Thursday, 10 September 2015

conference


         The sixth conference of KRANTIKAREE LOK ADHIKAAR SANGATHN is going to be held on third and fourth oct. 2015 in  Bareilley Uttar Pradesh . All the delegate from the different parts across U P and Uttarakhand will come here to join to  discuss over the political and organizational reports .



FOR CONFERENCE



               
                     क्रा.लो.स
                        छठा सम्मेलन
                   3-4 अक्टूबर 2015
                   बरेली ( उत्तर प्रदेश )
            गुलाम हैं वे जो डरते हैं
          कमजोरों पतितों के खातिर
          आवाज ऊँची करने से !

दास हैं वे जो नहीं चुनेंगे
घृणा, अपयश और निंदा के बीच
सही रास्ता लड़ने का !!
         
       गुलाम हैं वे जो नहीं करेंगे साहस
          सबके बीच
           सच का साथ देने का !!!
साथियो,
क्रा.लो. स भगत सिंह की विचारधारा को मानने वाला संगठन है। क्रा.लो. स की स्थापना मार्च 1998 में की गई थी। क्रा.लो. स जनता के संवैधानिक व जनवादी अधिकारों को समर्पित संगठन है। और इन गुजरे 17 सालों में हम आम जनता के जनवादी अधिकारों के लिए निरंतर सक्रिय रहे हैं ।
            90 के दशक में शासकों ने जनविरोधी निजीकरण उदारीकरण वैश्वीकरणकी नीतियां लागू की थी। ‘‘उदारीकरण वैश्वीकरण’’की ओर बढ़े कदमों ने मेहनतकश नागरिकों की बदहाली को और ज्यादा बढ़ाया है, जनवाद व जनवादी अधिकारों की स्थिति को और ज्यादा कमजोर किया है 

क्रा लो स का कहना है -
आजादी के बाद देश 68 साल का सफर तय कर चुका है।    इन बीते 68 सालों ने दिखाया है कि शासक पूंजीपति वर्ग ने अपनी पूंजी बढ़ाने के लिए ही नीतियां बनायी हैं संसाधनों व श्रम की लूट को बढ़ाने के लिए नीतियां बनाई हैं। इस पूंजीवादी विकास व पूंजीवादी नीतियों ने बेरोजगारी, गरीबी, महंगाई आदि आदि सामाजिक समस्याओं को जन्म दिया है और इसे विकराल बना दिया है।
            देश में कांग्रेस, भाजपा, सपा, बसपा आम आदमी पार्टी या फिर अन्य पूंजीवादी पार्टियां पूंजीपति वर्ग के अलग अलग धड़ों के हितों में ही नीतियां व कानूनों को बना रही हैं।            
इन 68 सालों ने यह भी दिखाया है कि देश में नीतियों, निर्णयों व संचालन में मेहनतकश नागरिकों का कोई हस्तक्षेप नहीं है। जनमत संग्रहचुने गए प्रतिनिधियों को वापस बुलाने का अधिकार बहुत दूर की बात है। इसे वोट देने मात्र तक सीमित कर दिया गया है। समानता, स्वतन्त्रता, धर्मनिरपेक्षता तो बस खोखले शब्द भर हैं। 
            कहने को भाषण, विरोध प्रदर्शन करने व संगठित होने का अधिकार हासिल है। लेकिन हुकूमत लाठी-गोली व फर्जी मुकदमों के दम पर ही इनसे निपटती रही है। असहमति की आवाज को असमाजिक व जनविरोधी कहकर कुचला जा रहा है
             शासकों ने एस्मा, मीसा, अफस्पा, यूएपीए   राजद्रोह आदि जैसे ढेरों खतरनाक दमनकारी कानून बनाये हैं। इनका इस्तेमाल शासक जब तब जनसंघर्षों के दमन में करते रहते हैं। नागरिकों के मौलिक अधिकार जब तब रौंदे जाते रहे हैं ।
            न्याय की बिना दोष सिद्दि के दंड नहींकी धारणा को खत्म कर दिया गया है। मात्र शक के आधारपर व बिना कारण बताए गिरफ्तारीया रिमांड पर लेने के प्रावधान बनाये गए हैं । 
            देश की राष्ट्रीय आय में असली महत्वपूर्ण भूमिका मजदूर मेहनतकश नागरिक ही निभाते हैं लेकिन इनकी ही रोजी-रोटी के सवालको इनका अधिकार नहीं बल्कि खैरात बना दिया गया है।
            नागरिक सुविधाएं शिक्षा, स्वास्थ्य, बिजली, पानी, परिवहन आदि आम नागरिकों को निचोड़ने के साधन बन गए हैं। 
 

मौजूदा हालात-
            दोस्तो ! मौजूदा वक्त में यह पूंजीवादी दुनिया मंदी के संकट में है।  मंदी का यह संकट गहराता जा रहा है। विकसित मुल्क ग्रीस इसका ताजा उदाहरण है जिसकी अर्थव्यवस्था तबाह होने की स्थिति में है ।
             धूर्त व मक्कार पूंजीवादी मीडिया ग्रीस के तबाह होने की असल वजह पर पर्दा डाल रहा है। वह यहाँ जनता को संघर्षों के दम पर हासिल सुविधाओं (सस्ती शिक्षा, सस्ता स्वास्थ्य, सस्ता परिवहन तथा रोजगार में मिलने वाली सुरक्षा आदि) को इसके लिए जिम्मेदार ठहरा रहा है। जबकि इसके लिए पूंजीपति वर्ग जिम्मेदार है उसकी पूंजीवादी अर्थव्यवस्था जिम्मेदार है। जो जनता के एक बहुत बड़े हिस्से को दरिद्रता व कंगाली की ओर धकेलती है।
            पूंजीपति वर्ग की लूट व मुनाफे की अंधी लालसा ने ही विश्व युद्धो को जन्म दिया था। मुसोलिनी और हिटलर जैसे फासीवादियों को पाल पोसकर सत्ता पर बैठा दिया था। तब फासिस्टों ने घृणित ,वीभत्स व हिंसक कारनामों को अंजाम दिया था।
            मजदूर मेहनतकश आबादी के क्रांतिकारी संघर्षो ने ही फासिस्टों को हराया था। तथा समाजवादी राज्यों का निर्माण भी किया था।
            दुनिया भर में पूंजीपति वर्ग के पास आर्थिक संकट से बाहर निकालने का कोई रास्ता नहीं है। वह अपने संकट का बोझ मजदूर मेहनतकश नागरिकों पर डाल रहा है।     
पूंजीपति वर्ग की सरकार पूंजीपतियों पर राहत पैकेज लूटा रही हैं जनता को मिलने वाली सब्सिडी, सुविधाओं में भारी कटौती कर रही है जनता के पक्ष में बने चंद श्रम कानूनों, ट्रेड यूनियन अधिकारों व अन्य जनवादी अधिकारों को छीन रही है। इसे औस्टीरिटी पैकेज ( कटौति कार्यक्रम) कहा जा रहा है। दूसरी ओर धार्मिक, नस्लीय, सांस्कृतिक आदि मुद्दों के नाम पर जनता को बांटने वाली फासीवादी ताकतों को पूंजीपति वर्ग मजबूत कर रहा है। फासीवाद की ओर बढ़ रहा है। संसद की शक्ति को अत्यधिक कमजोर कर रहा है।
            भारत में अंबानी-अदानी-टाटा-बिड़ला जैसे पूंजीपतियों ने फासीवादी ताकतों को सत्ता पर बैठा दिया हैजो अच्छे दिनोंके नाम पर औस्टीरिटी पैकेजकार्यक्रम चला रहे हैं। धार्मिक-सांस्कृतिक मुद्दे से समाज का फासीवादीकारण कर रहे हैं तो दूसरी तरफ संसद व अन्य संवैधानिक संस्थाओं को कमजोर कर रहे हैं। जनवादी अधिकारों, जनवादी चेतना-सोच पर निरंतर हमला बोल रहे हैं। कॉंग्रेस ने अपने कार्यकाल में यही काम धीरे से व दूसरे ढंग से किया था ।
            देश के भीतर अच्छे दिनोंके नाम पर जनता के पक्ष में खर्च होने वाले बजट में सवा लाख करोड़ रुपए की कटौती कर दी गई है जबकि पूँजीपतियों को 6 लाख करोड़ रुपए की छूट टेक्स में दी गई है। सरकार फाइनेंस कंपनियों की तर्ज पर हसीन ख्वाब दिखा रही है। जनता की जेब से पैसे खींचकर पूंजीपतियों को मालामाल करने के लिए जनधन, बीमा आदि जैसी योजनाएं बना रही है। 
आइये एकजुट हों और संघर्ष करें: दोस्तो !  हमारे चारों ओर जनता के संघर्ष चल रहे हैं। कहीं यह संघर्ष अपने जीवन की बदहाली के खिलाफ है कहीं यह रोजगार के लिए। कहीं यह भूमि अधिग्रहण के खिलाफ तो कहीं यह श्रम कानूनों व ट्रेड यूनियन अधिकारों में बदलाव के खिलाफ है। संघर्ष महिलाओं पर बढ़ते अपराध के खिलाफ भी हैं।
            शासकों ने संघर्षों को कमजोर करने के लिए जनता के संगठित होकर संघर्ष करने के अधिकार पर हर ओर से हमला बोला है कानूनों में व परिस्थितियों में तमाम बदलाव करके इसे बहुत मुश्किल बना दिया है। अतः जनवादी अधिकारों के लिए संघर्ष महत्वपूर्ण कार्यभार बनता है
            जनता ने अधिकार अपने संघर्षों के दम पर हासिल किये हैं किसी ने यह भीख नहीं दी है। जनता के संघर्षों के विरासत बताती है कि जनता ने जुल्म व अन्याय के खिलाफ व अधिकारों के लिए लगातार संघर्ष किया है वह मंजिल की ओर बढ़ी है 
            इन गंभीर होती स्थितियों में ही क्रालोस अपना छठा सम्मेलन बरेली ( उत्तर प्रदेश ) में आयोजित कर रहा है।
             साथियो ! जनवादी अधिकारों के चुनौतीपूर्ण संघर्ष में आप सभी की भूमिका बनती है । हमारा आपसे आग्रह है कि इस दिशा में आप अपनी सक्रिय भूमिका तय करें। सम्मेलन के सफल आयोजन में संगठन का समर्थन व आर्थिक  सहयोग करें ।
इंकलाब जिंदाबाद !              क्रा.लो.स            

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