Tuesday, 12 February 2019

जहरीली शराब से हुई मौतों के जिम्मेदार शासक ही हैं !

जहरीली शराब से हुई मौतों के जिम्मेदार शासक ही हैं !

       उत्तराखण्ड के रुड़की, यू पी के सहारनपुर व कुशीनगर में अब तक जहरीली शराब के चलते 100 से ज्यादा मौतें हो चुकी हैं। हर बार की तरह फिर असल अपराधियों, शराब के अवैध कारोबारियों को बचाने का खेल खेला जा रहा है।   
       जहरीली शराब से होने वाली मौतों का मामला पहली दफा नहीं है। 2015 में मुंबई में गरीब बस्ती में 100 से ज्यादा लोग की मौत हुई थी। गुजरात में 2009 में 136 लोगों की जबकि 1987 में 200 लोगों की मौत हुई थी। पश्चिम बंगाल में 2011 में 170 लोग जहरीली शराब के चलते मर गए। कर्नाटक में 1981 में 308 लोग लोगों की मौत जहरीली शराब के चलते हो गई।       हर बार मरने वाले गरीब व मेहनतकश लोग ही होते हैं। सहारनपुर  व रुड़की में हुई मौतों में भी सभी गरीब मज़दूर मेहनतकश लोग ही हैं।
    शराब के अवैध कारोबारी बेहद सस्ती मिथाइल अल्कोहल(जहरीली शराब) का इस्तेमाल  करते हैं  या फिर गुड़ व शीरा को शराब बनाने के लिए  इसे जल्द सड़ाने के लिए इसमें रसायन का इस्तेमाल करते हैं। इसका नतीजा यह होता है कि इसमें एथिल एल्कोहॉल(शराब) के साथ साथ मिथाइल एल्कोहॉल ज्यादा मात्रा में बन जाता है।  यह बहुत सस्ती बनती है। गरीब बस्तियों में इसी की सप्लाई कर दी जाती है। इसके अलावा भी कई बार जानकारी न होने के चलते गलत प्रक्रिया से किण्वन  (सड़ाने) के चलते शराब में मिथाइल एल्कोहॉल भी बन जाता है।
      मिथाइल एल्कोहल की थोड़ी मात्रा भी शरीर के घातक होती है इसे पीने के कुछ घंटों बाद आँखों की रोशनी चले जाती है और अंततः मौत हो जाती है। हालांकि जल्द उपचार मिलने पर एंटीडोट से बचाया भी जा सकता है।
शराब के अवैध कारोबार का पूरा का पूरा एक नेटवर्क बनता है इसमें आबकारी विभाग से लेकर पुलिस अधिकारी, शराब के अवैध कारोबारी व विधायक तक संलिप्त मिलेंगे। यह सस्ती व घटिया मिलावटी शराब गरीब मेहनतकशों तक पहुँचती है और इनके लिए जानलेवा साबित होती है।
इन मौतों के लिए यह मौजूदा व्यवस्था जिम्मेदार हैं शासक वर्ग जिम्मेदार है। मज़दूर मेहनतकश जन को शासकों व इनकी व्यवस्था ने कंगाल दरिद्र बना दिया है कि ये हर बेहतर चीज से महरूम हैं। सबसे ज्यादा घटिया निकृष्ट कोटि की चीज ही इन्हें मयस्सर है। खान पान से लेकर रहन सहन तक या फिर इलाज, यातायात व मनोरंजन के साधन ! किसी भी चीज को उठा कर देख लीजिए ! सबसे खराब गुणवत्ता वाली चीज का उपभोग करते ये गरीब मज़दूर मेहनकश जन मिलेंगे। यही स्थिति शराब के सम्बन्ध में भी सच है। सस्ती घटिया जानलेवा शराब ही इन्हें मिलती है।
जिंदगी की हताशा, निराशा, कुंठा व क्षोभ जो इस सिस्टम से पैदा होता है यह इन्हें नशाखोरी की ओर धकेलता है।
 शासक वर्ग के पास शराब को महंगा करने या फिर शराबबंदी करने के अलावा 'नशाखोरी' का कोई इलाज नहीं है। इन दोनों  कदमों का ही नतीजा भी होता है कि अवैध शराब का कारोबार का मार्केट छलांग लगाने लगता है। साथ ही बड़े स्तर पर कच्ची शराब भी बनने लगती है। यहीं फिर जहरीली शराब की संभावना बन जाती है। यह घटिया व सस्ती शराब गरीब बस्तियों तक पहुंचती है इसका नतीजा सहारनपुर रुड़की जैसी घटना में होता है। पूँजीवाद के रहते मज़दूर मेहनतकशों की ज़िंदगी इसी तरह रहनी है।

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