काकोरी के शहीदों की स्मृति में
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अशफाक-बिस्मिल की विरासत को आगे बढ़ाओ!
हर साल का दिसम्बर महिना काकोरी के शहीदों की याद हमें दिलाता है। काकोरी के शहीदों का एक संगठन था - ' हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन'( एच आर ए ) । जिसका मकसद था -संगठित व हथियार बंद होकर अंग्रेजी हुकूमत से देश को आज़ाद कराना ; आज़ाद भारत को 'संघीय व धर्मनिरपेक्ष गणतन्त्र ' बनाना जिसमें सभी प्रकार के लूट-शोषण पर पाबंदी हो, कोई गैरबराबरी ना हो , भेदभाव ना हो।
इस संगठन को आगे बढ़ाने के लिए, हथियार खरीदने के लिए पैसे की भी बहुत जरूरत थी । इसलिए संगठन ने तय किया कि सहारनपुर-लखनऊ पैसेंजर ट्रेन में जाने वाले सरकारी खजाने को लूट लिया जाय। और फिर 9 अगस्त 1925 को लखनऊ से पहले काकोरी स्टेशन के पास ट्रेन लूट ली गई। फिर अंग्रेज सरकार लूट में शामिल लोगों को पकड़ने के लिए दिन रात एक करने लगी। 40 लोग गिरफ्तार किए गए फिर 17 लोगों को सजा सुनाई गई । इनमें से 4 लोगों को फांसी की सजा सुनाई गई। 17 दिसम्बर 1927 को राजिंदर लाहिड़ी को फांसी दे दी गई । 19 दिसम्बर 1927 को अशफाक उल्ला खां, रोशन सिंह ,रामप्रसाद बिस्मिल को फांसी दे दी गई।
यह वह दौर था जब कॉंग्रेस भी 'आज़ादी'का नारा लगा रही थी। कांग्रेस भारतीय पूंजीपतियो व जमींदारों की पार्टी थी । ये चाहते थे अंग्रेज चले जाएं और सत्ता इनके हाथ में आये। इन्ही को शहीद भगत सिंह ने "काले अंग्रेज" कहा था।
दूसरी ओर अंग्रेजों की 'फुट डालो-राज करो' तेजी से आगे बढ़ रही थी। अंग्रेजों को याद था -1857 का पहला स्वतन्त्रता संग्राम । जिसमें हिन्दू-मुस्लिम के एकजुट संघर्ष ने अंग्रेजी हुकूमत की चूलें हिला दी थी। हिन्दू-मुस्लिम जनता की एकता को तोड़ने के लिए अंग्रेजो ने हर चाल चली। हिन्दू-मुस्लिम साम्प्रदायिक संगठन इनके हथियार बन गए। मुस्लिम लीग, आर-एस-एस व हिन्दू महासभा जैसे साम्प्रदायिक संगठन उसी समय के हैं ।
अशफाक-बिस्मिल जैसे नौजवान हिन्दू-मुस्लिम एकता की भी मिसाल थे। अशफ़ाक़ मुस्लिम थे तो बिस्मिल हिन्दू। अशफ़ाक़-बिस्मिल-रोशन-लाहिड़ी को अंग्रेजी हुकूमत ने षडयंत्र रचने के आरोप में फांसी दे दी । लेकिन इनके बलिदान ने देश में संघर्ष को क्रांति को और आगे बढ़ा दिया । भारी तादाद में खासकर नौजवान आज़ादी के संघर्ष में कूद पड़े। अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ पूरे देश में नफरत व गुस्सा बहुत बढ़ गया। मज़दूरों-किसानों-नौजवानों के क्रांतिकारी संघर्षों की लहरें बढ़ते गई। औऱ फिर हुआ यह कि अंग्रेज देश के पूंजीपतियों-जमींदारों (काले अंग्रेजों) को सत्ता सौंप कर चल दिए। इनकी पार्टी 'कांग्रेस पार्टी' की सरकार बन गयी।
तब से बीते 60-70 सालों में कांग्रेस के अलावा अन्य पार्टियों की सरकारें भी बनी है या वे सरकार बनाने में शामिल रही है अब तो तीन साल से मोदीमय भाजपा बहुमत से सरकार चला रही है।
इन सभी पार्टियों ने देश के बड़े बड़े पूंजीपतियों के हितों को ही आगे बढ़ाया है। चंद करोड़ रुपये की पूंजी के मालिक 70 सालों में कई लाख करोड़ की पूंजी के मालिक बन चुके है। अब इनमें अम्बानी-अडानी-पतंजलि-अज़ीमप्रेम ज़ी आदि भी शामिल हैं।
उद्योगपतियों (पूंजीपतियों)व उनकी पार्टियों के बीच पहले एक पर्दा जो लगा रहता था मोदी जी व उनकी सरकार ने इसे भी फैंक दिया है। आज हर कोई कह सकता है देश को अम्बानी-अडानी चला रहे है कि मोदी सरकार अम्बानी -अडानी की सरकार है। बैंकों का 8-12 लाख करोड़ रुपए कर्ज फंसा हुआ है इसका बड़ा हिस्सा देश के 8-10 पूंजीपतियो के पास है ये इसे वापस नहीं लौटा रहे है। मोदी जी व उनकी सरकार की योजना है कि इस कर्ज की रकम को बट्टा खाते में डाल दिया जाए। वसूली या संपत्ति को जब्त करने के बजाय सरकार 2 लाख करोड़ रुपए बैंकों में डालेगी। साफ है आम जनता की मेहनत की लूट से इसे वसूला जाएगा। यही नही ! बैंकों में जनता की जमा रकम पर डकैती डालने के लिए नया कानून एफ.आर.डी.आई. बनाया जा रहा है।
मोदी व मनमोहन की नीतियों में कोई फर्क नहीं है। मोदी सरकार मनमोहन सरकार की नीतियों को धड़ल्ले से आगे बढ़ा रही है। आधार कार्ड , जी एस टी ये कांग्रेस के जमाने की ही चीजें थी। मोदी जी व भाजपा पहले इनका खूब विरोध करते थे। लेकिन सत्ता हासिल होते ही जी.एस.टी लागू कर दिया जबकि आधार कार्ड हर नागरिक के लिए अघोषित तौर पर अनिवार्य कर दिया गया है।
नोटबंदी के लिए मोदी सरकार ने कहा था कि 4-5 लाख करोड़ रुपये वापस नहीं आएगा । क्योकि इनके हिसाब से 4-5 लाख करोड़ रुपये काला धन था। लेकिन 1 करोड़ लोगों के बेरोजगार होने, 100 से ज्यादा लोगों की मौत व चौतरफा नुकसान के अलावा क्या हासिल हुआ ? कुछ भी नहीं। 16000 करोड़ रुपए हासिल हुए लेकिन इससे काफी ज्यादा पैसा तो नोट छापने व लोगो को व्याज देने में चला गया। इस नोटबंदी के दौरान दौलत किसकी बढ़ी ? अम्बानी से लेकर पतंजलि तक की । देश के 10 शीर्ष पूंजीपतियों की पूंजी में 50% से लेकर 170% तक की वृद्धि हो गई।
सचमुच हालात और खराब होते जा रहे हैं। 'फुट डालो-राज करो' अंग्रेजी हुकूमत के नारे को आज जमकर इस्तेमाल किया जा रहा है। आज 'महंगाई' 'रोज़गार' 'महंगी शिक्षा' 'महंगे इलाज' और अधिकारों के सवाल गायब कर दिए गए है। आज मेहनतकश जनता के एक हिस्से को मेहनतकश जनता के दूसरे हिस्से के खिलाफ खड़ा किया जा रहा है। एक दूसरे के खिलाफ नफरत की दीवार खड़ी की जा रही है। आज हर तरफ 'गाय' 'हिन्दू' 'मुस्लिम' 'बीफ' 'राम मन्दिर' का शोर है। कोई क्या पहनेगा , क्या खायेगा , क्या पसंद करेगा, किसकी व कितनी आलोचना करेगा ? यह सब भी सरकार उसकी पार्टी व संगठन तय कर रहे हैं। कुल मिलाकर फ़ासिस्ट हिटलर की चाल आज देश में दोहराई जा रही है। जर्मनी के थाइसेन व क्रूप्स जैसे बड़े बड़े पूंजीपतियो ने हिटलर व नाज़ी पार्टी को पाला पोसा था । फिर 1933 में सत्ता पर बिठा दिया । हिटलर ने प्राचीन जर्मन देश के महान होने के बात की ; जर्मन नस्ल के महान होने की बात जनता में की। यहूदी लोगों के खिलाफ नफरत पैदा की व दंगे आयोजित किये। जर्मन जनता का एक हिस्सा इन बातों को सच मानने लगा । वह हिटलर व नाज़ी पार्टी के साथ हो लिया। फिर हिटलर के राज में लाखों यहुदियों का क़त्लेआम किया गया; ट्रेड यूनियनों, संगठनों, मज़दूरो,किसानों व छात्रों पर जानलेवा हमले किये गए । जनता के अधिकारों को रौंद दिया गया। यही नही हिटलर की पार्टी व दस्ते के बहुत सारे लोगों का भी सफाया कर दिया । चुनाव खत्म हो गए। इस प्रकार हिटलर ने आतंकी तानाशाही कायम कर दी ।
आज यही खतरा एकदम हमारे निकट भी है । देश के बड़े बड़े पूँजीवादी घराने उसी दिशा की ओर बढ़ रहे है। जिस दिशा की ओर कभी जर्मनी गया था।
इसलिए आज जरूरत है काकोरी के उन शहीदों से प्रेरणा लेने की ; एकजुट होकर संघर्ष करने की जिन्होंने महान उद्देश्य के लिए अपना जीवन बलिदान कर दिया। जरूरत है मेहनतकश जनता को बांटने वाली ताकतों के खिलाफ एकजुट हुआ जाए। मेहनतकश जनता के राज समाजवाद की ओर बढ़ा जाए।