Saturday, 23 March 2024

साम्प्रदायिक नागरिकता (संशोधन) कानून के ज़रिए भी फासीवादी निजाम की ओर बढ़े कदम



    


साम्प्रदायिक नागरिकता (संशोधन) कानून के ज़रिए भी फासीवादी निजाम की ओर बढ़े कदम

     

        आखिरकार संघी सरकार ने सी ए ए लागू कर ही दिया है। हालांकि इस बार एन आर सी पर और एन पी आर पर ये खामोश हैं l 2019 में गृहमंत्री ने कहा था कि देश में एन आर सी और  एन पी आर होकर रहेगी, तब इसका व्यापक विरोध हुआ था। विरोध सबसे पहल पहले असम में ही हुआ था। असम में जिस वजह से एन आर सी (राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर) लागू की गई थी उसी वजह से मोदी-शाह की सरकार के सी ए ए का व्यापक और उग्र विरोध की शुरुआत भी यहीं से हुई थी। असम के मूल निवासी सी ए ए के जरिए किसी को भी नागरिकता देकर असम में बसाये जाने की आशंका के चलते सी ए ए का विरोध कर रहे थे। जबकि देश के बाकी हिस्सों में इसका विरोध नागरिकता कानून के सांप्रदायिक रुख और एन आर सी होने पर नागरिकता जाने के खतरे के चलते हो रहा था।

   इस व्यापक विरोध के बाद गृहमंत्री और प्रधानमंत्री को बार-बार कहना पड़ा कि देश में एन आर सी नहीं होगी। बाद में सरकार ने संघर्ष के दबाव में इसे ठंडे बस्ते में डाल दिया था। इस वक्त व्यापक विरोध की एक खास वजह थी वह यह कि संघी सरकार ने साफ कहा था कि आधार कार्ड, वोटर कार्ड, राशन कार्ड जैसे बुनियादी दस्तावेज मान्य नहीं होंगे।

       इस बार पीछे हटकर इन्होंने इन तीन पड़ोसी देशों के गैर मुस्लिमों के लिए एक दस्तावेज उनके मूल देश का साबित करने वाले की जरूरत के साथ भारत सरकार द्वारा जारी पेन कार्ड, आधार कार्ड आदि को भी मान्यता देकर इसकी जरूरत बताई है। इसका ये मतलब नहीं कि भारत में केवल आधार कार्ड, पेन कार्ड, डी एल आदि नागरिकता साबित करने वाले दस्तावेज़ हैं।

      नागरिकता संशोधन कानून (2019) के जरिए  मनमाने तरीके से तीन देशों पाकिस्तान, अफगानिस्तान, बांग्लादेश के गैर मुस्लिम अल्पसंख्यकों को नागरिकता देने के प्रावधान कर दिए थे। मुस्लिमों  को अपने ध्रुवीकरण।के औजार बनाकर इससे वंचित कर दिया गया। गरीब अप्रवासियों को  विशेषकर अवैध मुस्लिम अप्रवासियों  को ये दीमक और घुसपैठिये को दीमक के रूप में प्रचारित करते है।

    अब फिर से ठीक चुनाव से पहले इसे ये ले आए। इसकी एक खास वजह असम ही थी जहां बहुसंख्यक हिन्दू जो पिछली बार नागरिकता के दायरे से बाहर रह गए थे, उन्हें इसके दायरे में ले आना; साथ ही पश्चिम बंगाल में मेतुवा समुदाय को अपने पक्ष में लामबंद करना था। जबकि इसकी आम वजह तो पूरे देश के भीतर अपने फासीवादी एजेंडे को आगे बढ़ाना है, बहुसंख्यक हिंदुओं को अपने पक्ष में लामबंद करना है।

    यद्यपि सरकार इस कानून को नागरिकता देने वाला बता इससे किसी की नागरिकता न छीनने की बात कर रही है पर भविष्य में एन आर सी लागू कर वह देश में रह रहे तमाम वंचित समुदायों से नागरिकता छीन सकती है। मुस्लिम समुदाय के लोगों को वह विशेष तौर पर लक्षित कर सकती है। यद्यपि असम की तरह इस प्रक्रिया के निशाने पर आदिवासी व अन्य वंचित समुदाय भी आयेंगे।

       कुल मिलाकर मोदी सरकार अभी नागरिकता के मामले में पीछे हटी है मगर इसका कोर यानी केन्द्रीय चीज बची हुई है वह है सांप्रदायिक आधार पर नागरिकता देना। अभी यह फासीवादी एजेंडा समाप्त नहीं हुआ है बल्कि आने वाले वक्त में यह एजेंडा देश के भीतर नागरिकता की पहचान करने के रूप में सामने आएगा।

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