हो गई है ।यहां की कच्ची पहाडियों में व असी गंगा नदी में अन्धधुध तरीके से बने कुछ बांध व इनका ध्वस्त होना , इसी प्रकार सड़कों का अंधाधूध  निर्माण तबाही बरबादी की ओर साफ़ साफ इशारा कर रहा था यह इशारा इस तबाही के सृजकों  की ओर था इस तबाही व बर्बादी के प्रतिनिधियों की ओर था  जो  भले ही इसे `हिमालयन सुनामीया ``प्राकृतिक या दैवीय आपदा’’ कह कर हम सब की आखो में धूल झोंकने की कोशिश कर अपनी जिम्मेदारियों व  जवाबदेही  से मुक्त होने में एडी चोटी का ज़ोर लगा रहे हों ।  
                 देशी विदेशी पूंजी के निवेश का चारागाह बने उत्तराखंड में जिस प्रकार अंधाधुध ढंग से आखे मूद कर अराजक तरीके से अनियंत्रित ढंग से बिना किसी मुकम्मल योजना  के यहा की भोगोलिक संरचना को ध्यान में रखे बगैर पहाड़ो को डायनामाइट लगाकर उड़ा दिया जाता है और फिर बांधों का निर्माण बढ़े स्तर पर किया  जाता है टनेल बनाए जाते है  सड़कों का जाल बिछाया जाता है नदियों को तबाह किया जाता है खनन किया जाता है । और पर्यटन के नाम पर अंधाधूध ढंग से होटलों का रिजोर्टों  का निर्माण किया जाता है इसे बेलगाम छोड़ दिया जाता है इसीलिए यह सब भी बड़ी आसानी से हो जाता है की एक ओर मौसम विभाग द्वारा मूसलाधार बारिस की चेतावनी दी जाती है दूसरी ओर राज्य सरकार इस चेतावनी को नज़रअंदाज़ करके आंखेँ मूद कर एक लाख से ऊपर लोगों को इन दुर्गम यात्रा पर आने देता है यह इस हद तक होता है कि उसे इनकी संख्या का खुद ही कोई भान नही ।
                 और फिर जो तबाही व बर्बादी आती है उससे निपटने में घोर संवेदन्हीनता का परिचय शासकों द्वारा दिया जाता है . राज्य का मुख्य मन्त्री  3-4 दिन बाद रुद्रप्रयाग जिले में हवाई भ्रमण पर पहुन्चता है  वह पिछली  दफा ईको सेन्सितिव ज़ोन के मसले की तरह हाथ फैलाये राह्त पैकेज की मांग करने पहले ही  दिल्ली चला जाता है । राज्य सरकार व इसका आपदा प्रबन्धन इस तबाही से निपटने में असहाय व बदहवास नजर आता है शासन प्रशासन संवेदनहीन लापरवाह बना रहता है । केवल 12 हेलिकोप्टर पहले दो दिन लगाये जाते हैं सुप्रीम कोर्त के निर्देश के बाद ही व 2014 के लोक सभा के चुनाव की गणित याद आने के बाद ही सन्साधनो से सम्पन्न  केन्द्र सरकार जागती है तब  कहीं जाकर आपदा  प्रबन्धन कुछ हद तक दुरुस्त होता है ।
खैर अब पुनः हम गन्गोरी पर आते हैं यहा से होते हुए च्यों होते हुए हम रिफिला से कप्लोन्दा पहुन्चे इस 20 किमी की दूरी  को हमने दो गाडियों से तय किया जिसमें 700 रुपये खर्च हो गये । खैर यंहा से हमें सन्गम चट्टी पहुंचना था हम नदी के किनारे- किनारे और फिर फिसलन भरे खतर्नाक रास्ते को चढकर संगमचट्टी तक पहुचाने वाले पुल की तलाश में भटकते रहे यंही आकर पता लगा कि पुल तो ध्वस्त हो गया है और सन्गम चट्टी बाजार तबाह हो गया है और फिर पैदल रास्तों के भी ध्वस्त हो जाने के चलते हम नदी से तकरीबन 25-30 फिर ऊपर बनी टनैल नहर के किनारे -किनारे 1 से 2 फिट चौडी जगह से तकरीबन 1 किमी. की दूरी तय करके ऊपर पहाडी में स्थित एक गावं सेखू में पहुचे इस 5-6 किमी के पैदल  रास्ते को तय करने में हमें तकरीबन 2 -3 घन्टा लग गया ।
                गाव में पहुचते ही हमें शुरू में ही हमें एक ऐसा घर मिला जिसकी  स्थिति काफी   खराब थी  घर में   तीन सदस्य थे दो महिला व एक  पुरुष । महिला के पाँव में एक लकड़ी इस आपदा के दौरान घुस गयी थी लेकिन सारे रास्ते खराब होने व शासन प्रशासन से कोई मेडिकल  ना मिलने के चलते पाँव में संक्रमण फ़ैल रहा था । इस घर के लोगों ने हमें  बताया कि इस बार गाव के लोग अपने लिए राशन की व्यवस्था नहीं कर पाए । राशन अक्सर ही गावं के लोग जून के अंतिम हफ्ते में खरीदते थे इस बार बारिश जल्दी होने के चलते वो अनाज नहीं खरीद पाए ।  इसके बाद हमने पंचायती  घर में मेडिकल कैम्प लगाया यहाँ पर भी मेडिकल टीम ने कई   मरीजों की   जांच  की व दवा वितरित की  । गाव के लोगो में शासन प्रशासन व नेताओं के प्रति काफी नाराजगी व आक्रोश था ।
 अखबार व यहाँ गाव के लोगो से हमें जानकारी मिली कि यंहा से 8- 9 किमी की दूरी पर केल्सू क्षेत्र में  अगोड़ा व एक अन्य  गाव में उल्टी दस्त का प्रकोप फैला हुआ है जिसमें दो एक महिला समेत दो लोगों की मृत्यु हो चुकी है । लेकिन सरकार का कोई भी नुमाइन्दा यंहा नहीं पहुंचा । सी एम् ओ द्वारा अखबारी बयानबाजी कर दी गयी थी कि यंहा के लिए मेडिकल टीम रवाना कर दी गयी है । लेकिन हकीकत बिलकुल इसके विपरीत थी ।
                असी गंगा के दोनों ओर गाव बसे थे एक और सेखु व अगोड़ा गाव था तो दूसरी ओर काफी दूर दूर गजोली ,नौगाव , भंकोली, ढासडा   आदि गाव बसे थे । इन सभी   गावो का संपर्क पूरी तरह से कटा हुआ था यंहा गजोली गाव के पास लगा आडिया का एकमात्र टावर भी पिछले कुछ दिनों से तेल ना होने के चलते बंद पडा हुआ था ।

सड़को व पुल के ध्वस्त हो जाने के चलते अगले 5-6 माह से पहले शहर से संपर्क होने की उम्मीद नहीं । साफ़ तौर पर समझ में आ रहा था कि यंहा हेलिकोप्टर से मेडिकल सहायता आसानी से दी जा सकती है व राहत सामाग्री  भी ।यही यह बात भी स्पष्ट हो रही थी  कि गाव के पूरी तरह से तबाह  लोगो को चिकित्सा सुविधा , भोजन ,रहने के लिए मकान की व बरतनों कपड़ो जरूरत ।
                हालात इतने बुरे है कि नदी के किनारे की जमीन लगातार  दरक रही है इसके नदी में समा जाने की आवाज गडगडाहट के साथ बड़ी दूर तक सुनायी देती है । कुल मिलाकर इस यात्रा ने हमारे सामने आपदा से निपटने के उसके तमाम दावों की कलई खोल दी थी  यही नहीं जिन पर्यटकों का  शासन प्रशासन में दखल था जो हाई प्रोफ़ाइल थे उन्हें गरीब व निम्नमध्यमवर्गीय पृष्ठभूमी के लोगो की तुलना में काफी तवज्जो दी जा रही थी । शासन प्रशासन यह दावा कर रहा था  कि फंसे हुए  यात्रियों को मुफ्त में यंहा से  आ रहा है हकीकत यह थी कि अधिकाँश से उतराकाशी  से देहरादून तक 2 0 0 -3 0 0 रुपया लिया जा रहा था । अधिकारियों का उत्तराकाशी  शहर में ही  अपने बेड़े के साथ चक्कर लगाया जा रहा था ।स्थानीय लोगो के पास आवागमन की कोई सुविधा नहीं थी लेकिन ये अधिकारी व मंत्री हेलीकाप्टर व गाड़ियों में मुफ्त सफ़र कर  कर रहे थे । गाव में जाकर हकीकत से रूबरू होने की लोगो के दुःख तकलीफों को महसूस करने की ना तो इनकी जरूरत थी ना ही इसका एहसास । हर जगह की तस्वीर देखने के बाद ऐसा लग रहा है जैसे ये गिद्द् है  जो दुःख तखलीफो में घिरी तबाह बर्बाद जनता को नोच रहे  है  


uttarakhand disaster

No ! No!!  neither  it is the natural disaster  nor the man made disaster
   No ! No!!   it is not natural disaster  or the man made disaster 
 as the electronic and prit corporate  media presents before us.  
 it is the disaster created by the ruling class i.e. the government . the manner in which way  the unplanned, uncontrolled unscientific costruction (development) is going on in uttarakhand specially since the last decade it lead the disaster.
  the construction the design  of  the huge n. of dam, river tunnel, roads,   besides this the huge quantity of garbage produces during this construction and been thrown into the river, the hotels resorts and other things in the close vicinity of river have inherent quality of devastation or disaster.
    so  all of us should say that it is the uttarakhand government, central government who is the designer or creator of this disaster. the ruling class is the designer finally it is the capitalist system which is in one hand destruct the environment as well as the poor human being ( specially the worker ) and the other hand pretends to conserve the environment in the form of national park, sancturies, and eco sensitive zone. In its environmental  conservation ruling class again put huge pressure on the poor people devastate,  displaced and loot them as well as natural resources .

चुनाव की आड़ में बिहार में नागरिकता परीक्षण (एन आर सी)

      चुनाव की आड़ में बिहार में नागरिकता परीक्षण (एन आर सी)       बिहार चुनाव में मोदी सरकार अपने फासीवादी एजेंडे को चुनाव आयोग के जरिए आगे...