Tuesday, 10 September 2013

mujaffarnagar communal riots

                                                मुजफ्फरनगर सांप्रदायिक दंगा
               
               
                जैसा कि  तय था 2014 के लोक सभा के चुनाव को ध्यान में रखते हुए सभी पूंजीवादी राजनीतिक पार्टिया केंद्र की सत्ता अपने नेतृत्व में सरकार बनाने की जी तोड़ कवायद  में  पिछले समय की ही तरह हर घृणित हथकंडे अजमाएँगी । इस जी तोड़ कवायद में समाज में हिन्दू- मुस्लिम वोटो को ध्यान में रखते हुए सांप्रदायिक ध्रूविकरण एक हथियार है जिसे आर . एस. एस. के नेतृत्व में भारतीय जनता पार्टी सबसे आगे है।90 के दशक में राम मंदिर निर्माण के नाम पर पूरे ही देश को दंगो की आग मे झोंक देने वाली भा ज पा,  राष्ट्रीय सेवक संघ  व इसके अन्य आनुषंगिक संगठनो  ने इस सांप्रदायिक ध्रूविकरण को एक मुकाम तक पहुचाया। लेकिन इसके बाद भी केंद्र में  केवल अपने दम पर सरकार बनाने का ख्वाब अधूरा रहा । इसके बाद फिर नई रणनीति के तहत संघ ने सांप्रदायिक ध्रूविकरण को स्थानीय व क्षेत्रीय मुद्दे के तहत दलितो व आदिवासियों में भी घुसपैठ की गई ‘’ धर्मांतरण ‘’ लव  जेहाद ‘’ आदि आदि  जैसे फर्जी मामले खड़े किए गए  चैरिटी काम करके भी इस मकसद को साधा गया सांप्रदायिककरण किया गया ।और फिर  गुजरात के स्तर पर 2002 का फासीज़्म का प्रयोग भी सफल रहा ।
                इसलिए ऐसा यूं ही नही हुआ कि अलग –अलग शहरो के स्तर या कस्बों के स्तर पर दंगो की तादाद बढ़ गई उत्तर प्रदेश में ही इससे पहले लगभग 17 महीने में ही सांप्रदायिक हिंसा व तनाव की 100 से अधिक घटनाएँ हो चुकी हैं । और अब संघ खुलकर सामने आ गया  है फासिस्ट नरेन्द्रमोदी की केंद्र के लिए   ताजपोशी  , 84 कोसी यात्रा और फिर राम मंदिर की बातें आदि  इसके कारनामों से पैदा होने वाले  सांप्रदायिक  उन्माद की ओर साफ साफ इशारा कर रही हैं।
                किश्तवाड़ की आग अभी बुझी भी नही थी कि  अब मुजफ्फरनगर में दंगे हो गए ।और यहा अब तक सरकारी आकड़ों के मुताबिक ही  तीन दर्जन से  लोग मारे गए है कई गायब है व घायल हैं। हकीकत हमेशा की ही तरह इससे कई गुनी ज्यादा हो सकती है ।यहाँ अगस्त के तीसरे हफ्ते में एक लड़की से हुई छेड़छाड़ अगर इतना बड़ा रूप धारण कर लेती है , महापंचायतें होती है जाट समुदाय के लोगो द्वारा जिसमे लोग हथियारो के साथ पहुचते हैऔर यह सब सपा सरकार व उसके शासन प्रशासन के आखो के सामने घटित होता है। इन महापंचायतों में भाजपा के तीन चार नेता पहुचते है भारतीय किसान यूनियन के नेता  व कांग्रेस के पूर्व संसद हरेन्द्र मालिक भी पहुचते हैं।इनके खिलाफ एफ आई आर के बावजूद कोई कार्यवाही नही की जाती। सपा सरकार इसे हो जाने देती है।तो यह सब ऐसे ही नही हो जाता है।  और फिर मामला हाथ से निकलता दिखाकर भारी तादाद में अर्ध सैनिक बल बुला ली जाती है। कर्फ़्यू लगाया जाता है  केंद्र की कांग्रेस सरकार व उसका गृह मंत्रालय  भी अपने को बेहद चिंतित दिखाकर तुरंत ही सक्रिय हो जाता है।अल्पसंख्यको को भयाक्रांत कर फिर उनके रक्षक बन एक ओर कांग्रेस व सपा उनके वोटो को हासिल करने का समीकरण बना रही है तो दूसरी ओर इन प्रतिक्रियावादी व सांप्रदायिक महापंचायतों को हो जाने का अवसर दे कर नरम हिन्दुत्व का परिचय देकर यहा से भी वोट हासिल करने की जुगत में है। भाजपा तो घोषित तौर पर ही सांप्रदायिक पार्टी है।लेकिन यह पार्टिया भी कम नहीं है । कांग्रेस द्वारा 1984 में सीक्खो का कत्लेआम किया गया था। राजीव गांधी का यह  कुख्यात बयान कि जब पेड़ गिरता है तो धरती कापती है आज भी शायद ही कोई भूला होगा । बस फर्क इतना ही है कि धर्मनिरपेक्ष या सेक्युलर शब्द की लफ्फाजी करते हुए ये यह सब करती हैं  और संघ की तरह इनका ताना बाना नही है ।  
                हकीकत यही है कि भारतीय शासक वर्ग सांप्रदायिक व कट्टरपंथी ताकतों को शुरू से प्रश्रय देते रही हैं। और भारतीय राज्य सवर्ण हिन्दु मानसिकता से ग्रसित है। इसी का परिणाम यह है की एक ओर यह अपनी जहनीयत में महिला विरोधी , दलित विरोधी तो दूसरी ओर अल्पसंख्यक विरोधी है विशेष तौर पर सारे ही मामलो  में मजदूर- मेहनतकश अवाम के लोग। भारतीय शासक फिर इसे वक्त बेवक्त अपनी जरूरत के हिसाब से इस्तेमाल करते रहते हैं । इसीलिए यह अनायास नहीं है कि कि टाटा ,अंबानी आदि आदि जैसे पूंजीपति फासिस्ट मोदी की तारीफ में कसीदे गड़ते हैं ।
                इस प्रकार सांप्रदायिक उन्माद  दंगा पैदा करके शासको द्वारा ना केवल सामुदायिक सौहार्द को खत्म कर दिया जाता है व  सत्ता पर पैठ बनाई जाती है बल्कि मजदूर मेहनतकश आवाम की एकता को खंडित कर दिया जाता है व उनके वर्तमान व भावी संघर्षो को कमजोर करने की दिशा में कदम भी बढ़ाया जाता है ।
और यह मजदूर मेहनतकश अवाम ही  है जो कि सांप्रदायिक दंगो के शिकार होते है व इसमें तबाह -बर्बाद होते हैं ।
                क्रांतिकारी लोक अधिकार संगठन मुजफ्फरनगर सांप्रदायिक दंगे में मारे गए लोगो के प्रति अपनी संवेदना व शोक व्यक्त करता है। इस घटना में शामिल लोग जिनके खिलाफ एफ आई आर  दर्ज है उन्हे तत्काल  गिरफ्तार करने की मांग करता है । सांप्रदायिक व कट्टरपंथी संगठनो पर प्रतिबंध लगाने की माँग करता है।  
समस्त मजदूर मेहनतकश अवाम से अपील करता है कि आइये!  इन सभी सांप्रदायिक व कट्टरपंथी  ताकतों व इन्हे प्रश्रय देने वाली  ताकत के विरोध में संघर्ष  एकजुट हो संघर्ष करें  ।                                                                                                
                                                                                                                क्रांतिकारी लोक अधिकार संगठन
               
               
               

                

position over national and international issue

         सीरिया पर अमेरिकी साम्राज्यवादी के संभावित हमले का विरोध करो !
       
         सीरिया में हर प्रकार की साम्राज्यवादी दखलंदाजी का विरोध करो !!  
                               
               
                ``जनतंत्र’’ की स्थापना के नाम पर अमेरीकी साम्राज्यवादियों  द्वारा अन्य पूंजीवादी मुल्को की संप्रभुता पर हमले की दास्ता काफी लंबी है । अपने हितो के प्रतिकूल पड़ती सरकारो के तख्तापलट की इनकी काली करतूते लातिनी अमेरिकी मुल्कों से समझी जा सकती है । रासायनिक हथियारों के इस्तेमाल व जनवाद की स्थापना के नाम अमेरिकी साम्राज्यवादियों द्वारा इराक पर हमला बोल दिया गया और उससे पहले आतंकवादके खातमे के नाम पर अफगानिस्तान पर  हमला बोल दिया गया था। इराक पर हुआ हमला खुद साम्राज्यवादी मुल्कों  द्वारा खड़ी की गई संस्था संयुक्त राष्ट्र संघ को अमेरिकी शासको द्वारा ठेंगे पर रखते हुए किया गया था बाकी साम्राज्यवादी मुल्क कैसे इस लूट मे अपने हिस्सेदारी हो इसकी रणनीति बना रहे थे   इराक मे हुए हमले के बाद से अब तक इराक मे अब तक कई लाख इराक़ी मेहनतकश नागरिक जिसमे मासूम बच्चे भी शामिल हैं  मारे गए है । दुनिया के सामने यह तभी स्पष्ट था कि दरअसल अमेरिकी (साम्राज्यवादी) पूंजीपति वर्ग अपने अर्थव्यवस्था के बढ़ते संकट को हल करने के लिए व  क्रूड ऑइल ( कच्चे तेल ) को नियंत्रित करने के लिए यह सब ताना बाना रच रहा है । जबकि अफगानिस्तान पर अमेरिकी शासको की दीर्घकालिक रणनीति ( सामरिक महत्व ) के तहत  था । और यह भी तभी स्पष्ट हो गया था कि आने वाले वक्त मे सीरिया, ईरान , लीबिया व  उत्तरी कोरिया अमेरिकी साम्राज्यवादियों की निगाह में है।
                टूनीशिया से बगावत के जो लहर शुरू हुई थी वह मिश्र आदि आदि मुल्क होते हुए सीरिया भी जा पहुची थी । मजदूर वर्ग समेत आम मेहनतकश आवाम बढ़ती बेरोजगारी , महंगाई से त्रस्त हो आक्रोशित  व आंदोलित होकर अपनी तानाशाही हुकूमतों से टकरायी । इन जनसंघर्षों को साम्राज्यवादी मुल्को विशेषकर अमेरिकी साम्रज्यवादियों ने अपने हितो के अनुरूप नियंत्रित करने को पूरा व्यूह रचा । मध्य पूर्व के इन पूंजीवादी मुल्को के ही पूंजीपतिवर्ग के दूसरे धडों  ने इन जनसंघर्षों  पर  अपना नेतृत्व बनाया अमेरिकी साम्राज्यवादियों का उन्हे पूरा सहयोग मिला । मिश्र के मामले मे इसे साफ साफ देखा जा सकता है ।
                सीरिया जैसे पूंजीवादी मुल्क में बसर  अल असद की सरकार के खिलाफ जो आक्रोश मेहनत कश जनसमुदाय में पैदा हुआ उसे भी धुर्त्त अमेरिकी शासको ने अपने नियंत्रण में करने का भरपूर अवसर के रूप में बदलने की कोशिश की । यहा भी  सीरियाई शासकों का  दूसरा धड़ा जो कि पिछले कई दशकों से सत्ता में बैठने को लालायित था उसने ही मेहनतकश आवाम के संघर्षो के नेतृत्व को हथिया लिया और दूसरी ओर इन्हे अमेरिकी शासकों ने हथियार से लेकर हर तरह से बसर अल असद की सत्ता को उलट देने में इनकी भरपूर मदद की । सीरिया के मामले मे विशेष स्थिति यह बनती थी कि अमेरिकी साम्रज्यावादियों से इसके संबंध पहले से ही खटास भरे रहे हैं यहा रूसी साम्राज्यवादियों का प्रभाव है उसका नौसैनिक अड्डा भी यहाँ है ।यह एक ओर  अमेरिका – इजरायल गठजोड़ का विरोध करता रहा है  तो दूसरी ओर फिलीस्तीन का समर्थन करता रहा है ।  इसीलिए अमेरिकी साम्राज्यवादी इस अपने द्वारा समर्थित विद्रोहको अवसर के रूप मे देख रहे थे  ताकि वहाँ अपना प्रभाव कायम कर सके व अपने संकट का बोझ दूसरे मुल्को  पर डाल सके तेल गैस व पेट्रो डालर पर नियंत्रण ही असल मकसद था  , हालांकि  यहाँ हमला  करना इनके लिए  इतना आसान भी नही है । अन्य साम्राज्यवादी मुल्क भी लूट मे हिस्सदारी के हिसाब से अपनी अपनी  रणनीति बना रहे हैं । भारतीय पूंजीवादी शासको की अवस्थिति की बात की जाय तो यह भी अपने हितो को साधने के लिए घृणित हथकंडे अपना रहा है । इस मुद्दे पर फिलहाल रूसी साम्राज्यवादियों के साथ खड़ा है ।
                अमेरिकी शासक जब इस  समर्थित विद्रोह से वहा हस्तक्षेप कर उसे अपने प्रभाव में लेने में सफल नही हो पाये तो अब वह इस मकसद के लिए  इस तथाकथित रासायनिक हमले द्वारा जनसहार के नाम पर सीरिया की संप्रभुता को रौदने की दिशा मे बढ़ रहा है।जिसका विरोध न केवल दुनिया की अमनपसंद व जनवादपसंद मेहनतकश जनता कर रही है बल्कि खुद साम्राज्यवादी मुल्क अमेरिका की  मेहनतकश अवाम भी इस हमले का विरोध कर रही है।
                सीरिया जैसे पूंजीवादी मुल्क में बसर अल असद के नेतृत्व मे सीरियाई पूंजीपति वर्ग की नग्न तानाशाही शासन मेहनतकश जनता के ऊपर कायम है पूंजीवादी जनवाद में जो सीमित अधिकार मेहनतकश को हासिल होते हैं वह यहा की अवाम को हासिल नही हैं। इसलिए भयावह बेरोजगारी व महंगाई को लेकर यहाँ मेहनतकश अवाम ने आक्रोशित हो जो संघर्ष शुरू किया था और बसर अल असद सरकार साम्राज्यवाद समर्थित विद्रोहियो से निपटने के नाम पर आम जनता का जो दमन कर रही है उससे निपटने के लिए जरूरी है की  उस संघर्ष पर अपना नेतृत्व कायम  किया जाय ।साथ ही  साम्राज्यवादी मुल्को की मुल्क के भीतर  हर दखलंदाज़ी का विरोध करने की जरूरत है अपने जनवादी अधिकारो को हासिल करने की दिशा में संघर्ष करने की सख्त जरूरत है और अंतत:  इस संघर्ष को नई ऊचाइयों तक पहुचाते हुए मजदूर वर्ग के नेतृत्व में सामाजवाद का निर्माण करने की जरूरत है। जबकि दूसरी ओर दुनिया की जनवादपसंद अवाम को सीरियाई मेहनतकश अवाम के साथ एकजुटता कायम करते हुए अमेरिकी साम्राज्यवादी मुल्क द्वारा होने वाले हमले का पुरजोर विरोध करने के साथ साथ यहा हो रहे  हर साम्राज्यवादी दखलंदाजी का विरोध करने की जरूरत है।           
               




चुनाव की आड़ में बिहार में नागरिकता परीक्षण (एन आर सी)

      चुनाव की आड़ में बिहार में नागरिकता परीक्षण (एन आर सी)       बिहार चुनाव में मोदी सरकार अपने फासीवादी एजेंडे को चुनाव आयोग के जरिए आगे...