गतिविधियां

  



★ *काकोरी ट्रेन एक्शन के 100 साल पर निकाला साम्राज्यवाद विरोधी मार्च*

★ *साम्राज्यवादियों के सरगना ट्रंप का किया पुतला दहन*


        काकोरी शहीद यादगार कमेटी (क्रालोस, इमके, यू पी के एम यू, मजदूर मण्डल उप्र, बी टी यू एफ, पछास, क्रान्तिकारी किसान मंच, प्रगतिशील सांस्कृतिक मंच, ए आई एल यू, पी यू सी एल, आटो रिक्शा टैम्पो चालक वैलफेयर एसोसिएशन) के तत्वाधान में सेठ दामोदर स्वरुप पार्क (स्वतन्त्रता संग्राम सेनानी) से बहुराष्ट्रीय निगमों के इशारों पर नाचने वाली भाजपा सरकार की किसान, मजदूर, छात्र-नौजवान, महिला, दलित, अल्पसंख्यक, आदिवासी विरोधी व कारपोरेट परस्त नीतियों के खिलाफ 'कारपोरेट भारत छोड़ो' की मांग को लेकर 'साम्राज्यवाद विरोधी मार्च' निकाला गया। जुलूस सेठ दामोदर स्वरुप पार्क से अय्यूब खां चौराहे तक गया। तत्पश्चात साम्राज्यवादी सरगना अमेरिकी साम्राज्यवाद के मुखिया ट्रंप का पुतला दहन किया गया।

      मार्च प्रारंभ होने से पूर्व आयोजित संक्षिप्त सभा में क्रालोस के साथी मो. फैसल ने काकोरी एक्शन के सौ वर्ष पूरे होने व वर्तमान में अमरीकी साम्राज्यवाद की दादागिरी पर प्रकाश डालते हुए कहा कि शहीद क्रांतिकारियों का मिशन आज भी अधूरा है। हमारे शहीद एक लुटेरी ईस्ट इंडिया कंपनी के खिलाफ लड़ रहे थे। आज सैकड़ों लुटेरी साम्राज्यवादी कंपनियां हमारे देश में संसाधनों की लूट कर रही हैं।

       मजदूर मण्डल के लक्ष्मण सिंह राणा ने शहीदों व उनके संघर्ष को याद कर कहा कि हमें अमर शहीदों की विरासत को आगे बढ़ाना होगा। आज जारी साम्राज्यवादी व कारपोरेट लूट-शोषण के खिलाफ हमें आवाज बुलंद करनी होगी।

       मार्च के अंत में प्रगतिशील सांस्कृतिक मंच की टीम ने 'जागो फिर एक बार जागो रे' गीत गाया। तदुपरांत संयोजक राजीव शान्त ने सभी शामिल साथियों का आभार व्यक्त करते हुये कार्यक्रम के समापन की घोषणा की ।

        मार्च का नेतृत्व काकोरी शहीद यादगार कमेटी बरेली के संयोजक व उत्तर प्रदेश खेत मजदूर यूनियन के प्रदेश सचिव राजीव शान्त, काकोरी शहीद यादगार कमेटी बरेली के सह संयोजक व क्रान्तिकारी लोक अधिकार संगठन के सचिव फैसल, मजदूर मण्डल उप्र के प्रदेश अध्यक्ष लक्ष्मण सिंह राना, इंकलाबी मजदूर केन्द्र के सचिव ध्यान चंद मौर्य, बी टी यू एफ के अध्यक्ष मुकेश सक्सेना, परिवर्तनकामी छात्र संगठन के सचिव कैलाश, सभासद राजेश अग्रवाल ने किया ।

        इस दौरान राजीव शान्त, मो. फैसल, ध्यान चंद मौर्य, कैलाश, मुकेश सक्सेना, इंतिखाब हुसैन, मौ. इरशाद, जलालुद्दीन, असद अली, झम्मन लाल, तुलाराम, लक्ष्मण सिंह राना, हिमांशु, बालकराम, आसिफ, विवेक, नंदकिशोर, अरविंद शुक्ला, लालजी कुशवाहा, सौरभ कुमार, अंकित, प्रशांत पटेल, अब्दुल्ला कुरैशी, मोइनुद्दीन शिल्पी, कल्पना राना, कुलदीप राना, टी आर लोधी, अभिषेक, आशीष, ललित चौधरी, रामसेवक आदि मुख्य रुप से मौजूद रहे ।



         


 कथित समान नागरिक संहिता के विरोध में धरना जुलूस

            देहरादून  (उत्तराखंड) में 15 अप्रैल 2025 को हिंदू fफासीवादी सरकार के कथित समान नागरिक संहिता के विरोध में क्रालोस, चेतना आंदोलन, उत्तराखंड महिला मंच, सी पी आई सीटू, एस एफ आई , प्रगतिशील महिला एकता केंद्र आदि संगठनों ने  धरना जुलूस और ज्ञापन कार्यक्रम किया।

           धरने में सभी वक्ताओं ने फासीवाद के हमले को अपने अपने तरीके से व्यक्त किया और कथित समान नागरिक संहिता को सभी ने निगरानी तंत्र और  संवैधानिक जनवादी अधिकारों पर हमला बताया। यह भी कहा कि महिलाओं, दलितों और अल्पसंख्यकों के निजी मामलों में अधिकारों को रौंदने वाला और संघ व इसके लंपट संगठनों द्वारा इसके जरिए ध्रुवीकरण करने वाला कानून, लिए इन और विवाह में रजिस्ट्रेशन और अन्य मामलों में असफल होने को आपराधिक बनाने वाला  अवैध वसूली के साथ ही जानकारियों का बोझ ढूंढने जमा करने की जिम्मेदारी जनता पर लादने वाला है।

         इसके खिलाफ सभी ने निरंतर संघर्ष करने का संकल्प लिया।

                कार्यक्रम में क्रांतिकारी लोक अधिकार संगठन, चेतना आंदोलन, महिला मंच, सी पी आई, सी पी एम, यू के डी, जमीयत उलेमा ए हिंद, इंसानियत मंच, सर्वोदय मंडल आदि शामिल रहे।

          जलियांवाला बाग शहादत कांड के 106वें साल पर मौजूदा फासीवाद के खतरे पर सेमिनार 

         आज 13 अप्रैल 2025 को जलियांवाला बाग कांड की 106 वीं बरसी पर बरेली में पीडब्ल्यूडी के प्रेरणा सदन सभागार में एक सेमिनार आयोजित किया गया। सेमिनार का आयोजन इंकलाबी मजदूर केंद्र, क्रांतिकारी लोक अधिकार संगठन, परिवर्तनकामी छात्र संगठन, क्रांतिकारी किसान मंच, ऑटो रिक्शा चालक वेलफेयर एसोसिएशन और प्रगतिशील सांस्कृतिक मंच की ओर से किया गया। सेमिनार का विषय "क्या भारत में फासीवाद का खतरा मंडरा रहा है?" रखा गया था। 

          सेमिनार की शुरुआत जोशीले क्रांतिकारी गीत 'हम सर्वहारा की आवाज इंकलाब ' से प्रगतिशील सांस्कृतिक मंच द्वारा किया गया। क्रांतिकारी लोक अधिकार संगठन के साथी ललित ने सेमिनार पत्र को सदन के पटल पर रखा।

          विभिन्न वक्ताओं ने अपनी बात रखते हुए कहा कि 2007 -08 में आया हुआ आर्थिक संकट अभी भी समाप्त नहीं हुआ है ।आज दुनिया में फासीवाद पुन: अपना पर प्रसार रहा है। विश्व के कई देशों में फासीवादी उभार होता दिखाई दे रहा है । भारत में भी हिंदू फासीवाद का खतरा तेजी से बढ़ रहा है । देश के संवैधानिक संस्थाओं पर हिंदू फासीवादी अपनी पकड़ को मजबूत करते जा रहे हैं। यहां तक की सेना और न्यायालय भी इससे अछूते नहीं हैं। सभी श्रम कानून बदलकर चार श्रम संहिताओं में रख दिया गया है। यह मजदूर वर्ग पर एकाधिकारी पूंजी द्वारा सबसे क्रूर हमला बोला गया है। तीन अपराधिक कानून बनाकर लोगों पर दमन का शिकंजा और मजबूत कर दिया गया है । जो पीड़ित है उन्हीं पर मुकदमे लादे जा रहे हैं । उन्हीं के घर पर बुलडोजर चलाया जा रहा है जबकि फासीवादियों पर कोई कार्रवाई नहीं हो रही है । सेमिनार की अध्यक्षता करते हुए साथी देव सिंह ने कहा कि फासीवादी आंदोलन का मुकाबला करना बहुत जरूरी है । इसके लिए मजदूर वर्ग और उसके साथ अन्य मेहनतकश तबकों को एकजुट होने का आवाहन किया ।

        सेमिनार में बरेली ट्रेड यूनियन फेडरेशन के अध्यक्ष मुकेश सक्सेना जी, महामंत्री संजीव मेहरोत्रा जी, बरेली कालेज के साथी जितेंद्र मिश्रा जी, मानसिक चिकित्सालय के साथी सलीम जी और अटेवा के साथी हरिशंकर जी ने भागीदारी की और वक्तव्य रखें।



 

 जलियांवाला बाग के शहीदों की स्मृति में मौजूदा दौर में हिंदू फासीवाद के खतरे और हमारे कार्यभार पर सेमिनार 

      13 अप्रैल 1919 के जलियांवाला बाग हत्याकांड के शहीदों को याद करते हुए आज 13 अप्रैल को ही एक सेमिनार का आयोजन किया गया।

      सेमिनार का आयोजन संयुक्त तौर पर किया गया। सेमिनार का आयोजन  इंकलाबी मजदूर केंद्र, क्रांतिकारी लोक अधिकार संगठन, परिवर्तनकामी छात्र संगठन और प्रगतिशील महिला एकता केंद्र  द्वारा आयोजित किया गया। देहरादून, हरिद्वार, कोटद्वार की टीमों द्वारा यह कार्यक्रम किया गया।

          कार्यक्रम का संचालन करते हुए इंकलाबी मजदूर केंद्र के प्रभारी पंकज ने जलियांवाला बाग हत्याकांड की पृष्ठभूमि और इस हत्याकांड के शहीदों द्वारा आजादी, बराबरी और भाईचारे के लिए किए गए संघर्ष को याद करते हुए श्रद्धांजली दी।

       इसके बाद क्रांतिकारी गीत प्रस्तुत किया गया। फिर प्रगतिशील महिला एकता केंद्र की प्रभारी नीता ने आज देश में धर्म के नाम पर नफरत भरी राजनीति के साथ ही विद्वेष, साम्प्रदायिक नफरत और दंगों के कहीं भी किसी भी समय होने की संभावना के खतरे को रेखांकित किया। वक्ता ने कहा कि आज दुनिया भर में और हमारे देश में भी हिटलर मुसोलिनी की जैसी फासीवादी राजनीति करने लोगों, पार्टियों और संगठन समाज को बर्बरता की ओर धकेल रहे हैं। एक बार फिर से फासीवादी बर्बरता की ओर समाज को धकेलने का काम आज के विशाल पूंजी के मालिक कर रहे हैं। विशाल पूंजी के मालिक मजदूर मेहनतकश जनता और छोटे मझौले मालिकों को मेहनत और पूंजी को निचोड़ लेना चाहते हैं इसलिए इन्हें  धर्म, नस्ल जैसी नफरत भरी राजनीति की जरूरत है ताकि जनता को बांट दिया जय।  इसका  जवाब मजदूर मेहनतकश जनता की ही एकजुटता के दम पर समाजवाद समाज स्थापित करके ही दिया जा सकता है।

         ट्रेड यूनियन के वक्ता ने कहा कि रॉलेट एक्ट कानून के विरोध में और आजादी के लिए हिंदू मुस्लिम सिख जनता ने एकजुट होकर संघर्ष किया और जालियांवाला बैग हत्याकांड शहादत हुई। 

        परिवर्तन कामी छात्र संगठन के वक्ता ने अपनी बातों को रखते हुए कहा कि आज देश में अंग्रेज शासकों की बाटों और राज करो की नीति को खुल कर आगे बढ़ाया जा रहा है हिंदू मुस्लिम , मंदिर मस्जिद के अलावा आज के शासकों के पास कहने को कुछ भी नहीं है। यह अंग्रेजों से भी खतरनाक हिटलर के नाज़ी जर्मनी की याद दिलाती है 

           क्रांतिकारी लोक अधिकार संगठन के वक्ता ने कार्यक्रम का समापन करते हुए कहा कि हमारा सामने आज सबसे बड़ा खतरा आतंकी तानाशाही का है । यह हिटलर के नाज़ी जर्मनी की ही तरह का खतरा है जब मजदूरों किसानों मेहनकश जनता के आंदोलन खत्म करने के लिए यहूदियों को जर्मन समाज के लिए सबसे बड़ा खतरा बताकर जनता को बांट दिया और फिर उन्मादी भीड़ को पैदा करके लाखों लोगों को गैस चैंबर में झोंक दिया लाखों को यातना कैंप में डाल दिया और फिर दुनिया को दूसरे विश्व युद्ध की ओर धकेल दिया था जिसमें 6 करोड़ लोग मारे गए थे। तब भी इसका जवाब समाजवाद के लिए लड़ रही क्रांतिकारी मजदूर मेहनतकश जनता ने क्रांतिकारी संघर्षों से दिया था। आज भी इसका जवाब समाजवाद के लिए क्रांतिकारी संघर्ष से ही दिया जा सकता है।  आज की तात्कालिक जरूरत है कि मजदूर मेहनतकश जनता एकजुट होकर अपने अधिकारों के लिए एकजुट हो और संघर्ष करे।

          कार्यक्रम में अलग अलग ट्रेड यूनियन के प्रतिनिधियों ने भी अपनी बातचीत रखी। सभी वक्ताओं ने इस बात को रेखांकित किया कि आज धर्म के नाम पर हर जगह नफरत फैलाई जा रही है यह ना केवल जलियांवाला बाग हत्याकांड के शहीदों का अपमान है बल्कि यह मजदूर मेहनतकश जनता के लिए यह हर तरह से घातक है। एक तरफ यह जनता की नग्न लूट खसोट मचाता है दूसरी तरफ जनता पर आतंक भरी तानाशाही कायम करता है। इसलिए जनता के हर हिस्से को एकजुट होकर इसके खिलाफ और अपने अधिकारों के लिए आवाज उठानी होगी।






हिदू फासीवाद विरोधी अभियान 

      एकाधिकारी पूंजी और संघ - भाजपा के गठजोड़ के देश के मजदूर मेहनतकश जनता पर बोले जा रहे हमलों के विरोध में संयुक्त अभियान फरवरी माह में चला। इस अभियान में पुस्तिका और पर्चे के जरिए के जरिए जनता को जागरूक किया गया। अभियान 10 से 15 दिन का चलाया गया। अभियान  क्रालोस, इमके, पछास और प्र.म.ए.के. ने संयुक्त मोर्चे के रूप में संचालित किया।

अभियान देवरिया, बलिया, मऊ, फरीदाबाद, गुड़गांव, दिल्ली, बरेली, हल्द्वानी, रुद्रपुर, लालकुआं, रामनगर, काशीपुर, देहरादून, कोटद्वार, हरिद्वार आदि जगहों पर चला। अभियान में आम तौर जनता के अलग अलग हिस्सों में मोदी सरकार के खिलाफ आक्रोश या नाराजगी या असंतुष्टि की अलग स्थिति दिखी। महंगाई, बेरोजगारी, जिंदगी की मुश्किलें अधिकांश के ही जीवन को संकटग्रस्त बना रही हैं। मजदूरों, गरीबों और छोटे कारोबारियों में नाराजगी साफ दिखाई दी।

मोदी सरकार के तीन कानूनों पर पर्चा पुस्तिका अभियान 

      एकाधिकारी पूंजी और संघ - भाजपा के गठजोड़ द्वारा आम नागरिकों के अधिकारों को पूरी तरह रौंदने के लिए पुराने तीन आपराधिक कानूनों में खतरनाक काले प्रावधान करके पास करवा लिए। इसे मोदी सरकार द्वारा अपनी उपलब्धि बताया गया। मोदी सरकार ने कहा कि ये तीन कानून औपनिवेशिक गुलामी के प्रतीक थे इनसे मुक्ति दिलाने का हमने किया है। 

         देश के करोड़ों करोड़ मजदूर मेहनतकश नागरिकों के अधिकारों को रौंदने वाले इन तीन आपराधिक कानूनों पर पर्चा और पुस्तिका जारी करके अभियान दिसम्बर 24 में चलाया गया। इस अभियान में पुस्तिका और पर्चे के जरिए के घर घर जाकर जरिए बेनकाब करने का अभियान चला।

अभियान देवरिया, बलिया, मऊ,, दिल्ली, बदायूं बरेली, हल्द्वानी, रुद्रपुर,काशीपुर, देहरादून, कोटद्वार, हरिद्वार आदि जगहों पर चला। 


 23 मार्च के शहीदों की याद में कार्यक्रम


      संगठन द्वारा 23 मार्च शहीद दिवस पर जारी किया गया जिसका शीर्षक था " भगत सिंह की बात सुनो, इंकलाब की राह चुनो"।स पर्चे का अलग अलग जगह पर वितरण किया गया और कार्यक्रम किए गए।

    देहरादून में दो दिन स्टाल लगाई गई और पर्चे का वितरण किया गया बदायूं में जन हित सत्याग्रह मोर्चा के साथ मिलकर श्रद्धांजलि  और गोष्ठी कार्यक्रम किया गया।

   बलिया में इंकलाबी मजदूर केंद्र के साथ संयुक्त रूप से गोष्ठी कार्यक्रम किया गया।बरेली में शहर एवं गांव में कार्यक्रम किए गए। यहां पछास , इमके के साथ मिलकर भी कार्यक्रम हुए।



 

   रामपुर में पुलिस प्रशासन द्वारा दलितों पर लाठीचार्ज मामले में जांच पड़ताल हेतु दौरा

        रामपुर के सिलई बड़ागांव का जनहित सत्याग्रह मोर्चा और क्रलोस ने किया दौरा किया।
     फरवरी 2024 को जनहित सत्याग्रह मोर्चा, क्रांतिकारी लोक अधिकार संगठन और राष्ट्रीय दलित पिछड़ा अल्पसंख्यक महासंघ के लोगों ने   सिलई बड़ागांव का दौरा किया। गौरतलब है कि रामपुर जनपद के मिलक तहसील के गांव सिलई बड़ागांव में खाली स्थान पर अंबेडकर पार्क का बोर्ड लगाने को लेकर विवाद चल रहा था। इसमें 27 फरवरी को स्थानीय नागरिकों और पुलिस प्रशासन के बीच टकराव की स्थिति पैदा हो गई। इसमें पुलिस द्वारा लाठी चार्ज किया गया बाद में गोली चलाई गई। गोली लगने से एक दलित युवक जिसकी उम्र लगभग 17वर्ष थी। उसकी मौके पर ही मौत हो गई। एक व्यक्ति गोली लगने से घायल है। इस घटना के बाद गांव में काफी आक्रोश है। तब से गांव में पुलिस प्रशासन डेरा डाले हुए है।
         फेक्ट फाइंडिंग टीम ने मृतक युवक के परिवार वालों से बातचीत कर घटना की जानकारी ली। इसके अलावा गांव के विभिन्न समुदायों के लोगों से स्थिति के बारे में चर्चा की। गांव बालों से चर्चा करने के बाद टीम ने पुलिस प्रशासन के लोगों से भी बात की।
         तथ्यानवेशी टीम ने पीड़ित परिवार से सांत्वना व्यक्त की तथा  उन्हें न्याय दिलाने को संघर्ष करने  की बात कही।
         टीम फेक्ट फाइंडिंग रिपोर्ट तैयार करके उस पर अपनी प्रतिक्रिया जल्द ही पेश करेगी। इसके बाद जनहित सत्याग्रह मोर्चा और सहयोगी संगठनों द्वारा जल्द ही कोई निर्णय लिया जाएगा।

 

 

          कौमी एकता मंच के बैनर तले जनसम्मेलन
       हल्द्वानी (उत्तराखंड) में कौमी एकता मंच द्वारा जनसम्मेलन का आयोजन किया।
       प्रदेश और देश में साम्प्रदायिक ताकतों से मुकाबला करने के लिए मजबूती के साथ खड़े होने के  जनसम्मेलन का आयोजन किया गया। बनभूलपुरा की दुर्भावनापूर्ण घटना के बाद बिगड़ी कानून व्यवस्था व उत्पीड़न को सामान्य करने व शान्ति पूर्ण माहौल बनाने के लिए राज्य के सामाजिक-राजनीतिक संगठन लगातार सरकार से अनुरोध कर रहे हैं। लेकिन अभी भी पुलिस प्रशासन द्वारा भयमुक्त वातावरण बनाकर जनता को राहत, रिपोर्टिंग का अधिकार, धायलों को समुचित उपचार की सुविधा उपलब्ध नहीं हो पा रही है।

        वक्ताओं ने कहा कि, भाजपा की मोदी सरकार के सत्ता में आने के बाद से ही साम्प्रदायिक विभाजन लगातार तेज होता जा रहा है। बनभूलपुरा कोई अलग थलग घटना नहीं बल्कि भाजपा के फासिस्ट प्रोजेक्ट का विस्तार है जिसको राज्य के मुख्यमंत्री धामी ने लैंड जेहाद जैसा असंवैधानिक और सांप्रदायिक नाम दिया था। इसलिए आगामी लोकसभा चुनाव में इस सरकार की विदाई के लिए सभी को एकजुट होकर काम करने की जरूरत है।

        जन सम्मेलन से मांग की गई कि, बनभूलपुरा हिंसा के बाद रोजगार छिन गए, घायल, गिरफ्तार लोगों के परिजनों को कानूनी मदद प्रशासन स्वयं करे और किसी भी किस्म की मदद करने जा रहे लोगों को प्रताड़ित करना बंद किया जाय।

       सम्मेलन से केंद्र की मोदी सरकार से सीएए एनआरसी को वापस लेने की मांग का प्रस्ताव पारित किया गया।
 
      इसमें कौमी एकता मंच के घटक विभिन्न सामाजिक -राजनीतिक जनसंगठनों के साथी व सर्व सेवा से जुड़े सम्मानित गांधीवादी नेताओं ने कार्यक्रम में भागीदारी की।

        जन सम्मेलन को मुख्य रूप से चंदन पाल अध्यक्ष सर्व सेवा संघ वर्धा, शेख हुसैन ट्रस्टी सर्व सेवा संघ मुम्बई,भाकपा माले केन्द्रीय कंट्रोल कमीशन के चेयरमैन राजा बहुगुणा, अजीत अंजुम मंत्री सर्व सेवा संघ जमशेदपुर दीपक ढोलकिया पूर्व कन्वीनर आईकैन, दिल्ली, मणिमाला गांधी दर्शन समिति की पूर्व निदेशक दिल्ली, उत्तराखंड परिवर्तन पार्टी के प्रभात ध्यानी,माले ज़िला सचिव डा कैलाश पाण्डेय, क्रालोस के पी पी आर्य, उत्तराखंड सर्वोदय मंडल अध्यक्ष इस्लाम हुसैन, महिला मंच की बसंती पाठक, हीरा जंगपांगी, किसान महासभा नेता बहादुर सिंह जंगी, सदभावना समिति के भुवन पाठक, ऐक्टू प्रदेश महामंत्री के के बोरा, इंकलाबी मजदूर केंद्र के कैलाश भट्ट,  अंबेडकर मिशन अध्यक्ष जी आर टम्टा, पछास के महेश, वन पंचायत संघर्ष मोर्चा के तरुण जोशी,प्रगतिशील महिला एकता केंद्र की बिंदु गुप्ता,आइसा जिलाध्यक्ष धीरज कुमार, सदभावना समिति के अजय जोशी, चंदन, सुरेंद्र, शिवदेव सिंह, मुकेश भंडारी, सुंदर लाल बौद्ध, उमेश तिवारी विश्वास, दिनेश उपाध्याय, प्रभात पाल, उत्तराखंड आचार्य कुल के अध्यक्ष विजय शंकर शुक्ला, रामधीरज अध्यक्ष उत्तर प्रदेश सर्वोदय मण्डल बनारस, यशवीर आर्य अध्यक्ष देहरादून सर्वोदय मण्डल, सर्वोदयी एच एस कुशवाहा देहरादून,
       आचार्य सोम प्रताप गहलौत सोशलिस्ट विचारक मेरठ, चौधरी विजयपाल सिंह, सुरेन्द्र लाल आर्य मंत्री उत्तराखंड सर्वोदय मण्डल फौजी, माले नेता ललित मटियाली आदि ने सम्बोधित किया। संचालन प्रगतिशील महिला एकता केंद्र की रजनी जोशी ने किया।
       कौमी एकता मंच के तत्वाधान में आयोजित जन सम्मेलन में सर्व सेवा संघ, उत्तराखंड सर्वोदय मंडल, भाकपा-माले, प्रगतिशील महिला एकता केंद्र, इंकलाबी मजदूर केंद्र, ऐक्टू, भीम आर्मी भारत एकता मिशन, क्रांतिकारी लोक अधिकार संगठन, परिवर्तनकामी छात्र संगठन, किसान महासभा,समाजवादी लोक मंच, मजदूर सहयोग केंद्र, वन पंचायत संघर्ष मोर्चा, उत्तराखंड महिला मंच, जनवादी लोक मंच, क्रांतिकारी किसान मंच, सदभावना समिति, उत्तराखंड परिवर्तन पार्टी, प्रगतिशील भोजनमाता संगठन, महिला किसान अधिकार मंच आदि संगठन शामिल रहे।

 

 

मोदी के दस साल: देश किधर जा रहा है!

      
मोदी सरकार लगभग दस साल केंद्र की सत्ता में होने वाले हैं। इस दस सालों के दौरान मोदी सरकार ने नोटबंदी, जी एस टी, लॉक डाउन जैसे घोर जनविरोधी फैसले लिए।
       2014 के चुनाव से पहले मोदी और भाजपा ने ' अच्छे दिन आने वाले हैं ' का ख्वाब जनता को दिखाया था। ' सबका सतह सबका विकास ' ' दो करोड़ लोगों को रोजगार देने ' का वायदा मोदी में किया था।
    ' काला धन  वापस लाऊंगा’ 'ना खाऊंगा, ना खाने दूंगा ' ये नारे मोदी और भाजपा के थे। आज दस साल बाद देश के शासक पूंजीपति दुनिया के शीर्ष पूंजीपतियों की लिस्ट में शुमार हैं। इसके उलट गरीबी भुखमरी की स्थिति काफी बढ़ी है। बेरोजगारी और महंगाई की स्थिति भी गहन संकट को दिखाती है।
     इन्हीं मामलों को लेकर एक पर्चा और पुस्तिका जारी की गई जनता के बीच इसका वितरण किया गया।' मोदी सरकार के दस साल : देश किधर जा रहा है ' शीर्षक से जारी पुस्तिका में पिछले 10 साल में आर्थिक ,राजनीतिक और सामाजिक स्थिति की वास्तविक तस्वीर पेश की गई है।
       देश में हिंदुत्व के आधार पर बढ़ती फासीवादी राजनीति जिसके केंद्र बिंदु मुस्लिम नफरत और विरोध है इन सालों में बढ़ता गया है। विरोध और असहमति, आलोचना को तरह तरह से कुचलने की कोशिश जारी है।  महिलाओं, दलितों ब ईसाइयों की भी स्थिति और ज्यादा खराब हुई है।
     आर्थिक मामले में देश में ध्रुवीकरण बहुत यू हुआ है एक तरफ अमीरों की दौलत बढ़ी है संपत्ति बढ़ी है दूसरी तरफ बहुसंख्यक  जनता के रूप मेंकंगाली का छोर है।
        पुस्तिका और पर्चे के जरिए जनता के बीच कार्यकर्ता इन बातों को रख रहे हैं। इन्हें बेनकाब का रहे हैं और जनता की राय भी जान रहे हैं।
      अभियान उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, दिल्ली, हरियाणा के कुछ हिस्सों में चलाया गया।

 

 कौमी एकता मंच का गठन

उत्तराखंड के हल्द्वानी में सुनियोजित हिंसा आगजनी और इसके कथित नियंत्रण के नाम पर फिर गोली चलाने के आदेश  तथा कर्फ्यू के बाद  बनभूलपुरा में आम में आम लोगों में फैली दहशत, गिरफ्तारियां,मार पीट, तोड़ फोड़ के साथ ही खाने पीने के संकट के चलते राहत, कानूनी सहायता तथा यहां भाजपा तथा संघियो की नफरत भरी फासीवादी राजनीति के हमले के खिलाफ एकजुट आवाज उठाने के लिए कौमी एकता मंच का गठन तात्कालिक तौर पर किया गया।
    25 फरवरी को क्रालोस द्वारा एक बैठक आहूत दी गई। इसमें इंकलाबी मजदूर केंद्र, महिला एकता मंच, साइंस फॉर सोसाइटी, परिवर्तनकामी छात्र संगठन, प्रगतिशील।महिला एकता केंद्र, जनवादी लोक मंच, वन पंचायत संगठन, भाकपा माले, एक्टू, उत्तराखंड महिला मंच, सर्वोदय मंडल उत्तराखंड परिवर्तन पार्टी, प्रगतिशील भोजन माता संगठन आदि ब कुछ व्यतिगत साथी मौजूद थे।
     बैठक में सर्वसम्मति से कौमी एकता मंच का गठन किया गया। सभी संगठनों के प्रतिनिधियों को लेकर एक कमेटी बनाई गई।
    बैठक में बनभूलपुरा में कर्फ्यू के नाम पर घर घर में घुसकर जो सबक सिखाने के मकसद से जो कारवाई की गई है लोगों की गिरफ़्तारी करके उनके बारे में कोई जानकारी नहीं दी जा रही है, इस संबंध में  वकीलों की एक कमेटी बनाने तथा राहत के संबंध में काम करने पर सहमति बनी। इसके  अलावा तथ्यों की जांच पड़ताल हेतु  तथ्यान्वेषी टीम द्वारा वनभूलपुरा का दौरा करने पर सहमति बनी।

 

 

संविदा बिजली कर्मियों के हड़ताल के समर्थन में

      उत्तर प्रदेश में हजारों विद्युत संविदा कर्मी पिछले लंबे समय से अपनी मांगों को लेकर प्रदर्शन करते रहे हैं। योगी सरकार का व्यवहार इनके प्रति क्रूर रहा है। पिछली बार हड़ताल का दमन किया गया और सैकड़ों कर्मियों को निलंबित। कर दिया गया। इस बार जनवरी माह में फिर लखनऊ में संविदा कर्मियों में बहरी सरकार तक अपनी मांगों को पहुंचाने के लिए महापंचायत की।
     क्रालोस की बदायूं टीम  ने इस हड़ताल के समर्थन में अपनी एक पर्चा निकाला और लखनऊ महापंचायत में शिरकत की।

 

                          काकोरी के शहीदों की स्मृति में

            क्रालोस द्वारा काकोरी के शहीदों की स्मृति में एक पर्चा जारी किया गया । इस पर्चे का अलग अलग इकाइयों में जनता के बीच वितरण किया। इन शहीदों को याद करते हुए आज के दौर में इनकी इनकी प्रासंगिकता को बताया गया। धर्म निरपेक्षता और गणतांत्रिक संघ बनाने का इन शहीदों का सपना अधूरा रहा। इस धारा को शहीद भगत सिंह द्वारा आगे बढ़ाया गया। इन शहीदों का मकसद हिंदुस्तान को समाजवादी गणतांत्रिक संघ बनाना था। आज के दौर में हिंदू राष्ट्र के नाम पर जनता को विभाजित करने आपस में लड़ाने नफरत की राजनीति जब चरम पर हो तब जरूरी है कि इन शहीदों ने हिंदू मुस्लिम एकता की जो मिसाल पेश की और धर्मनिरपेक्ष गणतांत्रिक संघ बनाने की दिशा में बढ़ने की जरूरत है। इस बात को पर्चे और बातों के जरिए लोगों के बीच रखा गया। इसी संबंध में सभा,गोष्ठी और सांकेतिक जुलूस जैसे कार्यक्रम किए गए। कार्यक्रम अधिकांश संयुक्त हुए।



               क्रांतिकारी लोक अधिकार संगठन का आठवां सम्मेलन
        

           क्रालोस का आठवां सम्मेलन 24- 25 जून 2023 को उत्तर प्रदेश के बरेली शहर में आएशा पैलेस में आयोजित किया गया। इस सम्मेलन में उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, दिल्ली के प्रतिनिधियों ने भागीदारी की।

        सम्मेलन की शुरुआत 24 जून को प्रातः 8 बजे झंडारोहण के साथ शुरू हुई। संगठन के अध्यक्ष पी पी आर्या ने झंडारोहण किया। झंडारोहण की कार्यवाही के बाद प्रगतिशील सांस्कृतिक मंच ने ( मेरा रंग दे बसंती चोला ) गीत प्रस्तुत किया। इसके बाद अलग अलग संघर्षों में दुनिया और देश के भीतर शहीद हुए शहीदों को श्रद्धांजलि अर्पित की गई और 2 मिनट का मौन रखा गया।

        अध्यक्षीय संबोधन में पी.पी.आर्या ने कहा कि संगठन अपने पच्चीस साल की यात्रा में तमाम उतार चढ़ावों से गुजरते हुए आगे बड़ा है। संगठन जन सरोकारों से जुड़े मुद्दों तथा जनवादी , संवैधानिक अधिकारों के लिए क्षमताभार संघर्ष करता रहा है। संगठन ने मेहनतकश जनता और शोषित उत्पीड़ित समूहों के न्याय प्रिय आंदोलनों का समर्थन किया हैं तो कई मौकों पर आंदोलनों को नेतृत्व देने का प्रयास किया है।

         इसके बाद अध्यक्ष ने सम्मेलन के संचालन के लिए एक तीन सदस्यीय संचालक मंडल का नाम प्रस्तावित किया जिसे सदन में उपस्थित प्रतिनिधियों ने अनुमोदित किया। इसके बाद सम्मेलन के बंद सत्र की शुरुआत हुई। 

          सम्मेलन में राजनीतिक रिपोर्ट तथा सांगठनिक रिपोर्ट पर चर्चा की गयी। राजनीतिक रिपोर्ट के अंतरराष्ट्रीय परिस्थिति वाले हिस्से पर बात रखते हुए वक्ताओं ने कहा कि 2007 से शुरू हुआ विश्व अर्थव्यवस्था का संकट कोरोना महामारी के बाद और भी घनीभूत हुआ है।  इस संकट ने दुनिया में राजनीतिक, सामाजिक, और सांस्कृतिक संकट को घनीभूत किया है। दक्षिणपंथी, फासीवादी राजनीति का उभार बढ़ा है। कई देशों में राजनीतिक अस्थिरता भी बढ़ी है। इस चौतरफा संकट ने समाज में एकाकीपन, भरोसे की कमी, आत्मकेंद्रीयता को बढ़ाया है।
           वक्ताओं ने यह भी रेखांकित किया कि चीन के एक नई साम्राज्यवादी ताकत के रूप में सामने आने और रूस के फिर से उभार ने साम्राज्यवादियों के बीच टकराहट को बढ़ाया है। जिससे एक और रूस यूक्रेन युद्ध में रूसी साम्राज्यवादी और अमेरिका के नेतृत्व में पश्चिमी साम्राज्यवादी शासकों की सनक का शिकार जनता को होना पड़ रहा है। दुनिया में शरणार्थी और प्रवासी संकट भी गहरा गया है। दुनिया में बढ़ते फासीवादी उभार ने मजदूर मेहनतकश जनता सहित शोषित उत्पीड़ित समूहों पर हमलों को तीखा किया है। जनवादी अधिकारों पर भी हमले तेज हुए हैं। 

            इस उत्पीड़न , शोषण के खिलाफ पैदा हो रहे संघर्षों के दौरान जनता एक बेहतर समाज की ओर भी आगे बढ़ेगी ऐसी आशा सम्मेलन ने जाहिर की।
           इसी तरह राष्ट्रीय परिस्थिति वाले हिस्से पर चर्चा करते हुए कहा गया कि विश्व परिस्थियों से भारत भी अछूता नहीं है। हमारे यहां भी आर्थिक , सामाजिक, राजनीतिक तथा सांस्कृतिक स्थितियां विकराल स्थिति ग्रहण कर रही हैं। देश में गरीबी , बेरोजगारी, महंगाई, भुखमरी, असमानता लगातार बढ़ रही है। मजदूरों मेहनतकशों पर हमले तेज हुए हैं। अल्पसंख्यक समुदाय को हाशिये पर धकेलने के हिंदू फासीवादी शासकों द्वारा प्रयास किए जा रहे हैं। मेहनतकश जनता के संवैधानिक, जनवादी व नागरिक अधिकारों का गला घोंटा जा रहा है।  वहीं दूसरी तरफ फासीवादी एजेंडों को आगे बढ़ाने के लिए देश में अराजकता और हिंसा का माहौल पैदा किया जा रहा है। उत्तराखंड , उत्तर प्रदेश , मध्य प्रदेश में 'लव जिहाद', 'लैंड जिहाद' आदि फासीवादी एजेन्डे फासीवादियों के मंसूबों को दिखाती है। वही मणिपुर जैसी स्थितियां दिखाती हैं वर्तमान शासक पूरे देश को नफरत की आग में झोंक देना चाहते हैं।
          इस दौरान देश ने नागरिकता कानून विरोधी आंदोलन, ऐतिहासिक किसान आंदोलन, महिला पहलवानों के आंदोलन और जगह जगह काफी लंबे चल रहे मजदूर आंदोलन इसके अलावा देश भर जारी जनवादी आंदोलन एक उम्मीद की किरण भी दिखाते हैं। इन सब परिस्थितियों पर बात करने के बाद सदन ने राजनीतिक  रिपोर्ट को पास किया।
            सदन में सांगठनिक रिपोर्ट पर भी विस्तार से चर्चा हुई जिसमे पिछले सम्मेलन से अब तक की कार्यवाहियों का ब्यौरा पेश किया गया। तथा संगठन ने अपनी उपलब्धियों एवं कमियों खामियों को चिन्हित करते हुए अगले सम्मेलन तक के लिए अपनी लिए कार्य योजना पेश की।
            अगले दिन सम्मेलन ने विभिन्न सामायिक विषयों पर प्रस्ताव पास किए। ये प्रस्ताव  दलितों अल्पसंख्यकों पर बढ़ते हमलों के विरोध में, समान नागरिक संहिता के संबंध में, चारों श्रम संहिताओं के विरोध में, बढ़ते फासीवादी हमलों के विरोध में, एन पी एस के विरोध में , मणिपुर में जारी हिंसा के संबंध में आदि मामलों पर थे। जिसे सम्मेलन में पास किया।
            इसके बाद चुनाव हुए। अध्यक्ष के रूप में  पी पी आर्या और महासचिव के रूप में भूपाल का चुनाव किया गया। संगठन के नवनिर्वाचित अध्यक्ष ने बिरादर संगठनों से आए पर्यवेक्षक साथियों और तकनीकी सहयोग के लिए आए साथियों का धन्यवाद किया जिनकी वजह से सम्मेलन ठीक से आयोजित हो पाया।
             इसके बाद दोपहर दो बजे से खुले सत्र का आरम्भ किया गया। जिसमे शहर से तमाम ट्रेड यूनियन, सामाजिक संगठनों और सहयोगी संगठनों के साथी उपस्थित रहे। सभी साथियों ने संगठन की सम्मेलन के लिए बधाई दी। तथा नई कमेटी व पदाधिकारियों को बधाई दी। सभी ने संगठन से जनवादी आंदोलन को आगे बढ़ाने की आशा व्यक्त की। खुले सत्र में वक्ताओं ने आज की पतिस्थियों और देश दुनियां में मेहनतकश जनता के हालत, उस पर किए जा रहे हमलों, सरकार की जन विरोधी नीतियों, संघर्षों के दमन , दलितों अल्पसंख्यकों पर बढ़ते हमलों, जनवादी व संवैधानिक अधिकारों के हनन आदि मसलों पर चिंता जाहिर करते हुए बातें की।
               खुले सत्र को बरेली ट्रेड यूनियंस के महामंत्री संजीव मेहरोत्रा, बरेली कॉलेज के कर्मचारी नेता जितेंद्र मिश्र, ट्रेड यूनियन नेता महेश गंगवार, पी यू सी एल के साथी एड यशपाल सिंह, मजदूर सहयोग केंद्र के साथी दीपक सांगवाल, इंकलाबी मजदूर केंद्र के साथी रामजी सिंह, परिवर्तनकामी छात्र संगठन के महासचिव साथी महेश, प्रगतिशील महिला एकता केंद की साथी हेमलता, सामाजिक न्याय फ्रंट के साथी सुरेंद्र सोनकर, टेंपो यूनियन के साथी कृष्ण पाल, सामाजिक कार्यकर्ता साथी ताहिर बेग, प्रगतिशील सांस्कृतिक मंच के साथी ओम प्रकाश, ट्रेड यूनियन नेता सलीम अहमद ने संबोधित किया।
              अंत में संगठन के नवनिर्वाचित अध्यक्ष साथी पी पी आर्या ने वर्तमान परिस्थितियों और संघर्ष की जरूरत पर विस्तार से बात रखी और सभी साथियों का क्रांतिकारी अभिवादन किया। प्रगतिशील सांस्कृतिक मंच के साथियों ने बंद सत्र और खुले सत्र में जोशीले क्रांतिकारी गीतों के माध्यम से सम्मेलन में क्रांतिकारी उत्साह बनाए रखा इसके लिए उन्हें धन्यवाद।
                खुले सत्र के बाद एक सांकेतिक जुलूस निकाला गया। इस बीच में पुलिस प्रशासन ने जुलूस में हस्तक्षेप किया व अकारण ही टकराव पैदा करने की कोशिश की।  जुलूस झंडे , बैनर, तख्तियों पर लिखे नारों से लोगों को आकर्षित कर रहा था।  जुलूस में जोशीले नारे लगाते हुए साथी आगे बढ़ रहे थे।  जुलूस सम्मेलन आएशा पैलेस से शुरू होकर जगत पुर पुलिस चौकी होते हुए बीसलपुर चौराहे तक गया उसके बाद उसी रास्ते वापस आ गया। सम्मेलन स्थल पर साथियों ने उत्साह से गीत गाए। तत्पश्चात सम्मेलन की पूरी कार्यवाही सफलता पूर्वक संपन्न हुई।


           


 

 
              जलियावाला बाग के शहीदों को श्रद्धांजलि
                                              13/4/23
        हल्द्वानी (उत्तराखंड) और बलिया (यू पी) में जालियावाला बाग के शहीदों की याद में कार्यक्रम आयोजित किये गए।
        हल्द्वानी में पछास, क्रालोस, प्रगतिशील महिला एकता केंद्र ने संयुक्त रूप से जालियावाला बाग के शहीदों को याद किया और आज धर्म को  राजनीतिक हथियार बनाकर समाज में खतरनाक स्तर पर ध्रुवीकरण कर देने की हिन्दू फासीवादियों की घृणित योजना के खिलाफ संघर्ष करने का संकल्प लिया।
        इसी तरह बलिया उत्तर प्रदेश में क्रान्तिकारी लोक अधिकार संगठन और इंकलाबी मजदूर केंद्र ने संयुक्त रूप से जालियावाला बाग हत्याकांड के शहीदों की याद में गोष्ठी आयोजित की।

 

        जी 20 की बैठक के विरोध में जन सम्मेलन
      29 मार्च 2023

        जी 20 की इस साल की अध्यक्षता भारतीय शासक कर रहे हैं। यह समूह दुनिया भर में लूटखसोट मचाने और कई देशों की संप्रभुता को तहस नहस करने वाले साम्राज्यवादी देशों तथा अलग अलग क्षेत्रो के विकसित और पिछड़े पूंजीवादी क्षेत्रीय ताकतों का गुट है।
      इसके जरिए नई आर्थिक नीतियों के जरिए संसाधनों और मजदूर मेहनतकश आबादी की मेहनत की लूट खसोट मचाने, जनता के संघर्षों को कुचलने के लिए हर साल जी 20 की बैठकें बारी बारी से अलग अलग देशों में होती हैं। मोदी सरकार ने 2020 में आयोजित बैठक को 2024 के चुनाव के मद्देनजर व्यापक प्रचार के मौके में बदल डालने के लिए खिसकाकर 2023 में करने की योजना बनाई। इसी के तहत इस साल इसकी  प्रकिया बैठक अलग अलग जगह देश भर में होनी है फिर सितंबर में दिल्ली में इसका सम्मेलन होना है।
      मार्च के अंतिम सप्ताह में इसकी बैठक उत्तराखंड के नैनीताल जिले के रामनगर क्षेत्र में हुई। रामनगर तक पंतनगर हवाई क्षेत्र से विदेशी और देशी लुटेरे प्रतिनिधियों को पहुंचाने से पहले सड़क मार्ग पर पड़ने वाली दुकानों को बुलडोज़र से धवस्त कर दिया गया।
       इस जी 20 की बैठक के विरोध में क्रालोस, पछास, प्र महिला एकता केंद्र तथा इमके ने संयुक्त रूप से समानांतर जनसम्मेलन का आयोजन किया। जन सम्मेलन में 7 प्रस्ताव भी पारित किए गए। प्रस्ताव नई शिक्षा नीति को रद्द करने, नई आर्थिक नीति को रद्द करने, 4 मजदूर कर्मचारी विरोधी श्रम संहिताओं को रद्द करने, जी 20 की बैठक के लिए लोगों को उजाड़े जाने आदि के विरोध में थे।
       जन सम्मेलन में कई ट्रेड यूनियन के प्रतिनिधि, भाकपा माले, अतिक्रमण के नाम पर लोगों को बेदखल किये जाने के विरोध में काम कर रही संघर्ष समितियां आदि संगठन मौजूद थे।
        जनसम्मेलन में अधिकांश वक्ताओं ने जी 20 की लूटखसोट को बेनकाब किया साथ ही मोदी सरकार की घोर पूंजीपरस्त नीतियों तथा फासीवादी निरंकुशता के खिलाफ एकजुट होकर संघर्ष करने का संकल्प लिया।




23 मार्च को शहीदों की याद में कार्यक्रम

    23 मार्च 1931 के शहीदों भगत सिंहसिंह, राजगुरु और सुखदेव की याद में ' भगतसिंह को याद करो, संघर्षों की राह चुनो' शीर्षक से पर्चा जारी किया गया। कोटद्वार, देवरिया, बलिया, चुनार, काशीपुर, हल्द्वानी, बदायूं आदि जगह पर कार्यक्रम किए गए।

   बलिया में इमके के साथ गोष्ठी और जुलूस में कार्यक्रम हुआ। हल्द्वानी के चकलुवा में माल्यार्पण कार्यक्रम हुआ। हरिद्वार मेंके सुल्तानपुर में गोष्ठी आयोजित हुई। चुनार (मिर्जापुर) में गोष्ठी कार्यक्रम आयोजित हुई। काशीपुर में संयुक्त तौर पर मोहल्लों में पर्चा वितरण और गीत हुए। बदायूं में पोस्टरों के माध्यम से कार्यक्रम हुए। देवरिया में सभा हुई। बरेली और मऊ में संयुक्त कार्यक्रम हुए। कोटद्वार में पुस्तकालय में एक संबोधन हुआ जबकि 2-3 चौराहों पर पर्चा वितरित हुआ।


  एयरपोर्ट के आड़ में आम लोगों की जमीन छीने  जाने के खिलाफ

           21 जनवरी 2023 ।  खिरिया बाग (कप्तानगंज) आजमगढ़ आज जमीन मकान बचाओ संयुक्त मोर्चा के तत्वाधान में 101वें दिन एयरपोर्ट विस्तारिकरण  के खिलाफ धरना जारी रहा। इसमें क्रालोस बलिया की भागीदारी रही ।
      धरने को पूर्वांचल के संयुक्त किसान मोर्चा से जुड़े मऊ,वाराणसी, चंदौली, बलिया, देवरिया,अंबेडकरनगर के विविध संगठनों ने बैठक करके धरने को संबोधित किया।
      किसान-मजदूर नेताओं ने कहा कि खिरियां बाग की लड़ाई को जीत तक पंहुचा देना सबकी जिम्मेदारी है, क्योंकि यह पूरे पूर्वांचल के मजदूर, किसान,छात्र,नौजवानों पर छाप डालेगा।इस आंदोलन से हमलोगों को बहुत कुछ सीखने लायक अनुभव मिल रहा है
देश की लोकतंत्र, संविधान और कानून को ताक पर रखकर खेती-किसानी,जमीन को छिनना नहीं चलने दिया जायेगा।
      धरना को रामजी सिंह, अफलातून, चौधरी राजेंद्र,रितेश विद्यार्थी, राहुल विद्यार्थी, सत्यनारायण सिंह तेज नारायण सिंह, क्रांति नारायण सिंह, विनोद सिंह, ओमप्रकाश सिंह, रामकुमार यादव, राम नयन यादव, बलवंत यादव, रजनीश भारती, दुखहरन राम, राजेश आजाद, राजीव यादव,सत्यदेव पाल,राघवेंद्र, किसमती, सुनीता, नीलम, सूरजपाल, राजकुमार भारत, नंदलाल यादव, वीरेंद्र यादव, रविंद्र यादव ,नरोत्तम, महेश राय, अतुल कुमार, बृजकेश आदि लोगों ने संबोधन किया


जोशीमठ में  भूधंसाव के विरोध में स्थानीय जनता के संघर्स के समर्थन में धरना

     हलद्वानी (नैनीताल) उत्तराखंड में आज दिनांक 19 जनवरी 2023 को भाकपा माले, क्रालोस, पछास, प्रगतिशील महिला एकता केंद्र तथा विभिन्न संगठनों ने संयुक्त तौर पर धरना दिया। धरना बुद्ध पार्क पर  दिया गया। 
     सभी वक्ताओं में इस बात पर जोर देते हुए कहा कि जोशीमठ की आपदा को प्राकृतिक आपदा कहना जनता को धोखा देना है
     यह आपदा शासकों द्वारा उत्तराखंड के पहाड़ की प्रकृति को नजरअंदाज करके अनियंत्रित, अनियोजित ढंग से जो विकास का मॉडल लाया गया, उसी का नतीजा है। जगह जगह आधुनिक वैज्ञानिक तकनीक का इस्तेमाल  लागत घटाने के चक्कर में नहीं किया गया  और  अयोजनाबद्ध ढंग से विकास किया गया।  सड़कें ढलानों और पहाड़ की स्थिति को सटीक आंकलन कर नहीं किया गया। डाइनामाइट का इस्तेमाल हुआ। इसी तरह से बड़े बड़े बांधों और सुरंगों से पानी निकालकर बिजली बनाने की योजनाओं पर अमल किया गया। अकूत मुमाफे के दोहन के लिए पर्यावरण को तबाह किया गया। इसी तरह ऑल विदर सड़क भी बन रही है। यह अनियोजित अनियंत्रित पूंजीवादी विकास ही जोशीमठ की तबाही का कारक है। यही अन्य पहाड़ी कस्बों और शहरों के साथ भी होने के सम्भावना है। इस तरह से विकास पर रोक लगाने के साथ साथ जोशीमठ के संघर्ष में लगी आम जनता की मांग को तत्काल मानने की मांग धरने में कई गयी और संघर्ष को समर्थन किया गया।


संयुक्त किसान मोर्चा के आह्वान पर 

 12 अक्टूबर  2021 को लखीमपुर खीरी में किसानों की हत्या के विरोध में श्रद्धांजलि कार्यक्रम

 

हल्द्वानी


हल्द्वानी
हल्द्वानी


बलिया उत्तर प्रदेश

 
 

 
 
 
 
बरेली में किसानों की शहादत पर श्रद्धांजलि कार्यक्रम
          दिनाँक 12 अक्टूबर को संयुक्त किसान मोर्चा के आह्वान पर क्रांतिकारी किसान मंच और क्रांतिकारी लोक अधिकार संगठन ने  ग्राम अब्दुल्ला माफी में लखीमपुर खीरी में शहीद हुए चार किसानों की याद में श्रद्धाजंलि सभा और कैंडल मार्च का आयोजन किया ।
              श्रद्धाजंलि सभा मे बात रखते हुए क्रांतिकारी लोक अधिकार संगठन के  साथी ललित ने कहा की लगभग एक वर्ष से देश मे तीन कृषि कानूनों के खिलाफ ऐतिहासिक किसान आंदोलन में 700 से अधिक किसान शहीद हो चुके है ।इस आंदोलन ने दिखाया है कि देश का किसान इस आंदोलन के कारण जाति और धर्म के बटवारे से बाहर आ रहा है और किसान के तौर पर एकजुट हो रहा है ।इस आंदोलन ने देश को ये भी सिखाया की सारी सत्ताधारी पार्टियां असल मे पूंजीपति वर्ग की कठपुतलियां है और सभी सरकारें अम्बानी ,अडानी ,टाटा और बिड़ला के इशारों पर उनके हित में ही देश की नीतियां और कानून बनाने का काम करती है ।
      श्रद्धाजंलि सभा को सम्बोधित करते हुए क्रांतिकारी किसान मंच के सयोजक हिमांशु ने कहा कि लखीमपुर खीरी के किसानों के बर्बर हत्याकांड ने जलियांवाला बाग की याद दिला दी है ,पर देशभर में किसान मजदूर मेहनतकशो के साथ मिल कर फ़ासिस्ट ताक़तों को परास्त करेगा ।
             सभा का संचालन साथी फैसल ने किया ।
          इसके पश्चात  सैंकड़ों किसानों ने 2 मिनट का मौन धारण कर शहीद किसानों को श्रद्धांजलि दी और उनकी याद में पूरे गांव में कैंडल मार्च निकाला । कार्यक्रम के अंत मे शहीद किसान साथियों की याद में एक गीत  ,,,,,कांरवा चलता रहेगा ,,,,ज़िन्दगी लड़ती रहेगी ,,,प्रगतिशील सांस्कृतिक मंच के साथी कृष्णपाल ने प्रस्तुत किया ।
 



 
 
 
  क्रा.लो.स. कार्यकर्ता नसीम का आई.बी. द्वारा उत्पीड़न के विरोध में
      
    क्रा.लो.स. की हल्द्वानी इकाई के कार्यकर्ता नसीम को आई.बी. द्वारा डराने धमकाने के विरोध में बलिया, हल्द्वानी में सांकेतिक विरोध किया गया। इसके अलावा हरिद्वार में भेल मजदूर ट्रेड यूनियन, इंकलाबी मजदूर केंद्र तथा क्रालोस द्वारा संयुक्त रूप से सांकेतिक विरोध किया गया व एक ज्ञापन भी प्रेषित किया गया।
    गौरतलब है कि हल्द्वानी में सीएए, एनआरसी तथा एनपीआर के विरोध में जनवरी माह में हज़ारों की संख्या में अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों ने विरोध में प्रदर्शन किए थे। इस प्रदर्शन में शहर की सभी जनवादी प्रगतिशील तथा अमनपसंद संगठन व नागरिक भी शामिल थे।
      अब लौकडाऊन की आड़ में मोदी सरकार सीएए प्रदर्शनकारियों को निशाना बना रही है। दिल्ली हिंसा के नाम पर कई लोग दिल्ली में गिरफ्तार किए जा चुके हैं। इसी कड़ी में हल्द्वानी (उत्तराखंड) में भी आई बी के जरिये आजकल डराने धमकाने व लोगों को चिन्हित करने की घृणित कार्रवाई की जा रही है।
      क्रालोस की हल्द्वानी इकाई के कार्यकर्ता नसीम को आई बी द्वारा इसी मकसद से डराने धमकाने का काम किया गया। इसी का विरोध अलग-अलग जगहों पर किया जा रहा है।

   क्वारेंटाइन केंद्रों में बदहाल इंतजाम के विरोध में

    क्रांतिकारी लोक अधिकार संगठन, परिवर्तनकामी छात्र संगठन तथा भाकपा माले द्वारा संयुक्त तौर पर क्वारेण्टाइन केंद्रों में बदहाल व्यवस्था के खिलाफ सांकेतिक धरना दिया गया।
       यह कार्यक्रम हल्द्वानी (नैनीताल, उत्तराखंड) में बुद्ध पार्क पर आयोजित हुआ। धरने में तख्तियों के जरिये भी मांगे लिख कर व्यक्त की गई थी। धरने में वक्ताओं ने कोरोना संक्रमण के प्रसार को रोकने के लिए जो क्वारेंटाइन केंद्र बने है उनकी बदहाल व्यवस्था के सरकार को जिम्मेदार बताया गया। वक्ताओं ने कहा कि यह शर्मनाक है कि आज के आधुनिक तकनीकी के जमाने में जहां बेहतर व्यवस्था हो सकती थी उसके प्रबन्ध ही नहीं किये गए। गंदी जगहें, गंदे बिस्तर क्वारेंटाइन केंद्र के रूप में हैं बिजली पानी व शौचालय तथा खान-पान की व्यवस्था बेहद घटिया स्तर की है। यही वजह है कि सांप के काटने से वे अन्य वजहों से भी कुछ मौतें इन केंद्रों में हुई हैं।  इस बदहाल व्यवस्था को दुरुस्त किये जाने के संबंध में एक ज्ञापन मुख्यमंत्री के लिए प्रेषित किया गया।

 22 मई की हड़ताल के समर्थन में तथा श्रम कानूनों में मजदूर विरोधी बदलाव किये जाने के विरोध में
 
          कोरोना महामारी के दौर में पूंजी और श्रम का अंतर्विरोध और ज्यादा तीक्ष्ण हो चुका है। इसमें शासक पूंजीपति वर्ग पूरी तरह हावी है। इस दौर में जब अनियोजित, अयोजनाबद्ध लॉकडाउन के चलते लाखों मज़दूर भूखे प्यासे पैदल ही हज़ार-डेढ़ हजार किमी की जानलेवा यात्रा कर अपने गांव की ओर लौट रहे हैं तब ऐसे भयावह यंत्रणदाई समय में मजदूर वर्ग को भारी राहत देने, उनके गांव तक उन्हें सुरक्षित पहुंचाने, इनके लिए राशन इलाज का निशुल्क व्यवस्था करने की जरूरत थी। 
       मगर इस सबके उलट मजदूर वर्ग पर फिर  बड़ा हमला बोला गया। जो कुछ थोड़ा बहुत श्रम कानूनों के रूप में मजदूरों  के बेहद छोटे हिस्से को ही हासिल था उस पर भी हमला बोल दिया गया।  इसी के विरोध में ट्रेडयूनियन सेंटर्स द्वारा 22 मई की हड़ताल केआ आह्वान किया गया था। इस हड़ताल के समर्थन में तथा श्रम कानूनों में बदलाव या इन्हें स्थगित किये जाने के विरोध में क्रालोस की सभी इकाइयों ने संयुक्त या अलग सांकेतिक विरोध कार्यक्रम किया।
    
        लॉकडाउन से पैदा हुए भुखमरी के हालात में राहत की चन्द कोशिशें
 
       क्रालोस की मेरठ, बरेली, बलिया, हल्द्वानी, कोटद्वार इकाई ने अपने इलाके में लॉकडाउन के चलते भुखमरी के हालात से जूझ रहे लोगों तक राहत देने की कोशिशें हुई।
        बरेली , हल्द्वानी तथा बलिया में अन्य सहयोगी संगठनों पछास, इमके के साथ संयुक्त रूप से हुई। बलिया में गांव-गांव में घूमकर घूमकर राहत के काम किये गए। हल्द्वानी में जरूरतमंद लोगो को चिन्हित किया गया। फंड इकट्ठा किया गया। यह काम  पछास, तथा प्रगतिशील महिला एकता केंद्र के साथ संयुक्त रूप में किया गया।
     बरेली में क्रालोस, पछास, इमके तथा प्रगतिशील सांस्कृतिक मंच, मार्किट वर्कर एसोसिएशन के साथ संयुक्त रूप में राहत वितरण का काम गरीब बस्तियों में किया गया। कई दिन यह अभियान चला।
     मेरठ के जाहिदपुर में सर्वे के बाद क्रालोस तथा प्रगतिशील मेडीकोज फोरम द्वारा पहले चरण में 55 परिवार दूसरे चरण में 20 तथा तीसरे चरण में 80 परिवार चिन्हित किये गए। इन सभी तक तीन चरणों में राशन पहुँचाया गया।
     कोटद्वार में बी एल के सहयोग से पहले 15 परिवार तथा बाद में 11 मजदूरों तक राशन पहुंचाया गया।
   


      सीएए, एन आर सी तथा एन पी आर के विरोध में
   
           क्रालोस की अलग-अलग इकाइयों द्वारा  नागरिकता संशोधन कानून,  राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर तथा राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर के चलते आम नागरिकों के करोड़ो की तादाद में नागरिकता के दायरे से बाहर होने के खतरों के विरोध में 'अपने ही देश में घुसपैठिया व शरणार्थी बनाये जाने का विरोध करो' शीर्षक से जारी पर्चे का आम जनता के बीच व्यापक वितरण किया।
    व्यापक प्रचार हेतु जनता तक सही बात पहुंचाने के मकसद से एक पुस्तिका भी प्रकाशित की गई जिसका शीर्षक था 'मोदी सरकार के एजेंडे और इनकी हकीकत"।
     हल्द्वानी में 3 दिन चले व्यापक विरोध में, जिसमें हजारों मुस्लिम समुदाय के लोग (स्त्री पुरुष) थे, क्रालोस  की हल्द्वानी इकाई की पूरी भागीदारी रही, यहां प्रगतिशील महिला एकता केंद्र तथा परिवर्तनकामी छात्र संगठन के साथ जनता के बीच रात दिन मौजूदगी रही।  इससे इतर 'संविधान बचाओ मोर्चा' भी जो इसी मुद्दे पर बना रहा इसमें भी हल्द्वानी टीम की भागीदारी रही।
    देहरादून में चले अनिश्चितकालीन धरने में भी क्रालोस तथा पछास के कार्यकर्त्ता की निरंतर मौजूदगी रही।
     कोटद्वार, बरेली, बदायूं तथा बलिया देवरिया व मऊ में पर्चा पुस्तिका का वितरण हुआ । 
     देवरिया में संयुक्त कार्यक्रम में 2 साथी अन्य लोगो  के साथ गिरफ्तार भी हुए जिन्हें बाद में उसी दिन छोड़ दिया गया।
    बदायूं में टीम के एक मुख्य साथी निरंतर ही वहां चले सीएए विरोधी प्रदर्शनों में शामिल रहे। तथा 2 दिन के लिए जेल भी गए।
   कोटद्वार में पर्चा वितरण के दौरान क्रालोस के 4 कार्यकर्त्ताओं को पुलिस दल बल के साथ पहुंचकर मोहल्ले से किसी की शिकायत पर ले गई। बाद में एहा कर दिया गया।
      हरिद्वार में इमके के सहयोग से क्रालोस का अभियान चला। अभियान के दौरान ही पुलिस इमके के दो कार्यकर्त्ताओं को जबरन चौकी ले गई। बाद में पर्चा न बांटने की धमकी के बाद छोड़ दिया गया।







   
   हैदराबाद,रांची,सम्भल में हुई यौन हिंसा व हत्याकांड के  विरोध में
      हैदराबाद में कामकाजी महिला को  यौन हिंसा व हत्या के बाद जला दिता गया। सम्भल में भी एक लड़की के साथ यौन हिंसा के बाद जला दिया गया। रांची में एक लड़की को सरेआम किडनेप करके उसके साथययौन हिंसा की गई।
     महिलाओं पर बढ़ती यौन हिंसा व हत्या जैसी इन अपराधों के खिलाफ क्रालोस की अधिकांश इकाइयों ने विरोध किया प्रदर्शन किया। कोटद्वार में पर्चा भी महिला हिंसा के विरोध में जारी किया गया।
 


    जे एन यू आंदोलन के दमन के विरोध में
 
        जवाहर लाल विश्विद्यालय में फीस वृद्धि व ड्रेस कोड लागू किये जाने के खिलाफ छात्रों ने संघर्ष शुरू के दिया। इस संघर्ष को सरकार द्वारा कोई तवज्जो नहीं दी गई। जबकि विश्विद्यालय के मुखिया ने छात्र यूनियन से कोई संवाद इस सम्बन्ध में नहीं किया। संघर्ष फिर कॉलेज की चारदीवारी से बाहर निकल गया। मोदी सरकर ने आंदोलन के दमन के लिए सी आर पी एफ भी कॉलेज में भेज दी थी। इसके बावजूद संघर्ष ने संसद मार्च का रूप ले लिया। संसद मार्च में हिदू फासीवादी सरकार ने आंदोलन के दमन के लिए घृणित रूप अख्तियार किया। छात्राओं पर यौन हमला भी किया गया।
   क्रालोस की अलग अलग इकाइयों ने इस आंदोलन के दमन के विरोध में तथा जे एन यू छात्रों के समर्थन में बदायूं, बलिया, हल्द्वानी, देवरिया, बरेली आदि में प्रदर्शन किया।
              

                                       
                     क्रांतिकारी लोक अधिकार का सातवां सम्मेलन सम्पन्न
    
          क्रांतिकारी लोक अधिकार का सातवां सम्मेलन 16 -17 नवम्बर को सम्प्पन हुआ। सम्मेलन में उत्तराखंड व उत्तर प्रदेश के अलग अलग हिस्सों से प्रतिनिधियों ने इस सम्मेलन में भागीदारी की। सम्मेलन में पहले दिन राजनीतिक सांगठनिक रिपोर्ट पर चर्चा की गई। यहां राजनीतिक रिपोर्ट पर देश और दुनिया की अर्थव्यवस्था राजनीति व सामाजिक स्थिति पर चर्चा की गई। देश व दुनिया भर में घोर जनविरोधी आर्थिक नीतियों व जनविरोधी फासीवादी राजनीति पर गहरी चिंता व्यक्त की गई। रिपोर्ट में बताया गया कि साम्राज्यवादी मुल्कों के बीच बढ़ते अंतर्विरोध, पूंजीवादी साम्राज्यवादी लूट खसोट, इसकी आक्रमकता, तीसरी दुनिया के पूंजीवादी मुल्कों के शासकों का इनके साथ सांठगांठ ने स्थिति को जटिल बना दिया है इसके चलते एक ओर बड़े स्तर पर शरणार्थी संकट तो दूसरी ओर इसने सामाजिक संकट को गहरा दिया है। दुनिया के कई हिस्सों में उमड़ते जंससंघर्षों का हवाला देते हुए बताया गया कि फिलहाल क्रांतिकारी राजनीति बेहद कमजोर होने के चलते जंससंघर्षों  की सीमा बनी हुई है। वही सांगठनिक रिपोर्ट में अपनी कमियों को चिन्हित करते हुए इन्हें दूर करने के सम्बन्ध में कार्यदिशा प्रस्तुत की गई। सम्मेलन के अंतिम दिन देश के भीतर घटे तात्कालिक जनविरोधी हमलों व रुझानों पर प्रस्ताव पारित किए गए। शहीदों को श्रद्धांजलि, भीड़ हिंसा के सम्बन्ध में, कश्मीर से 370 को निष्प्रभावी किये जाने, फासीवादी हमलों के खिलाफ,  मज़दूर विरोधी वेज लेबर कोड बिल पर, यू.ए.पी.ए. में संशोधन ,  एन.आर.सी प्रक्रिया को रद्द किए जाने, सुप्रीम कोर्ट के बाबरी मस्जिद पर आए फैसले के सबन्ध में प्रस्ताव पारित हुए। इसके अलावा चुनाव हुए। नए पदाधिकारियों का चुनाव किया गया।
       इसके बाद सम्मेलन का खुला सत्र सम्पन्न हुआ। इसमें विभिन्न्न संगठनों के प्रतिनिधियों, आम जनता के बीच से लोगों ने शिरकत की।
      सम्मेलन में वरिष्ठ नागरिक गुलशन सूरी, बीमा कर्मचारी संघ से मनोज गुप्ता, बजाज मोटर्स कर्मकार यूनियन से कुंवर सिंह कंडारी, इंट्रार्क मज़दूर संगठन से सौरभ कुमार, भोजन माता संगठन से चम्पा, अधिवक्ता मो. यूसुफ, जनसत्ता से पत्रकार फलाश विश्वाश, मज़दूर सहयोग केंद्र से मुकुल, गुजरात अम्बुजा से कर्मकार यूनियन से रामजी , इंकलाबी मज़दूर केंद्र से खीमानंद, परिवर्तनकामी छात्र संगठन से महेंद्र, प्रगतिशील महिला एकता केंद्र से रजनी, टेम्पो चालक यूनियन से कृष्णपाल, ठेका मज़दूर कल्याण परिषद से अभिलाख आदि ने बातें रखी। इसके अलावा माइक्रोमैक्स से नंदन सिंह, नेस्ले से महेंद्र सिंह, रिद्धि सिद्धि से कार्यकारिणी सदस्य जोशी जी, यजाकी से धर्मेंद्र तथा पीपल्स फ्रंट से ए पी भारती व आर डी एफ से कुंदन भी इस खुले सत्र में मौजूद रहे। समयाभाव के चलते कई साथी खुले सत्र को सम्बोधित नही कर सके।
   सभी वक्ताओं ने आज देश में रहे आर्थिक संकट, मज़दूरों-कर्मचारियों की छंटनी, बढ़ती बेरोज़गारी , बढ़ती महंगाई पर पर अपनी गहरी चिंता व्यक्त की साथ ही देश में सरकार द्वारा जनता के अधिकारों को कमजोर करने, जनता के अलग अलग हिस्सों के आंदोलनों को बदनाम करने व इनका दमन करने, जनता की निगरानी किये जाने, जनता के जीवन स्तर को और नीचे गिरने घोर जनविरोधी व पूंजीपरस्त नीतियों को लागू किये जाने के विरोध में अपना आक्रोश व्यक्त किया। हिन्दू- मुस्लिम, युद्ध का उन्माद पैदा कर मेहनकश जनता को बांटने उनके बीच गहरी नफरत पैदा किये जाने पर भी गहरी चिंता व्यक्त की इसे आम अवाम के खिलाफ खतरनाक कदम बताया।
        इसके बाद अंत में सत्यनारायण धर्मशाला से स्टेडियम तक सांकेतिक जुलूस कार्यक्रम किया गया। इसी के साथ संगठन का सातवां सम्मेलन जोश-ओ-खरोश व जनता जनवादी अधिकारों के लिए गोलबंद करने के दृढ़ संकल्पबद्धता के सफलतापूर्वक सम्पन्न हुआ।
       

                                       
                                           


     क्रालोस के सातवें सम्मेलन के आयोजन के लिए अभियान

      क्रालोस का सातवां सम्मेलन 16-17 नवम्बर 2019 को हल्द्वानी में आयोजित होना है। इस सम्मेलन के आयोजन हेतु आम जनता के बीच जाकर जान जागरण अभियान जे साथ साथ फंड अभियान भी किया जा रहा है इस अभियान को भी जनता का सहयोग मिल रहा है। सभी इकाइयां जनता के बीच मोहल्लों में सामूहिक रूप में अभियान का संचालन कर रही हैं।
 



  
      सोनभद्र में हुए नरसंहार के विरोध में
   
    उत्तरप्रदेश के सोनभद्र में जमीन कब्जाने को लेकर  हुए हत्याकांड के विरोध में क्रालोस द्वारा ज्ञापन भेजा गया व प्रदर्शन भी किया गया। बदायूं, कोटद्वार, हल्द्वानी, बरेली देवरिया, बलिया आदि में कार्यक्रम किया गया। कोटद्वार में जन अधिकार मंच के बैनर तले विरोध प्रदर्शन किया गया।



    बदायूं में निजीकरण के विरोध में सेमिनार

     बरेली में अभी हाल ही में रेलवे के निजीकरण की दिशा में बढ़ाये गए कदमों का रेलवे कर्मचारियों द्वारा विरोध किया जा रहा है। इसे सम्बन्ध में बदायूं मैं भी क्रालोस द्वारा निजीकरण के खिलाफ एकजुट हो रहे लोगों के साथ एक सही समझ बनाये जाने के लिए एक सेमिनार का आयोजन इसी विषय पर किया गया।

     
 शिविर : 
एक केंद्रीय शिविर का आयोजन किया गया। जिससे पहले सभी कार्यकर्ताओं का अध्ययन चक्र आयोजित किये गए। इसके बाद दो दिवसीय शिविर का आयोजन किया गया। शिविर का विषय ' जनवाद तथा समाजवाद में राजनीतिक अधिकारों एवं नागरिक अधिकारों की स्थिति ' था।


   

      चुनाव : लोक सभा 2019

लोक सभा चुनाव  2019 में संगठन द्वारा  संयुक्त तौर पर एक पर्चे का वितरण किया।  कोटद्वार, बरेली, मेरठ, मऊ बलिया देवरिया बदायू हरिद्वार आदि जगहों पर पूंजीवादी व्यवस्था के भंडाफोड़ हेतु बिना उम्मीदवार खड़ा किये पर्चा वितरण किया गया तथा पुस्तिका वितरित की गई। तीन पुस्तिका का सेट 'आम चुनाव साम्प्रदायिकता' पूंजीवादी जनतंत्र व समाजवादी जनतंत्र,  तथा आम चुनाव  व राजनीतिक दल शीर्षक से जारी पुस्तिका के वितरण हेतु गहन अभियान लिया गया।






अभियान:
   मोदी के 5 साल : देश किधर जा रहा है?

     क्रांतिकारी लोक अधिकार संगठन, परिवर्तनकामी छात्र संगठन, इन्कलाबी मज़दूर केंद्र व प्रगतिशील महिला एकता केंद्र द्वारा मोदी सरकार के 5 सालों के दौरान लागू की गई मज़दूर विरोधी, छोटे-मझोले किसान व आम मेहनतकशजन विरोधी नीतियों को बेनकाब करने हेतु एक अभियान उत्तराखंड,उत्तरप्रदेश, दिल्ली व हरियाणा के कुछ अलग अलग हिस्सों में चलाया।
     इस अभियान हेतु एक पुस्तिका जारी की गई जिसका शीर्षक था : मोदी के 5 साल-देश किधर जा रहा है ? इसके अलावा व्यापक अभियान के लिए एक पर्चा भी जारी किया गया जिसका शीर्षक था: बहुरूपिये रूप धर कर छलें इससे पहले उन्हें सबक सीखा दो !
    पुस्तिका में मोदी क्व 5 साल में अर्थव्यवस्था की खस्ता हालत, मज़दूर विरोधी फैसलों मसलन श्रम कानूनों व ट्रेड यूनियन को ध्वस्त करने वाले बदलाव, छोटे मझोले किसान विरोधी फैसलों, महिलाओं-दलितों-अल्पसंख्यकों पर बढ़ते हमलों जनवाद विरोधी कदमों, मोदी सरकार की साम्राज्यवादपरस्ती आदि कदमों को बेनकाब किया गया है।
      15 जनवरी से 15 के बीच यह अभियान चलाया गया। अभियान में अवाम के अलग अलग हिस्सों से व्यापक बातचित हुई। अभियान दलित व अल्पसंख्यक आबादी के बीच भी चलाया गया। अभियान में यह महसूस किया गया कि मोदी की छवि एक हद तक धूमिल हुई है।
     दलितों व अल्पसंख्यकों के बीच स्वाभाविक था कि संघ परिवार व मोदी सरकार की घृणित रुझान के चलते आक्रोश होता। मोदी भक्त मीडिया व संघी प्रचार को छोड़ दिया जाय तो अभियान में यह साफ दिखा कि जनता अलग अलग हिस्सों जे बीच कम या ज्यादा रूप में मोदी सरकार के खिलाफ एक गुस्सा या नाराज़गी है मज़दूर वर्ग के लिये तो वैसे भी यह समझना मुश्किल नहीं है कि 'प्रधान सेवक' उनका नहीं लम्पट पूंजी का सेवक है।

आगरा व पौड़ी में लड़कियों को जलाये जाने के विरोध में
      कोटद्वार 
   कोटद्वार (उत्तराखंड) में क्रालोस इकाई द्वारा आगरा में हाईस्कूल में पढ़ने वाली लड़की को जला दिया गया तथा पौड़ी में बी एस सी में पढ़ने वाली युवती को अपराधी युवक द्वारा आग लगा दी गयी। 
     दोनों ही लड़कियों की अत्यधिक जल जाने के जलते मृत्यु हो गई। इस दुःखद घटना के विरोध में एक सांकेतिक प्रर्दशन किया गया । एक पर्चा इस दौरान इस घटना के विरोध में वितरित किया गया।


    डॉक्टर कोटनिस की स्मृति में
                   9 दिसंबर 2018
      नागरिक पाक्षिक अखबार द्वारा डाक्टर कोटनिस की स्मृति में "जनस्वास्थ्य और मीडिया' विषय से एक सेमिनार आयोजन हुआ।  मेरठ क्रालोस की टीम का इस सेमिनार के आयोजन में महत्वपूर्ण भूमिका रही। 
      सेमिनार 9 दिसंबर 2018 को आयोजित हुआ। सेमिनार में अलग अलग संगठन के लोगों की भागीदारी रही। पी एम एफ, इमके, पछास,प्र म ए केंद्र, जन संघर्ष मंच आदि संगठनों की इसमें महत्वपूर्ण शिरकत रही। 
           वक्ताओं ने पूंजीवाद में स्वास्थ्य के विशेष तौर पर जनस्वास्थ्य के सम्बन्ध में गलत दृष्टिकोण को उजागर किया गया साथ ही यह भी बताया गया कि पूंजीवाद क्यों भांति भांति बीमारियों की वजह भी है।  जनस्वास्थ्य के प्रति इस पूंजीवादी मीडिया के  गलत रुख को उजागर किया गया।
         
         
 
      

      निजीकरण उदारीकरण व वैश्किरण की नीतियों का समाज पर प्रभाव विषय पर गोष्ठी।                          दिसंबर 2018
  
        बदायूं में क्रालोस द्वारा एक गोष्ठी का आयोजन किया गया।गोष्ठी का विषय था 'निजीकरण उदारीकरण_वैश्किरण' की नीतियों का समाज पर प्रभाव'। 
  वक्ताओं ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि भारतीय शासक आज़ादी के बाद पूंजीवाद की ओर बढ़े थे। देश में पूंजीवाद के विकास के रास्ते की ओर बढ़ गया। यह राज्य नियंत्रण में पूंजीवाद के विकास था। यही मिश्रित अर्थव्यवस्था का  मॉडल था। यही नेहरू का समाजवादी मॉडल था।जनता को इसी समाजवाद के नाम पर छला गया।
  यह अर्थव्यवस्था संकटों से गुजरते हुए आगे बढ़ते रही। 90 के दशक में देश के शासक पूंजीपति वर्ग द्वारा गहन भुगतान संकट के वक़्त अपने हित में ही अर्थव्यवस्था को विदेशी पूंजी के लिए खोलने की ओर बढ़ा गया। यह इन्ही निजीकरण-उदारीकरण की नीतियों  के जरिये किया गया। इसका मतलब था अब जनता को जो कुछ भी मिल रहा था उस पर हमला। 
 वक्ताओं ने एक सुर में कहा कि इन नीतियों के लागू होने के बाद बीते 25-30 वर्षों में जनता अलग अलग हिसों की स्थिति और ज्यादा तेजी से ख़राब होते गई है। इन नीतियों का समाज में आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक रूप में गहराई से नकारात्मक असर हुआ है।


इंटरार्क फैक्ट्री के श्रमिकों के संघर्ष के दमन के विरोध में
   क्रालोस की अलग अलग इकाइयों द्वारा उत्तराखण्ड के उधम सिंह नगर जिले में पिछले लंबे समय से अपनी जायज  जनवादी मांगों के लिए संघर्ष कर रहे मज़दूरों का दमन सरकार द्वारा किये जाने के विरोध में प्रदर्शन किया गया व ज्ञापन दिया गया।

     मुक्तिबोध की 101 वी जयंती पर

  मुक्तिबोध की 101 वीं जयंती पर बदायूं  क्रालोस द्वारा एक दिवसीय गोष्ठी का आयोजन किया गया। गोष्ठी में विभिन्न वक्ताओं ने अपने विचार रखे। आज के दौर में अभिव्यक्ति व असहमति की आवाज को जब कुचला जा रहै है तब ऐसे वक्त में 'अभिव्यक्ति के सारे खतरे उठाने ही होंगे , तोड़ने ही होंगे मठ और गढ़'  कविता को साकार करने की जरूरत पर वक्ताओं ने जोर दिया।

      इंटार्क फैक्ट्री के संघर्ष के समर्थन में
      उत्तराखण्ड के उधम सिंह नगर जिले मे इंटरार्क फैक्ट्री के मजदूरों के दमन के विरोध में और उनके जनवादी अधिकारों के हनन के विरोध में हल्द्वानी में प्रदर्शन किया गया  व एक ज्ञापन भी प्रेषित किया गया।

           नगर निकाय चुनाव पर
      उत्तराखंड में नगर निकाय चुनावों पर क्रालोस द्वारा एक पर्चा जारी किया गया। इस पर्चे का शीर्षक था :-- आइये इंक़लाब के रास्ते का चुनाव करें! शहीद भगत सिंह के बताए रास्ते पर चलें!! 
      इस पर्चे का व्यापक वितरण हल्द्वानी, हरिद्वार, रुद्रपुर एवं कोटद्वार में किया गया। जनता की इस पर्चे पर सकारात्मक प्रतिक्रिया रही। संगठन की बातोँ से सहमति भी आम जनता ने जताई।

         के एम सी आंदोलन
                  सितंबर 2018
   उत्तराखंड के कोटद्वार में सिगड्डी ग्रोथ सेंट में के एम सी नाम की फैक्ट्री के मजदूरों के संघर्ष में क्रालोस की निरंतर भागेदारी रही। अंततः श्रमिकों के साथ कोटद्वार तहसील में एस डी एम का घेराव के लिए जुलूस प्रदर्शन किया गया। 300 श्रमिक जुलूस में मौजूद रहे।
    एस डी एम द्वारा ज्ञापन न लिए जाने की स्थिति में एस  डी एम का घेराव किया गया। अन्ततः दबाव में एक वार्ता एस डी एम को करवानी पड़ी।जिमसें  प्रबन्धक व मज़दूर भी मौजूद थे। 
   लिखित समझौते के साथ आंदोलन समाप्त हुआ।

     

       
   
         गुजरात में उत्तर भारतीय श्रमिकों पर हुए हमलों के विरोध में
   गुजरात में उत्तर भारत के श्रमिकों पर हुए हमलों के विरोध में बलिया देवरिया व हल्द्वानी में धरना  प्रदर्शन किया गया ।जबकि अन्य जगहों पर ज्ञापन दिया गया।


       "खौफ से आज़ादी" के तहत दो साल बाद भी गायब 'नजीब' के मामले में सी बी आई द्वारा क्लोजर रिपोर्ट लगाने पर 'प्रतिरोध सभा' 
                           दायूं
 
      बदायूं में क्रांतिकारी लोक अधिकार संगठन समेत विभिन्न संगठनों द्वारा संयुक्त रूप में एक 'प्रतिरोध सभा' के माध्यम से केंद्र सरकार व सी बी आई के प्रति आक्रोश व्यक्त किया गया।  नजीब 14 अक्तूबर 2016 से लापता हैं. 14 अक्टूबर की रात जेएनयू के माही मांडवी हॉस्टल में कुछ छात्रों के बीच झड़प हुई थी। इसमें प्रोक्टरियल जांच में  ए बी वी पी के छात्र को नजीब पर हमला करने का दोषी पाया गया था। इसके बाद नजीब का कहीं पता नहीं चला।वर्ष 2017 में दिल्ली हाई कोर्ट ने इस मामले की सीबीआई जांच का आदेश दिया था। और अब सी बी आई ने इस मसले पर कोर्ट में क्लोजर रिपोर्ट दाख़िल कर जांच बंद कर दी है।
       इसी सम्बन्ध में ही प्रतिरोध के तौर पर बदायुं में प्रतिरोध सभा का आयोजन 'खौफ से आज़ादी' के बैनर तले किया गया। इस कार्यक्रम को आयोजित करने में  क्रालोस, भीम सेना, युवा मंच संगठन,संत रविदास सेवा न्यास ,एस आई ओ के , इंडियन बैकवर्ड यूथ आदि संगठन की भूमिका रही।
        इस कार्यक्रम में नजीब की माता फातमा नफीस भी मौजूद रही। सभी ने इस अन्याय की मुखालफत करते हुए देश में एक प्रकार की अघोषित आपातकाल सी स्थिति पैदा कर दिए जाने व सरकार व पार्टी विशेष को आलोचना के दायरे से बाहर कर देश द्रोह घोषित कर देने की स्थिति पर गंभीर चिंता व्यक्त की। साथ ही नजीब मामले पर आंदोलन को मुकाम पर पहुंचाने के साथ साथ देश में जनवाद विरोधी कदमों के खिलाफ भी आम जन को गोलबंद करने का संकल्प लिया गया।
             



           केरल आपदा में 
        अगस्त 2018   
    
 आपदा राहत मंच के बैनर तले क्रांतिकारी लोक अधिकार संगठन द्वाराराहत कार्यक्रम चलाए जाने व मेडिकल कैम्प लगाए जाने के लिए अलग अलग जगहों पर फण्ड अभियान चलाया गया। आपदा राहत मंच में क्रालोस , पछास, इंकलाबी मज़दूर केंद्र, प्रगतिशील महिला एकता केंद्र एवं प्रोग्रेसिव मेडिकोच फोरम शामिल थे। तीन सितम्बर से एक हफ्ते के लिए मेडिकल कैम्प लगाया गया ।


 माओवाद के नाम पर गिरफ्तारी के विरोध पर 
      माओवाद के नाम पर देश में दलितों, वंचितों व आदिवासियों के पक्ष में आवाज उठाने वाले जनपक्षधर ताकतों के खिलाफ षड्यंत्र रच कर गिरफ्तार किए जाने के विरोध में हरिद्वार, हल्द्वानी आदि में संयुक्त प्रदर्शन किया गया।जबकि अन्य जगह पर भी विरोध किया गया व ज्ञापन प्रेषित किया गया।

         भीड़ हत्याओं के विरोध में 
         अगस्त 2018
कोटद्वार (पौड़ी)/◆◆ उत्तराखंड के कोटद्वार में क्रालोस द्वारा देश में आम रूप में गौरक्षा के नाम पर हत्यारे गौरक्षक दस्तों द्वारा मुस्लिमों एवं दलितों पर किये जा रहे हमलों व उनकी हत्याओं के विरोध में जुलूस प्रदर्शन का आयोजन किया गया।
   जुलूस प्रदर्शन में हत्यारी भीड़ ( गौरक्षक ) को माला पहनाकर  अगली हत्याओं को प्रोत्साहित करने वाले भाजपा के केंद्रीय मंत्री जयंत सिन्हा की गिरफ़्तारी की भी मांग के लिए प्रदर्शन किया गया। कार्यक्रम सांकेतिक विरोध प्रदर्शन का था।
   

  
      उधम सिंह शहीद दिवस पर
                       जुलाई 2018
  
    साम्राज्यवाद विरोधी संघर्ष में खुद को न्योछवार कर देने वाले शहीद उधम की शहीदी दिवस की स्मृति में 31 जुलाई को हल्द्वानी टीम द्वारा कार्यक्रम किया गया। सांकेतिक जुलूस निकाला गया। एक पर्चा वितरित किया गया। 
    शहीद उधम सिंह को याद करते के संघर्षों  को याद करते हुए आज के संदर्भ में उधम सिंह की प्रासंगिकता को लोगों तक पहुंचाने के मकसद से कार्यक्रम किया गया। इस बात को आम जन के सम्मुख रखा गया कि आज के धार्मिक उन्माद के दौर में जब एक तरफ देश में फ़ासीवादी आंदोलन आगे बढ़ रहा है जो कि उग्र व कट्टर हिंदुत्व के रूप में है। तब उस  दौर में "साम्प्रदायिक शक्तियो" एवं साम्प्रदायिक दंगों से नफरत करने वाले उधम सिंह ने अपना नाम ही कौमी एकता को व्यक्त करने के लिए ' राम मोहम्मद सिंह आज़ाद' रखा था। उधम सिंह की साम्प्रदायिक विरोध व साम्रज्यवाद से संघर्ष के प्रेणा आज की जरूरत है।


    

        मोबलिंचिंग के विरोध में
 
   देश में बढ़ती मोबलिंचिंग (भीड़ द्वारा हत्याएं) के विरोध में क्रालोस द्वारा बरेली में सांकेतिक प्रदर्शन किया गया एवं एक ज्ञापन भी प्रेषित किया गया।
     

     बढ़ते फ़ासीवादी खतरे व 26 जून 1975 के आपात काल के काले दिनों पर अभियान

     क्रांतिकारी लोक अधिकार संगठन द्वारा जून माह में हल्द्वानी,बरेली, देवरिया , बलिया,कोटद्वार, मेरठ व सहारनपुर में अभियान चलाया गया। यह अभियान जून 1975 में इंदिरा गांधी के दौर में थोपी गई संवैधानिक तानाशाही के काले दिनों को बताते हुए मौजूदा दौर में बढ़ते फ़ासीवादी खतरे के सम्बंध में था। इस पर एक पर्चा जारी किया गया। पर्चे का शीर्षक था -- आपात काल के काले दिनों को याद करो !!' धर्म-संस्कृति-राष्ट्र' के नाम पर फ़ासीवाद की ओर बढ़ते कदमों का विरोध करो'।
    इस पर्चे के माध्यम से आम अवाम के बीच पूंजीवादी आर्थिक सामाजिक व राजनीतिक संकटों का तानाशाही व फासीवाद से सम्बन्ध को बताया गया। साथ ही फासीवादी आंदोलन के जवाब में संघर्ष का आह्वान भी किया गया। इस अभियान के अंत में गोष्ठी व चर्चा बैठक भी आयोजित किये गए। हल्द्वानी में धरना कार्यक्रम आयोजित कीया गया।
  

    केंद्रीय सेमिनार व तुरिकोरिन प्रदर्शनकारियों की हत्या के विरोध में प्रस्ताव
       क्रांतिकारी लोक अधिकार संगठन (क्रालोस) का केन्द्रीय सेमिनार 27 मई के दिन बरेली में सम्पन्न हुआ।  सेमिनार का विषय- ‘‘मेहनतकशों, दलितों, अल्पसंख्यकों व जनवादी ताकतों पर बढ़ते फासीवादी हमले’’ था। इस सेमिनार में शामिल होने के लिए उ.प्र. तथा उत्तराखण्ड व पंजाब से लोग आए थे।
        सेमिनार का प्रारम्भ प्रगतिशील सांस्कृतिक मंच द्वारा प्रस्तुत क्रांतिकारी गीत ‘एक है उनकी एक है अपनी मुल्क में आवाजें दो’ से हुआ। केन्द्रीय सेमिनार में क्रालोस महासचिव भूपाल द्वारा सेमिनार पत्र प्रस्तुत किया गया जिसमें पिछले 4 वर्षों में दलितों पर हुए संघी हमलों, मुसलमानों पर हमलों, जनवादी चिंतकों पर हमलों का जिक्र किया गया। और बताया गया कि फासीवाद से लड़ने के नाम पर पूंजीवादी-संशोधनवादी दलों के चुनावी मोर्चे फासीवाद को चुनौती नहीं दे सकते। फासीवाद को चुनौती मजदूर वर्ग के नेतृत्व में सड़कों पर संघर्ष के जरिये ही दी जा सकती है।
       पंजाब से आये ए एफ डी आर के साथी पृथ्वीपाल सिंह ने कहा कि आज देश में हर जगह फ़ासीवादी ताकतें अपने हमले बाधा रही हैं व जनवाद तथा संवैधानिक दायरे को लगातार संकुचित कर रहे हैं इसका प्रतिरोध सभी फासीवाद विरोधी  क़तारों को एकजुट कर ही दिया जा सकता है।
       सेमिनार को संबोधित करते हुए बरेली काॅलेज के पूर्व प्राचार्य डा. सोमेश यादव ने मेहनतकश वर्ग, दलितों और महिलाओं पर हमले बढ़ने पर चिंता व्यक्त की और कहा कि जो लोग सरकार की नीतियों की आलोचना कर रहे हैं या जनता की आवाज उठा रहे हैं उनकी हत्याएं तक की जा रही हैं।
     पूर्वोत्तर रेलवे कार्मिक यूनियन (PRKU) के मण्डलीय अध्यक्ष राकेश मिश्रा ने कहा कि वर्तमान फासीवादी आंदोलन निजीकरण को तीव्र गति से लागू कर रहा है। आंकड़ों के माध्यम से देश में बढ़ती बेरोजगारी की तस्वीर रख राकेश मिश्रा ने बताया कि किस प्रकार फ़ासीवादी ताकतें इस मुद्दे को गायब कर धर्म के नाम के राजनीति कर रहे हैं।
      प्रगतिशील महिला एकता केन्द्र की बदायूं इकाई सचिव एड. नफशां निगार ने महिलाओं पर बढ़ते अत्याचार-बलात्कार की प्रवृत्तियों पर इशारा करते हुए कहा कि फासीवादी संगठनों की महिलाओं को घर में कैद रखने की प्रवृत्ति और पितृसत्तात्मक मूल्य तथा उपभोक्तावादी मूल्य महिलाओं पर अत्याचार को बढ़ा रहे हैं। इसका प्रतिरोध करना होगा।
      परिवर्तनकामी छात्र संगठन (पछास) के केन्द्रीय अध्यक्ष कमलेश ने कहा कि शिक्षा व संस्कृति को अपने फासीवादी एजेंडे के हिसाब से ढालने का संघ परिवार हर जतन कर रहा है।। इसलिए विश्वविद्यालय तथा काॅलेज भी फासीवादियों से उस टकराहट का अखाड़ा बन रहे हैं। जेएनयू, एएमयू आदि इसके उदाहरण हैं। छात्रों की स्वतंत्र सोच व चिंतन तथा अभिव्यक्ति पर संघ तथा मोदी सरकार का यह सुनियोजित हमला कर रही है।
        BTUF के महामंत्री संजीव मेहरोत्रा ने सेमिनार को संबोधित करते हुए कहा कि आज श्रम कानूनों व ट्रेड यूनियन कानूनों पर हमले हो रहे हैं तो दूसरी ओर आम जन को मिलने वाली चंद सुविधाएं व सब्सिडी हर क्षेत्र में खत्म हो रही हैं। जनता का पैसा पूंजीपतियों को कर्जे के रूप में दिया गया, उसकी वसूली जनता से की जा रही है।
       क्रांतिकारी लोक अधिकार संगठन (क्रालोस) के केन्द्रीय अध्यक्ष पी.पी.आर्या ने सेमिनार के समापन सत्र पर बोलते हुए कहा कि फासीवादी जैसे-जैसे आगे बढ़ते हैं आम अवाम के हर हिस्से को अपने विरोध में करते जाते हैं। यही इनकी असल कमजोरी है और हमारी ताकत। हमें मजदूरों, छात्रों, दलितों, अल्पसंख्यकों, आदिवासियों, किसानों व महिलाओं के हर तबके व वर्ग पर होने वाले फासीवादी हमले का पुरजोर विरोध करते हुए आगे बढ़ना होगा।
  इसके अलावा सेमिनार में बरेली से प्रो. ताहिर बेग, उन्नाव से किसान संगठन के प्रतिनिधि, बरेली से सी पी एम के राजीव शांत व अन्य साथियों ने अपने विचार रखे।
     सेमिनार में तूतीकोरिन प्रदूषण के चलते अस्तित्व का खतरा पैदा हो जाने से वहां की स्थानीय जनता के स्टर्लाइट कम्पनी के खिलाफ प्रदर्शन पर तमिलनाडु राज्य सरकार द्वारा गोलियां चलाने व 13 निर्दोष लोगों की निर्मम हत्या के विरोध में एक प्रस्ताव पारित किया गया। साथ ही एक प्रस्ताव देश में बढ़ते फसीवादी हमलों के खिलाफ पारित किया गया।
    सेमिनार के समापन के बाद अंत में एक जुलूस फासीवाद विरोधी नारों के साथ चौकी चौराहे से कोतवाली अम्बेडकर पार्क तक निकाला गया।
         
  
   जलियावाला बाग काण्ड की शताब्दी वर्ष पर
मेहनतकशों , दलितों, अल्पसंख्यकों व जनवादी ताकतों पर बढ़ रहे फ़ासीवादी हमले एक जुट होकर विरोध करें।
     
         क्रांतिकारी लोक अधिकार संगठन द्वारा एक पर्चा देश में बढ़ रहे  फासीवादी हमलों के विरोध में जारी किया। और इस पर्चे का वितरण बरेली, हलद्वानी ,मेरठ ,हरिद्वार, कोटद्वार, देवरिया, बलिया में आम जन कर बीच वितरित किया। 27 मई के सेमीनार के लिए लोगों की भागीदारी के लिए आव्हान किया गया।


   मज़दूर वर्ग व मेहनकश अवाम के महान शिक्षक कार्ल मार्क्स की 200वीं जयंती पर
        मज़दूर  वर्ग व मेहनतकश अवाम के महान शिक्षक कार्ल मार्क्स की 200वीं जयन्ती पर क्रालोस द्वारा विचार गोष्ठी व चर्चा बैठक का कहीं संयुक्त तौर पर तो कहीं स्वतंत्र रूप में आयोजन किया गया। बरेली, रुद्रपुर में इमके व पछास के साथ गोष्ठी का आयोजन किया गया जिसमें हल्द्वानी से भी शिरक़त रही। बलिया, मऊ व हरिद्वार में इमके के साथ गोष्ठी आयोजित की गयी। कोटद्वार, बदांयू व देवरिया में स्वतंत्र तौर पर चर्चा बैठक आयोजित की गई। 
        सभी जगह  वक्ताओं ने इस बात पर दिया व रेखांकित किया कि आज वैश्विक आर्थिक संकट के दौर में जब पूरी दुनिया में शासक वर्ग की राजनीति उग्रदक्षिणपंथी दिशा में ढुलक रही हो तब कार्ल मार्क्स की 200वीं जयंती पर मज़दूर वर्ग व मेहनतकश अवाम के बीच कार्ल मार्क्स के मुक्तिकामी विचारों को इनके बीच गहनता से ले जाने की जरूरत है।

       2 अप्रेल के प्रदर्शन के समर्थन में व एस सी एस टी एक्ट में संशोधन के विरोध में
     एस सी एस टी एक्ट में संशोधन कर इसे कमज़ोर किये जाने के विरोध में एक अभियान चलाया गया साथ ही उन बरेली में 2 अप्रेल के प्रदर्शन में भगीदारी भी की ।

                                   यूपीकोका के विरोध में
    उत्तर प्रदेश की योगी सरकार द्वारा दमनकारी काला कानून लाये जाने के विरोध में देवरिया, बदांयू, बलिया व बरेली टीम द्वारा विरोध किया गया।  इस संबंध में इन इकाइयों द्वारा एक ज्ञापन भी राष्ट्रपति के लिए प्रेषित किया गया।
                       भगत सिंह शहादत दिवस पर
       भगत सिंह शहादत दिवस पर क्रालोस द्वारा एक पर्चा जारी किया गया। जिसका शीर्षक था 'नफरत व दंगो की साजिश रचने वाले हिटलरी ताकतों का विरोध करें' । इस पर्चे का व्यापक स्तर पर वितरण किया गया।पर्चा वितरण के बाद 23 मार्च के दिन प्रदर्शन व सभाओं का आयोजन किया गया। 
       कोटद्वार में जुलूस प्रदर्शन किया गया। मेरठ,हल्द्वानी,बरेली,देवरिया व बलिया में सभा की गई। मऊ बलिया व हरिद्वार में संयुक्त तौर पर इंकलाबी मज़दूर केन्द्र के साथ कार्यक्रम आयोजित हुए। सहारनपुर में नुक्कड़ सभा की गई। बरेली में 25 मार्च को विचार गोष्ठी का भी आयोजन किया गया।





        काकोरी के शहीदों की स्मृति में

      काकोरी के शहीदों की स्मृति में क्रालोस द्वारा एक  पर्चा जारी किया गया । जिसका शीर्षक 'अशफ़ाक़-बिस्मिल'की विरासत को आगे बढ़ाओ' -,'देश की मेहनतकश जनता को धर्म-संस्कृति के नाम पर बांटने वाली ताकतों के खिलाफ एकजुट हो' था।
     अलग जगहों पर क्रालोस के कार्यकर्ताओं ने आम अवाम के बीच इस पर्चे को लेकर अभियान चलाया। 1-2 जगहों पर सभाएं की गई।
    इस पर्चे के माध्यम से इस बात पर जोर दिया गया कि इस समय अवाम के सामने फासीवाद का गंभीर खतरा निकट है। जो लगातार ही अलग अलग धार्मिक सांस्कृतिक मुद्दों के जरिये समाज में मेहनतकश जनता के एक हिस्से को दूसरे हिस्से के खिलाफ खड़ा करते जा रहे है। इसके खिलाफ एकजुट हीने की अपील की गई।
     

      महान अक्टूबर समाजवादी क्रांति शताब्दी वर्ष पर प्रचार अभियान

      महान अक्टूबर समाजवादी क्रांति शताब्दी वर्ष के मौके पर क्रालोस द्वारा संयुक्त तौर पर अक्टूबर क्रान्ति शताब्दी समारोह समिति के बैनर तले अलग अलग जगहों पर गोष्ठियां, सभाएं आयोजित की साथ ही पर्चा व पुस्तिका का व्यापक वितरण किया। अक्टूबर क्रांति के दिन यानी 7 नवंबर को क्षमतानुरुप प्रदर्शन भी किये। आम जनता के बीच अक्टूबर क्रांति की उपलब्धियों, बीसवीं सदी में समूचे विश्व में क्रांति का प्रभाव, उपनिवेशवाद विरोधी आंदोलनों में इसकी भूमिका आदि पर अवाम के बीच पर्चे के जरिये चर्चा की। साथ ही  आज समाजवादी खेमे या मुल्क के न होने की स्थिति में साम्राज्यवादी दखलंदाजी व पूँजीवद की हावि होते जाने को भी रेखांकित किया गया। साल भर शताब्दी वर्ष के मौके पर सेमिनार व गोष्ठियां आयोजित की गई। एक पोस्टर प्रदर्शनी भी बनाई गई ताकि सरलता पूर्वक लोगों तक अपनी बात पहुंचाई जा सके। इस प्रदर्शनी को मोहल्लों, मज़दूर बस्तियों में लगाया गया।



 बी एच यू की छात्राओं  के आंदोलन पर लाठीचार्ज के विरोध में प्रदर्शन

    क्रालोस की अलग अलग इकाइयों ने बी एच यू छात्राओं पर लाठीचार्ज के विरोध में विरोध प्रदर्शन किया व ज्ञापन दिया। बी एच यू में सितंबर माह की तीसरे हफ्ते में छात्राएं आंदोलन कर रहीं थीं। ये छात्राएं छेड़छाड़ व असुरक्षा के विरोध में धरने पर बैठे थे। इन छात्राओं ने पहले प्रॉक्टर से फिर कुलपति से सुरक्षा सी सी टी वी लगाने की मांग की। दोनों ने ही छात्राओं के इस मांग पर कान नही दिए। इसके उलट उन्ही के इसके लिए दोषी ठहराया। अपनी फासिस्ट मनोबृत्ति के चलते छात्राओं को धरना करने को बाध्य कर दिया।
      धरने में धीरे धीरे अन्य छात्र व छात्राएं भी शामिल होते गए। आंदोलन मज़बूत होते गया। मांगो को मानने के बजाय आंदोलन के दमन के लिए भारी तादाद में अर्धसैनिक बल व पुलिस तैनात कर दी गई। इसमें महिला पुलिस नही थी। दबाव बनाने के लिए होस्टल की लाइट व पानी की सप्लाई भी रोक दी गई। लेकिन जब आंदोलन आगे बढ़ता गया तब रात के अंधेरे में हमला बोल दिया गया। आंसू गैस छोड़ दिया गया।होस्टल में घुसकर भी हमला बोला गया। संघी लम्पटों ने आन्दोलन को बदनाम करने के लिये पेट्रोल बम भी फैंके। इस प्रकार से आंदोलन को कुचलने की घृणित कोशिश हुई। लगभग 1200 पर संगीन मुकदमे भी दर्ज कर दिए गए।
    इस दमन के विरोध में संगठन ने राष्ट्रपति को ज्ञापन भेजा इसमें कुलपति व लाठीचार्ज का आदेश देने वाले अधिकारियों को बर्खास्त करने की मांग की गई।

संघ परिवार के घृणित कृत्यों को उजागर करने वाली निर्भीक पत्रकार की हत्या के विरोध में प्रदर्शन

        क्रांतिकारी लोक अधिकार  संगठन  द्वारा गौरी लंकेश की हत्या के विरोध में कहीं संयुक्त रूप में तो कहीं स्वतंत्र तौर पर विरोध व्यक्त किया । विरोध में निंदा प्रस्ताव पारित किया गया दक्षिण पंथी ताकतों का पुतला भी फूंका गया। हरिद्वार व बरेली में अन्य संगठनों के साथ मिलकर किया गया।
  सभी जगह कार्यकर्ताओ व वक्ताओं ने इस बात पर जोर दिया कि  अब अभिव्यक्ति की आज़ादी पर फासिस्टों के पहरे लगे हुए है। जो कोई भी संघ परिवार की घृणित करतूतों को बेनकाब करता है या फिर तर्क, तथ्य व वैज्ञानिक चिंतन पर जोर देने की बात करता है, अंधविश्वास व धार्मिक पोंगापंथ को अपने लेखन का निशाना बनाता है वह फासिस्टों के निशाने पर रहता है। 
   पानसरे, दाभोलकर,कलबुर्गी व गौरी लंकेश की हत्याएं इसी बात को दिखाती हैं। वक्ताओं ने अपनी बातों में इस बात को भी रेखांकित किया कि  आज मौजूदा वक्त में देश की बड़ी पूंजी के मालिक अम्बानी, अदाणी , टाटा बिड़ला जैसे चंद घराने इन फासिस्ट ताकतों के पीछे है यही फासिस्टों की शक्ति का असली स्रोत है। इसलिए इसके खिलाफ मज़दूर मेहनत कश अवाम को एकजुट होकर लड़ना होगा !!

गोरखपुर अस्पताल में बच्चों की मौत के विरोध में 

क्रालोस ने कहीं संयुक्त रूप में तो कहीं गोरखपुर अस्पताल में योगी सरकार की ग़ैरजिम्मेदराना रुख व भयानक लापरवाही के चलते हुई बच्चों की मौतों के विरोध में प्रदर्शन व ज्ञपन दिया गया। योगी सरकार से इस्तीफे की मांग की गई। हरिद्वार में इंकलाबी मज़दूर केन्द्र के साथ योगी सरकार का पुतला दहन किया गया साथ ही आक्रोश व्यक्त किया गया। 
पूर्वी उत्तरप्रदेश में देवरिया , बलिया व मऊ में " मुख्यमंत्री योगी इस्तीफा दो" शीर्षक से एक पर्चा जारी किया गया। आम अवाम के बीच जाकर अभियान चलाया गया। देवरिया में जोइंट मोर्चे के साथ भी विरोध प्रदर्शन किया गया। पर्चे के माध्यम से स्वास्थ्य के निजीकरण पर रोक लगाने की मांग भी की गई साथ ही देश के आम नागरिकों को निःशुल्क स्वास्थ्य उपलब्ध कराने के हेतु सरकार पर दबाव बनाने के लिए संघर्ष में आने की अपील की गई



आधार कार्ड की अनिवार्यता के विरोध में ज्ञापन



                                                







बल्लभगढ़ में साम्प्रदायिक लम्पट तत्वों द्वारा जुनैद की हत्या के विरोध में ज्ञापन

                                                 ज्ञापन
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प्रति ,
      राष्ट्रपति महोदय, द्वारा उपजिलाधिकारी महोदय
     भारत सरकार, भारत ।
   विषय:  बल्लभगढ़ को लौट रहे ट्रेन में 4 अल्पसंख्यक लड़कों पर हुए हमले तथा इसमें 15 वर्षीय      लड़के जुनैद की साम्प्रदायिक तत्वों द्वारा की गई हत्या के संबंध में
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महोदय , 
      15 जून गुरुवार को दिल्ली से मथुरा जाने वाली लोकल ट्रेन में साम्प्रदायिक मानसिकता से ग्रस्त कुछ युवकों ने एक युवक जुनैद की चाकू घोंपकर हत्या कर दी जबकि उसके दो भाइयों और दो दोस्तों को जख्मी कर दिया । उसके भाई हाशिम (21) और साकिर (23) घायल है जबकि साकिर की हालत गंभीर है.
ये फरीदाबाद जिले के एक छोटे से गांव खंडावली के रहने वाले हैं. ईद की खरीददारी करके दिल्ली से लौट रहे थे। साम्प्रदायिक मानसिकता से ग्रसित 15-20 लोगों  ने उनके वेश भूषा पर फब्तियां कसी तथा उनके खान पान पर भी टिप्पणी की। उन्हें सीट से हटाने की कोशिश की व धक्का भी दिया। जुनैद ने जब इसका विरोध किया तो उसकी टोपी नीचे फेंक दी गई। 
 बल्लभगढ़ स्टेशन के पास इन लोगों ने जुनैद और उसके साथियों पर चाकुओं से हमला कर दिया। इन्हें बुरी तरह घायल करने के बाद ये लोग भाग गए। जुनैद के शरीर पर अत्यधिक घाव के चलते वे रक्तस्राव के चलते जुनैद की मृत्यु हो गई। 
महोदय यह स्थिति बेहद चिंताजनक है कि पिछले तीन सालों से देश में नफरत व साम्प्रदायिकता का जहर समाज में लगातार तेजी से फैल रहा है। इस नफरत भरी राजनीति की गिरफ्त में अधिकाधिक लोग फंसते जा रहे है। जिस वजह से कहीं गौरक्षा के नाम पर, कहीं लव जेहाद के नाम पर तो कही खान पान वेश भूषा की वजह से हत्याएं अब आम होते जा रही हैं।साम्प्रदायिक लम्पट तत्व बेखौफ होकर हत्याओं को अंजाम दे रहे है।
इन स्थितियों में भारतीय राज्य व सरकार की जिम्मेदारी बनती है कि वह आम नागरिकों को हासिल संवैधानिक ,जनवादी अधिकारों  तथा जीने के अधिकार पर हो रहे हमले को अक्षुण्ण बनाये। और मौजूदा वक्त में यह और भी ज्यादा जरूरी इसलिए हो जाता है क्योँकि ऐसे साम्प्रदायिक लम्पट तत्वों की शक्ति का स्रोत भी यही छुपा हुआ है।
अतः महोदय हम मांग करते है कि 15 जून की घटना को अंजाम देने वाले साम्प्रदायिक तत्वों को चिन्हित कर तत्काल गिरफ्तार किया जाय। साथ ही नफरत व साम्प्रदायिकता का जहर फैलाने वाले संगठनो को प्रतिबंधित किया जाय।
        
         द्वारा :  क्रांतिकारी लोक अधिकार संगठन




 सहारनपुर में दलितों पर हुए हमलों के विरोध में ज्ञापन व प्रदर्शन
    सहारनपुर में दलितों पर हुए हमलों के विरोध में राष्ट्रपति के लिए एक ज्ञापन प्रेषित किया गया। कुछ इकाइयों ने सांकेतिक प्रदर्शन भी किये। 
                                                      
   ज्ञापन निम्न है -


प्रति,
             राष्ट्रपति महोदय द्वारा ...........................
                                         .....................................
             भारत सरकार, भारत 
विषय : सहारनपुर ( उत्तर प्रदेश)  के शबीरपुर गांव में तथा 23 - 24 मई को  मेहनतकश दलितों पर किये गए बर्बर हमले के संबंध में
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महोदय , 
         उत्तर प्रदेश के सहारनपुर शहर के पास शबीरपुर गावँ में 5 मई 2017 को सुनियोजित तरीके से दलित समुदाय पर कातिलाना हमला किया गया व उनके घर जला दिये गए । इस हमले को गांव के सवर्ण (ठाकुर) समुदाय से जुड़े कुछ लोगों व महाराणा प्रताप जयंती पर एकजुट हुए तलवारो व लाठियों से लैस सैकड़ो लोगों द्वारा अंजाम दिए जाने के तथ्य सामने आए हैं। दंगाइयों के इस घृणित घटना को अंजाम देने में पुलिस की संलिप्तता की बातें भी उजागर हुयी हैं। 
      महोदय तथ्यतः लगभग 40 से ज्यादा घर किसी  रसायन की मदद से जलाये गए। एक दो व्यक्तियो व जानवरो को भी आग में झौंकने की कोशिश हुई । 12 लोग जिसमें 5 महिलाये व 6 पुरुष जो कि दलित समुदाय के है बुरी तरह घायल हुए मामला यहीं खत्म नहीं हुआ। 23-24 मई को दलित समुदाय के मेहनतकश लोगों पर फिर बंदूक, तलवार व लाठी डंडों से हमला किया गया जिसमें 3 दलित मारे गए तथा लगभग 13 लोग बहुत बुरी तरह जख्मी हुए।
     महोदय एक लोकतांत्रिक मुल्क में पुराने सामंती जमाने के तर्ज पर गठित सवर्ण व धार्मिक सेनाओ के गठन की इजाजत किसी भी कीमत पर नही दी जानी चाहिए जो कि हथियार लहराते हुए दलित वंचित समुदाय व अल्पसंख्यको को आतंकित करें व दहशत में जीने को विवश करें, उनके संवैधानिक व जनवादी अधिकारों का अपहरण कर लें, जीने के अधिकार को छीन लें और उन्हें दोयम दर्जे का नागरिक बना दें। ऐसा होना संविधान का व इस लोकतंत्र का मज़ाक बनाना है। 
       महोदय इन गंभीर स्थितियों में जबकि गुजरात के ऊना से लेकर सहारनपुर के शबीरपुर तक अलग अलग नाम वाली इन "सेनाओं" ने मेहनतकश दलितों पर अत्याचार को लगातार बेखौफ हो आगे बढ़ाया है हम आपसे मांग करते हैं ---- 
1: जातिगत और धार्मिक आधार पर बने व दंगों को अंजाम देने वाली इन आपराधिक गिरोहों वाली "सेनाओ" को प्रतिबंधित किया जाय।
2: शबीरपुर गांव में दलित समुदाय के घरों को तहस नहस करने तथा 23 - 24 मई को भी मेहकनतकश दलितों पर कातिलाना हमले करने वाले लोगो को चिन्हित कर तत्काल गिरफ्तार किया जाय व आर्थिक व शारीरिक हमले का मुकदमा दर्ज किया जाय। साथ ही एस सी एस टी एक्ट के तहत मुकदमा दर्ज किया जाय।
3: दलित समुदाय पर कातिलाना हमले के दौरान जिन पुलिस कर्मियों की इसमें संदिग्ध भूमिका रही है उन्हें बर्खास्त किया जाय। तथा  दलित समुदाय के जिन लोगो को जान माल का नुकसान हुआ है उन्हें इसका अविलंब उचित मुआवजा दिया जाय।


दिनांक :                                         

 द्वारा :  
             क्रांतिकारी लोक अधिकार संगठन

                                                     
                                     


  





 सहारनपुर के शबीरपुर गांव का दौरा
  5 मई को सहारनपुर के शबीरपुर में दलित समुदाय पर हुए हमलों के संबंध में तथ्यों की जांच पड़ताल के लिये 7सदस्यीय दल  घटना स्थल पर गया। 
    क्रालोस की अगुवाई में प्रगतिशील महिला एकता केंद्र व नौजवान भारत सभा के कार्यकर्ता शब्बीरपुर गांव 8 मई को पहुंचे। 
     जांच दल दलित समुदाय के बीच , ठाकुर समुदाय के घरों तथा अल्पसंख्यक परिवार में भी गया। जांच दल  ने पाया कि गांव के कुछ सवर्ण जातिवादी मानसिकता से ग्रस्त ठाकुर समुदाय तथा गांव से कुछ दूर शिमलाना में महाराणा प्रताप जयंती मना रहे ठाकुर समुदाय के लोगोँ ने दलितों पर हमला किया। 
     ये हथियारों से लैस थे। इस घटना में 50 से ज्यादा मेहनतकश दलितों के घर किसी रसायन की मदद से जलाये गए। जबकि 12 दलित घायल हुए थे। इसी आधार पर एक तथ्यान्वेषी रिपोर्ट भी तैयार की गई।  

  महान अक्टूबर समाजवादी क्रान्ति जिन्दाबाद

महान अक्टूबर समाजवादी क्रांति शताब्दी वर्ष के मौके पर क्रांतिकारी लोक अधिकार संगठन ,परिवर्तन कामी छात्र संगठन , इंक़लाबी मज़दूर केंद्र प्रगतिशील महिला एकता केंद्र ने संयुक्त रूप से शताब्दी वर्ष में इस क्रांति की उपलब्धियों,क्रांतिकारी राजनीति , विचारधारा को समाज में  प्रचारित करने व आत्मसात करने  का संकल्प लिया है । इसके तहत एक पुस्तिका व पर्चे के जरिये अभियान चलाया  जा रहा है।  सेमीनार , गोष्ठियों का आयोजन भी किया जा रहा है ।


संघ परिवार व मोदी सरकार द्वारा पैदा किये जा रहे अंधराष्ट्रवादी उन्माद का विरोध
     क्रांतिकारी लोक अधिकार संगठन ने अन्य जनवादी संगठनों के साथ जे एन यू  प्रकरण के जरिये पूरे देश को तथाकथित राष्ट्रवाद व देश भक्ति के नाम पर  जनवादी अधिकारों व संस्थाओं व मूल्यों पर संघ परिवार द्वारा किये जा  हमले के विरोध में धरना, प्रदर्शन किया गया। 
    धरना प्रदर्शन व जुलुस से पहले एक संयुक्त पर्चे का व्यापक अभियान लिया गया . 

  हल्द्वानी   हल्द्वानी में जेएनयू छात्रों पर लगे देशद्रोह के फर्जी मुकदमे व लगातार जनवादी अधिकारों पर बोले जा रहे हमलों के खिलाफ  दिनांक 28 फरवरी को सभा व जुलूस का कार्यक्रम किया गया। 
सभा में बोलते हुए क्रालोस के पी पी आर्या ने कहा कि राजद्रोह का कानून अंग्र्रेजों के समय में बनाया गया था। आज आजाद भारत में संघी सरकार इसे जनवाद को दबाने के लिए इस्तेमाल कर रही है। आज इस कानून को रद्द करने की मांग करना जरूरी है।
  प्रमएके की अध्यक्षा शीला शर्मा ने बोलते हुए कहा कि जेएनयू हमेशा से बौद्धिक बहसों का केन्द्र रहा है। लेकिन वर्तमान संघी सरकार को जेएनयू का यह माहौल अपने खिलाफ लगता है। वह छात्रों के जनवादी अधिकार को दबाना चाहती है। और उन पर देशद्रोह जैसे मुकदमे थोप रही है।
माले के कैलाश पाण्डेय ने बोलते हुए कहा कि देश के अंदर जनवादी माहौल को कम किया जा रहा है। इसके खिलाफ संघर्ष करने की जरूरत है।
पछास के अध्यक्ष कमलेश कुमार ने कहा कि ‘‘तमाम न्यूज चैनलों जिसमें जी न्यूज प्रमुख है, ने फर्जी वीडियो के आधार पर छात्रों को देशद्रोही नारे लगाने का आरोपी करार दे दिया। खुद ही जज बन गये और सजा सुना दी। ये संघी सरकार के भोंपू बन गये हैं। 
सभा के अंत में इंकलाबी मजदूर केन्द्र के  अध्यक्ष कैलाश भट्ट ने कहा कि इस देश के निर्माता मजदूर-किसान हैं जो इनके हिसाब से नीतियां नहीं बनायेगा वह देशद्रोही है। देश की मेहनतकश जनता को सवाल करने का अधिकार है। कोई भी संस्था जनता के जनवादी अधिकारों से बड़ी नहीं है।
  सभा के अंत में एक जुलूस निकाला गया। और जेएनयू के छात्रों के समर्थन में नारे लगाये गये। जुलूस का मंगल पड़ाव पर जाकर समापन हुआ।                  
    कोटद्वार ;  कोटद्वार में  क्रालोस, पछास ,प्र म ए के , अम्बेडकर मंच , अम्बेडकर एसोसिएसन , जनवादी  नौजवान सभा ने संयुक्त मोर्चे के तहत तहसील पर धरना दिया।  सभी वक्ताओं ने एक सुर में कहा कि संघ परिवार की देशभक्ति राष्ट्रवाद आज़ादी से पहले अंग्रेजों के चरण में लोट पोट  हो रहा था।  आज इनका राष्टवाद एक तरफ अम्बानी अडानी टाटा बिड़ला के चरणों में तो दूसरी ओर पूरी दुनिया में कहर बरपाने वाले करोड़ों बेगुनाह लोगों की मौत का जिम्मेदार अमेरिकी शासकों के चरणों में शीश नवा रहा हैं।  आज ओबामा ओलांद अबे की भक्ति इनका राष्ट्रवाद है।
  इसके अलावा बरेली, देवरिया, मऊ, बलिया आदि , सहारनपुर, हरिद्वारव देहरादून में भी प्रदर्शन किये गए।
अभियान के लिए जारी पर्चा ;---- 





                     
   उत्तर प्रदेश पंचायती चुनाव
उत्तर प्रदेश पंचायती चुनाव में क्रालोस द्वारा पर्चा जारी करके मऊ बलिया देवरिया में अभियान लिया गया 
              
            इंकलाब जिंदाबाद !                                  पूंजीवाद मुर्दाबाद     !!                 समाजवाद जिंदाबाद !!!
                                                पंचायती चुनाव से क्या कुछ हासिल होगा
              दोस्तों एक बार फिर से पंचायती चुनाव आ गए हैं तमाम प्रत्याशी फ्री रंग बिरंगे दावों वादों के साथ हमारे बीच हैं । एक बार फिर वोटों को हासिल करने के घृणित हथकंडे हो रहे हैं । शराब, पैसा, ताकत, जाति-धर्म, भाई भतीजावाद इसी का बोलबाला है ।
            बेरोजगारी, महंगाई अधिकार व गरीबों के मुद्दे इस चुनाव में भी गायब हैं । प्रत्याशी हमारे बीच आता है वोटो की भीख मांगकर अपने मालामाल होने के रास्ते बनाता है । बेरोजगारी महंगाई आदि जनमुद्दों के लिए जनता को एकजुट करना व सक्रिय करने से इनका कोई मतलब नहीं होता । पंचायती निकाय की सीमाओं व अधिकार से भी इनका कोई मतलब नहीं । चुनाव जीतकर अपने लिए अधिकार हासिल करके वह पाँच साल तक जनता के अधिकारों की बात तक नहीं करता ।

पंचायतें व पंचायत प्रतिनिधि जनता के लिए क्या कुछ कर सकते हैं  ---- हमारी नज़र में ईमानदार से ईमानदार प्रत्याशी भी जनता के जीवन के दुख दर्द कम नहीं कर सकता खत्म नहीं कर सकता ।
            दरअसल पंचायती निकायों की हैसियत कुछ भी नहीं है । क्या देश के 3-4 लाख किसानों की आत्महत्याओं व भूमि अधिग्रहण के मसले पर , क्या बेरोजगारी महंगाई के मसले पर या फिर शिक्षा व्यवस्था के मसले पर पंचायतों  के पास अधिकार है  ? क्या  पंचायतों के पास अपने क्षेत्र के मसले पर सरकार को प्रस्ताव भेजने व इसे लागू करवाने का अधिकार है ।......... नहीं ।
            पंचायतें हर तरह से अधिकारविहीन संस्थाएं हैं । ये सरकार की योजनाओं को मात्र लागू करने वाली संस्थाएं हैं । इन्हें आर्थिक मदद के लिए सरकार का मुंह ताकते रहना पड़ता है ।
            स्थानीय स्तर पर कुछ सुविधाओं हेतु जो कुछ रकम सरकार इन्हें देती है इसे ही हड़पने की होड में प्रत्याशियों द्वारा हर हथकंडे अपनाए जाते हैं । यह सीख भी इन्हें अपने बड़े पूंजीवादी नेताओं से ही मिलती है । चंद दुर्लभ ईमानदार प्रत्याशी ही इसे देख निराश हताश होते हैं ।
आइये बेहतर भविष्य के लिए संघर्ष करें  ------  दोस्तों हमारी जिंदगी के कष्टों परेशानियों को कम करने मैं पंचायतें कुछ भी नहीं कर सकती । हमारे देश के पूंजीवादी शासक पंचायत निकायों के जरिये अपनी शासन सत्ता को मज़बूत करते हैं। शोषण उत्पीड़न के तंत्र को गाँव गाँव फैलाते हैं ।
            इसके जरिये ये भ्रम फैलाते हैं कि ये निकाय जनता का भविष्य बदल सकते हैं । जो कि बहुत गलत है । यदि कुछ अधिकार इन्हें मिल भी जाय तो भी क्या होगा ? ये सब जनता पर सवारी गाँठने का ही काम करेंगी ।
            देश के भीतर सारे ही फैसले लेने व नीतिया बनाने का अधिकार संसद के पास है । भ ज पा , स पा , ब स पा कांग्रेस समेत सभी पूंजीवादी पार्टिया चुनाव के समय जनता के बीच वोट मांगते हैं । इसके बदले अच्छे दिन लाने का वादा करते हैं । लेकिन हर चुनाव के बाद अच्छे दिन बुरे दिन में बदल जाते हैं । 68 सालों से यही होता रहा है  ।
            दरअसल सभी पूंजीवादी पार्टिया पूंजीवादी व्यवस्था को चलाने का काम करती हैं जो कि मजदूर मेहनतकश जनता की मेहनत को हड़पने का तंत्र है तथा पूँजीपतियों को मालामाल बनाने का । तथा खुद भी मालामाल बनने का तंत्र है । संसद में ये पार्टिया इनही के लिए नीतिया बनाती हैं व फैसले लेती हैं
            ये जनता की सामूहिक ताकत को नकारते हैं ठेंगा ढिखाते हैं । इसके बदले एक व्यक्ति को स्थापित करते हैं कि वही अकेले अकेले सब कुछ कर देगा ।
            इसलिए आज असल सवाल सामूहिक तौर पर संघर्ष करने का है । अपने अधिकारों के संघर्ष करने का है ।
            ये चुनाव मालिक मजदूर के संबंध नहीं बदल सकते । ये चुनाव अमीरी गरीबी को बढ़ाते हैं । हमें कदम कदम पर एकजुट होकर संघर्ष करके इन प्रत्याशियों पर दबाव बनाने की जरूरत है कि हमारे पक्ष में नीतिया बनायें । हमारे अधिकारों को केवल वोट तक सीमित ना हो बल्कि देश के स्तर पर सभी महत्वपूर्ण फैसले व नीतिया बनाने का अधिकार भी हमें मिले । बड़े महत्वपूर्ण फैसलोन पर जनमत संग्रह करवायें जायें । तथा प्रतिनिधियों का वापस बुलाने का अधिकार भी हमें मिले ।
            अंतत: यह सब हासिल हो जाने के बाद भी लूट शोषण उत्पीड़न वाली पूंजीवादी व्यवस्था चलती रहेगी । इसलिए समाजवादी व्यवस्था के लिए भी संघर्ष करने की जरूरत हैं । यही वह व्यवस्था है सारे ही अधिकार मजदूर मेहनतकश आवाम को होंगे । लूट शोषण पर पाबंदी होगी । रोजगार की गारंटी होगी । नि:शुल्क शिक्षा , चिकित्सा व परिवहन के अधिकार होंगे ।

                                     क्रांतिकारी लोक अधिका संगठन
  


               असहिषुणता के विरोध में संयुक्त कार्यक्रम  
काकोरी के शहीदों को याद करते हुए 20  दिसम्बर को  दिल्ली उत्तराखंड व उत्तर प्रदेश के विभिन्न इलाकों में गोष्ठियों का आयोजन किया गया।  संयुकत  रूप  जारी पर्चे का वितरण किया गया।  क्रालोस द्वारा एक पर्चा इसी मुद्दे पर पहली जारी किया गया था।  क्रालोस , पछास, इमके व प्र म ए के  चार संगठनों ने संयुक्त तौर पर कार्यक्रम का आयोजन किया।  

 पूंजीवाद मुर्दाबाद !                                                                  समाजवाद  जिंदाबाद  !    
  बढ़ती असहिष्णुता के विरोध में साहित्यकारों व कलाकारों द्वारा पुरस्कार वापसी के समर्थन में

बढ़ते सांप्रदायिक उन्माद तथा असहमति की आवाज को खत्म करने की साजिश के खिलाफ एकजुट होओ !

साथियो ,
             केंद्र की सत्ता पर मोदी सरकार को काबिज हुए 18 माह से ज्यादा का समय हो चुका है । इस दौरान सांप्रदायिक व कट्टरपंथी संगठन खुलकर आगे बढ़े हैं । गौमांस , लव जिहाद जैसे मुद्दे खूब उछाले गए हैं ।महंगाई बेरोजगारी आम नागरिकों के अधिकारों के मुद्दे नदारद हैं । श्रम क़ानूनों ,ट्रेड यूनियन अधिकारों पर हमला बोला गया है । इस दौरान मोदी सरकार की नीतियों के खिलाफ खड़े लोगों को कांग्रेसी या देश द्रोही साबित करने की कोशिशें हुई है ।  इस दौरान सांप्रदायिक दंगे काफी बढ़े हैं यह गृह मंत्रालय की रिपोर्ट भी कहती है ।
            इस समय ही कट्टरपंथी ताकतों ने  कन्नड विद्वान कलबुर्गी की हत्या की ।  उसके बाद दादरी में बछड़े के मांस का अफवाह फैलाकर प्रायोजित तरीके से अखलाक की हत्या कर दी गई  ।लेकिन देश के मुखिया ने इस जरूरी समय पर चुप्पी साध ली । असहमति की आवाज को कुचलने की कोशिश लगातार हुई हैं सांप्रदायिक उन्माद पैदा करने की घटनाएं होते रही हैं ।  घटनाए इसके पहले व  बाद में भी होते रही हैं । ये हत्याएं साम्प्रादायिक व कट्टरपंथी संगठनों के खुलकर खेलने देने का ही नतीजा हैं। ये हत्याएँ मात्र व्यक्तियों की हत्या नहीं बल्कि एक खास विचार व सोच को खत्म करने की दिशा की ओर है।
            यह खास विचार व सोच है :-- विज्ञान पर भरोसा , वैज्ञानिक व तर्कफरक सोच ; तथा गैरबराबरी व अन्याय शोषण उत्पीड़न  के विरोध में संघर्ष करना व जाति-धर्म-लिंग के नाम हो रही गैरबराबरी के विरोध में बराबरी की वकालत करना । पिछले एक साल में इस विचार व सोच को कमजोर करने को हमले बहुत तेजी से बढ़े हैं । इसीलिए शिक्षण संस्थाओं से लेकर तमाम संस्थाओं में साम्प्रदायिक व्यक्तियों  की तैनाती की जा रही है । आम नागरिकों का खान-पान, रहन-सहन कैसा व क्या हो । इस मामले में संघ परिवार खुलकर फतवा सुना रहा है ।
            ऐसा घुटन भरा माहौल पहले न था । निश्चित तौर पर ऐसे माहौल का विरोध होना स्वाभाविक था । कलबुर्गी व अखलाक की हत्या वह मुकाम था जहां साहित्यकारों व कलाकारों  व प्रख्यात वैज्ञानिक भार्गव ने अपने पुरस्कार वापस लौटाए । इसके चलते मोदी सरकार को अपनी साख दांव पर नज़र आने लगी । लेकिन फासिस्ट स्टाइल में ही मोदी सरकार ने इस विरोध को फर्जी साबित करने की तमाम कोशिश की । दिल्ली व बिहार चुनाव की ही तरह वे इसमें भी असफल साबित हो रहे हैं  ।
            मोदी सरकार ने इस विरोध को कुंद करने के लिए प्रायोजित विरोध भी रचा । मोदी सरकार ने तर्क दिये कि यह विरोध आपात काल के समय क्यों नहीं हुआ , या फिर सिक्ख दंगों के समय क्यों नही हुआ या तब कांग्रेस का विरोध क्यों नहीं किया  या फिर विरोध दूसरे ढंग से होना चाहिए पुरस्कार वापस नहीं करने चाहिए आदि आदि । गुजरात दंगों का तो संघ व मोदी सरकार जान बूझकर नाम ही नहीं लिया । अब मोदी सरकार के विरोध का मतलब मोदी जी के प्रति असहिष्णुता बताया जा रहा है ।         
             निश्चित तौर पर कुछ साहित्यकारों की कमजोरिया रही हैं लेकिन क्या इससे उनके गलत को गलत कहने का अधिकार खत्म हो जाता है ? क्या इससे मोदी सरकार का हर गलत काम सही साबित हो जाता है ? क्या अब मोदी सरकार यह तय करेगी कि  किसीको कब विरोध करना चाहिए ? किसका विरोध करना चाहिए ? विरोध कैसे करना चाहिए ? यही फासिस्टों का अंदाज भी होता है कि उनका यदि विरोध भी हो, तो उनकी मर्जी से हो ।
            भाजपा की ही तरह कांग्रेस भी देश के बड़े पूंजीपतियों की ही पार्टी है । इसे भी दंगों के आयोजन से कोई परहेज नहीं रहा है । 84 के दंगों का दाग इनके माथे पर लगा हुआ है । आपातकाल की खौफनाक यादें आज भी लोगों के जेहन में हैं । फिलहाल कॉर्पोरेट घरानों ने कांग्रेस को ड्राइविंग सीट से पीछे करके इसे मोदी व भाजपा को थमा दिया है । दोनों ही टाटा –बिड़ला –अंबानी –अदानी जैसों के सेवक हैं । अन्य चुनावबाज पूंजीवादी पार्टियां भी इन दोनों की तरह पूंजीवाद को ही आगे बढ़ा रही हैं ।
            दरअसल पूंजीपति वर्ग मंदी का सारा बोझ मेहनतकश नागरिकों पर डाल रहा है । वह अपने गिरते मुनाफे को हासिल करने को आम जनता की जेब से सब कुछ निचोड़ लेना चाहता है । वह पहले के सारे जनपक्षधर कानूनों व अधिकारों को खत्म कर देना चाहता है । उसकी इस राह में रुकावटें भी हैं । जिनको वह तुरत फुरत में खत्म कर देना चाहता है । इस चाहत ने ही मोदी जी व भाजपा-संघ को सत्ता पर पहुंचा दिया ।
            आज के पूंजीपति वर्ग या पूंजीवाद को तर्क , तार्किक व वैज्ञानिक सोच सहन नहीं है । यह आज   सामाजिक बराबरी के अधिकार की बातों , विरोधी विचार या सोच को धैर्यपूर्वक सुनने की सोच के खिलाफ खड़ा है । यह प्रगतिशील विचारों व सोच का विरोधी है । यह संवैधानिक व जनवादी अधिकारों के विरोध में खड़ा है । आज का पूंजीवाद कूपमंडूक व पुराथनपंथी सोच को बढ़ावा देने वाला है । यह सांप्रदायिक, नस्लवादी जातिवादी राजनीति को बढ़ावा देने वाला है । इसलिए भी  कि उसकी हुकूमत बनी और बची रहे ।
             निश्चित तौर पर साहित्यकारों - कलाकारों का विरोध इस पूरी समाजविरोधी सोच के खिलाफ होना चाहिए । जो विरोध उन्होने किया वह स्वागत योग्य है । लेकिन इतने तक सीमित रहना ठीक नहीं । यह नाकाफी है । बरतोल्त ब्रेख्त के शब्दों में यह कहना ही सही होगा कि
                        “कलाकार,…….
                                    जो कुछ है तुम्हें वही दिखाना चाहिए ,
                          लेकिन जो है उसे दिखाते हुए तुम्हें
                            जो होना चाहिए और नहीं है ,
                                         और जो राहतमंद हो सकता है
                                         उसकी ओर भी इशारा करना चाहिए ......
                                    तय मानो; तुम एक अंधेरे युग में रह रहे हो .... । ”
            आज ऐसे दौर में जब हिटलरी-मुसोलीनी अंदाज हर ओर पैर पसार रहा है तब बरतोल्त ब्रेख्त, क्रिस्टोफर कौडवेल व राल्फ फाक्स जैसे साहित्यकारों –कलाकारों के तर्ज पर चलने की बहुत जरूरत है।
            आज सांप्रदायिक फासीवादी ताक़तें लगातार आगे बढ़ रही हैं । केजरीवाल या नीतीश की जीत का मतलब फासीवादी ताकतों की हार नहीं हैं । केजरीवाल हो या नीतीश वह भी इसी पूंजीवाद के घोड़े पर सवार है । इन सभी की आर्थिक नीतियां  लगभग एक सी हैं ।      
            आज सांप्रदायिक फासीवादी विचारों व संगठनों को पीछे धकेलने के लिए जरूरी है कि अपने  राजनीतिक व जनवादी अधिकारों के लिए सजग होकर जुझारू संघर्ष किया जाय । हर प्रकार के सांप्रदायिक घटनाओं व कूपमंडूक सोच के विरोध में संघर्ष तेज  किया जाय ।
             फासीवाद को अंतिम तौर तभी हराया जा सकता है जब इसे पैदा करने वाली व्यवस्था को खत्म करने के लिए संघर्ष किया जाय । यानी पूंजीवादी व्यवस्था को खत्म करने के संघर्ष का हिस्सा बना जाय ।  तथा समाजवादी व्यवस्था का निर्माण किया जाय । इस मायने में आज भगत सिंह के विचारों पर चलने की  सख्त जरूरत है । 
             
 
                                                            

      क्रालोस के छठे सम्मलेन में पारित प्रस्ताव                                                              
         राजनीतिक प्रस्ताव  -1 :   शहीदों को श्रद्धांजली  
            पिछले लगभग सवा तीन सालों में समाजवाद की स्थापना का सपना संजोए हुए पूंजीवाद साम्राज्यवाद से लड़ते हुए दुनिया भर के ढेरों लोग शहीद हुए । क्रांतिकारी लोक अधिकार संगठन इन इंकलाबी शहीदों को अपनी भावभीनी श्रद्धांजली देता है और उनके सपनों को पूरा करने संकल्प लेता है ।
            इसके अलावा इसी दौरान तमाम लोगों ने जनवाद के रक्षा के लिए लड़ते हुए कुर्बानी दी है भारत में आदिवासियों , किसानों ने जबरन बेदखली के खिलाफ संघर्ष में अपनी जानें गवाई है । धार्मिक अंधविश्वास के खिलाफ प्रचार कर वैज्ञानिक मूल्यों की स्थापना को लेकर सक्रिय लोगों की फासीवादी गुंडों द्वारा हत्याएं की गईं तो कई सूचना अधिकार कार्यकर्त्ताओं भी मौत के घाट उतार दिये गए । ट्रेड यूनियन संघर्षों में तमाम लोग मारे गए हैं इन सभी लोगों को यह सम्मेलन श्रद्धांजली देता है ।
            इन संघर्षों के इतर पूंजीवादी साम्राज्यवादी व्यवस्था द्वारा अनगिनत लोगों को ठंडी मौत देने का सिलसिला जारी है । भुखमरी , कुपोषण , बेकारी , से लेकर व्यवस्थाजन्य आपदाओं में लोगों का मारा जाना जारी है ।
            क्रांतिकारी लोक अधिकार संगठन इन सभी मौतों के लिये पूंजीवादी साम्राज्यवादी व्यवस्था का दोषी मानता है संघटन पूंजीवाद साम्राज्यवाद से लड़ते हुए जनवाद की रक्षा व विस्तार के लिए लड़ते हुए शहादत देने वाले शहीदों के सपनों को साकार करने का संकल्प लेता है और इनकी याद में अपने झंडे को झुकाता है ।
                       
                                    राजनीतिक प्रस्ताव 2 :  फासीवाद के बढ़ते खतरे के विरुद्ध
            एकाधिकारी पूंजीपति वर्ग और राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के घृणित गठजोड़ के परिणामस्वरूप देश की केंद्रीय सत्ता पर भा ज पा के सत्तासीन होने से संघ के नेतृत्व वाला हिन्दू फासीवादी आंदोलन अपने इतिहास की सबसे ताकतवर स्थिति में पहुँच गया है ।
            यह केंद्रीय संस्थाओं आई सी एच आर , आए सी सी आर  के बाद अब  एन  सी ई  आर टी  और एन बी टी के भगवाकरण की दिशा में बढ़ रहा है । संघी फासिस्टों ने भारतीय फिल्म और टेलीविजन व प्रशिक्षण संस्थान पुणे में चेयरमेन के पद पर भा ज पा कार्यकर्त्ता गजेंद्र चौहान की नियुक्ति कर दी है ।
            वर्तमान मोदी सरकार ने जहां धर्मांतरण , लव जिहाद जैसे मुद्दों को आगे बढ़ाया तथा सरस्वती पूजा, गीता को राष्ट्रीय ग्रंथ  घोषित करवाने गौमांस खाने पर प्रतिबंध आदि मुद्दों पर बहस को हवा देकर अपने साम्प्रादायिक फासीवादी एजेंडे को आगे बढ़ाया है । वहीं दूसरी ओर नागरिकों के व्यक्तिगत मामलो मसलन खान पान , रहन सहन , विश्वास मूल्यों मान्यताओं के जनवादी अधिकारपर भी हमला बोला है ।
            भारतीय शासक वर्ग ने जनवादी संस्थाओं के फासीवादीकरण की मुहिम तेज कर दी है । नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में संस्थाओं का केन्द्रीकरण बढ़ा है । योजना आयोग को समाप्त किया जा चुका है । देश के महत्वपूर्ण फैसले प्रधानमंत्री कार्यालय ( पी एम ओ ) ले रहा है । चुने हुए मंत्रियों के स्थान पर नौकरशाहों से महत्वपूर्ण कारी लेने की प्रवृत्ति बढ़ रही है । नौकरशाही के अधिकारों में वृद्धि कर जनवादी संस्थाओं व पदों पर नौकरशाहों को बिठाने का रुझान लगातार बढ़ रहा है ।
            संघ के नेता खुले आम भारत को हिन्दू राष्ट्र घोषित कर रहे हैं तथा शिव सेना ने तो मुसलमानो से मताधिकार छीनने तक की मांग उठाई है । संघ एक राष्ट्र – एक भाषा-एक संस्कृति को थोपने का प्रयास करता हुआ हमारे समाज का एक खतरनाक फासीवादी संगठन है । जो भाजपा के सत्ता में आने का लाभ उठाते हुए देश में हिन्दू फासीवादी राज्य की स्थापना करना चाहता है ।
            देश में जनवाद प्रगतिशील संस्कृति , वैज्ञानिक मूल्यों आदि के लिए काम करने वाली संस्थाओं तथा व्यक्तियों पर हमले बढ़े हैं । महाराष्ट्र के नरेंद्र दाभोलकर, गोविंद पनसारे व कर्नाटक के प्रोफेसर कलबुर्गी तथा आर टी आई कार्यकर्त्ताओं , मानव अधिकार कार्यकर्त्ताओं व सामाजिक कार्यकर्त्ताओं की हत्याएं  व उन्हे धमकियां इसी का उदाहरण हैं ।
            ऐसे में फासीवाद के इस खतरे को चुनौती देना तथा पराजित किया जाना आवश्यक है । फासीवादी आंदोलन के हर तरह के झूठे हथकंडों को जनता के बीच बेनकाब करना उसका प्रतिरोध करना हमारी महती ज़िम्मेदारी बनती है ।
            यह सम्मेलन साम्प्रदायिक फासीवाद के खिलाफ संघर्ष करने तथा इसके खतरों को आम नागरिकों के बीच उजागर करने का संकल्प लेता है । 
                                   


                                    राजनीतिक प्रस्ताव  -3 : श्रम क़ानूनों में बदलाव के विरोध में
            देश में आज़ादी के संघर्ष के दौरान व उसके बाद मजदूर मेहनतकश जनता  के संघर्षों के कारण सरकारों को कई ऐसे श्रम कानून बनाने पड़े जो संगठित क्षेत्र के मजदूरों को कुछ राहतें व सहूलियतें प्रदान करते थे । असंगठित क्षेत्र में यह श्रम कानून व्यवहार कहीं भी लागू नहीं होते।
            यद्यपि इन श्रम क़ानूनों को पूंजीपति वर्ग व सरकारें आधे-अधूरे तरीके से व अक्सर मजदूरों के संघर्ष के कारण ही पालन करने को मजबूर होती रही हैं । इसी कारण पूंजीपति वर्ग लंबे समय से श्रम कानूनों में संशोधन की बात करता रहा है उसकी इच्छा रही है कि उसे मजदूरों के निर्बाध शोषण का अधिकार मिल जाये ।
            स्थापित ट्रेड यूनियनों द्वारा जुझारू ट्रेड यूनियन संघर्ष से किनाराकशी करने के कारण 80 के दशक से ही पूंजीपति वर्ग को हमलावर होने का मौका मिल गया । बाद में उदारीकरण व वैश्वीकरण के दौर में  श्रम कानून में बदलाव की उसकी मांग मुखर होटी गई । उसकी इस मांग की ही सूत्रीत अभिव्यक्ति द्वितीय श्रम आयोग की रिपोर्ट के रूप में जारी हुई थी । तत्कालीन सरकारें इस दिशा में धीरे धीरे कदम बढ़ाकर पूंजीपति वर्ग को संतुष्ट करती रही ।
            2007-08 से दुनिया बाहर में जारी विश्व आर्थिक संकट ने भारत के पूंजीपति वर्ग को भी संकट की ओर धकेला ऐसे में इस संकट की भरपाई के लिए पूंजीपति वर्ग व उसकी सरकारें मजदूर वर्ग और मेहनतकश जनता पर और ज्यादा हमलावर हो गई । इसी दौरान पूँजीपतियों की तमाम कोशिशों व कांग्रेस पार्टी के खिलाफ जनाक्रोश के कारण भा ज पा सत्ता में आई । इस सरकार ने न्यूनतम मजदूरी अधिनियम 1948 , कारख़ाना अधिनियम 1961 , औद्योगिक विवाद अधिनियम 1949 , ट्रेड यूनियन अधिनियम 1926 , बाल श्रम अधिनियम तथा कुछ अद्योगों को रिटर्न भरने रजिस्टर रखने से छूट संबंधी अधिनियम 1988 में मजदूर विरोधी संशोधन  प्रस्तावित करके मजदूरों पर हमला तेज कर दिया है ।
            सरकार ने इन सशोधनों को संसद से पास कराने की पुरजोर कोशिश की है और लोक सभा में अपने बहुमत का इस्तेमाल करके कुछेक को पास भी करा चुकी है । भाजपा की राजस्थान व महाराष्ट्र सरकारें तो इस मामले में केंद्र की सरकार से भी दो कदम आगे निकल गई हैं ।
            ये संशोधन जहां एक ओर मजदूर वर्ग की श्रम दशाओं को और बदहाली की ओर धकेलने की कोशिशें हैं वहीं दूसरी ओर मजदूर वर्ग के संगठित प्रतिरोध को कमजोर करने का भी इंतजाम करते हैं। ये संशोधन मजदूर वर्ग के संगठित होने के आधिकार को कमजोर करते हैं ।
            भारत के मजदूर वर्ग पर तेज होता हमला उदारीकरण वैश्वीकरण के मौजूदा दौर में और विशेषकर विश्व आर्थिक संकट के काल में पूरी दुनिया भर में पूंजीपति वर्ग द्वारा श्रम पर बोले जा हमले का ही एक हिस्सा है । वैश्विक पैमाने पर आज जैसे जैसे पूंजी द्वारा श्रम पर एक के बाद एक हमले बोले जा रहे हैं वैसे वैसे ही मजदूर वर्ग भी इसके विरोध में एक के बाद एक जुझारू संघर्ष कर रहा है । हमारे देश में भी पूंजी के हमले के विरुद्ध मजदूरों के संघर्षों में तेजी आई हैं ।
            क्रालोस का यह सम्मेलन सब कुछ पैदा करने वाले अपनी मेहनत से पूरी दुनिया चलाने वाले मजदूर मेहनतकशों को उनके संघर्ष व कुर्बानियों द्वारा मिले श्रम कानूनों में पूंजी के हितों के अनुरूप हो रहे बदलावों – प्रस्तावों का विरोध करता है । क्रालोस श्रम कानूनों में हो रहे बदलाव के खिलाफ  मजदूरों के संघर्षों में भागीदारी को कृतसंकल्प है तथा इन संघर्षों के किसी भी तरह के दमन का प्रबल विरोधी है ।      
                                          राजनीतिक प्रस्ताव 4  : सत्ता के बढ़ते केन्द्रीकरण का विरोध करो !
            पिछले साल 16 मई के बाद केंद्र की सत्ता में पहुँचते ही मोदी सरकार के नेतृत्व में सत्ता का बढ़ता केन्द्रीकरण अब स्पष्ट दिखाई देने लगा है । मोदी व मोदी सरकार की पूरी कार्यशैली इंदिरा गांधी के आपात काल के दौर की यादों को ताजा करने लगी है ।
            सत्ता के बढ़ते केन्द्रीकरण का न केवल जनपक्षधर संगठनों ने विरोध किया है बल्कि शासक वर्गीय अन्य पार्टियों व खुद भा ज पा के जबरन मार्गदर्शक बनाए गए नेता ने भी इस ओर इशारा किया है । स्थितियां यहां तक पहुंची हैं कि खुद प्रधानमंत्री मोदी को इस संबंध में सफाई देनी पड़ी है ।
            पूंजीवादी लोकतन्त्र के संबंध में हकीकत यही है कि यह पूंजीपति वर्ग द्वारा आम मेहनतकश नागरिकों का शांतिपूर्ण शोषण उत्पीड़न की व्यवस्था है कि यह पूंजीपति वर्ग की अवाम पर तानाशाही का ऐसा रूप है जिसमें मेहनतकश आवाम को सीमित अधिकार होते हैं जबकि इसके बरक्स शासकों को सारे विशेषाधिकार होते हैं ।
            स्पष्ट है कि सत्ता की सारी शक्ति शासक पूंजीपति वर्ग के हाथ में ही केन्द्रित होती है । न्यायपालिका, विधायिका व कार्यपालिका इस पूंजीवादी व्यवस्था के ही अंग हैं । इसमें जनता का हस्तक्षेप केवल विधायिका तक है वह भी बहुत सीमित रूप में । शासक पूंजीपति वर्ग अपनी पार्टियों को जनता के मतों के जरिये सत्ता में पहुंचाता है ।
            साल 2014 में कारपोरेट घरानों ने मोदी को सत्ता पर अभूतपूर्व ढंग से बिठाने से अब यह बात बहुत बहुत ज्यादा स्पष्ट हो चुकी है । कारपोरेट घारानों ने मोदी को सत्ता पर जिस मकसद से बिठाया था उसकी पूर्ती के लिए जरूरी था कि सत्ता की सारी ताकत /शक्ति अत्यधिक केन्द्रित हो जाये ताकि नए आर्थिक सुधारों को तेजी से लागू करने में आ रहे तमाम भांति भांति के अवरोधों से निपटने में आसानी हो ।
            कारपोरेट घरानों व संघ के अभूतपूर्व गठजोढ़ से सत्ता पर काबिज मोदी सत्ता के केन्द्रीकरण की ओर तेजी से बढ़ रहे हैं । इस बात के संकेत तभी यानी 16 मई को ही मिल गए थे जब संसद में माथा टेकते ही उन्होने अध्यादेश जारी कर नृपेन्द्र मिश्रा को अपना सचिव बना लिया । तब से अब तक अध्यादेश  दर अध्यादेश जारी कर यह सरकार अध्यादेश सरकार बन गई है ।
            प्रधानमंत्री मोदी के इस एक वर्ष के कार्यकाल में सर्वोच्च नीति निर्धारक निकाय व्यवहार में मंत्रीमंडल न रहकर प्रधामन्त्री कार्यालय हो गया है । मंत्रीमंडल की ताकत नाममात्र की रह गई है । मंत्रियों, राज्यमंत्रियों की हैसियत इस हद तक कमजोर कर दी गई है कि उनको निजी सचिव रखने तक की आज़ादी प्रधानमंत्री मोदी के चरणों में लोट पोट हो रही है । यह केवल मुखौटा भर हैं ।
            अब मंत्रीमंडल की बजाय फैसले लेने व नीतियों को तय करने का सारा काम व्यवहार में मोदी व 6 (नौकरशाह ) सचिव से बना पी एम ओ कर रहा है । मंत्रियों के सशक्त समूह ( ई जी ओ एम ) तो पहले ही तत्काल भंग कर दिये गए थे ।
            सत्ता के बढ़ते केन्द्रीकरण का ही यह नतीजा है कि मोदी की फासिस्ट कार्यशैली के जब न्यायपालिका से अंतरविरोध बनने लगे तो मोदी सरकार ने न्यायपालिका के अधिकारों को कमजोर करने में कतई देर नहीं की । जबकि रिजर्व बैंक के साथ बनते अंतर्विरोध से निपटने के लिए नया बिल लाने की कोशिश हुई ताकि गवर्नर के वीटो पावर को कमजोर या खत्म  किया जा सके ।     
             सत्ता के इस बढ़ते केन्द्रीकरण ने न केवल 1975 बल्कि हिटलर व मुसोलिनी के दौर की यादों  को भी फिर से जिंदा कर दिया है । सत्ता में बैठी वर्तमान ताक़तें अपने चरित्र में फासीवादी हैं । इसीलिए हिटलर व मुसोलिनी की तर्ज पर काम कर रहे  मोदी व मोदी सरकार के होते फासीवाद का गंभीर खतरा हमारे सामने है । हिटलर व मुसोलिनी ने सत्ता पर पहुँचने के कुछ साल गुजरते गुजरते फासीवाद कायम कर लिया था ।
            मोदी सरकार के नेतृत्व में सत्ता का बढ़ते केन्द्रीकरण की दिशा भी यही है । सम्मेलन सत्ता के इस बढ़ते केन्द्रीकरण के विरोध में आवाज उठाने का संकल्प लेता है ।  

        राजनीतिक प्रस्ताव 5 : -- अफ्रीकी पश्चिमी एशियाई देशों में साम्राज्यवादी दुश्चक्र के विरोध में        
            पश्चिमी एशियाई और अफ्रीकी देश इराक सीरिया लीबिया सूडान व अफगानिस्तान साम्राज्यवादियों द्वारा थोपे गये युद्धों से पैदा हुई तबाही बर्बादी के कारण भयावह मानवीय त्रासदी झेल रहे हैं । लाखों लोग युद्ध में जान गंवा चुके हैं । युद्ध में फंसे लोगों का जीवन दूभर है । युद्ध की तबाही ने आबादी के भारी हिस्सों को उनकी जमीन से उखड़ने को मजबूर किया है । अपने निवास से उजड़े लाखों लाख स्त्री पुरुष व बच्चों का सैलाब सुरक्षित जगहों की तलाश में दूसरे देशों में शरण पाने के लिए पलायन के लिए मजबूर है ।
            लोग शरण पाने के लिए असुरक्षित समुद्री मार्गों दुर्घटनाओं में जान गंवा रहे हैं । मार्ग में मानवतस्करों के जाल में फंस रहे हैं ।  
            दूसरे देशों के सरकारों के अपमानजनक सीमा पाबंदी की मार झेल रहे हैं । जानकारों का दावा है की यह द्वितीय विश्व युद्ध के बाद की सबसे बड़ी पलायन की परिघटना है ।
            साम्राज्यवादी शक्तियां अमेकी नेतृत्व में अपने वर्चस्व को थोपने अपने लूट व शोषण को स्थापित करने के लिए दूसरे देशों में दखलअंदाजी करते रहे हैं । शीट युद्ध से लेकर रंगीन क्रांतियों का षड्यंत्र रखने में हमेशा सक्रिय रहे हैं । सरकारों का तख़्ता पलट करना, विद्रोहों को भड़काना, प्रतिक्रियावादी , रूढ़िवादी ताकतों फासिस्ट गिरोहों को पाल पोस कर हस्तक्षेप के बहाने बनाने में ये सक्रिय रहते हैं ।
            बुरे राष्ट्रों के बहाने , जनवाद स्थापित करने के पाखंड , आतंकवाद का फरेबी हो हल्ला गढ़ कर इंहोने दुनिया भर में जहां तहां स्वार्थों की पूर्ति के लिए हस्तक्षेप किए । अफगानिस्तान इराक इनके खुले आक्रमण व कब्जाकारी विध्वंशक कारगुजारियों के शिकार रहे हैं । जहां जनता ने दशकों से विनाशकारी तबाही को झेला है ।
            वर्ष 2011 में अरब व पश्चिमी एशियाई देशों में उठे जन विद्रोहों को अपने हितों के अनुरूप मोड़ने के लिए साम्राज्यवादियों ने साता परिवर्तन का खेल खेला । इनके इस दुश्चक में अपने प्रतिगामी हितों की रक्षा के लिए इजरायल, सऊदी अरब व अन्य शेखों के राज्य भी शामिल रहे । लीबिया में गद्दाफ़ी की हत्या करने के बाद उन्होने सीरिया को भी तख़्ता पलट दुश्चक्र का निशाना बनाया । विद्रोहों की सीरियन आर्मी को सामरिक साजो समान से लैस कर युद्ध आरंभ किया गया । सीरिया को चौतरफा युद्ध से घेर दिया गया । इस्लामिक स्टेट आतंकी संगठन को सीरिया के खिलाफ खड़ा किया । तुर्की, सऊदी अरब ने आतंकी संगठन अहरार-अह-शाम व जैस-अल-इस्लाम तथा जमात-अल-नूसरा को आगे कर सीरिया के खिलाफ परोक्ष युद्ध छेड़ दिया । इस चौतरफा युद्ध का घोषित लक्ष्य सीरिया के शासक बसर-अल-असद को सत्ता से हटाना था। साढ़े चार साल के लंबी विध्वंशक युद्ध के हालातों ने जनता की तबाही बढ़ा दी । दो लाख लोग युद्ध में मारे गए । सीरिया की आधी आबादी  तकरीबन 2 करोड़ 30 लाख अपनी जमीन से उखड़ गई । 40 लाख लोग शरण पाने के लिए दूसरे देशों की ओर पलायन करने को मजबूर हुए ।
            साम्राज्यवादी इतनी भयावह त्रासदी के बावजूद अपने दुश्चक्र को रोकने को तैयार नहीं हैं । युद्ध को और कारगर बनाने की जोड़ तोड़ जारी है । उनकी कोशिश है कि सीरिया को भी लीबिया, इराक की तरह अपने चंगुल में फंसा लें । रूस व ईरान इसमें आड़े आ रहे हैं ।
            सभी देशों की तबाही बर्बादी ने भयावह मानवीय त्रासदी को जन्म दिया है । अपनी जमीन से उखड़े लोगों का सैलाब बढ़ता हुआ यूरोपीय देशों में पहुंच रहा है । ये देश शरणार्थियों को रोकने के लिए अपनी सीमा चौकसी बढ़ा रहे हैं । शरणार्थियों को कमजोर देशों की ओर ठेल रहे हैं। विश्व जनमानस इस अमानवीय  त्रासदी से प्रभावित हो रहा है ।
            इतिहास साक्षी है साम्राज्यवादी व्यवस्था मानवद्रोही रही है । इसने विश्व भर में जनता की गुलामी और शोषण को बढ़ाया है यही कारण है 20 वीं सदी के जनता के संघर्षों का मुख्य निशाना साम्राज्यवाद रहा है । शीट युद्ध से लेकर नव उदारवादी शोषण साम्राज्यवाद द्वारा थोपा गया है ।
            सम्मेलन  अफ्रीकी पश्चिमी एशियाई देशों की जनता की पीड़ा का एहसास करता है और अपनी संवेदनाएं व्यक्त करता है । साम्राज्यवादी आक्रामकता का समूल नाश करने में अपनी भागीदारी का वचन देता है ।
             
                                          राजनीतिक प्रस्ताव 6  : --  कन्नड विद्वान कलबुर्गी की हत्या के विरोध में     
            कुछ दिनों पहले कर्नाटक के मशहूर विद्वान , तार्किक चिंतक , अंधविश्वास विरोधी कलबुर्गी की फासीवादी तत्वों द्वारा हत्या कर दी गई । इससे पूर्व हिन्दू फासीवादी तत्वों द्वारा दाभोलकर व पनसारे के हत्या कर दी गई थी ।
            कलबुर्गी , दाभोलकर व पंसारे तीनों ही धार्मिक अंधविश्वासों के घोर विरोधी , कर्मकाण्डों के विरोधी व वैज्ञानिक व तार्किक चिंतन को समाज में स्थापित करने को प्रयासरत थे । संघी फासीवादी तत्व हिन्दू धर्म के कर्मकाण्डों ,अंधविश्वासों को समाज में स्थापित करने पर उतारू हैं । इसीलिए ये लोग उन्हें अपनी राह में बाधा के रूप में नज़र आए और फासीवादी लंपटों ने इनकी हत्या कर दी ।
            ये तीनों विद्वान पूंजीवादी साम्राज्यवादी व्यवस्था के खिलाफ संघर्ष नहीं कर रहे थे । इनमें पंसारे संशोधन वादी पार्टी से जुड़े थे । इसीलिए कहा जा सकता है कि ये तीनों ही पूंजीवादी दायरे में भारतीय संविधान की धर्मनिरपेक्षता के साथ वैज्ञानिक मूल्यों को स्थापित करने में जुटे थे । लेकिन फासीवादी तत्वों को संविधान के दायरे में कार्यरत इन विद्वानों की कार्यवाहियां भी बर्दाश्त नहीं हुई ।
            इसीलिए पूंजीवादी व्यवस्था के खात्मे के लिए संघर्षरत लोगों के साथ फासीवादी तत्व इससे भी बुरा सलूक करेंगे । आज जब पूंजीपति वर्ग अपनी सारी तार्किकता विज्ञान के मूल्यों को एक किनारे रख फासीवादी पार्टी के समर्थन आ खड़ा हुआ है ऐसे में पूंजीवादी दायरे में समाज को और तार्किक वैज्ञानिक बनाने की संभावनाएं बेहद कमजोर हो जाती हैं ।
            इसीलिए समाज को तार्किक-वैज्ञानिक मूल्यों पर खड़ा करने के किसी भी प्रयास को पूंजीवादी व्यवस्था के खिलाफ संघर्ष का हमराही बनना होगा । पूंजीवाद विरोध की जमीन पर खड़ा होकर फासीवादी ताकतों के हमलों का वैचारिक जवाब दिया जा सकता है ।
            क्रांतिकारी लोक अधिका संगठन फासीवादी लंपटों द्वारा तार्किक चिंतक कल्बुर्गी की हत्या का विरोध करता है । और इन सभी लोगों की हत्यारों पर कार्यवाही की मांग करता है । यह सम्मेलन फासीवादी ताकतों के खिलाफ संघर्ष का संकल्प लेता है ।             
           
            राजनीतिक प्रस्ताव 7 : - भूमि अधिग्रहण के खिलाफ
            किसानों की जमीन का सरकार द्वारा जबरन अधिग्रहण करने का सिलसिला ब्रिटिश उपनिवेशवादियों के जमाने से चला आ रहा है। ब्रिटिश शासकों ने इसके लिए 1894 का भूमि अधिग्रहण कानून बनाया था । जो उन्हें किसानों से जबरन मनमाने दामों पर भूमि अधिग्रहित करने का अधिकार देता था । यह कानून पूरी तरह से ज़ोर जबर्दस्ती का कानून था ।
            आज़ादी के बाद भी इसी कानून के तहत लंबे समय तक भूमि अधिग्रहण होता रहा । किसानों ने जबरन भूमि अधिग्रहण के खिलाफ देश भर में कई जुझारू संघर्ष किए । बिहार के चंपारण, गुजरात के बारदौली, पंजाब के बाहनाक, महाराष्ट्र के रायगढ़, हरियाणा के गुड़गांव, उड़ीसा के कलिंग नगर, बंगाल के सिंगूर और नंदीग्राम , उत्तर प्रदेश के दादरी और भट्टा पारसौल में किसानों ने अन्यायपूर्ण भूमि अधिग्रहण के जबर्दस्त संघर्ष चलाया था । इन संघर्षों में किसानों ने अपनी जान की कुर्बानी दी ।
            किसानों के इन संघर्षों व 2014 के चुनावों में राजनीतिक लाभ के मद्देनजर कांग्रेस सरकार ने 2013 का नया भूमि अधिग्रहण कानून पास किया । यद्यपि यह कानून भी किसानों खासकर विस्थापित खेतीहर मजदूरों व भूमिहीनों की सुरक्षा का कोई बेहतर इंतजाम नहीं करता था पर फिर भी इस कानून से अभी तक मनमाने भूमि अधिग्रहण पर लगाम लगाने की कुछ उम्मीद जगी थी । 
            पूंजीपति वर्ग ने इस कानून में किसानों को मिलने वाली सहूलियतों के प्रति अपनी नाखुशी इसके पारित होते ही जता दी थी । पूंजीपति वर्ग तभी से 2013 के कानून को रद्द करने के लिए सरकार पर दबाव बनाता रहा है । इसीलिए जब 2014 में पूंजीपति वर्ग द्वारा नियोजित चुनाव के जरिये मोदी प्रधानमंत्री बने तो उन्होने अध्यादेश के जरिये 2013 के कानून को बदल डालने की कवायद शुरू कर दी । 2014 के अध्यादेश में किसानों को मिली तमाम सहूलियतें छीन ली गई थी ।
            इस किसान विरोधी अध्यादेश का व्यापक विरोध होना लाजिमी था और भारी विरोध के चलते फिलवक्त मोदी सरकार को अपने कदम पीछे खींचते हुए अध्यादेश वापस लेना पड़ा है पर सही मौका पाते ही सरकार फिर से इस अध्यादेश को आगे बढ़ायेगी ।
            आज़ादी के बाद से भूमि अधिग्रहण के जरिये करोड़ों लोगों को विस्थापित किया जा चुका है । विस्थापितों के पुनर्वास के सरकार केवल वायदे ही करते रहती है। मोदी सरकार विकास के नाम पर बड़े पैमाने पर भूमि अधिग्रहण की योजनाएँ लेकर बैठी है जो किसानों से भूमि छीन पूंजीपतियों को लौटाने का एक तरीका है ।
            पूंजीवादी व्यवस्था हर तरह से छोते मझौले किसानों को तबाह बर्बाद करती है । बाज़ार के मैकेनिज़्म के जरिये छोटे मझौले किसानों को अपनी भूमि बेच मजदूर बनाने की ओर धकेला जाता है कई दफा सरकार की जबरन भूमि छीन भी किसानों को मजदूर बनने को मजबूर कर देती है । पूंजीवाद में छोटी संपत्ति की तरह छोटे मझौले किसानों की तबाही तय है । इसीलिए छोटे गरीब  किसानों  के हितों की मुकम्मल रक्षा पूंजीवाद में नहीं समाजवाद में ही संभव है ।
            क्रांतिकारी लोक अधिकार संगठन किसानों से जबरन भूमि अधिग्रहण के किसी भी प्रयास का विरोध करता है । किसान विरोधी किसी भी अधिग्रहण कानून का संगठन पुरजोर विरोध करेगा ।

            राजनीतिक प्रस्ताव 8 :-- जनसंघर्षों के दमन के खिलाफ  
           
            इतिहास गवाह है  कि जनता अपने एक एक अधिकार को शासकों से लड़कर ही हासिल कर पायी है आज भी हमारे देश में मेहनतकश जनता अपने अधिकारों की रक्षा व विस्तार के लिए जगह जगह लड़ रही है । हमारे पूंजीवादी शासक इन संघर्षों का गला घोंटने के लिए लाठी गोली सरीखे हथकंडे अपनाने के साथ साथ दमनकारी काले क़ानूनों का निर्माण कर रहे हैं ।
            आज मजदूर वर्ग पूरे देश में श्रम क़ानूनों परिवर्तन के खिलाफ संघर्षरत है । इन क़ानूनों में बदलाव कर शासक वर्ग अपने लिए लूट की खुली छूट हासिल करना चाहता है । मजदूरों से संगठित हो यूनियन बनाने का हक छीन लेना चाहता है। अपने हकों के लिए आज मजदूर वर्ग जब भी संघर्ष की राह पर चल रहा है तो उसे शासकों के निर्मम दमन का सामना करना पड़ रहा है। होंडा से लेकर मारुति सुजुकी का दमन इसके जीते जागते उदाहरण हैं ।
            देश में किसान समुदाय कृषि लागतों के महंगा होने के खिलाफ समर्थन मूल्य बढ़ाने सरीखे मुद्दों पर संघर्षरत हैं सरकारों द्वारा कृषि में अनुदान घटाने व किसानों की उपज को बाज़ार के हवाले करने से तबाह बर्बाद कर्ज में डूबे किसानों की आत्महत्याएं लगातार बढ़ रही हैं । इसके साथ ही किसान मोदी सरकार द्वारा जबरन भूमि छीनाने के दस्तावेज़ नए भूमि अधिग्रहण विधेयक के खिलाफ संघर्षरत रहे हैं। किसानों के इस संघर्ष से भी हमारे शासक लाठी गोली की भाषा से निपट रहे हैं । पिछले एक दशक में जबरन भूमि छीने जाने के खिलाफ लड़ते हुए ढेरों किसानों को मौत के घाट उतार दिया गया ।   
            मध्य भारत में जंगलों में मौजूद खनिज संपदा को पूँजीपतियों के हवाले करने के लिए शासकों ने आदिवासी लोगों को खदेड़ने के लिए आपरेशन ग्रीन हंट अभियान चला रखा है । आदिवासी जन अपनी जबरन बेदखली के खिलाफ जुझारू संघर्ष कर रहे हैं और सरकार अपने पुलिस बलों की मदद से आदिवासियों के खून की होली खेल उनका मुंह बंद कर देने पर उतारू हैं ।
            कश्मीर से लेकर पूर्वोत्तर में भारतीय राजसत्ता के उत्पीड़न का शिकार उत्पीड़ित राष्ट्रीयताएं अपनी मुक्ति के लिए निरंतर संघर्षरत हैं भारतीय सुरक्षा बलों द्वारा यहाँ की संघर्षरत जनता का निर्मम दमन बदस्तूर जारी है । महिलाओं से बलात्कार, संघर्षरत लोगों को आतंकवादी करार देकर फर्जी मुठभेड़ में मार गिराना आदि भारतीय शासकों के दमन के हथकंडे हैं ।
            देश के तमाम  राज्यों में बेरोजगार नौजवान रोजगार की मांग को लेकर, बेहद कम वेतन पर कार्यरत आंगनवाड़ी –आशा-भोजन माता आदि अपने स्थाई काम के लिए , प्रशिक्षित नौजवान रोजगार के लिए संघर्षरत हैं । सम्मानजनक जीवन की इनकी मांग को हमारे शासक लाठी गोली से कुचलने पर उतारू हैं ।
            फासीवादी पार्टी के सत्तासीन होने के बाद से लोगों के खान पान, संस्कृति, रहन-सहन, शिक्षा आदि पर जबरन संघी विचार थोपे जा रहे हैं। इतिहास के भगवाकरण से लेकर तमाम पदों पर संघी लोग बैठाये जा रहे हैं । इनके खिलाफ संघर्षरत छात्रों-मेहनतकशों का निरंतर दमन किया जा रहा है ।
            मोदी सरकार के सत्तासीन होने के बाद से अपने हकों के लिए संघर्ष करने का अधिकार जनता से क्रमश: छीना जा रहा है । सरकार जनसंघर्षों के दमन के लिए काले क़ानूनों का जाल खड़ा करने से लेकर पुलिस बालों को आधुनिक उपकरणों से लैस कर आधिक खूंखार बनाने में जुटी है ।
            क्रांतिकारी लोक अधिकार संगठन देश के इन न्यायपूर्ण संघर्षों में अपनी क्षमताभर भागीदारी को कृतसंकल्प है और इन संघर्षों के दमन का पुरजोर विरोध करता है ।   
             
           
          
                         क्रालोस के छठे सम्मलेन में पारित रिपोर्ट 

                                             राजनीतिक रिपोर्ट                                     
                                                 अंतर्राष्ट्रीय परिस्थितियां
          वर्तमान समय में सम्पूर्ण विश्व आर्थिक संकट का शिकार है। यह संकट अमेरिका में 2007-08 में शुरू हुऐ सब प्राइम संकट से ही जारी है। इस दौरान लगभग हर वर्ष साम्राज्यवादियों और उनकी संस्थाओं द्वारा इस संकट से निकलने की घोषणाएं होती हैं और हर बार उन्हें मायूस होना पड़ता है। यह संकट 1929 की महामंदी के बाद सबसे बड़ा संकट साबित हो रहा है।
          पूंजीवाद के इस आर्थिक संकट के कारण सभी साम्राज्यवादी देशों व विश्व की अन्य बड़ी अर्थव्यवस्थाओं की विकासदर लगातार गिरती गयी है। यद्यपि 1996-2006 के दस सालों में भी वैश्विक अर्थव्यवस्था की औसत सालाना वृद्धि दर 3.9 थी लेकिन संकट के बाद 2008-11 में यह 1.9, 2012 में 2.4, 2013 में 2.5, 2014 में 2.5 रही व 2015 में इसके 3.1 रहने का अनुमान है।
          पूंजीवादी देशों के सिरमौर अमेरिका की वृद्धि जहाँ 1996-2006 में 3.4 थी वहाँ 2015 में 2.8 रहने का अनुमान है। अमेरिका की यह विकास दर भी उसके वित्तीय प्रभुत्व व सामऱिक महत्व के कारण ही है।
          लगातार युद्धों मे उलझने व अन्य कारणों से अमेरिकी राज्य के गैर उत्पादक खर्चे बढ़ते जा रहे हैं जिस कारण वह न केवल दुनिया का सबसे बड़ा कर्ज खोर देश बन चुका है बल्कि ओबामा के शासन काल में सामाजिक मदों से भारी कटौती जारी है।
          अमेरिकी साम्राज्यवाद ने पूरी दुनिया में अपने सैन्य अड्डे कायम किये हुऐ हैं और वह बिना किसी ठोस चुनौती के लगातार नाटो का विस्तार करता गया है। शांति के लिए नोबेल पुरूस्कार पाने वाले ओबामा के शासन काल में न केवल एक के बाद एक देश अमेरिकी साम्राज्यावाद की जद में आते गये हैं बल्कि काबुल व बगदाद में तो अमेरिकी सेना ने स्थायी अड्डे बना लिये हैं। 2008 मे कायम की गई अमेरिकी सेना की नयी कमान अफ्रीकाम नें अफ्रीका में कई खुली व गुप्त कार्यवाहियों का अन्जाम दिया है।
          अमेरिकी साम्राज्यवादी संस्कृति का व्यापक प्रसार-प्रचार होता गया है। आधुनिक संचार साधनों व इन्टरनेट आदि के जरिये यह संस्कृति तीसरी दुनिया के देशों के घर-घर तक पहुँच गयी है और हिंसा-सेक्स व फूहड़ कामेडी पर आधारित फिल्मों व शोज के जरिये अपना विषाक्त प्रभाव छोड़ रही है। खुद अमेरिकी समाज के मजदूर-मेहनतकश व अन्य जनता इस संस्कृति के प्रभाव में है।
          अमेरिकी समाज में पिछले वर्षों के मुकाबले इस आर्थिक संकट के कारण प्रतिक्रियावादी और नव फासीवादी विचारों का प्रभाव बढ़ा है और इसके साथ ही अश्वेतों और अप्रवासियों पर शारी़रिक हमले बढ़े हैं।
          अमेरिकी राज्य का घोर प्रतिक्रियावादी व आक्रामक चरित्र रोज उजागर होता है। वह अपने ही नागरिकों और मित्र राष्ट्रो के प्रमुख व जनता की कितनी गहरी निगरानी करता है यह स्नोडेन-मेनिंग प्रकरण से सामने आ चुका है। दमन के नये तौर तरीके और कानून बना रहे अमेरिकी शासकों ने लाखों लोगों को बिना किसी ठोस कारण के जेलों में ठूँसा हुआ है। लोकतंत्र व मानवाधिकारों के नाम पर तीसरी दुनिया के देशों पर हमला करने वाले अमेरिका की यही सच्चाई है।
          विश्व आर्थिक संकट ने यूरोपीय यूनियन के देशों पर काफी बुरा असर डाला है। जिस कारण यूरोपीय यूनियन, यूरो क्षेत्र व  उसकी मुद्रा यूरो के भविष्य पर प्रश्न खड़े हो गये हैं। अर्थव्यवस्था की विकास दर के हिसाब से यूरो क्षेत्र का हाल काफी बुरा है। 1996-2006 में 2.4 प्रतिशत विकास-दर रखने वाला यूरो क्षेत्र 2015 में 1.3 प्रतिशत की विकास-दर ही बनाए रखने में सफल हो पा रहा है।
          आर्थिक संकट के कारण औद्योगिक उत्पादन व निर्यात गिर रहा है, सामाजिक मदों में कटौती, फैक्ट्रियों से छंटनी जारी है। इन कारणों से बेरोजगारी की समस्या जटिल व गहनतर होती जा रही है। इस समय बेरोजगारी की दर पूरे यूरोपीय क्षेत्र में 10 प्रतिशत से ऊपर जा पहुँची है।
          इन देशों में अर्थव्यवस्था के संकट ग्रस्त रहने से राजनीतिक अस्थिरता भी बढ़ी है। इटली, ग्रीस, स्पेन, पुर्तगाल, में राजनीतिक पार्टियों की साख काफी नीचे गिर गई है। ग्रीस में सिरिजा जैसी वामपंथी रूझान वाली पार्टी ने यूरोपीय यूनियन द्वारा थोपे गये कटौती कार्यक्रम का विरोध करते हुये सत्ता पाई और बाद में जनता से वादा खिलाफी करते हुए नये कटौती कार्यक्रम लागू करना जारी रखा। बाद में जब देश की स्थिति ज्यादा खराब हुई और ग्रीस की सरकार को कर्मचारियों तक की पगार के लिए पुनः यूरोपीय यूनियन से और कर्ज लेने की नौबत आयी तो ग्रीस के प्रधानमंत्री ने के कटौती कार्यक्रम के मुद्दे पर जनमत संग्रह करवाया और ग्रीस की जनता ने प्रचंड बहुमत के साथ कटौती कार्यक्रम  न लागू के लिए वोट दिया लेकिन ग्रीस के प्रधानमंत्री ने जनमत संग्रह को धता बताते हुए कर्ज एवं उसके साथ जुड़ी अपमानजनक शर्तों को थोड़ा हेर-फेर के साथ मान लिया।
          आर्थिक, राजनैतिक संकट की अभिव्यक्ति सामाजिक संकट में भी हो रही है। पूरे यूरोप में नव नाजीवादी व नव फासीवादी आन्दोलन जोर पकड़ रहा है। धार्मिक अल्पसंख्यकों, अफ्रीकी व एशियाई मूल के अप्रवासियों पर हमले बढ़े हैं ।फ़्रांस, इटली ब्रिटेन में अलगाववादी प्रवृत्तियां दिखाई पड़ रही हैं।                               
          पूर्वी यूरोप के देश-अमेरिकी-यूरोपीय साम्राज्यावादियों एवं रूसी साम्राज्यवादियों के बीच संघर्ष का अखाड़ा बन गये हैं। पहले से ही जर्जर इन देशों के साम्राज्यवादियों के बीच चल रहे संघर्षों के कारण हालात बद से बदतर होते                                                            गये हैं। उक्रेन, जर्जिया का तो इन ताकतों के बीच अनौपचारिक बंटवारा तक हो गया है।
          रूस की अर्थव्यवस्था की विकास दर 1996-2006 में 4.3 प्रतिशत थी। मंदी के समय 2008-11 के बीच 1.4 तो 2011 में 3.4 हो गयी लेकिन 2013 से रूस की अर्थव्यवस्था संकट के भंवर में है। जिसका फौरी कारण तेल की कीमतों में आयी भारी गिरावट और उक्रेन के मुद्दे पर पश्चिमी साम्राज्यवादियों द्वारा रूस पर लगाये गये प्रतिबन्ध हैं। इस के बावजूद रूसी साम्राज्यवादी अपने हितों के लिए जोखिम उठा रहे हैं उसी का नतीजा है कि उन्हें वर्ष 2014 में बड़े साम्राज्यवादी देशों के गुट जी-8 से अलग कर दिया गया और जी-20 की बैठक में अलगाव में डाल दिया गया। फिर भी रूसी साम्राज्यवादी पूर्वी यूरोप व मध्य एशिया में ही नहीं बल्कि शेष दुनिया में भी अपने हितों के लिए मुखर है। ऐसा करते हुऐ उन्हें लैटिन अमेरिका, अरब जगत और अफ्रीका में भी देखा जा सकता है।
          रूस के आंतरिक हालात यूरोप के देशों जैसे बुरे तो नहीं परन्तु ज्यादा अच्छे भी नहीं हैं। पूंजीवादी नीतियों के कारण बढ़ती असमानता, मंहगाई, बेरोजगारी और भ्रष्टाचार के कारण सामाजिक असंतोष बढ़ रहा है। तेल की कीमतों में जारी गिरावट व पश्चिमी साम्राज्यवादियों द्वारा लगाये गये प्रतिबंध, राज्य का बढ़ता सैन्य खर्च आम जनता की स्थिति को और खराब करेगा।
          विश्व आर्थिक संकट का यूरोप के बाद सबसे ज्यादा असर जापान पर पड़ा है। ऐसी स्थिति में पहले से खस्ताहाल जापानी अर्थव्यवस्था की हालत और खराब हो गयी है। 2% के क्षणिक उभार के बाद जापानी अर्थव्यवस्था लगातार सिकुड़ रही है। आज जापान में आर्थिक संकट और राजनैतिक अस्थिरिता स्थाई परिघटना बन चुकी है। 2014 में जापान के प्रधानमंत्री शिंजे को समय से पूर्व चुनाव की घोषणा करनी पड़ी और वे वित्त पतियों के भरपूर सर्मथन व राजनैतिक विकल्प हीनता की स्थिति में पुनः चुनाव जीत गये।
           जापानी समाज में आर्थिक संकट के कारण व्यापक निराशा पसरी हुयी है। ऐसे में दक्षिणपंथी व फासीवादी रूझानों के पैदा होने के साथ-साथ जापानी साम्राज्यवादियों की महत्वाकांक्षाएं भी जोर मारने लगीं हैं  और वे पुनः सैन्यीकरण की ओर उन्मुख हो रहे हैं।
          हाल के वर्षों में आर्थिक संकट बढ़ने से, सारे साम्राज्यवादियों के बीच बेचैनी है जिस कारण उनके अंतरविरोध पहले के मुकाबले ज्यादा तीखे हुए हैं।
          पश्चिमी साम्राज्यवादियों व रूसी साम्राज्यवादियों के बीच तीखे अन्तरविरोध सीरिया, उक्रेन, जार्जिया आदि मामलों में सामने आये। पश्चिमी साम्राज्यवादियों ने रूसी साम्राज्यवादियों को अलगाव में डालने की कोशिश की और उन्होंने जी-8 से रूस को अलग करके जी-20 में भी रूस को अलगाव में डाला किन्तु यूरोपीय युनियन व रूस की अर्थव्यवस्था जितनी आपस में एकीकृत है उससे वह खास कामयाब नहीं हो पाये। दूसरी ओर रूस भी ब्रिक्स, शंघाई सहकार इत्यादि मंचों के माध्यम से अपनी स्थिति व प्रभाव सुदृढ़ करने में लगा हुआ है।
          अमेरिकी एवं यूरोपीय साम्राज्यावदियों के बीच भी इजराइल, ईरान, चीन, रूस, उक्रेन आदि मुद्दों पर मतभेद उभरते रहे हैं। इसी तरह यूरोपीय यूनियन में वर्चस्व को बढ़ाने को लेकर यूरोपीय साम्राज्यवादियों के अन्तरविरोध सतह पर आये। विश्व आर्थिक संकट ने यूरोप के अग्रणी देशों जर्मनी, फ्रांस, इटली, यू0के0 के अन्य देशों जैसे स्पेन, पुर्तगाल, ग्रीस के साथ अन्तरविरोध को बढ़ाया है।
          पिछले आठ साल से चलते आर्थिक संकट की रोकथाम में खास कारगर सिद्ध नहीं हो पायी अमेरिकी वर्चस्व वाली संस्थाओं अंर्तराष्ट्रीय मुद्रा कोष व विश्व बैंक की भूमिका पर भी सवाल उठने लगे हैं। विश्व बैंक द्वारा आर्थिक संकट के संबंध में किये गये आंकलन को हर तिमाही बाद बदलना पड़ा है। जिससे इस संस्था की विश्वसनीयता संदेह के दायरे में आ गयी है। वहीं तीसरी दुनिया के उभरते भारत, ब्राजील, दक्षिण अफ्रीका व साम्राज्यवादी देश जर्मनी, संयुक्त राष्ट्र संघ की सुरक्षा परिषद में बदलाब की मांग कर रहे हैं। ये स्थितियां साम्राज्यावादी शक्तियों के बीच के अन्तरविरोधों को दिखा रही हैं कि अन्तरविरोध यद्यपि तीव्र हो रहे हैं लेकिन साम्राज्यवादी उन्हें हल कर ले रहे हैं। लेकिन संकट के अति तीव्र होने पर यह अंतरविरोध कहाँ तक जायेगे यह देखने की बात होगी।
          विश्व आर्थिक संकट ने तीसरी दुनिया के देशों की अर्थव्यवस्थाओं को भी बुरी तरह प्रभावित किया है। चीनी मेहनतकशों के चरम शोषण व उत्पीड़न के दम पर चीन अभी भी दुनिया की सबसे तेज गति से दौड़ने वाली अर्थव्यवस्था बनी हुयी है। यद्यपि 1996-2006 में 9.2 के मुकाबले उसकी विकास दर 2015 में 7.0 ही है। दुनिया के पैमाने पर चीन अपनी स्थिति और प्रभावी बनाने के लिए हाथ-पांव मार रहा है। चीनी शासकों ने संकटग्रस्त अर्थव्यवस्था को गति देने के लिए मुद्रा का लगभग 2 % अवमूल्यन कर दिया जिसका असर तुरंत ही वैश्वीकृत हो गई दुनिया के अधिकांश मुल्कों के शेयर मार्केट के लड़खड़ाने के रूप में दिखाई दिया ।  वह अफ्रीका, एशिया एवं लैटिन अमेरिका के कई देशों का सबसे बड़ा व्यापारिक साझीदार है।
          चीन के शासक अपनी सेना के आधुनिकीकरण व विस्तार में लगे हुये हैं। इस कारण चीन का रक्षा बजट संयुक्त राज्य अमेरिका के बाद दूसरे नं0 पर है। अपनी साम्राज्यवादी शक्ति बनने की महत्वकांक्षा के कारण चीन का अपने पड़ोसियों जापान, वियतनाम, भारत, ताइवान आदि से तनाव बढ़ा है।
          चीन में तीव्र विकास दर के बावजूद चीनी जनता की स्थिति खराब है। चीन की मजदूर आबादी के बीच लगातार असन्तोष बढ़ रहा है। तो चीनी किसान भी लगातार संघर्षरत हैं। व्यापक पहरेदारी के बावजूद चीनी जनता के संघर्ष की खबरें छन-छन कर बाहर आती रहती हैं।
          ब्रिक्स के अन्य देशों ब्राजील व दक्षिण अफ्रीका की अर्थव्यवस्थाओं पर भी मंदी का असर पड़ा है। और इन देशों के शासक भी इस संकट से मुक्ति के लिए नीम हकीमी नुस्खे ही अपना रहे हैं। इन देशों में भी बेरोजगारी दर काफी ऊँची है। पिछले वर्षों में इन देशों में भी अपनी छिनती सुविधाओं के कारण जनता के विभिन्न हिस्सों नें संघर्ष किया है।                 
          लैटिन अमेरिकी देशों की स्थिाति पिछले एक दशक से मिली जुली बनी हुयी है। कई देशों की जैसे पेरू, वोलीविया आदि ठीक प्रदर्शन वाली तो कई जैसे- मैक्सिको, चिली व अर्जेण्टाइना संकटग्रस्त रहे हैं। लैटिन अमेरिकी कुछ देशों के इक्कीसवीं  सदी के समाजवाद की चीजें फीकी हो चुकी हैं। शावेज, लूला आदि पूंजीवादी दायरे में ही सुधारों को अंजाम दे रहे थे। क्यूबा की साम्राज्यवादी अमेरिका से  बढ़ती निकटता अब जगजाहिर है।
          दक्षिण अफ्रीका को छोड़कर पूरा अफ्रीकी महाद्वीप पश्चिमी साम्राज्यवादी ताकतों, रूसी साम्राज्यवादियों, चीन, भारत, इजराइल जैसी ताकतों के दोहन व शोषण की जमीन बना हुआ है। दक्षिण अफ्रीका को छोड़कर कोई ऐसी शक्ति अफ्रीका में नहीं है जो इन बाहरी ताकतों से मोल भाव कर सके। लीबिया, मिश्र, नाइजीरिया जैसी बड़ी ताकतें अपनी आंतरिक समस्याओं से बुरी तरह ग्रस्त हैं तो सूडान, कांगो, माली, मध्य अफ्रीकी गणराज्य, सोमालिया, पश्चिमी साम्राज्यावादियों के सैन्य हस्तक्षेप का शिकार हैं। 
          2008 में शुरू हुऐ विश्व आर्थिक संकट और खाद्यान्न संकट का सबसे तीखा असर अरब देशों पर पड़ा। जिस कारण। इन देशों में व्यापक जन आन्दोलन हुए। लेकिन यह सभी आन्दोलन मूलतः और मुख्यतः पूंजीवादी दायरे में ही रहे। जिसके प्रभाव को कम करने के लिए यहाँ के शासक वर्गों के साथ-साथ साम्राज्यवादियों की भी व्यापक भूमिका रही। सीरिया में पश्चिमी साम्राज्यवदियों ने अपने सहयोगी अरब देशों के जरिये कट्टर इस्लामिक आतंकी संगठन इस्लामिक स्टेट को पैदा किया। इस संगठन ने नृशंसता की सारी हदें पार कर दी हैं। अब आई0 एस0 के दमन के नाम पर अमेरिकी साम्राज्यवादी पुनः हवाई हमलों से ईराक, सीरिया में कहर बरपा रहे हैं। सीरिया को गृह युद्ध में धकेलकर लाखों बेगुनाह नागरिकों व मासूम बच्चों को शरणार्थियों के रूप में दर दर भटकने व मरने को विवश करने के लिए मूलत:साम्राज्यवादी मुल्क ही जिम्मेदार हैं ।
          फिलीस्तीन की जनता, बढ़ते इज्राइली दमन के खिलाफ व अपनी मुक्ति के लिए संघर्षरत है। फिलीस्तीनी जनता को मुक्ति के लिए हमास जैसे संगठनों से किनारा कर अपने क्रांतिकारी संगठन खड़े करने होंगे।
          सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात, कतर, कुवैत, ईरान जैसे तेल उत्पादक देशों के आंतरिक हालात भी अच्छे नहीं हैं। तेल की कम कीमतों के चलते यहाँ के शासकों के खिलाफ भी जनआन्दोलन खड़े होने की सम्भावनाएं हैं। इन्ही से मिलते-जुलते हालातों वाले तुर्की ने अपेक्षाकृत तीव्र आर्थिक प्रगति की है। वहाँ पर तेज आर्थिक सुधारों के साथ-साथ इस्लामीकरण का रास्ता अपनाया गया है। जिसका तुर्की की जनता ने व्यापक विरोध किया है। तुर्की द्वारा कुर्दों का दमन जारी है। कुर्द वामपंथी संगठन कुर्दिस्तान वर्कर्स पार्टी के नेतृत्व में अपने आत्मनिर्णय के अधिकार के लिए संघर्षरत है।
          मध्य एशिया के देश पश्चिमी साम्राज्यवादियों व रूसी साम्राज्यवादियों के बीच पूर्वी यूरोप की तरह अपने-अपने प्रभाव में लेने के लिए तनाव व संघर्ष के क्षेत्र बने हुए हैं।
          दक्षिण-पूर्वी एशिया के देशों का निर्यात मूलक अर्थव्यवस्थाऐं संकट से काफी प्रभावित हुई हैं। जिस कारण इन देशों इण्डोनेशिया, मलेशिया, कम्बोडिया, थाईलैण्ड आदि में मजदूरों-किसानों व अन्य वर्गों-तबकों के संघर्ष फूटते रहे हैं।
          दक्षिण एशिया में भारतीय शासकों के हस्तक्षेप व प्रभाव के बीच विभिन्न देश अलग-अलग किस्म के आर्थिक संकट से आंतरिक संकटों से जूझ रहे हैं।  पिछले कई सालों से चुनी हुई सरकार होने के बावजूद पाकिस्तान में फौज की सशक्त भूमिका बनी हुई है। समाज में गहरा संकट व्याप्त है। उत्पीडित राष्ट्रीयताएं-ब्लूच, पख्तून, सत्ता के खिलाफ संघर्षरत है। यहाँ पर इस्लामिक कट्टरपंथी भी आये दिन धमाके करके अपनी मजबूत उपस्थिति दर्ज कराते रहते हैं।
          अफगानिस्तान में अभी भी तालीबानियों व अमेरिकी सहायता से गद्दी पर बैठे मोहम्मद अशरफ घानी के बीच संघर्ष में जनता चक्की के पाटों के बीच पिस रही है।
          बांग्लादेश में जनतांत्रिक तरह से चुनी हुई सरकारों के बावजूद इस्लामिक कट्टरपंथ काफी प्रभाव रखता है। पूंजीवादी शोषण के कारण रोजमर्रा की बुनियादी जरूरतें पूरी न होने से यहाँ भी जनता के विभिन्न हिस्सों के संघर्ष फूटते रहते हैं।
          नेपाली समाज, माओवादियों के नेतृत्व में हुई क्रान्ति के बाद एक कदम आगे सामंती राजशाही से पूंजीवादी जनतंत्र में बदल गया है। लेकिन संविधान बनने के बावजूद अभी भी यहाँ विभिन्न पार्टियों के बीच इसे लेकर रस्साकसी जारी है। श्रीलंका में हुऐ चुनावों में सिंहली राष्ट्रवाद को उभारने वाले तथा तमिल राष्ट्रीयता के आंदोलन का क्रूर दमन करने वाले राजपक्षे को जनता ने नकार दिया अब उसकी जगह मैत्रीपाला सिरीसेना की सरकार आयी है। नयी सरकार ने अपने कदमों से साफ कर दिया है कि वह भी पुरानी सरकार जितनी ही पूंजीपरस्त व जनविरोधी है।
..................................................................................................................................... इतिहास गवाह है कि स्वतंत्रता, समानता, भ्रातृत्व के नारे को उठाने वाला पूंजीपति वर्ग सत्ताएं प्राप्त करने के बाद अपना क्रांतिकारी, प्रगतिशील चरित्र क्रमशः खोता चला गया। मजदूरों के एक वर्ग के रूप में विकसित होते ही पूंजीपति वर्ग की क्रांतिकारिता खत्म हो गयी और रही सही कसर पूंजीवाद के साम्राज्यवाद में बदलते ही पूरी हो गई। साम्राज्यवाद की शुरूआत से ही मजदूरों के, महिलाओं के, किसानों व अन्य मेहनतकश वर्गों के, अश्वेतों, दलितों, पिछड़ो के व राष्ट्रीय मुक्ति के संघर्षों  के कारण ही पूंजीवाद में जनवाद खुद को बचा पाया व एक हद तक विस्तारित करा पाया । निश्चित ही इन संघर्षों में मजदूर वर्ग के नेतृत्व में क्रान्तिकारी संघर्ष की अग्रणी भूमिका रही। मजदूर वर्ग के नेतृत्व में क्रान्तिकारी संघर्षों के फलस्वरूप कई देशों में समाजवादी राज्य बने। इन समाजवादी राज्यों में जनता को महत्तम स्तर का जनवाद था। इन समाजवादी समाजों व दुनिया की जनता के संघर्षों के कारण विभिन्न पूंजीवादी देशों के शासक वर्ग अपने-अपने देशों में कल्याणकारी राज्य की नीतियाँ अपनाने को विवश हुए। इन राज्यों में जहाँ एक ओर विभिन्न सामाजिक क्षेत्रों में जनता को राहतें दी गईं वहीं पूंजीवादी दायरे में जनवाद का विस्तार भी हुआ।       
          लेकिन पूंजीवादी व्यवस्था में मौजूद अन्तरविरोध के कारण 1960 के दशक के अन्त में फिर से आर्थिक संकट आया और इस बार साम्राज्यवादी देशों ने आर्थिक संकट से मुक्ति के लिए ढ़ाँचागत समायोजनों को आगे बढ़ाया जिसका लव्बे लुआव साम्राज्यवादी/कारपोरेट पूंजी की सुरक्षा व उसके वर्चस्व को और मजबूत करना था। लेकिन साथ ही यह नुस्खा पहले से ज्यादा बड़े आर्थिक संकट के आने के लिए आधार भी मुहैया कराता है।
          समाजवादी मुल्कों में पूंजीवादी पुनर्स्थापना के चलते अब साम्राज्यवादी मुल्कों के लिए कल्याणकारी राज्यों को खत्म करने व ढांचागत समायोजन को लागू करने के लिए मुफीद परिस्थितियां थी । और फिर 1970 के बाद आये हर आर्थिक संकट के समाधान के रूप में इन ढ़ाँचागत समायोजनों को विभिन्न इलाकों एवं अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रों तक विस्तारित किया गया है। चूँकि यह ढ़ाँचागत समायोजन अपनी बारी में साम्राज्यवादी/कारपोरेट पूंजी के वर्चस्व को और मजबूत करता है और इसी के अनुरूप इनका राजनैतिक वर्चस्व भी और मजबूत होता जाता है यानि की जनता के लिए जनवादी स्पेस और सिकुड़ता जाता है । वर्तमान समय में मोटा-मोटी इसकी निम्न अभिव्यक्तियाँ हैं-
1. साम्राज्यवादी पूंजी की तीसरी दुनिया के देषों में बढ़ती दखलन्दाजी-
          इस आर्थिक संकट के कारण साम्राज्यवादी देशों की तीसरी दुनिया के देशों में दखलन्दाजी और बढ़ी है। इस बढ़ती दखलन्दाजी में तीसरी दुनिया का शासक वर्ग, साम्राज्यवादियों का सहयोगी या जुनियर पार्टनर के रूप में है । यद्यपि अपने देश में वह ही मुख्य भूमिका में है।
          अमेरिकी साम्राज्यवादी, साम्राज्यवादियों का सिरमौर बनकर उसका नेतृत्व कर रहे हैं। साम्राज्यवादियों ने तीसरी दुनिया के देशों के संरचनागत सुधारों को और तेज करने की ओर धकेला है। इन सुधारों ने प्रत्येक देश में जनता के हिस्से से बुनियादी चीजें छीनकर, पूंजपतियों की तिजोरियाँ भरी हैं। पूरी दुनिया में भुखमरी, बेरोजगारी, अशिक्षा, अस्वास्थ्य के बने रहने के लिए यह नीतियाँ मुख्य रूप से जिम्मेदार हैं।
          वित्तीय अधिपत्य के साथ-साथ साम्राज्यवादियों का लीबिया, सीरिया, यमन, इराक, अफगानिस्तान, सूडान, सोमालिया, मध्य अफ्रीकी गणराज्य, माली, कांगों, उक्रेन, जर्जिया इत्यादी के ऊपर सैन्य हस्तक्षेप भी इस या उस रूप में जारी है।
          इसके अलावा साम्राज्यवादी पूंजी तीसरी दुनिया के देशों की प्राकृतिक सम्पदा के अनियंत्रित दोहन में भी लगी हुई है। वे प्राकृतिक सम्पदा को लूटने में पर्यावरण का भी भारी नुकसान कर रहे हैं। जो अपनी बारी में पर्यावरण संकट को पैदा कर रहा है।
2. साम्राज्यवादी, उपभोक्तावादी, पतनषील संस्कृति का कुप्रभाव-  साम्राज्यवादी पतनशील संस्कृति ने अपने काले डैनो से तीसरी दुनिया के देशों में अंधकार फैलाया है। साम्राज्यवादी संस्कृति आम लोगों को आत्मकेन्द्रित, स्वार्थी, लोभी, अपराधी, नशेड़ी, मानसिक रोगी व हिंसक बना रही है। महिलाओं के इंसान के बतौर वजूद स्वीकारने के बजाय यौन वस्तु में बदल दिया है जिसके चलते  महिलाओं के प्रति यौन हिंसा  बहुत तेजी से बढ़ रही है  आज तीसरी दुनिया के देशों में भी उपभोक्तावाद चरम पर है। लोग भयंकर अलगाव में जी रहे हैं। तकनीक का मुनाफे के लिए इस्तेमाल ने, मानव को तकनीक का गुलाम बना लिया है। अलगाव व दूसरे पर भरोसा न होने के कारण, सामूहिकता पर विश्वास न के बराबर रह गया है और लोग अकेले-अकेले ही समस्याओं से लड़ने के दृष्टिकोण से बंध गये हैं। जिसका ज्यादातर परिणाम असफलता एवं  उसके बाद हताशा-निराशा में ही होता है।
3. दुनिया में धार्मिक कट्टरपंथ का बढ़ना-
          आज पूरी दुनिया में धार्मिक कट्टरपंथ बढ़ रहा है। इसे बढ़ाने में दुनिया के शासक वर्गों का प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष हाथ है। दुनिया के शासक वर्ग जनता का धर्मनिरपेक्ष नहीं बल्कि धार्मिक आधार पर संकुचित दृष्टिकोण चाहते हैं। इससे जनता पंथों में बंट जाती है और एकजुट होकर संघर्ष नहीं कर पाती। लेकिन दुनिया के शासक वर्गों की इस कुटिल नीति से, आई0 एस0 जैसे कट्टरपंथी संगठन पैदा होते हैं जो जनता का जीवन नारकीय कर देते हैं।
4. फासीवादी व दक्षिणपंथी आन्दोलन का बढ़ता प्रभाव-
          दुनिया के शासक वर्ग अच्छी तरह से जानते हैं कि उनके तेज आर्थिक सुधार जनता की हालत बदहाल करेंगें। और इस कारण छात्रों, युवाओं, किसानों, मजदूरों इत्यादि के संघर्ष फूटेंगे। इन संघर्षों को भटकाने एवं कुचलने के लिए वे फासीवादी व दक्षिणपंथी पार्टियों-संगठनों को प्रश्रय दे रहे हैं। आर्थिक संकट के समय पूंजीवादी व्यवस्था पर ही अगर संकट उठ खड़ा हो जाता है तो पूंजी अपने अन्तिम विकल्प फासीवाद को आजमा सकती है। इसी कारण दुनिया के कई देशों में घोर दक्षिणपंथी ताकतें या तो सत्ता में आयी हैं या उनका आधार बढ़ रहा है। अनस्लीय, आप्रवासियों के खिलाफ बढ़ती हिंसा इसकी अलग-अलग अभिव्यक्तियां हैं।
5. राष्ट्रीय मुक्ति संघर्षों का अत्यन्त धीमा पड़ना-
          मजदूर आन्दोलन के पीछे हटने एवं विश्व में सिकुड़ते जनवाद के एक उदाहरण के रूप में राष्ट्रीय मुक्ति आन्दोलन की बदलती तस्वीर भी है। दुनिया के विभिन्न देशों में चल रहे राष्ट्रीय मुक्ति संघर्ष अब थकने लग गये हैं और क्रान्तिकारी दिशा के अभाव में इनका नेतृत्व देने वाले संगठनों में वह ऊर्जा नहीं रह गई है कि वह इन संघर्षों को आगे बढ़ा सके।
6. राज्य के कामों में जनता की घटती भागीदारी-
          पूंजीवाद में शासन चलाने के सबसे सुभीते के प्रकार पूंजीवादी जनतंत्र में भी जनता को मात्र वोट डालने का अधिकार ही है। कई देशों में सरकारों ने विधायिका की विभिन्न मसलों में भूमिका घटाकर वा यूं कहें प्रशासन के विशेषाधिकारों को बढ़ा कर जनतांत्रिक संस्थाओं के कामों को उन्हें स्थानांतरित किया है। कुछ देशों में वाकायदा टैक्नोक्रेट सरकार ही जनता के ऊपर बिठा दी गई।
7. जन संघर्षों का तीव्र होता दमन-   पूरी दुनिया के अन्दर, जन संघर्षों का दमन तीव्र हुआ है। दुनिया के विभिन्न देशों में कठोर कानूनों को बनाने से लेकर भाँति-भाँति के निगरानी तंत्र खड़े किये जा रहे हैं। लोकतंत्र की दुहाई देने वाले देशों में आम जनता के प्रदर्शनों पर गोली चलाने की घटनाऐं आम सी हो गई हैं। दुनिया का शासक वर्ग इतना अधिक डरा हुआ है कि वह जनता के शान्तिपूर्ण प्रदर्शनों की भी इजाजत न देकर, उनके मौलिक अधिकारों के दमन पर उतारू है।
8.   प्रायोजित असहमति -   आज अभूतपूर्व तरह से जनता की सहमति ही नहीं बल्कि असहमति को भी मीडिया व अन्य संसाधनों की मदद से गढ़ा जा रहा है। जनता के आक्रोश को बाहर निकलने के लिए पूरी एन0 जी00 परिघटना को शासक वर्गों द्वारा अंजाम दिया जा रहा है। ये एन0 जी00 साम्राज्यवादी देशों व कारपोरेट पूंजी द्वारा संचालित होते हैं और बेहद सूक्ष्म तरह से जनता के आक्रोश को ठंडा करते हुए, जनता के सचेत तत्वों को भी अपने में समाहित करने में सफल रहते हैं। यह राज्य के ऊपर के सामाजिक कामों की जिम्मेदारी को इधर-उधर स्थानान्तरित करने का भ्रम फैलाते हैं।
          समग्र तौर पर देखें तों पूरी दुनिया में विश्व आर्थिक संकट का कम या ज्यादा प्रभाव है। दुनिया के साम्राज्यवादी देश व उनकी समर्थक संस्थाओं ने इससे मुक्ति का रास्ता संरचनागत सुधारों को तेज करने का बताया है। इन संरचनागत सुधारों के कारण जहाँ पूंजीपतियों को और छूटें मिलेंगी और ज्यादा चीजें बाजार के हवाले होंगी, बाजार पर नियंत्रण कम/खत्म होगा, सार्वजनिक उद्यम बेचे जायेंगे, प्राकृतिक संसाधनों का निजी/कारपोरेट पूंजीपतियों द्वारा दोहन तीव्र होगा लेकिन जनता को और ज्यादा पूंजीपरस्त श्रम सुधार, औद्योगिक अधिनियम में सुधार एवं सामाजिक मदों में सब्सिडी की कटौती, बेरोजगारी, समाजिक सुविधाओं का बाजारीकरण ही मिलेगा।
          सरकारों के इन कदमों का व उनके परिणामों के फलस्वरूप पूरी दुनिया की जनता की स्थिति बदहाल हो रही है। इस कारण अलग-अलग देशों की जनता के अलग-अलग समय पर संघर्ष फूटते रहे हैं।
# अमेरिका में हुए आक्यूपाई वाल स्ट्रीट के खात्में के बाद भी छिट-पुट आन्दोलन होते रहे हैं। हाल ही में नस्लीय हिंसा के खिलाफ मजबूत आन्दोलन हुआ था।
#  यूरोप में फ्रांस, जर्मनी, इटली, पुर्तगाल आदि देशों में जनता ने पूजीवादी सुधारों व यूरोपीय यूनियन की शर्तों के खिलाफ लगातार संघर्ष व विरोध किया है। 
#  तीसरी दुनिया के विभिन्न देशों में, साम्राज्यवादी लूट व शोषण के एवं उनकी अवैध घुसपैठ एवं सैनिक अड्डों के खिलाफ जनता के संघर्ष हुए हैं।
दुनिया के अलग-अलग देशों में शासक वर्गों के जासूसी एवं निगरानी तंत्र व काले कानूनों के खिलाफ जनता आक्रोशित है व कहीं-कहीं उसने इनके खिलाफ प्रदर्शन भी किये हैं ।
#  तीसरी दुनिया के देशों चीन, भारत, ब्राजील, दक्षिण अफ्रीका, दक्षिण कोरिया, बांग्लादेश आदि में मजदूर-मेहनतकशों के कई संघर्ष हुए हैं।
#  पूंजीवादी आर्थिक सुधारों से हुई बदहाली के अलावा प्रकृति के निर्मम दोहन एवं उसके कारण हुए पर्यावरण संकट के खिलाफ भी दुनिया में संघर्ष हुए हैं।
#   दुनिया के अलग-अलग हिस्सों मसलन बर्मा, थाइलेंड, मलेशिया भारत इन्डोनेशिया आदि आदि मुल्कों में में देशी-विदेशी पूंजीपतियों द्वारा प्राकृतिक संसाधनों पर कब्जा एवं वहां से आबादी से जबरन विस्थापन के खिलाफ भी संघर्ष चल रहे हैं।
#   दुनिया में खासकर साम्राज्यवादी देशों में अप्रवासियों/अश्वेतों पर हुई हिंसा के विरोध में जनता ने प्रदर्शन किये हैं।
#   दुनिया में उत्पीड़ित राष्ट्रीयताओं की मुक्ति के संघर्ष चल रहे हैं। यद्यपि हाल फिलहाल यह धीमे हैं।
#   हाल के दिनों में छात्रों के कई देशों में जुझारू संघर्ष हुऐ हैं जिसमें मेक्सिको, चिली व फ्रांस के छात्रों के संघर्ष काफी जुझारू रहे।
#  दुनिया के कई देशों में महिलाओं पर हुए अत्याचारों के विरोध में जनता ने अपने विरोध प्रदर्शन किये हैं।
#  दुनिया के कई देशों में धार्मिक नृशंस्तापूर्वक कार्यवाही के खिलाफ भी जनता ने सक्रिय प्रदर्शन किये हैं।
          दुनिया के विभिन्न देशों में चल रहे भाँति-भाँति के संघर्ष यद्यपि अभी काफी निम्न स्तर के हैं, अलग-अलग हैं एवं अलग-अलग मांगों को लेकर हैं एवं मुख्यतः पूंजीवादी दायरे मे ही हैं। लेकिन जैसे-जैसे आर्थिक संकट गहरायेगा तब संघर्षों में न केवल तेजी आयेगी बल्कि इनकी वैचारिक व सांगठनिक दिशा भी बदलेगी और फिर ये संघर्ष पूंजीवादी व्यवस्था के खिलाफ खड़े होंगे। निश्चय ही यह तभी सम्भव होगा जब परिवर्तनकामी ताकतें मजबूती हासिल कर जनता का अपने पीछे लामबन्द करने में कामयाब हो सकें।
          दुनिया का शासक वर्ग इस बात को जानता है इसीलिए वह ऐसी सरकारों को स्थापित कर रहा है जो दमन की मशीनरी को मजबूत करे और पूंजी के मुनाफे के रास्ते से मौजूद हर बाधा को उखाड़ फेंके। वे जनवादी स्पेस को कम करते हूऐ जनतांत्रिक तरह से चुनी हुई सरकार के बदले ट्रैक्नोक्रेट सरकारों का उपाय भी आजमा रहे हैं।
          इसी के साथ-साथ दुनिया का शासक वर्ग जनता के संघर्षो को भ्रमित करने, बांटने, उसकी वर्गीय एकता को कुन्द करने के लिए धर्म, क्षेत्र, रंग इत्यादि का कार्ड खेलते हुऐ फासीवादी रूझानों, पार्टियों व कट्टरपंथी संगठनों को खड़ा करने में मदद कर रहा हैं। इसी कारण दुनिया में धार्मिक कट्टरपंथ के साथ-साथ दक्षिणपंथी व फासीवादी रूझान बढ़ रहा है एवं आज दुनिया के कई देशों में धुर दक्षिणपंथी पार्टियों की सरकारें हैं। मतलब साफ है कि दुनिया का शासक वर्ग इस तैयारी में है कि अगर पूंजीवादी आर्थिक संकट के खिलाफ जनता का आन्दोलन खड़ा होकर पूंजीवादी व्यवस्था के खात्मे की ओर बढ़ता है तो इसे फासीवाद की ओर मोड़ा जा सके। इतिहास में वह ऐसा करने में सफल रहा है।
          बार-बार आता पूंजीवादी संकट, उस संकट से बचने के अपनाये जा रहे नीम-हकीमी नुस्खे व इन नुस्खों के कारण जनता की बदहाल होती स्थिति, जनवाद का संकुचन, उसके हनन की तमाम अभिव्यक्तियां इस बात को बता रही हैं कि अब पूंजीवाद समाज को आगे ले जाने में असमर्थ ही नहीं है बल्कि बाधा बन रहा है।कि वह अपने अंर्तनिहित अंर्तविरोधों को हल करने के बजाय उन्हें और तीखा कर रहा है कि वह राज्य के कामों में जनता की भागीदारी बढ़ाने की बजाय कम कर रहा है कि अब वह प्रगतिशील या सुधारवादी तो क्या घोर प्रतिक्रियावादी हो चुका है
   एक व्यवस्था के तौर पर पूंजीवाद असफल हो रहा है, उसका अंत निकट आ रहा है। इसी कारण पूंजीवादी टुकड़खोर बु़द्धिजीवी गाहे बगाहे पूंजीवाद के विकल्पहीन होने, चिरायु होने इत्यादि का ढोल पीट-पीटकर यथार्थ को झुठलाने की कोशिश कर रहे हैं।
          निश्चित ही दुनिया की मेहनतकश जनता क्रांतिकारी संगठनों के नेतृत्व में वर्गीय चेतना से लैस होकर पूंजीवादी व्यवस्था के अंर्तनिहित अंर्तविरोधों को समझते हुए इस बात को भी समझने में सफल होगी कि पूंजीवादी संकट का समाधान स्वंय पूंजीवादी व्यवस्था का खात्मा ही है। और फिर जनता के संघर्षो की विभिन्न धाराएं इकट्ठी होकर महान एवं जुझारू संघर्ष शुरू करेंगी जो पूंजीवाद की जंजीरों को तोड़कर ही दम लेगा।
                                                राष्ट्रीय परिस्थिति
          दुनिया में 2007-08 से शुरू हुये पूंजीवादी आर्थिक संकट से भारत भी अछूता नहीं है। यद्यपि 2007-08 में भारत में इसका शेयर बाजारों पर तो असर पड़ा लेकिन आंतरिक वित्त बाजार किसी गम्भीर संकट का शिकार नहीं हुआ। लेकिन 2011-12 आते-आते विश्व आर्थिक संकट का प्रभाव भारत पर घनीभूत होने लगा। नतीजतन देश की विकास दर गिरने लगी। जहाँ 2008-11 के बीच विकास दर 7.3 थी वह 2012 में 4.7 पर रह गई।
          देश का एकाधिकारी पूंजीपति मनमोहन सरकार से कड़े कदमों की आशा करने लगा। मनमोहन सरकार ने कड़े कदम अर्थात् आर्थिक सुधारों को तेजी से लागू करने में थोड़ी लेट-लतीफी व हिचकिचाहट दिखाई, साथ ही 2013 में हुऐ भ्रष्टाचार विरोधी आन्दोलन व कांग्रेस के नेताओं के भ्रष्टाचार एवं जनता की समस्याओं को लगभग जस का तस बनाये रखने के कारण कांग्रेस का आधार दरक रहा था। इन कारणों से एकाधिकारी पूंजीपति वर्ग ने अन्य विकल्पों की ओर देखा। इस बीच गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी ने सख्त प्रशासक की तरह अपने शासन को चलाते हुए, गुजरात में पूंजी के पक्ष में लगातार व व्यापक फैसले लिये, पूंजीपतियों को विभिन्न क्षेत्रों में छूटें, सहूलियतें दीं, कौड़ी के भाव जमीनें दीं और श्रम कानूनों को धता बताते हुए मजदूर-मेहनतकशों के तीव्र शोषण की नीतियां लागू कीं। इन बातों को ध्यान में रखते हुऐ एकाधिकारी पूंजीपति वर्ग ने मोदी के नेतृत्व में भाजपा नीत राजग पर अपना दांव लगाया।
          एकाधिकारी पूंजीपति वर्ग ने अभूतपूर्व ढ़ंग से आम चुनाव को पूर्णतया प्रायोजित व नियोजित कर डाला। उन्होंने मतदाताओं को प्रभावित करने के लिए इलेक्ट्रानिक, प्रिन्ट, सोशल मीडिया के साथ-साथ हर संसाधन व हर माध्यम का इस्तेमाल किया।
          चुनाव में मोदी व भाजपा की जीत के लिए एकाधिकारी पूंजीपति वर्ग राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ का वक्ती नापाक गठजोड़ बन गया। गुजरात माडल व नरेन्द्र मोदी के बारे में तमाम मिथक गढ़कर नरेन्द्र मोदी को महानायक की छवी गढ़ी गयी। केवल यह महानायक ही देश की समस्त समस्याओं को हल कर सकता है इसको स्थापित किया गया। इन सबका अन्त भाजपा नीत राजग के प्रबल बहुमत से हुआ और नरेन्द्र मोदी देश के प्रधान मंत्री बने।
          भारतीय एकाधिकारी पूंजीपति वर्ग ने मोदी को प्रधानमंत्री बनवाने के लिए अपने खजाने का मुँह खोलने के साथ-साथ पूरा जोर भी लगा दिया था और अब वे तेजी से आर्थिक सुधार चाहते थे। प्रधानमंत्री मोदी ने भी उन्हें निराश नहीं किया और सत्ता संभालते ही तेजी से कई फैसले लिये। रक्षा, बैंक, बीमा में एफ0 डी0 आई0 का हिस्सा बढ़ाने के साथ-साथ श्रम सुधारों की प्रक्रिया को तेज किया गया। पूंजीपतियों व पूंजी को अन्य कानूनी विनियमों की बाधाओं से मुक्त करने की प्रक्रिया तेज की गई। बचे-खुचे सार्वजनिक उद्योगों का भी औने-पौने दामों पर विनिवेशीकरण, जन कल्याणकारी मदों की सब्सिडी कम करना। कारपोरेट टैक्स में कमी तो वैल्थ टैक्स का खात्मा एवं जनता के ऊपर अप्रत्यक्ष करों को बढ़ाना इत्यादि कदम उठाये।
          नरेन्द्र मोदी सरकार ने पूंजीपतियों के हितों की पूर्ति के लिये संप्रग सरकार द्वारा 2013 में लागू भूमि अधिग्रहण कानून में तमाम संशोधन करते हुएं अध्यादेश जारी किया। यहाँ यह गौरतलब है कि संप्रग सरकार द्वारा 2013 में बने कानून ने ब्रिटिश कालीन भुमि अधिग्रहण कानून 1894 को स्थानापन्न किया था। 1894 का यह काला कानून राज्य के हाथों खुले आम किसानों व आदिवासियों की भूमि पर डाकेजनी का दस्तावेज था। आजादी के बाद भी यह कानून लगभग जस का तस लागू रहा एवं राज्य द्वारा लाखों हेक्टेयर भूमि किसानों, आदिवासियों से अधिग्रहित की गई।
          इस कानून के खिलाफ होने वाले प्रतिरोधों व संघर्षों के कारण एवं खुद को किसानों का रहनुमा साबित करने के लिए जिससे 2014 के लोकसभा चुनावों में उनका वोट मिल जायें, मनमोहन सरकार ने इसकी जगह, 2013 में भूमि अधिग्रहण कानून लागू किया। जिसमें किसानों, आदिवासियों, दलितों व उन जमीनों पर आश्रित लोगों के लिए कुछ राहतें/सहुलियतें थीं। लेकिन देश का पूंजीपति इन नाममात्र की राहतों से भी नाखुश था और उसने इस कानून के कई प्रावधानों में संशोधन की बात कही थी। उन्हीं संशोधनों की रोशनी में वर्तमान सरकार ने 31 दिसम्बर 2014 को उक्त कानून खत्म कर नया अध्यादेश जारी किया। तब से संसद में पास न हो पाने के कारण इस अध्यादेश की अवधि कई बार बढ़ाई गयी । इस अध्यादेश में जनता को मिली नाममात्र की राहतें भी छीन ली गई ।
          लोकसभा चुनावों में प्रबल बहुमत के बावजूद भाजपा लगभग 31 प्रतिशत व एन0 डी00 37 प्रतिशत वोट ही प्राप्त कर पाये। वामदल व क्षेत्रीय पार्टियों -आम आदमी पार्टी, सपा, डी0 एम0 के0, 0आई0डी0एम0के0, तृणमूल कांग्रेस, जदयू इत्यादि का प्रभाव मौजूद है। लेकिन देश में तेज होते आर्थिक सुधारों पर इन सभी पार्टियों की खामोशी यह बता रही है कि सभी पार्टियां नव-उदारवाद की समर्थक हैं।
          कांग्रेस पार्टी जो कि भ्रष्टाचार, जनता की समस्याओं को न सुलटा पाने के कारण 2014 के लोकसभा चुनावों में मुंह की खा चुकी है अपने चरित्र के अनुरूप पूजीपतियों की सेवा में तल्लीन है। उसके युवराज गाहे बगाहे कुछ लोकप्रिय बाते कहकर ही जनता के प्रति अपनी जिम्मेदारी की इतिश्री मान ले रहे हैं और बाकी बची पार्टी उसी का गुणगान करती रहती है।
          दलित बुर्जुआ की पार्टी बसपा पिछले चुनावों में वोटों की संख्या के हिसाब से तीसरी सबसे बड़ी पार्टी रही। लेकिन यह पार्टी दलित उत्पीड़न के ही मुद्दे पर सक्रिय प्रतिरोध/संघर्ष करने के बजाय मात्र बयानवाजी तक ही सीमित है। दलितों की अस्मिता के नाम पर राजनीति करने वाली पार्टी दलित बुर्जुआ की ही अस्मिता के लिए काम कर रही है।
          संसदीय वामपंथी पार्टियां भी आर्थिक सुधारों का कोई ठोस जमीनी विरोध नहीं कर रही हैं बल्कि वे भी जुबानी खर्च से काम चला रहे हैं। आज भी बड़ी-बड़ी ट्रेड यूनियनें व अन्य संगठन रखने वाली ये पार्टियां जनता को वैज्ञानिक चेतना पर नहीं बल्कि अर्थवाद का सुधारवाद पर खड़ा कर रही हैं। चुनावों में फासीवादी विरोध के नाम पर कभी कांग्रेस तो कभी क्षेत्रीय दलों से गठबंधन बनाना इनके वैचारिक दिवालियेपन व जनता के आन्दोलन में विश्वास न होने का ही द्योतक है।
          भ्रष्टाचार के खात्में, लोकपाल बनाने इत्यादि मुद्दों पर आन्दोलन से पैदा हुई आम आदमी पार्टी दिल्ली की सत्ता में आई है। लगभग एक साल की अवधि के अपने शासन में आपने अपने कामों/ प्राथमिकताओं से साफ कर दिया है कि वह भी अन्य पार्टियों जितनी ही पूंजीपरस्त है। उसके अन्दर आपसी लड़ाई अन्य पूंजीवादी संसदीय पार्टियों सरीखी है।
          भाजपा के खिलाफ इकट्ठे हुऐ जनता परिवार जिसमें मुलायम, नितीश, लालू जैसे दिग्गज हैं का काम चुनावों में ज्यादा से ज्यादा सीटों को प्राप्त करना है भाजपा द्वारा लागू की गयी नीतियों का विरोध। नहीं/क्योंकि अपने द्वारा शासित राज्यों में वे इन्हीं नीतियों को लागू करवाते हैं जनता परिवार कितना ही सेक्युलर होने का दम भरले लेकिन यह साम्प्रदायिकता के खिलाफ कोई निर्णायक लड़ाई नहीं लड़ सकते क्योंकि यह भी नरम साम्प्रदायिकता या अल्पसंख्यकों के भयादोहन की ही राजनीति कर रहे हैं। अन्य क्षेत्रीय दलों में , 0आई0डी0एम0के0, तृणमूल कांग्रेस, बीजू जनता दल इत्यादि पूंजीवादी सुधारों को अपने यहाँ लागू कर ही रहे हैं। हाँ वे जनाधार न खिसके इस कारण बीच-बीच में विरोध का प्रहसन जरूर करते रहते हैं।
          देश के अन्दर आक्रामक पूंजीपरस्त आर्थिक सुधार करने के साथ-साथ भारतीय शासक वर्ग दुनिया में अपनी ताकत बढ़ाने के लिए व्याकुल हैं। क्षेत्रीय बड़ी शक्ति होने के कारण अपने पड़ोसियों पर हमेशा सवारी करने की ताक में रहता है। यह अफगानिस्तान, श्रीलंका , बर्मा, थाईलैण्ड, नेपाल, भूटान में हर संभव तरह से पैठ बढ़ा रहा है। हाल ही मंे नेपाल में आये भूकम्प के दौरान सहायता के साथ-साथ भी इसने अपनी बड़े भाई की छवि को दिखाने का प्रयास किया ।                                                                                                विस्तारवादी चरित्र के कारण भारतीय शासक वर्ग के अपने पड़ोसियों से खराब रिस्ते हैं। खासकर पाकिस्तान के साथ भारत के रिश्ते बेहद खटास पूर्ण हैं। नरेन्द्र मोदी के सत्ता में आने के बाद स्थिति और बिगड़ी है। दोनों देशों के शासक वर्ग कश्मीर, आतंकवाद, घुसपैठ इत्यादि को लेकर अंध राष्ट्रवादी गुर्देगुबार खड़ा करते रहते हैं लेकिन वहीं दोनों  के  बीच व्यापारिक समझौतों के तहत व्यापार बदस्तूर जारी है। पड़ोसी देशों में भी प्रभाव बढ़ाने के साथ-साथ भारतीय शासक वर्ग अफ्रीकी देशों में भी अपना प्रभाव बड़ा रहा है। वहाँ उद्योग धन्धें, जमीन खरीद इत्यादि के द्वारा पूंजी निवेश करके इस क्षेत्र के दोहन/शोषण में साम्राज्यवादियों का साझीदार बना हुआ है।
           हाल के वर्षों में भारतीय शासक वर्ग ने अमेरिकी साम्राज्यवाद से निकटता बढाई है। इस कारण इसकी विदेश नीति पर इन दिनों अमेरिकी प्रभाव है। लेकिन साथ ही अपने सभी विकल्प खुले रखते हुऐ यह यूरोपीय व रूसी साम्राज्यवादियों से भी रिश्ते बनाकर रखता है। यही नहीं रूस, चीन, ब्राजील इत्यादि के साथ ‘‘ब्रिक्स’’ समूह की स्थापना करने के बाद ब्रिक्स बैंक की स्थापना में भी लगा हुआ है।
           इसके साथ-साथ भारत जी-20 में भी शामिल होकर दुनिया के दोहन/शोषण को संचालित/नियंत्रित करने में भागीदार है और पिछले साल नवम्बर 2014 में आर्थिक संकट व पर्यावरण संकट के एजेण्डे पर हुई बैठक में इन संकटों से उबरने के नीम हकीमी-नुस्खे बनाने में शामिल रहा है।
          मोदी या मोदी सरकार के पास अपना ऐसी कोई निजी नुस्खा नहीं है जो कि देश की पूंजीवादी अर्थव्यवस्था को पटरी पर ले आये। जिसे मोदीनामिक्सकह कर प्रचार किया गया है वह पी चिदम्बरम, मन मोहन सिंह से भिन्न नहीं है यह मिल्टन फ्रीडमेन व फ्रेडरिक आगस्ट हायेक जैसे अर्थशास्त्रियों का ही नुस्खा है । ग्रीस आदि जैसे मुल्कों में इसे कटौति कार्यक्रमकह कर लागू किया जा रहा है। इस नुस्खे यानी मोदीनामिक्स का मतलब है --- सामाजिक मद में व्यय होने वाले बजट के हिस्से में भारी कटौति कर इसे पूंजीपतियों पर लुटानापूंजी निवेश के लिए पूंजी जुटाने के लिए हर जतन करनाआम जनता की जेबों से पैसा खींचने वाली स्कीमें बनाना , पूंजी निवेश के राह में रुकावट बन रहे  श्रम कानूनों , पर्यावरण कानूनों, जनवादी अधिकारों आदि को खत्म कर देना। इस मोदीनामिक्स का हाल ये है कि साल भर से ज्यादा हो चुकने के बावजूद अर्थव्यवस्था सुधरने का नाम नहीं ले रही।
          मोदी सरकार द्वारा तमाम पूंजी समर्थक व जन विरोधी कदम उठाने के बावजूद भारत की अर्थव्यवस्था में कोई मजबूत संकेत नहीं मिल रहे है। सकल घरेलू उत्पाद की दर बढ़ने के बजाए गिरी हैं। हालत यह है कि फैक्ट्रियां अपनी उत्पादन क्षमता के नीचे उत्पादन कर रही हैं फिर भी माल, बाजार की क्रयशक्ति के मुकाबले ज्यादा हो रहा है। देश का औद्योगिक उत्पादन ही नहीं बल्कि निर्यात भी गिर गया है। निर्यात मूलक औद्योगिक ईकाईयां भारी संकट में है । ऐसे में गिरता रूपया भी उनका निर्यात बढ़ानें में मददगार साबित नहीं हो पा रहा है। तमाम क्षेत्रों में विदेशी निवेश को खोलने एवं तरह-तरह की छूटें व सुविधाऐं देने की घोषणा के बावजूद विदेशी पूंजी का निवेश काफी कम है। अर्थव्यवस्था के तीनों ही क्षेत्र कृषि, उद्योग व सेवा खस्ताहाल हो रहे हैं। ऐसे में सरकार ने आकड़ों में तब्दीली कर 4.5 प्रतिशत की विकास दर को 7 प्रतिशत तक पहुँचा कर अपनी पीठ ठोकना शुरू कर दिया। इस तथ्य पर जनता तो क्या पूंजीपतियों को भी विश्वास नहीं हुआ और उनकी संस्था ने भी 7 प्रतिशत की विकास दर पर संदेह जाहिर किया।
          कुल मिलाकर मोदी सरकार के आने के बाद भी अर्थव्यवस्था का संकट जस का तस है इसमें कोई बड़ा बदलाव नहीं हुआ है। हाँ वैश्विक अर्थव्यवस्था से एकाकार जरूर बढ़ा है और यह अपनी बारी में संकट गहराने पर देश की अर्थव्यवस्था के लिए घातक सि़द्ध होगा।
          मोदी के सत्तारोहण में एकाधिकारी पूंजीपति वर्ग के साथ-साथ हिन्दू फासीवादी संगठन आर0एस0एस0 की केन्द्रीय भूमिका थी। संघ ने मोदी को चुनाव जिताने के लिए जमीनी मेहनत व नेटवर्क के जरिए सामाजिक आधार तैयार किया था। साथ ही साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण व जातीय समीकरण बैठाने में योगदान दिया था।
          एकाधिकारी पूंजीपति वर्ग व हिन्दू फासिस्ट संगठन मोदी को सत्तारूढ़ कराने के लिए जहाँ फौरी तौर पर एक थे वहीं उनके अलग-अलग हित व अलग-अलग चाहतें थी। जहाँ एक ओर तेजी से आर्थिक सुधार एकाधिकारी पूंजीपति वर्ग की चाहत थी वही भारतीय समाज का तेजी से हिन्दुत्वकरण संघ की चाहत थी।
          मोदी के सत्तासीन होने के साथ ही संघ ने अपनी इस चाहत को आक्रामक तरह से अंजाम देना शुरू कर दिया है । आज हिन्दू फासीवादी आन्दोलन देश में अब तक की सबसे मजबूत स्थिति में है। आज ये सांप्रदायिक फासीवादी ताकतें क्या खायें,क्या पियें, क्या पहनें, कैसे जिये यहाँ तक की कैसे सोचें  तक को निर्धारित करने की कोशिशें  कर रही हैं। धार्मिक अंधविश्वास व कट्टरपंथ के खिलाफ बात करने वालों को धमकी ही नहीं बल्कि गोली मारने का उदाहरण नरेन्द्र दाभोलकर के रूप में हमारे सामने है। लेखकों की किताबों या उनके अंशों पर प्रतिबन्ध लगाने से लेकर, फिल्मों, चित्रों इत्यादि पर प्रतिबन्ध लगबाने की बातें हो रही हैं। कई तरह से अभिव्यक्ति की आजादी पर खुला हमला हो रहा है और केन्द्र सरकार मूकदर्शक बनकर इसे प्रश्रय दे रही है।
          भारतीय उप महाद्वीप की जनता को अंग्रेजों के जमाने से ही धार्मिक कट्टरपंथ-साम्प्रदायिकता का दंश झेलना पड़ा। यद्यपि दुनिया के अन्य देशों की जनता की तरह भारत की मेहनतकश जनता ने भी धार्मिक कट्टरपंथ के खिलाफ संघर्ष चलाया । उन्होंने धर्म की जकड़बंदी को तोड़ा, एवं उसकी सीमायें लांघते समय, सभी धर्मों, जातियों के लोगों ने देश की आजादी व जनवाद विस्तार के लिए संघर्ष किया। लेकिन यहाँ के जनमानस को शासक वर्गीय नीतियों व महत्वाकांक्षा के कारण आजादी के समय ही धर्म के आधार पर विभाजन झेलना पड़ा मानव इतिहास का सबसे बड़ा विस्थापन सांप्रदायिक हिंसा व धार्मिक कट्टरपंथ से हुआ है
          आजादी के इतने साल बाद भी पाकिस्तान व बांग्लादेश धार्मिक कट्टरपंथ की आग में झुलस रहे हैं और वहाँ लोगों की जिन्दगी बदहाल है। भारत में भी आजादी के बाद समय-समय पर हुऐ साम्प्रदायिक दंगों/ झड़पों से न जाने कितने घरों के चिराग उजड़ गये। मोदी सरकार के आने के बाद साम्प्रदायिक तनाव और बढ़ रहा है। देश के सार्वजनिक जीवन में धर्म की घुसपैठ को व्यापक करने की कोशिशें बढ़ रही हैं।       संविधान को धता बताते हुये देश को हिन्दू राष्ट्रबनाने की घोषणायें/कोशिशें हो रही  हैं।लवजिहादजैसी फर्जी अफवाहों व गौ हत्याइत्यादि मुद्दों से जनता को कट्टरपंथ पर खड़ा करने की कोशिशें हो रही हैं। धार्मिक अल्पसंख्यकों को बार-बार अपनी देशभक्ति साबित करने की या देश छोड़ने की धमकी दी जा रही है। देश में साम्प्रदायिक दंगों व झड़पों को सुनियोजित तरीके से भड़काने की घटनायें भी हो रही हैं। इन सब चीजों ने देश में धार्मिक विद्वेष का माहौल बना दिया है जिससे विभिन्न धर्मों के बीच की दीवारों को अभूतपूर्व ढंग से चैड़ा कर दिया गया है। इसी के साथ इसकी प्रतिक्रिया में अल्पसंख्यक सांप्रदायिकता भी पैर पसार रही है  यह सब देश में एक मजबूत फासीवादी आन्दोलन की उपस्थिति को दर्शा रहा है।
          मोदी सरकार जिस तेजी से आर्थिक सुधारों को लागू कर रही है व जिस संगठित व आक्रामक तरीकों से संघ परिवार व उसके सहयोगी संगठन साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण व दंगों का कुचक्र रच रहे हैं। उतने ही योजनाबद्ध तरीके से शिक्षा, संस्कृति, मीडिया, विज्ञान व अकादमिक दुनिया के भगवाकरण की मुहिम जारी है। विश्व विज्ञान कांग्रेस में प्राचीन भारत में प्लास्टिक सर्जरी व क्लोन जैसी तकनीक की मौजूदगी को बताकर  विश्वास  अंधविश्वास व पोंगापंथ को, सच व यथार्थ में बदलने की असफल कोशिश की गयी थी। कला, संस्कृति की विभिन्न संस्थाओं और शिक्षा परिसरों का रहा सहा जनवादी स्पेस भी कम होता जा रहा है। भाजपा शासित राज्यों में स्कूलों में गीता पाठ, सरस्वती वंदना को रोजमर्रा का हिस्सा बनाया गया है। योग व सूर्य नमस्कार जैसी चीजों को इस या उस तरह से पूरे देश पर थोपने का उपक्रम चल रहा है। और इन चीजों को न करने पर देश छोड़ने का फरमान सुनाया जा रहा है।
          भाजपा शासित राज्यों के विश्वविद्यालयों में तमाम संघी सोच बाले कुलपतियों को बैठाने के बाद केन्द्रीय विश्वविद्यालयों में भाजपा समर्थित लोगों को बैठाने की कोशिशें हो रही हैं। आई.आई.टी., आई.सी.एच.आर., आई.सी.सी.आर. आदि के भगवाकरण के बाद अब एन.सी.ई.आर.टी. और एन.वी.टी.पर भी कब्जा जमाने की साजिशें चल रही हैं। सी.बी.एस.ई. की किताबों को भी फिरसे लिखने की तैयारियां हो रही हैं। पूरे इतिहास को साम्प्रदायिक जामा पहनाने की कोशिशें की जा रही हैं। संघी फासिस्टों ने अंतर्राष्ट्रीय प्रतिष्ठा प्राप्त भारतीय फिल्म और टेलीवीजन संस्थान पूणे (एफ.टी.आई.आई.) को भी नहीं बख्शा। महाभारत में युधिष्ठिर की भूमिका के अलावा हिन्दी की कई सी ग्रेड व साफ्ट पोर्न फिल्मों में भूमिका निभाने वाले तथा टी.वी. चैनलों पर हनुमान जी का रक्षा कवच बेचने वाले, भाजपा के कार्यकर्ता एवं चुनाव प्रचारक गजेन्द्र चैहान को संस्थान का नया चेयरमैन नियुक्त किया गया है। सेन्सर बोर्ड, बालचित्र विकास निगम आदि संस्थाओं पर भी संघ के विश्वसनीय लोंगों को बिठाया जा चुका है।
          संघी फासिस्टों की यह तमाम कार्यवाहियां इस सच को साबित करती हैं कि सभी तरह के फासिस्ट जितनी बर्बरता के साथ धार्मिक, अल्पसंख्यकों, मजदूरों, महिलाओं को अपना निशाना बनाते हैं उतनी ही घृणा के साथ वे विज्ञान, इतिहासबोध कला और संस्कृति की दुनिया पर भी हमला बोलते हैं। वे सामाजिक ताने-बाने और जनमानस में जनवाद व तर्क की जमीन को नष्ट करने के लिए हर तरह के प्रयत्न करते हैं।
          भारतीय शासक वर्ग ने जनवादी संस्थाओं के फासीवादीकरण की ओर तेजी से कदम बढ़ाये हैं। नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में संस्थाओं का केन्द्रीकरण भी बढ़ा है। योजना आयोग को खत्म करने के साथ के देश में बड़े फैसले लेने को पी.एम.ओ. के मातहत कर दिया गया है। यही नहीं, पी.एम.ओ. अपने राज्य स्तरीय कई कामों को भी सरकार के चुने हुये नुमाइन्दों (मंत्रीमण्डलीय) के द्वारा न कराकर सचिवालय के द्वारा संपन्न करा रहा है। नौकरशाही के विशेषाधिकारों को बढ़ाकर कार्यों को जनतान्त्रिक संस्थाओं/पदों से नौकरशाही को स्थानान्तरति करने का रूझान बढ़ रहा है।
          सारे पूंजीवादी कोलाहल में समानता ( राजनीतिक, आर्थिक सामाजिक ) का प्रश्न गायब किया जा रहा है । अधिकार का प्रश्न खैराती नुस्खों के हो हल्ले से ढक दिया गया है । जीविका का सवाल ,सामाजिक भागीदारी के प्रश्नरोजगार की जगह बेगारी ठेका प्रथा, आउटसोर्सिंग के नुस्खों से बेमानी किए जा रहे हैं न्याय का बुनियादी सवाल काले कानूनों के जंगल में लापता होता जा रहा  है सरकारी लाठी गोली पाबंदी से भी निजी गुंडा वाहिनियाँ व बाउंसरों का गैर कानूनी उपयोग बिना रोक टोक चलन बढ़ रहा है जनता की सम्प्रभुता की जगह पूंजी का दखल हावी होता जा तहा है । राज्य नागरिकों के स्वास्थ्य शिक्षा परिवहन की जिम्मेदारी उठाने से इंकार कर रहा है ।
          देश की जनता को आधा-अधूरा जनवाद, जनता के संघर्षों द्वारा व पूंजी की जरूरत के हिसाब से मिला था। उसको भी विभिन्न तौर तरीकों से सीमित/संकुचित किया जा रहा है। जनता की भागीदारी को मात्र वोट देने तक ही सीमित करने वाली पूंजीवादी व्यवस्था में जनता की राय को भी सांस्कृतिक मुद्दों, उग्रराष्ट्रवाद इत्यादि के द्वारा प्रभावित किया जा रहा है। बाज दफे मुसलमानों को आतंकवादी की तरह प्रस्तुत किया जाता है। यह कहा जा रहा है कि हर आतंकवादी मुसलमान होता है भले ही हर मुसलमान आतंकी न हो। ऐसा कहकर सरकार जनता में यह बात स्थापित कर रही है कि आतंकवाद को कुचलने के लिए और कानूनों की आवश्यकता है ताकि इन काले कानूनों की मदद से जनता की जायज माँगों के लिए होने वाले आन्दोलनों/संघर्षों को कुचला जा सके।
          तेजी से होते पूंजी समर्थक आर्थिक सुधारों के कारण आम जनता की स्थिति खराब हो रही है। बेरोजगारी, भुखमरी बढ़ रही है। आज देश का हर तीसरा नौजवान काम की तलाश में मारा-मारा घूम रहा है। भुखमरी का आलम यह है कि दुनिया का हर चौथा भूखा हमारे देश में है। खेती की स्थिति भी खराब है। मोदी सरकार के आने के बाद किसानों का खेती से पलायन और तेजी से व आत्महत्याओं की तादाद भी बढ़ी है। सरकार की चिंता किसान नहीं भूमि अधिग्रहण है। देश के हर प्रदेश में मजदूरों के बरक्स पूंजी की तरफदारी जारी है। श्रम कानूनों में तेजी से हो रहे परिवर्तन मजदूरों की स्थिति बद से बदहाल ही करेंगे।
          समाज में महिलाओं का उत्पीड़न बदस्तूर जारी है। छेड़छाड़ व यौन हिंसा की स्थिति भयाबह है। कार्यस्थल से लेकर घर तक में महिलायें असुरक्षित हैं। यहाँ तक की गर्भ में भी कन्या शिशुओं को मारने की घटनाएं जारी है। आज भी देश में दलित- आदिवासियों का व कुछ हद तक पिछड़ों के खिलाफ भी अत्याचार, हिंसा, उत्पीड़न जारी है। दलित आदिवासियों के उत्पीनड़न की खबरें आम हैं और बाज दफे पिछड़ी जातियों के बाहुबली भी इनके उत्पीड़न में लिप्त हैं।
          बढ़ती उपभोक्तावादी संस्कृति ने लोगों में खुदगर्जी, निजता को घनीभूत किया है। लोग भीड़ में भी अकेले हैं। आपसी प्यार, भरोसा, त्याग के बदले घृणा, ईष्र्या व खुदगर्जी बढ़ रही है। मूल्यों पर टिकी नैतिकता का स्थान पैसों पर टिकी नैतिकता ने ले लिया है। सरकार द्वारा हर किसी को शक की नजर से देखने की चेतावनी व विज्ञापनों ने लोगों के आपसी सम्बन्धों के भरोसे को तार-तार कर दिया है। बेहद अकेला व किसी पर भरोसा न करने वाले व्यक्तित्व के कारण समाज में कुंठा व हताशा पसर रही है जिसका परिणाम, हिंसा, आत्महत्याएं व समाज में संवेदनहीनता का बढ़ना ही है।
          कुल मिलाकर भारतीय समाज चौतरफा संकटों से घिरा हुआ है। ‘‘अच्छे दिनों’’ का वादा करने वाली नई सरकार सिर्फ पूंजीपतियों के लिए अच्छे दिन लायी है। आम जनता के हिस्से में, बेरोजगारी, भुखमरी, कुपोषण, भ्रष्टाचार, श्रम की लूट, व उत्पीड़न ही है। हाँ कल्याणकारी मदों जैसे शिक्षा, चिकित्सा, ग्रामीण व शहरी विकास इत्यादि से सब्सिडी जरूर कम हुई हैं साथ ही उसे धर्म के आधार पर कटुता में बढ़ोत्तरी ही मिली है।
          अपनी परेशानियों व संकटों को हल करने के लिए जनता विभिन्न जगह संघरर्षों  में उतर रही है। पिछले समय में मजदूरों के कई संघर्ष हुऐ हैं जिनमें गुड़गांव व तमिलनाडु व देश के अन्य हिस्सों में आटो सेक्टर के मजदूरों के संघर्ष  प्रमुख रहे। इन संघर्षों में मजदूरों ने श्रम की लूट के खिलाफ संघर्ष किया है। वहीं कृषि की बदहाल स्थिति में कोढ़ में खाज का काम भूमि अधिग्रहण अध्यादेश ने किया है। आज विभिन्न जगहों पर किसान भूमि अधिग्रहण के खिलाफ संघर्षरत हैं। भूमि अधिग्रहण पर अध्यादेश के विरोध में व्यापक संघर्ष के दबाव से अंतत: मोदी सरकार को अध्यादेश वापिस लेना पड़ा है हालांकि धूर्तता से सरकार ने इसे राज्य सरकारों के हवाले कर उन्हें अपने हिसाब से लागू करने का अधिकार दिया है ।
          पूंजीवादी शासकों की तिकड़मी चाल से नये तरह के बंधुआ मजदूर, आंगनबाड़ी कार्यकत्री, भोजन माताएं, आशा बहनें, रोजगार सेवक, शिक्षामित्र इत्यादि बनाये गये। ये सब भी संगठित हो अपनी बेहतरी के लिए संघर्ष में उतरते रहते हैं।
          बैंक, बीमा, इत्यादि में बढ़ते एफ0डी0आई0 के खिलाफ व अपने वेतन/भत्तों के लिए इनके कर्मचारी संघर्षरत है। मोदी सरकार के तेज श्रम सुधारों व ट्रेड यूनियन सुधारों के विरोध में 2 सितंबर 15 को हुई व्यापक हड़ताल हुई । इसके अलावा शहरी मध्यम वर्ग व निम्न मध्यम वर्ग भी बिजली, पानी, सड़क इत्यादि सुविधाओं को लेकर इस या उस स्तर के संघर्ष में उतर रहा है।
          हाल के वर्षों में भ्रष्टाचार व नारी उत्पीड़न के विषय पर समाज का युवा वर्ग कुछ हरकत में आया है। मोदी सरकार द्वारा शिक्षा-मीडिया, कला संस्कृति, अकादमी, व विज्ञान इत्यादि के भगवाकरण व गैर तार्किक नजरिये को स्थापित करने के खिलाफ भी इंसाफ पसन्द, सेक्युलर व प्रगतिशील जन संघर्षरत हैं।
          देश में जारी जाति उत्पीड़न, क्षेत्रीय आन्दोलन के खिलाफ भी जनता किसी न किसी स्तर पर प्रतिरोध करती रही है। इन्हीं सबके साथ-साथ भारतीय राज्य द्वारा शोषित व दोहित उत्पीड़ित राष्ट्रीयताओं के संघर्ष भी चल रहे हैं। इन उत्पीड़ित राष्ट्रीयताओं की लड़ाई यद्यपि आज धीमी है लेकिन आने वाले समय में मजदूर-मेहनतकशों के आन्दोलन से इसमें तेजी आने की सम्भावना बनती है। तेलंगाना राज्य का गठन, त्रिपुरा में अफस्पा का हटना व कश्मीर की जनता का भारतीय राज्य से संघर्ष इसी की अभिव्यक्तियां हैं।
            भारत में उठ रहे यह भाँति-भाँति के संघर्ष मुख्यतः नव उदारवादी नीतियों की तबाही से पैदा हुऐ हैं। यह संघर्ष पूंजीवादी शासकों की बढ़ती लूट, शोषण व अत्याचार के खिलाफ हैं।
          जनता के यह संघर्ष यद्यपि अलग-अलग व छोटे हैं  तथा वैचारिक विभ्रम का शिकार हैं लेकिन फिर भी यह इस बात को दिखा रहे हैं कि अब मजदूर-मेहनतकशों के पीछे हटने का दौर खत्म हो रहा है। अब मजदूर-मेहनतकश प्रतिरोध के लिए खड़े हो रहे हैं वह अपनी निराशा को तोड़ लड़ने की मनोदशा में आ रहे हैं वह पूंजीवादी शोषण व लूट से मुक्ति की दिशा तलाश रहे हैं। वह एकताबद्ध होकर सटीक दिशा तलाश कर पूंजीवादी चैखटे को तोड़ सकते हैं और एक झटके से अन्याय, शोषण व लूट से मुक्ति प्राप्त कर सकते हैं। लेकिन यदि वह ऐसा करने में असफल रहे तो पूंजीवादी-आर्थिक संकट के चरम पर इस बात की भी सम्भावना है कि पूंजीवादी उत्पादन पद्धति के खिलाफ असन्तोष को फासीवादी शक्तियां लामबन्द कर लें  और देश पर फासीवाद थोपकर रहे सहे जनवाद का भी अपहरण कर ले।
          दोस्तो, आज देश व दुनिया के ये गंभीर होते जाते हालात हमारे सामने बड़ी चुनौति बनते हैं। देश के भीतर कांग्रेस द्वारा शुरू किए गए ढांचागत समायोजन को फासीवादी ताकतों द्वारा ज्यादा आक्रामकता से लागू किया जा रहा है जिस कारण न केवल देश की संप्रभुता पहले से और ज्यादा कमजोर हुई है बल्कि जनता को हासिल सीमित जनवाद को भी भांति भांति से कमजोर किया जा रहा है छीना जा रहा है । इन फासीवादी ताकतों द्वारा जनवादी चेतना व सोच को लगातार कुंद किया जा रहा है । इन स्थितियों में जनवादी संगठन के बतौर हमारा दायित्व बनाता है की हम जनता में जनवाद व जनवादी अधिकारों को कमजोर करने व खत्म करने के शासकों के हर प्रयास और फासीवादिकरण की दिशा में उठाए जाने वाले हर कदम को बेनकाब करते हुए इसके विरोध में मेहनतकश नागरिकों को एकजुट करें । और जनता की न्यायपूर्ण संघर्षों का समर्थन करें व इनमें शिरकत करें ।                                                                                                                                                             
                                                                   क्रान्तिकारी लोक अधिकार संगठन
         




दलितों की धार्मिक समानता  के अधिकार को ठेंगा दिखाते सवर्ण मानसिकता से ग्रस्त हिन्दू 
         
        उत्तराखन्ड के देहरादून जिले के सहिया क्षेत्र के गबेला पंचायत में स्थित कुकुरशी मंदिर में दलितों को मंदिर में प्रवेश से मनाही है । मंदिर में प्रवेश से मनाही के विरोध में अराधना ग्रामीण विकास समिति के नेतृत्व में जौनसार बावर परिवर्तन यात्रा को संगठित किया जा रहा था । संस्था के मुताबिक 16 लोगों का दल मंदिर में प्रवेश के लिए जा रहा था तब इस काफी संख्या में इस इलाके के  सवर्ण जाति के लोगो ने उन्हें मंदिर में प्रवेश नहीं करने दिया ।
                        मंदिर में प्रवेश की मांग की स्थिति में धर्म परिवर्तन की धमकी भी दी गई । मंदिर में दलितों के प्रवेश को गलत मानने वाले ग्रामीणों ने एक तहरीर वहाँ राजस्व पुलिस को दी । प्रशासन ने हस्तक्षेप किया । धरने में उपस्थित लोगों के मुताबिक वहाँ शांति व्यवस्था बनाने के लिए पी ए सी लगाए जाने की बात प्रशासन द्वारा कही जा रही है जो कि गलत है । उन्होने प्रशासन से इसके आदेश की काफी की मांग भी की है ।
            इनके मुताबिक प्रशासन ने उनसे मंदिर में प्रवेश कराने की बात कही । मंदिर में प्रवेश की कोशिश में इन सवर्ण जाति के दबंग लोगों ने उनके दल के लोगों के साथ फिर मार पीट की । प्रशासन व पुलिस भी सवर्ण जातिवादी मानसिकता से ग्रस्त थी । प्रशासन द्वारा उन्हें ही मंदिर परिसर के पास से वापस जाने की धमकी दी जाने लगी । धार्मिक समानता के अधिकार के तहत मंदिर में प्रवेश को लेकर चल रहे संघर्ष के पक्ष में काम करने के बजाय प्रशासन ने उल्टा काम किया ।  संघर्ष का दमन किया गया ।            
       परिवर्तन यात्रा के संयोजक के मुताबिक उनके व उनकी पत्नी के साथ पुलिस द्वारा बहुत मारपीट भी गई जबकि अन्य लोगों को बीच में रास्ते में ही इधर उधर जबरन छोड़ दिया गया । अगले दिन सभी एकजुट होकर देहरादून के परेड ग्राउंड में अनशन पर बैठ गए । फिलहाल 6 लोग अनशन पर बैठे गए । मंदिर में प्रवेश के अधिकार के साथ साथ इनकी मांग इस इलाके में मौजूद बंधुवा मजदूरी पर भी रोक लगवाने की है ।
            परिवर्तन यात्रा के रूप में चल रहे इस संघर्ष के खिलाफ साहिया क्षेत्र के लोग मसलन पूर्व ग्राम प्रधान व कुछ अन्य लोगों की आवाजें भी उठ रही हैं इनके मुताबिक यह सब गाँव को बदनाम करने की साजिश हैं ; इस मंदिर में दलित भी प्रवेश कर सकते हैं ; वे लोग मंदिर में जाते हैं ; यहाँ किसी प्रकार का भेद भाव नहीं है यह राजनीति चमकाने की कोशिश है । इस विरोधी आवाज में संघी अनुषगिक संगठन सुर से सुर मिला रहे हैं । और इनहोने अपना अलग दल गठित कर मंदिर में अपने लोगों को प्रवेश  कराकर  संघर्ष को झुठलाने की घृणित कोशिश की है ।  
            इसके जवाब में परिवर्तन यात्रा के संयोजक का कहना है कि यदि पूर्व ग्राम प्रधान व अन्य दलित के मुताबिक मंदिर में प्रवेश में कोई रोक टोक नहीं है की बातें सहीं है तो ठीक ,  हम सभी उनके नेतृत्व में ही मंदिर के गर्भ गृह तक प्रवेश कर लेते हैं और हम आंदोलन खत्म कर देंगे ।
            धरने में उपस्थित लोगों के मुताबिक जौनसार के गावों की स्थिति बदहाल है जब भी दलित जाति के लोगों ने अपने इस बराबरी के अधिकार के लिए कोई आवाज उठाई तो गाव के दबंग लोगों की पंचायत ने उनका सामाजिक बाहिष्कार करवा दिया व अर्थदण्ड दिया है ।  अब यदि गबेला की घटना को थोड़ा अलग रखकर बात पूरे जौनसार बावर के संदर्भ में की जाय तो स्थिति की गभीरता समझ में आ जाती है ।
            देहरादून जिले की चकराता कालसी क्षेत्र में जौनसारी जनजाति निवास करती है । यह इलाका अभी भी पिछड़ा हुआ है । अभी भी ढेर सारी परम्परागत मूल्य मान्यताओं, रूढ़ियां यहाँ मौजूद हैं  न्यायिक व्यवस्था में भी खाप की तर्ज पर खुमड़ी व्यवस्था कमजोर होने के बावजूद मौजूद है । यह क्षेत्र 1967 से  जनजाति घोषित हैं ।इसलिए एससी एस टी एक्ट न लागू होने की बात भी कही जा रही है । जनजाति क्षेत्र होने से यहाँ के सवर्ण भी जन जाति के दायरे में आते हैं । जन जाति आरक्षण का सबसे ज्यादा फायदा भी इन्हीं को मिला है ।
            इस पूरे ही क्षेत्र में छूवांछूत -भेदभाव  जैसी घृणित सोच के साथ साथ बंधुवा मजदूरी आज भी ठीक ठाक रूप में मौजूद है । दलितों में वे लोग जिनकी आर्थिक स्थिति ठीक है वह अपने अधिकारों के लिए ज्यादा सजग है व मुखर है । जबकि दलितों का वह हिस्सा जो कि गरीब है वह बंधुवा मजदूरी झेलने को अभिशप्त है । राज्य सरकार या कहें कि शासन प्रशासन औपचारिक तौर पर तो इसके खिलाफ है लेकिन व्यावहारिक तौर पर वही ढील ढाल है जैसा कि अन्य मामलों में । आम तौर पर सवर्णों की दबंगई  व प्रशासन की निष्क्रियता के चलते यह अभी तक खत्म नहीं हो पायी है ।  
            छूवाछूत व भेदभाव भी किस कदर है इन तथ्यों से जाना जा सकता है । जबर सिंह बर्मा के जनादेश के लेख के मुताबिक कालसी गाँव में दलित प्रधान ध्यान चंद के वकील बेटे की सवर्ण युवती से शादी के विरोध में सवर्ण हिन्दू लोग उन पर टूट पड़े । बुजुर्ग महिला से लेकर बच्चे तक की पिटाई की गई , बुलडोजर से नया घर ज़मींदोज़ कर दिया गया । सवर्ण समुदाय के लोगों का नेतृत्व भाजपा का एक विधायक कर रहा था ।
            इसी प्रकार जौनसार के लखवाड़ से दुल्हन लेकर लौट रहे बारात को सवर्ण ग्रामीणों ने दो घंटे तक घेर लिया । बस इनका अपराध यही था कि सवर्णों के लिए “आरक्षित” महासू मंदिर के उस हिस्से में जहां पर सवर्ण हिन्दू अपने जूते रखते थे, ये लोग वहाँ पर प्रवेश कर गए थे । इस अपराध के लिए माफी मांगने के अलावा एक बकरा व 501 रुपये देने पड़े साथ ही साथ यह आश्वासन भी  देना पड़ा कि मंदिर में चांदी के सिक्के चढ़ाएँगे ।  
            कुछ साल पहले राखी नाम की दलित युवती के मंदिर में प्रवेश करने पर मंदिर के सवर्ण हिन्दू पूजारियों ने उसे अर्धनग्न व बेइज्जत कर भगा दिया गया । यह मामला भी तब मीडिया में चर्चा का विषय रहा ।
            छूआछूत व बंधुवा मजदूरी समेत अन्य समस्याओं के निराकरण के लिए इस इलाके में  अन्य गैर सरकारी सस्थाएं भी काम कर रही हैं । यह भी काफी समय से क्षेत्र में काम कर रही हैं ।  जौनसार बावर परिवर्तन यात्रा से ठीक पहले ही इन एन जी ओ में से  कुछ अन्य लोगों के नेतृत्व में एक यात्रा निकालने की घोषणा की गई थी । तभी अराधना नाम की संस्था ने भी इससे पृथक यात्रा की घोषणा कर दी थी ।
            एन ए पी एम ( नेसनल एलायंस ऑफ पीपल्स मूवमेंट ) के नेतृत्व में कुछ संगठन दलितों के भूमि अधिकार , बंधुवा मजदूरी , दलितों महिलाओं के मंदिर में प्रवेश पर रोक उत्पीड़न के खिलाफ 9 से 13 अक्तूबर के बीच जौनसार के अलग अलग इलाकों में यात्रा चला रहा है । जो 15 अक्तूबर को दलितों महिलाओं समेत नाथागत क्षेत्र के मंदिर में प्रवेश करेंगे । 
            अब  जौनसार बावर परिवर्तन यात्रा के लोग भी गाव के दलित लोगों के साथ मंदिर में प्रवेश करेंगे । इनका रुख दलितवादी है । इन्हें लगता है कि यदि प्रदेश में दलित मुख्यमंत्री होता तो तब उनके साथ यह अपमानजनक व भेदभावपूर्ण व्यवहार नहीं होता । ये शायद उत्तर प्रदेश में मायावती सरकार के राज में होने वाले गरीब मेहनतकश दलितों के उत्पीड़न की घटनाओं को भुला चुके हैं ।









 सफलतापूर्वक सम्पन्न हुआ क्रांतिकारी लोक अधिकार संगठन का छठा सम्मेलन

            क्रालोस का छठा सम्मेलन  3-4 अक्तूबर को बरेली में सम्पन्न हुआ । सम्मेलन में अलग अलग जगहों से प्रतिनिधि पहुंचे थे । इसके अलावा अन्य संगठनों की ओर से पर्यवेक्षक पहुंचे थे ।
            3 अक्तूबर को सुबह क्रालोस के अध्यक्ष पी पी आर्या द्वारा झंडारोहण किया गया । इसके बाद मेरा रंग दे बसंती चोला क्रांतिकारी गीत प्रस्तुत किया गया । इसके बाद सम्मेलन के संचालन हेतु तीन सदस्यीय संचालक मण्डल चुना गया ।
            सम्मेलन की शुरुवात में देश व दुनिया भर में पिछले सवा तीन सालों समाजवाद के निर्माण के लिए चले संघर्षों में शहीद हुए क्रांतिकारियों , जनवाद के लिए व जनवादी अधिकारों के लिए चले संघर्षों में में शहीद हुए लोगों , वैज्ञानिक चिंतन को बढ़ावा देने व अंधविश्वास के खिलाफ लड़ते हुए कट्टरपंथी ताकतों के हाथों मारे गए लोगों तथा आतंकवाद आदि आदि  के नाम पर मारे गए बेगुनाह नागरिकों को श्रद्धांजली दी गई । शहीदों व मारे गए लोगों की स्मृति में दो मिनट का मौन रखा गया ।
            इसके बाद राजनीतिक रिपोर्ट पर बहस मुहावसे का दौर चला । राजनीतिक रिपोर्ट के अंतराष्ट्रीय परिस्थितियों वाले हिस्से पर  यह बात सम्मेलन ने पारित की कि 2007-8 से जारी आर्थिक मंदी अन और अधिक गहन होती जा रही है इस गहराती मंदी से निपटने में  साम्राज्यवादी शासक नीम हकीमी नुस्खे पेश कर रहे हैं उनके पास इसका कोई हल नहीं है । शासक अपने इस संकट का बोझ भी मजदूर मेहनतकश नागरिकों के कंधे पर ही डाल रहे हैं ।
            जिन नए आर्थिक सुधारों ने समस्या को बढ़ाया था उसे ही नुस्खे के रूप में पेश किया जा रहा है दुनिया के अन्य पूंजीवादी मुल्कों पर इसे तेजी से लागू करते जाने  का  दबाव बहुत बढ़ गया है । यही नहीं विकसित मुल्क इटली ग्रीस की चुने हुए प्रधानमन्त्री को इसने सत्ता से हटाकर अपनी मन पसंद का व्यक्ति बिठा दिया । कटौती कार्यक्रम लागू किया जा रहा है । इससे आम मेहनतकश नागरिकों की तबाही बढ़ रही है । इस सबके खिलाफ जनता के लग अलग हिस्सों के संघर्षों को सम्मेलन ने चिन्हित किया ।
            संकटों के इस दौर में दुनिया भर में साम्राज्यवादी पूंजीवादी शासकों ने जनवाद व जनवादी अधिकारों की कमजोर स्थिति को और ज्यादा कमजोर कर दिया है यह तानाशाही व फ़ासिज़्म की दिशा में बढ़ रही है  । यही नहीं अब नव नाजीवादी- फासीवादी या धार्मिक कट्टरपंथी या दक्षिण पंथी ताकतों को आगे किया जा रहा है ।  
            राष्ट्रीय परिस्थितियों पर चर्चा करते हुए सम्मेलन हेतु प्रस्तावित रिपोर्ट को पारित करते हुए चिन्हित किया गया  कि भारतीय अर्थव्यस्था भी आर्थिक संकट से मुक्त नहीं है । 2007-08 से चल रहे संकट ने इसे अपनी गिरफ्त में लिया है । निर्यात में लगातार गिरावट , ओद्योगिक उत्पादन में गिरावट , फैक्ट्रियों का अपनी उत्पादन क्षमता से कम उत्पादन इसकी तस्दीक करते हैं ।
            भारतीय एकाधिकारी पूंजीपति वर्ग ने अपने मनमाफिक तेज गति से नए आर्थिक सुधारों को नही लागू कर पाने इसे धीमी गति से लागू करने के चलते  कांग्रेस के सत्ता से हटाकर फासिस्ट ताकतों को सत्ता पर बिठाया । नरेंद्र मोदी ने मुख्य मंत्री के बतौर अपने कार्यकाल में गुजरात में जिस ढंग से अदानी अंबानी टाटा आदि की सेवा की थी वही देश के स्तर पर करवाने के लिए एकाधिकारी पूंजी ने मोदी को सत्ता के शीर्ष पर बैठा दिया ।
            अब साता पर बैठने के 16-17 माह बीतते बीतते मोदी व उनकी सरकार इन पूंजीवादी घरानों के हित में श्रम क़ानूनों ट्रेड यूनियन क़ानूनों व पर्यावरण कानून आदि आदि में बदलाव की दिशा में बढते हुए कई फैसले कर चुकी है । भूमि अधिग्रहण कानून में बदलाव के संबंध में तो तीन बार   अध्यादेश लाया गया । लेकिन चौतरफा विरोध के बाद व बिहार चुनाव को देखते हुए इसे वापस लिया गया लेकिन चुपके से राज्य सरकारों के हावाले कर इसमें बदलाव करने अधिकार उन्हें दे दिया गया ।
             मोदी व उनकी सरकार बजट में 6 लाख करोड़ रुपए की राहत इन पूंजीपतियों को  दे चुकी हैं जबकि सामाजिक मद में व्यय होने वाले बजट में 2 लाख करोड़ के लगभग कटौती कर चुकी है । सम्मेलन ने यह भी चिन्हित किया कि मोदी के नेतृत्व में सत्ता का केन्द्रीकरण  काफी बढ़ा हैं सत्ता की सारी ताकत अब मंत्रीमंडल में न होकर प्रधानमंत्री व उनके 6 नौकरशाहों से बने पी एम ओ में केन्द्रित हो चुकी है । सर्वोच्च नेतृत्वकारी व नीतिनिर्धारक निकाय अब मंत्रीमंडल नहीं बल्कि पी एम ओ बन चुका है ।
            मंत्रीमंडल व मंत्रियों के प्राधिकार व हैसियत को बेहद कमजोर कर दिया गया है । दूसरी ओर देश के जनवादी सस्थाओं को कमजोर किया जा रहा है । सभी संस्थाओं में फासिस्ट संघी लोगों को बिठाया जा रहा है । धर्म, संस्कृति, आतंकवाद आदि भांति भांति के मुद्दों के जरिये समाज को फासीवाद की ओर धकेला जा रहा है । 
            सम्मेलन में आए प्रतिनिधियों ने यह भी चिन्हित किया कि अर्थव्यवस्था को सुधारने के नाम  पर जनता की जेबों से पैसे वसूलने समेत अन्य तमाम कोशिश के बावजूद अर्थव्यस्था डांवाडोल हैं ।
            सांगठनिक रिपोर्ट पर इस बुनियादी कमी को चिन्हित कर दूर करने का संकल्प प्रतिनिधियों ने लिया कि आज के गंभीर होते जाते माहौल में जबकि फासीवादी ताक़तें लगातार जनता पर आर्थिक व राजनीतिक हमले कर रही हैं तथा जनता के जनवादी अधिकारों , जनवाद जनवादी सोच व चेतना को कुंद  कर रही हैं समाज को फासीवाद की दिशा में धकेल रही हैं तब इन स्थितियों में अपनी राजनीतिक समझदारी को बढ़ाने तथा अपने समर्पण व त्याग के भाव को अत्यधिक बढ़ाते हुए जनता को इसके विरोध में एकजुट करने की जरूरत है ।
            सम्मेलन के अंत में राजनीतिक प्रस्ताव लिए गए । राजनीतिक प्रस्ताव : सत्ता के बढ़ते केन्द्रीकरण का विरोध करो , श्रम कानूनों में बदलाव के विरोध में, जनसंघर्षों के दमन के खिलाफ , भूमि अधिग्रहण के खिलाफ , कन्नड विद्वान कलबुर्गी की हत्या का विरोध करो , अफ्रीकी पश्चिमी एशियाई देशों में साम्राज्यवादी दुश्चक्रों के विरोध में तथा फासीवाद के बढ़ते खतरे के विरुद्ध लिए गए ।
            अंत में चुनाव की प्रक्रिया सम्पन्न हुई जिसमें अध्यक्ष पी पी आर्या चुने गए जबकि महासचिव  के बतौर भूपाल चुने गए । सम्मेलन के इस कार्यवाही के बाद खुले सत्र का आयोजन किया गया । इसमें इंकलाबी मजदूर केंद्र के अध्यक्ष कैलाश , प्रगतिशील महिला एकता केंद्र की अध्यक्षा शीला , परिवर्तन कामी छात्र संगठन के महेंद्र , बरेली ट्रेड यूनियन फ़ैडरेसन के संजीव मेहरोत्रा , बरेली कालेज कर्मचारी यूनियन के जितेंद्र आदि ने आज के गंभीर होते जाते हालात में एकजुटता व संघर्ष की जरूरत को बताया ।
            खुले सत्र के आयोजन के बाद अंत में एक जुलूस प्रदर्शन का आयोजन किया गया । जो संजय नगर बरेली के सड्को व चौराहों से गुजरते हुए , नारे व गीतों के साथ अंत में सम्मेलन स्थल पर पहुंचा । इसके बाद सम्मेलन की खुले सत्र की औपचारिक समापन के साथ सभी प्रतिनिधियों ने नए संकल्प व जज्बे व संघर्ष के संकल्प के साथ  विदा ली ।   







Krantikari Lok Adhikar Sangathan have started a compaign against the real issues of the people i.e. price rise, wage disparity, unemployment, onslaught of indian state on struggling people. It has exposed the facade of compaign led by Anna Hazaree team for lok pal and Baba Ramdev's crusade against black money. People's from various walk of life joined the compaign and shared their view. It is contineous process.




Seminar on caste in India provoked debate

Yesterday on 24.07.2011 seminar organised by Krantikari Lok Adhikar Sangathan Delhi on 'Caste in India' attracted a large no. of people from various parts of Delhi, Faridabad and Uttarakhand. Around 220 people witnessed a hot , thought provoking debate between two view points regarding emancipation of Dalit and eradication of caste system in India. On this occasion a booklet published by Sarvahara Prakashan titled as ' Mayawati - Mulayam Parighatna aur uski vaicharik Abhivyaktiyan' was released by Shri Pankaj Bisht editor Samayantar. Speaker from Inqulabi Mazdoor Kendra Shri Nagendra focussed on the issue from the working class perspective and emphasised that emancipation of Dalit is possible only through materialistic philosophy of emancipation of humanity i.e. Marxism. He focussed on limitation of Ambedkar's ideology of caste. Shri P.P. Arya President Krantikari Lok Adhikar Sangathan while addressing the gathering assembled in Gandhi Peace foundation ITO Delhi stated that any thing in the society is not static and it is basic principle of nature that things kept changing the same applies on caste system also. he described how a ruling class within the Dalit have evolved due to development of capitalism in India. He stated that caste was the base of Feudalism and its economic base have evaporated. He said that we should recognise these changes. Shri Ganga Sahai Meena , Shri Bajrang Bihari Tiwary from the Praesidium focussed on need of Ambedkarite ideology for emancipation of Dalit. Shri Bajrang Bihari Tiwari accusing the communist rule in Bengal and Kerala stated that only 5% people from S.C. are in jobs , which shows real biase of Communists towards Dalits. Shri Ashok Bharti who runs a NGO accused Marxists for not taking up the caste issue seriously due to their origin which is deeply rooted in Brahamanism. Kumar Sanjay Singh Associate Professor Department of History Swami Sardhannd College stated that Communist Party in India from its very begining in 30s have taken up this task of eradicating caste system and fought for land reform in Telangana. It was in program of CPI to eradicate caste system i.e base of feudalism. However , he further stated that parties falied to understand certain peculiarity of caste in India. The seminar was conducted by Kamlesh Kumar of Krantikari lok Adhikar Sangathan. while moderating the seminar Kamlesh said that their are two ideologies confronting each other . one is ideology of newly evolved ruling class among Dalits and on the other hand Marxism which is scientific ideology for emancipation of all toiling masses including Dalit. Thus it is obvious to be a contradiction between ideology of two different classes, however we still find a scope of alliance at certain juncture between them to fight the decadent caste system. Seminar was also addressed by Jayprakash & Sunil of Krantikari yuva Sangathan.

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2 comments:

  1. first time i viewed this blog its good old activist of krantikari lok adhikaar sangthan

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  2. i am a citizen from new delhi. near wazirpur indl. area. we are thankful to ngo for their fight against pickling os steel, that creates acid in ground water in area on 1 km or more than that. it causes harm to many lives and leading to serious disease. industry is very powerful and corrupt. i request you to not to give up. please go for it, we can help you to provide proofs. they are running in nights in illegal way. in morning can see acid all over near wazirpur.please

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चुनाव की आड़ में बिहार में नागरिकता परीक्षण (एन आर सी)

      चुनाव की आड़ में बिहार में नागरिकता परीक्षण (एन आर सी)       बिहार चुनाव में मोदी सरकार अपने फासीवादी एजेंडे को चुनाव आयोग के जरिए आगे...