पंचायती चुनाव फिर आ गए हैं। प्रत्याशी फिर से, रंग बिरंगे दावों व वादों के साथ, हमारे बीच में हैं। ये वोटों को हासिल करने की घृणित जुगत में लगे हुए हैं। शराब, पैसा, ताकत, जाति-धर्म, भाई भतीजावाद का ही यहां शोरगुल है ।
प्रत्याशी हमारे बीच आते हैं। हमारे वोटों से जीतकर, अपने मालामाल होने के रास्ते बनाते हैं। रोजगार, सस्ती बेहतर शिक्षा, सस्ता बेहतर इलाज, महिला सुरक्षा और छिनते अधिकार आदि-आदि मुद्दों से तो, इनका कोई सरोकार ही नहीं।
सच यही है कि पंचायती निकाय की कोई हैसियत नहीं कि वह इन सभी मुद्दों पर काम कर सके, योजना बना सके और फिर उसे लागू कर सके। जिला पंचायत, नगर पंचायत और ग्राम पंचायतें सभी की यही स्थिति है। ऐसे में इन पंचायतों को अधिकारयुक्त संस्थाएं बनाने का संघर्ष होना चाहिए था। जो योजनाएं बनाती, केंद्र के लिए इसे भेजती फिर इसे लागू करती। मगर इस संघर्ष से इन प्रत्याशियों कुछ भी लेना देना नहीं ।
. इस दौर में नोटबंदी हुई, लॉकडाउन हुआ जिसमें एक ओर करोड़ों लोग बेरोजगार हुए, काम-धन्धा बर्बाद हुआ, दूसरी ओर अंबानी-अदानी जैसे लोग मालामाल हुए। करोड़ों मजदूर सैकड़ों किमी पैदल भूखे-प्यासे घरों को जाने को मजबूर कर दिए गए। कॉरपोरेट पूंजीपतियों की लूट और ज्यादा बढ़ गई। इनकी सरकार ने घोर किसान विरोधी बिल पास किये, घोर मजदूर विरोधी श्रम कानून बना दिये। किसान 'तीन कृषि कानूनों' के खिलाफ पिछले 5 माह से सड़कों पर है। इस सबमें, पंचायती निकायों की कोई हैसियत नहीं कि वह कुछ कर सकती हों। प्रत्याशियों के लिए तो ये कोई मुद्दे ही नहीं बनते।
ये पंचायतें हर तरह से अधिकारविहीन संस्थाएं हैं। ये सरकार की योजनाओं को लागू करने वाली संस्थाएं मात्र हैं। इन्हें आर्थिक मदद के लिए सरकार का मुंह ताकते रहना पड़ता है।
पंचायत क्षेत्रों में कुछ सुविधाओं हेतु केंद्र सरकार कुछ पैसा भेजती है। इस पैसे को ही हड़पने की होड़ प्रत्याशियों में होती है। इसे हड़पने के लिए, ये हर हथकंडे अपनाते हैं। यह सीख भी इन्हें, अपने बड़े पूंजीवादी नेताओं से ही मिलती है। चंद ईमानदार प्रत्याशी ही इसे देख निराश -हताश होते हैं और समझौता कर लेते हैं।
हकीकत यही है कि हमारे शासक इन पंचायत निकायों के जरिये अपनी शासन सत्ता को मज़बूत करते हैं।
देश के भीतर सारे ही फैसले लेने व नीतियां बनाने का अधिकार संसद के पास है। संसद पूंजीपतियों का औजार ही है। आम जनता को यही लगता रहता है कि वही सब कुछ करती है सभी को चुनती है दिखता यही है मगर हकीकत इसके ठीक उलट होती है। इसलिए जनता के 'अच्छे दिन' कभी नहीं आते मगर पूंजीपति मालामाल होते जाते हैं। वे अरबपति से खरबपति बन जाते हैं।
भा.ज.पा., स.पा., ब.स.पा., कांग्रेस समेत सभी पूंजीवादी पार्टियां चुनाव के समय जनता के बीच वोट मांगते हैं। इसके बदले अच्छे दिन लाने का वादा करते हैं। लेकिन हर चुनाव के बाद 'अच्छे दिन',‘बुरे दिन' में बदल जाते हैं। इन पार्टियों के नेता और देश के पूंजीपति ज्यादा मालामाल होते जाते हैं।
दरअसल ये सभी पूंजीवादी पार्टियां, इसी पूंजीवादी व्यवस्था को चलाने का काम करती हैं जो कि मजदूर मेहनतकश जनता की मेहनत को हड़पने का तंत्र है पूंजीपतियों को और खुद को भी मालामाल बनाने का यंत्र है। संसद में ये पार्टियां, इन्हीं के लिए नीतियां बनाती हैं व फैसले लेती हैं।
ये जनता की सामूहिक ताकत को नकारते हैं जनता को ठेंगा दिखाते हैं जनता को मूर्ख बनाते हैं धर्म-जाति की नफरत भरी राजनीति से जनता को बांट देते हैं जनता को आपस में लड़ाते हैं, दंगे करवाते हैं जनता का दमन करने को काले दमनकारी कानून बनाकर पुलिस का आतंक कायम करते हैं।
ये एक व्यक्ति को हीरो के रूप में स्थापित करते हैं जो कि अपने दम पर जनता के दुख-दर्द हर लेगा। ऐसा, मगर कभी होता नहीं। इसके उलट तानाशाही की स्थिति बन जाती है। पिछले 6 साल इस बात के गवाह है।
इसलिए आज असल सवाल, सामूहिक तौर पर संघर्ष करने का है। अपने अधिकारों के लिए संघर्ष करने का है।
हमें इन प्रत्याशियों पर दबाव बनाने की जरूरत है कि जनता के पक्ष में नीतियां बनाये जायं; हमारे अधिकारों को केवल वोट तक सीमित ना किया जाए बल्कि देश के स्तर पर सभी महत्वपूर्ण फैसले व नीतियां बनाने का अधिकार भी हमें मिले; बड़े महत्वपूर्ण फैसलों पर जनमत संग्रह करवायें जायें; तथा प्रतिनिधियों का वापस बुलाने का अधिकार भी हमें मिले ।
अंतत: यह सब हासिल हो जाने के बाद भी, लूट-शोषण उत्पीड़न वाली पूंजीवादी व्यवस्था चलती रहेगी क्योंकि फैक्ट्रियों, कल-कारखानों, फार्म्स ( बड़े खेतों), खानों सभी जगह पर इन पूंजीपतियों का ही नियंत्रण है। इसलिए समाजवादी व्यवस्था के लिए संघर्ष करने की जरूरत हैं। जहां सभी संसाधनों पर जनता का नियंत्रण हो।
यही वह व्यवस्था है जहां सारे ही अधिकार मजदूर मेहनतकश अवाम को होंगे। लूट शोषण पर पाबंदी होगी। रोजगार की गारंटी होगी। नि:शुल्क शिक्षा, चिकित्सा व परिवहन के अधिकार होंगे ।
इसलिए आइये ! पंचायती चुनाव में इन सवालों को उठाने एवं इनके लिए संघर्ष करने की जरूरत है :-
1-: जिला पंचायत, नगर पंचायत व ग्राम पंचायत सभी स्तर पर इन संस्थाओं को अपने क्षेत्र के शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार, स्वच्छता, प्रशासन आदि क्षेत्रों में योजनाएं बनाने का, इसे प्रस्तावित करने, केंद्र के साथ समन्वय करने का व इन्हें लागू करने तथा इस हेतु फण्ड सृजित करने का अधिकार हो।
2-: जाति, धर्म आदि की साम्प्रदायिक राजनीति करने वाले तथा आपराधिक पृष्ठभूमि वाले प्रत्याशियों को चुनाव में प्रतिबंधित किया जाय।
3-: चुने गये पंचायत प्रतिनिधि को, 5 साल के अंदर किसी भी वक़्त वापस बुलाने का अधिकार जनता के पास हो।