26 जून 1975 की सुबह-सुबह जब आम लोगों की आंख खुली तो उन्होंने पाया कि उनके मौलिक अधिकार निलंबित हो चुके हैं उनके इर्द-गिर्द पुलिस ही पुलिस है। चारों तरफ पुलिस का आतंक पसरा हुआ है। गिरफ्तारियां, धर पकड़ की अपुष्ट खबरें 'अफवाहों' के रूप में सुनने को मिल रही थी। अख़बार न छप सके इसलिए रात में ही बिजली काट दी गई थी। 21 माह तक आपात काल कायम रहा था।
आज मोदी व मोदी सरकार के मंत्री कॉंग्रेस को घेरते हुए उसे इस आपात काल की याद दिलाते रहते हैं। कंग्रेस को लोकतंत्र का हत्यारा तो खुद को लोकतंत्र के रक्षक के बतौर प्रस्तुत करते हैं।
इस तरह 'आपात काल' के विरोधी होने का दम भरते हुए 'अघोषित आपातकाल' सी स्थिति मोदी सरकार कायम के चुकी है।
इस 'अघोषित आपात काल' सी स्थिति की खासियत यह है कि देश में बिना आपात काल' घोषित किये ही 'अधिकार', 'बराबरी' के लिए तथा 'अन्याय' व 'जुल्म' के विरोध में उठती हर 'आवाज' तथा 'संघर्ष' को कॉरपोरेट मीडिया, संगीन फर्जी मुकदमों, गिरफ्तारियों, संगीनों व काले दमनकारी कानूनों के तले रौंदा जा रहा है। यही मौजूदा दौर की हकीकत है। इसे ' पूंजीवादी संविधान' के जरिये नहीं बल्कि 'संविधान' को 'निष्प्रभावी' करके हासिल किया जा रहा है।
यह आपात काल से कई गुना ज्यादा खतरनाक, मारक है। यह एक हद तक, 'आतंकी तानाशाही' सी स्थिति है। मोदी-शाह 'आपात काल' को गलियाते हुए भी 'अघोषित आपात काल सी स्थिति' को मजबूत करते जा रहे हैं। 2014 के बाद से ही निरंतर इस ओर बढ़ा गया है। मोदी 2.0 में तो खुलेआम हिन्दू फासीवादी एजेंडे को आगे बढ़ाया गया है।
'अघोषित आपातकाल सी स्थिति' आंदोलन के रूप में है, यह 'फासीवादी आंदोलन' है, यह 'घोर जनविरोधी आंदोलन' है मगर इसके बावजूद, इसी जनता के एक हिस्से का 'समर्थन' इसे हासिल है। यह 'हिंदू फासीवादी आंदोलन' है। पूरे समाज में 'खेमेबंदी' इसी का लक्षण है। इसने इस व्यवस्था के 'कथित सभी अंगों' में 'घुसपैठ' कायम कर ली है। इसकी दिशा 'खुली आतंकी तानाशाही' यानी 'फासीवाद' कायम करने की ओर है।
घोषित आपात काल 'संविधान' के जरिये कायम थी, यह 'आंदोलन' की शक्ल में नहीं आया। संविधान के अनुच्छेद 352 का इस्तेमाल कर 'सिविल तानाशाही' कायम की गई थी। जिस 'जनता' के खिलाफ यह 'लक्षित' था उसे मालूम था कि 'उनके अधिकार' 'निलंबित' किये जा चुके हैं जनता इसके खिलाफ थी। तब लोकतंत्र का नकाब ओढ़े हुई 'पूंजीपति वर्ग की तानाशाही' खुलकर सामने हाज़िर हो गई थी।
'घोषित आपात काल' व' अघोषित आपात काल सी स्थिति' दोनों ही शासक पूंजीपति वर्ग की इच्छा का नतीजा है यह अपने-अपने वक़्त के 'आर्थिक-सामाजिक-राजनीतिक' संकट पर काबू पाने के तरीके हैं, उमड़ते जनांदोलनों पर काबू करने के तरीके हैं। फिर भी 'अघोषित आपात काल सी स्थिति' शासक पूंजीपति वर्ग के सबसे ज्यादा जन विरोधी, सबसे ज्यादा भ्रष्ट व पतित, सबसे ज्यादा अन्धराष्ट्रवादी व सम्राज्यवाद परस्त एकाधिकारी पूंजीपतियों की इच्छा, आकांछा का नतीजा है हालांकि अभी इसकी जरूरत 'खुली आतंकी तानाशाही' कायम कर देनी की नहीं है।