जलियावाला बाग शहादत के 100 वें साल पर
जलियावाला बाग हत्याकांड के शहीदों को याद करो ! समाजवाद की राह चलो !
जलियावाला बाग हत्याकांड का यह 100 वां साल है। अंग्रेज सरकार ने क्रांतिकारी संघर्षो को कुचलने के लिए काला दमनकारी कानून' रौलेट एक्ट बनाया था। इसके विरोध में 13 अप्रेल 1919 को' जलियावाला बाग में सभा हो रही थी। सभा करते हज़ारों लोगों पर अंग्रेज सरकार ने गोलियां चलवा दी जिसमें हज़ार से ज्यादा लोग शहीद हो गए। हज़ारों घायल हो गए।
इस शहीदी दिवस को हम ऐसे मौके पर याद कर रहे हैं जब कि देश में 'आम चुनाव' हो रहे हैं ! इन चुनावों में हम जनता को बताया जाता है कि यहां सबसे बड़ा 'लोकतंत्र' है, कि चुनाव 'महापर्व' है, कि जनता जिसे चाहे- जिस पार्टी को चाहे जिताये, कि वोट डालना नागरिकों की जिम्मेदारी व अधिकार है। 'वोट के अधिकार' पर इतनी "चिंता", इतने विज्ञापन और इतना प्रचार !! मगर बात जब 'रोज़गार के अधिकार' की हो, 'शिक्षा के अधिकार' की हो, 'इलाज के अधिकार' की हो या फिर 'धरना-प्रदर्शन-विरोध' कर सकने व 'असहमति जताने' 'सवाल करने' के अधिकार की बात हो ! तब जवाब 'लाठीयां-मुकदमे और जेल' होती है।
चुनाव पर एक दिन वोट डलवाकर फिर रात दिन इन्हीं नागरिकों के अधिकारों पर, सुविधाओं पर डाका डाला जाता है। दिन रात की हाड़ तोड़ मेहनत की जो कमाई होती है उसे हड़पने की स्कीम बनती हैं। फिर अधिकारों के लिए संघर्ष की बात हो या सरकार की नीतियों पर सवाल उठाने की बात या फिर सरकार और चुने हुए नेताओं की आलोचना बात हो सब कुछ 'देशद्रोह' हो जाता है
इन स्थितियों में हम नागरिक जो कि मज़दूर है मेहनतकश है जिनकी तादाद करोड़ों में है यह सवाल हमारे सामने है कि हम इस कथित 'लोकतंत्र' को, इस 'चुनाव' को अपना कैसे और क्यों माने ? इस 'लोकतंत्र' में उनके लिए क्या है ? 70 सालों में इस 'लोकतंत्र' ने हमें क्या दिया ? हम देखते हैं कि जब भी हम अपनी मांगों के लिए आंदोलन करते हैं तो हम पर लाठियां बरसती हैं फर्जी मुकदमे लगते हैं जेलों में सड़ाया जाता है। कानून हमारी मेहनत की लूट के लिए बनाए व बदले जा रहे हैं। सरकार किसी भी पार्टी की हो ! यह बढ़ता ही चला जाता है । ऐसा क्यों ?
यही सवाल बदले रूप में जैसे तैसे पढाई लिखाई करके नौकरी की तलाश में इधर उधर भटकते करोड़ों नौजवान का है। जैसे तैसे पढाई करते छात्रों का है। मेहनतकश किसानों का है जिन पर तब लाठी गोली चलती है जब वे उपज के वाजिब दाम के लिए सड़कों पर आते हैं । यही सवाल अपनी जमीन से उजाड़े जा रहे करोड़ों आदिवासियों के सामने है जिनकी जमीन टाटा-एस्सार-मित्तल-जिंदल-अम्बानी जैसे बड़े बड़े पूंजीपतियों को सौपीं जा रही है।
सचमुच बात यही है कि टाटा बिड़ला एस्सार अम्बानी अडानी जैसे बड़े बड़े पूंजी के मालिक ही देश के मालिक हैं ये 'लोकतंत्र', ये 'चुनाव' इन्हीं का तंत्र है प्रपंच है । सरकार इन्हीं की, राजनीतिक पार्टियां इन्हीं की! सब कुछ इन्हीं का है। वो संसाधन जो नाम के लिए तो जनता के हैं मगर इसके मालिक भी यही हैं। यही संसाधनों की लूट खसोट मचाते हैं। मेहनतकश जनता की लूट व शोषण के दम पर ये मालामाल होते जाते है। इनकी राजनीतिक पार्टियां और नेता भी मालामाल होते जाते हैं।
मेहनतकश जनता को तो यहां इतना ही अधिकार है कि वह पूंजीपतियों की इन पार्टियों में से किसी एक को चुन ले। यह चुन लें अगले 5 सालों में इन पूंजीपतियों की कौन सी पार्टी हम पर डंडा चलाएगी। इस पूँजीवादी व्यवस्था में चुनाव का केवल यही अर्थ है।
जब देश अंग्रेजों का गुलाम था । शासक अंग्रेज थे तब जलियावाला बाग हत्याकांड रचे गए। इससे आज़ादी की लड़ाई रुकी नहीं। नए जोश से आज़ादी का संघर्ष आगे बढ़ता गया। भगत सिंह, अशफ़ाक़ उल्ला, राजगुरु जैसे नायक पैदा हुए। ये वो दौर था जब मज़दूर मेहनतकशों की दुनिया समाजवादी सोवियत रूस में जगमगा रही थी। यह मज़दूर मेहनतकशों का समाजवादी देश ही था। जो दुनिया की अवाम को गुलामी के खिलाफ उठ खड़े होने व समाजवाद की राह दिखा रहा था । देश दुनिया में चले ऐसे संघर्षो से देश आज़ाद तो हुआ। मगर सत्ता पर जनता के प्रतिनिधियों के बजाय देशी लूटेरे पूंजीपति व जमींदार काबिज हो गए। हमारी गुलामी बदले रूप में बरकरार रही।
जैसा कि शहीद भगत सिंह ने कहा था- "गोरे अंग्रेजों की जगह काले अंग्रेजों के सत्ता पर आने से जनता के जीवन में विशेष फर्क नहीं पड़ने वाला" .... " जब तक एक इंसान द्वारा दूसरे इंसान का और एक राष्ट्र द्वारा दूसरे राष्ट्र का शोषण समाप्त नहीं कर दिया जाता तब तक ..शान्ति .. की सारी बातें महज ढोंग के सिवाय और कुछ भी नहीं हैं।" .... " जब तक सारा सामाजिक ढाँचा बदला नहीं जाता और उसके स्थान पर समाजवादी समाज स्थापित नहीं होता, हम महसूस करते हैं कि सारी दुनिया एक तबाह कर देने वाले प्रलय-संकट में है"। गुजरे 70 साल बताते हैं कि शहीद भगत सिंह की ये बातें हर तरह से सही हैं।
इन गुजरे 70 सालों में कई जलियावाला बाग हत्याकांड रचे गए हैं। तेलंगाना किसान आंदोलन से लेकर उत्तराखण्ड आंदोलन तक और कश्मीर से लेकर मणिपुर मिजोरम तक। दिल्ली, देहरादून, लखनऊ, पटना से कलकत्ता तक राजधानियों में जब भी छात्र, बेरोजगार, संविदा कर्मचारी आदि आंदोलन प्रदर्शन करते हैं तो उन पर लाठियां बरसती हैं। कांग्रेस की सरकार हो चाहे भाजपा की या फिर किसी अन्य की 'लाठी-गोली' चलाने में सभी आगे हैं। लाठी गोली से हमारा मुंह बंद कराने के लिए कई 'रौलेट एक्ट' जैसे कई दमनकारी कानून ये बना चुके हैं। अफस्फा, यू के पी ए, टाडा, मीसा आदि तो चंद नाम हैं । दमन का तंत्र हर बीतते दिन के साथ और मज़बूत होता जा रहा है । आधार के जरिए हर नागरिक की निगरानी की जा रही है। अंग्रेजों की तरह हमारे लुटेरे शासक सोचते हैं कि दमन के कानून से जनता के संघर्ष को रोक देंगे। वे भूल जाते हैं अंग्रेज जलियावाला बाग हत्याकांड कर जनसंघर्ष को नहीं रोक सके तो इनकी क्या बिसात है।
इन स्थितियों में जलियावाला बाग शहादत हमें प्रेरित करती है राह दिखाती है। जलियावाला बाग शहादत 'आज़ादी' के लिए, अपने अधिकारों के लिए संघर्ष का प्रतीक है गुलामी को न बर्दाश्त करने व इससे नफरत करने का प्रतीक है। यह साम्राज्यवाद के खिलाफ जुझारू संघर्ष का प्रतीक है।
मगर आज देखिए ! आज 'आज़ादी' की बात करना गुनाह है "देशद्रोह" है। 'गुलामी' 'जी हुजूरी' आज 'आदर्श' बताए जा रहे हैं। 'सरकार से सवाल करना', 'सरकार की नीतियों को गलत बताना' अपराध है देशद्रोह है ! साम्राज्यवादी अमेरिका के आगे पीछे दूम हिलाना 'राष्ट्रवाद' है ! कमजोर व गरीब देशों को डराना धमकाना जबकि ताकतवर व साम्राज्यवादी देशों के पैरों में लोट पोट हो जाना 'राष्ट्रवाद' है ! यही आज के 'राष्ट्रवादियों' का चरित्र है।
मोदी सरकार ने अपने आका 'अम्बानी-अडानी' को खुश कर दिया है। आज़ादी से पहले ये "राष्ट्रवादी" अंग्रेजों के सेवा में दंगे करवाते थे आज 'अडानी-अम्बानी व अमेरिका' के सेवक हैं। इनके राज में जनता ज्यादा तबाह-बर्बाद हुई है। मेहनतकश दलितों-मुस्लिमों पर हमले बढ़े हैं। महिलाओं पर यौन हिंसा बढ़ी है। इनके राज में साम्प्रदायिक वैमनस्य बढ़ा है मज़दूर मेहनतकशों के हकों पर हमला बढ़ा है।
आज 'हिन्दू फासीवाद' यानी आतंकी तानाशाही का खतरा हमारे बिल्कुल करीब है। देश को जालिम हिटलर के दौर में पंहुचाने की कोशिश हो रही है।
ऐसे हालात में जरूरी है कि जलियावाला बाग हत्याकांड के शहीदों को याद किया जाय, उनसे सीखा जाय। इन शहीदों ने हिन्दू-मुस्लिम-सिख का भेद भुलाकर मेहनत-मज़दूरी करने वालों की एकजुटता की मिसाल कायम की।आज़ादी के आंदोलन को आगे बढ़ाया। इसलिए आज यह जरूरी है कि शहीद भगत सिंह के बताए रास्ते पर हम आगे बढ़ें। केवल और केवल समाजवाद में गई जलियावाला बाग सरीखे हत्याकांड न घटने की गारंटी दी जा सकती है। मेहनतकश जनता को सारे अधिकार मिल सकते हैं। इसलिए आइये ! पूंजीवाद के नाश और समाजवाद की स्थापना के लिए संघर्ष तेज करें ।
जलियावाला बाग हत्याकांड के शहीदों को याद करो ! समाजवाद की राह चलो !
जलियावाला बाग हत्याकांड का यह 100 वां साल है। अंग्रेज सरकार ने क्रांतिकारी संघर्षो को कुचलने के लिए काला दमनकारी कानून' रौलेट एक्ट बनाया था। इसके विरोध में 13 अप्रेल 1919 को' जलियावाला बाग में सभा हो रही थी। सभा करते हज़ारों लोगों पर अंग्रेज सरकार ने गोलियां चलवा दी जिसमें हज़ार से ज्यादा लोग शहीद हो गए। हज़ारों घायल हो गए।
इस शहीदी दिवस को हम ऐसे मौके पर याद कर रहे हैं जब कि देश में 'आम चुनाव' हो रहे हैं ! इन चुनावों में हम जनता को बताया जाता है कि यहां सबसे बड़ा 'लोकतंत्र' है, कि चुनाव 'महापर्व' है, कि जनता जिसे चाहे- जिस पार्टी को चाहे जिताये, कि वोट डालना नागरिकों की जिम्मेदारी व अधिकार है। 'वोट के अधिकार' पर इतनी "चिंता", इतने विज्ञापन और इतना प्रचार !! मगर बात जब 'रोज़गार के अधिकार' की हो, 'शिक्षा के अधिकार' की हो, 'इलाज के अधिकार' की हो या फिर 'धरना-प्रदर्शन-विरोध' कर सकने व 'असहमति जताने' 'सवाल करने' के अधिकार की बात हो ! तब जवाब 'लाठीयां-मुकदमे और जेल' होती है।
चुनाव पर एक दिन वोट डलवाकर फिर रात दिन इन्हीं नागरिकों के अधिकारों पर, सुविधाओं पर डाका डाला जाता है। दिन रात की हाड़ तोड़ मेहनत की जो कमाई होती है उसे हड़पने की स्कीम बनती हैं। फिर अधिकारों के लिए संघर्ष की बात हो या सरकार की नीतियों पर सवाल उठाने की बात या फिर सरकार और चुने हुए नेताओं की आलोचना बात हो सब कुछ 'देशद्रोह' हो जाता है
इन स्थितियों में हम नागरिक जो कि मज़दूर है मेहनतकश है जिनकी तादाद करोड़ों में है यह सवाल हमारे सामने है कि हम इस कथित 'लोकतंत्र' को, इस 'चुनाव' को अपना कैसे और क्यों माने ? इस 'लोकतंत्र' में उनके लिए क्या है ? 70 सालों में इस 'लोकतंत्र' ने हमें क्या दिया ? हम देखते हैं कि जब भी हम अपनी मांगों के लिए आंदोलन करते हैं तो हम पर लाठियां बरसती हैं फर्जी मुकदमे लगते हैं जेलों में सड़ाया जाता है। कानून हमारी मेहनत की लूट के लिए बनाए व बदले जा रहे हैं। सरकार किसी भी पार्टी की हो ! यह बढ़ता ही चला जाता है । ऐसा क्यों ?
यही सवाल बदले रूप में जैसे तैसे पढाई लिखाई करके नौकरी की तलाश में इधर उधर भटकते करोड़ों नौजवान का है। जैसे तैसे पढाई करते छात्रों का है। मेहनतकश किसानों का है जिन पर तब लाठी गोली चलती है जब वे उपज के वाजिब दाम के लिए सड़कों पर आते हैं । यही सवाल अपनी जमीन से उजाड़े जा रहे करोड़ों आदिवासियों के सामने है जिनकी जमीन टाटा-एस्सार-मित्तल-जिंदल-अम्बानी जैसे बड़े बड़े पूंजीपतियों को सौपीं जा रही है।
सचमुच बात यही है कि टाटा बिड़ला एस्सार अम्बानी अडानी जैसे बड़े बड़े पूंजी के मालिक ही देश के मालिक हैं ये 'लोकतंत्र', ये 'चुनाव' इन्हीं का तंत्र है प्रपंच है । सरकार इन्हीं की, राजनीतिक पार्टियां इन्हीं की! सब कुछ इन्हीं का है। वो संसाधन जो नाम के लिए तो जनता के हैं मगर इसके मालिक भी यही हैं। यही संसाधनों की लूट खसोट मचाते हैं। मेहनतकश जनता की लूट व शोषण के दम पर ये मालामाल होते जाते है। इनकी राजनीतिक पार्टियां और नेता भी मालामाल होते जाते हैं।
मेहनतकश जनता को तो यहां इतना ही अधिकार है कि वह पूंजीपतियों की इन पार्टियों में से किसी एक को चुन ले। यह चुन लें अगले 5 सालों में इन पूंजीपतियों की कौन सी पार्टी हम पर डंडा चलाएगी। इस पूँजीवादी व्यवस्था में चुनाव का केवल यही अर्थ है।
जब देश अंग्रेजों का गुलाम था । शासक अंग्रेज थे तब जलियावाला बाग हत्याकांड रचे गए। इससे आज़ादी की लड़ाई रुकी नहीं। नए जोश से आज़ादी का संघर्ष आगे बढ़ता गया। भगत सिंह, अशफ़ाक़ उल्ला, राजगुरु जैसे नायक पैदा हुए। ये वो दौर था जब मज़दूर मेहनतकशों की दुनिया समाजवादी सोवियत रूस में जगमगा रही थी। यह मज़दूर मेहनतकशों का समाजवादी देश ही था। जो दुनिया की अवाम को गुलामी के खिलाफ उठ खड़े होने व समाजवाद की राह दिखा रहा था । देश दुनिया में चले ऐसे संघर्षो से देश आज़ाद तो हुआ। मगर सत्ता पर जनता के प्रतिनिधियों के बजाय देशी लूटेरे पूंजीपति व जमींदार काबिज हो गए। हमारी गुलामी बदले रूप में बरकरार रही।
जैसा कि शहीद भगत सिंह ने कहा था- "गोरे अंग्रेजों की जगह काले अंग्रेजों के सत्ता पर आने से जनता के जीवन में विशेष फर्क नहीं पड़ने वाला" .... " जब तक एक इंसान द्वारा दूसरे इंसान का और एक राष्ट्र द्वारा दूसरे राष्ट्र का शोषण समाप्त नहीं कर दिया जाता तब तक ..शान्ति .. की सारी बातें महज ढोंग के सिवाय और कुछ भी नहीं हैं।" .... " जब तक सारा सामाजिक ढाँचा बदला नहीं जाता और उसके स्थान पर समाजवादी समाज स्थापित नहीं होता, हम महसूस करते हैं कि सारी दुनिया एक तबाह कर देने वाले प्रलय-संकट में है"। गुजरे 70 साल बताते हैं कि शहीद भगत सिंह की ये बातें हर तरह से सही हैं।
इन गुजरे 70 सालों में कई जलियावाला बाग हत्याकांड रचे गए हैं। तेलंगाना किसान आंदोलन से लेकर उत्तराखण्ड आंदोलन तक और कश्मीर से लेकर मणिपुर मिजोरम तक। दिल्ली, देहरादून, लखनऊ, पटना से कलकत्ता तक राजधानियों में जब भी छात्र, बेरोजगार, संविदा कर्मचारी आदि आंदोलन प्रदर्शन करते हैं तो उन पर लाठियां बरसती हैं। कांग्रेस की सरकार हो चाहे भाजपा की या फिर किसी अन्य की 'लाठी-गोली' चलाने में सभी आगे हैं। लाठी गोली से हमारा मुंह बंद कराने के लिए कई 'रौलेट एक्ट' जैसे कई दमनकारी कानून ये बना चुके हैं। अफस्फा, यू के पी ए, टाडा, मीसा आदि तो चंद नाम हैं । दमन का तंत्र हर बीतते दिन के साथ और मज़बूत होता जा रहा है । आधार के जरिए हर नागरिक की निगरानी की जा रही है। अंग्रेजों की तरह हमारे लुटेरे शासक सोचते हैं कि दमन के कानून से जनता के संघर्ष को रोक देंगे। वे भूल जाते हैं अंग्रेज जलियावाला बाग हत्याकांड कर जनसंघर्ष को नहीं रोक सके तो इनकी क्या बिसात है।
इन स्थितियों में जलियावाला बाग शहादत हमें प्रेरित करती है राह दिखाती है। जलियावाला बाग शहादत 'आज़ादी' के लिए, अपने अधिकारों के लिए संघर्ष का प्रतीक है गुलामी को न बर्दाश्त करने व इससे नफरत करने का प्रतीक है। यह साम्राज्यवाद के खिलाफ जुझारू संघर्ष का प्रतीक है।
मगर आज देखिए ! आज 'आज़ादी' की बात करना गुनाह है "देशद्रोह" है। 'गुलामी' 'जी हुजूरी' आज 'आदर्श' बताए जा रहे हैं। 'सरकार से सवाल करना', 'सरकार की नीतियों को गलत बताना' अपराध है देशद्रोह है ! साम्राज्यवादी अमेरिका के आगे पीछे दूम हिलाना 'राष्ट्रवाद' है ! कमजोर व गरीब देशों को डराना धमकाना जबकि ताकतवर व साम्राज्यवादी देशों के पैरों में लोट पोट हो जाना 'राष्ट्रवाद' है ! यही आज के 'राष्ट्रवादियों' का चरित्र है।
मोदी सरकार ने अपने आका 'अम्बानी-अडानी' को खुश कर दिया है। आज़ादी से पहले ये "राष्ट्रवादी" अंग्रेजों के सेवा में दंगे करवाते थे आज 'अडानी-अम्बानी व अमेरिका' के सेवक हैं। इनके राज में जनता ज्यादा तबाह-बर्बाद हुई है। मेहनतकश दलितों-मुस्लिमों पर हमले बढ़े हैं। महिलाओं पर यौन हिंसा बढ़ी है। इनके राज में साम्प्रदायिक वैमनस्य बढ़ा है मज़दूर मेहनतकशों के हकों पर हमला बढ़ा है।
आज 'हिन्दू फासीवाद' यानी आतंकी तानाशाही का खतरा हमारे बिल्कुल करीब है। देश को जालिम हिटलर के दौर में पंहुचाने की कोशिश हो रही है।
ऐसे हालात में जरूरी है कि जलियावाला बाग हत्याकांड के शहीदों को याद किया जाय, उनसे सीखा जाय। इन शहीदों ने हिन्दू-मुस्लिम-सिख का भेद भुलाकर मेहनत-मज़दूरी करने वालों की एकजुटता की मिसाल कायम की।आज़ादी के आंदोलन को आगे बढ़ाया। इसलिए आज यह जरूरी है कि शहीद भगत सिंह के बताए रास्ते पर हम आगे बढ़ें। केवल और केवल समाजवाद में गई जलियावाला बाग सरीखे हत्याकांड न घटने की गारंटी दी जा सकती है। मेहनतकश जनता को सारे अधिकार मिल सकते हैं। इसलिए आइये ! पूंजीवाद के नाश और समाजवाद की स्थापना के लिए संघर्ष तेज करें ।