भारत पाक सैन्य टकराव और युद्ध विराम
22 अप्रैल को कश्मीर के पहलगाम में कथित आतंकी हमले में 28 लोग मारे गए। इसमें अधिकतर हिंदू पर्यटक थे। मारे जाने वालों में एक मुसलमान मजदूर भी था। हिंदू फासीवादियों और मीडिया ने इसे हिंदू बनाम मुसलमान आतंकवादी के रूप में प्रस्तुत किया और आम हिंदुओं के दिमाग में मुसलमानों को आतंकवादी होने और खतरे के रूप में प्रचारित किया गया।
इसके बाद देश भर में हिंदू राष्ट्र के ध्वजवाहकों ने आम मुसलमानों को जगह जगह अलगाव में धकेलने, मार पीट करने धमकी देने, कारोबार पर हमला करने की कार्रवाई की। जो बेहद घृणित और निंदनीय है।
मोदी शाह और इनकी अगुवाई वाली सरकार ने दावा किया कि इस आतंकी हमले को पाकिस्तान के आतंकी संगठनों ने अंजाम दिया।
मोदी शाह और सरकार का दावा था कि जम्मू कश्मीर में अनुच्छेद 370 की समाप्ति के बाद शांति क़ायम हो गई है और आतंकवाद समाप्त हो गया है। हकीकत ठीक इसके विपरीत है। इस घटना ने भी यह साबित कर दिया।
इस हमले के बाद हिंदू फासीवादी सरकार ने अंधराष्ट्रवादी युद्ध का उन्माद खड़ा किया। आर्मी, खुफिया विभाग के साथ बैठकों का सिलसिला और फिर मॉक ड्रिल की तैयारी। समूचे देश में क्रमशः सनसनी, असुरक्षा, नफरत और बदले की मानसिकता को तेजी से आगे बढ़ाया गया। हालत यह रही कि सभी विपक्षी पार्टियां सरकार की जुबान बोलने लगी। इस तरह जनता के एक ठीक ठाक हिस्से और विपक्ष को हिंदू फासीवादी
अपने एजेंडे पर गोलबंद करने में कामयाब रहे।
इस बीच 7 मई को ऑपरेशन सिंदूर के तहत रात को पाकिस्तान के कथित 9 आतंकी ठिकानों पर भारतीय सेना ने हमला करने और इसमें 100 आतंकियों के मरने का दावा किया। पाकिस्तानी सरकार ने दावा किया यह आम नागरिकों पर हमला था और इसमें 31 आम नागरिक मारे गए और कुछ घायल हुए है।
इसके बाद पाकिस्तानी सेना ने सीमा पर और ड्रोन आदि के जरिए हवाई हमले किए। इस तरह सैन्य टकराव की स्थिति बन गई। दोनों ओर से दावे हुए कि आम नागरिक आबादी पर हमला नहीं हुआ और सैन्य अड्डों पर हमले हुए। दोनों ने ही अपने देश के भीतर नागरिकों पर हमले के दावे किए। दोनों ही देशों के शासकों ने हमले में अपने देश के भीतर नुकसान न होने जबकि दूसरे देश को भारी नुकसान पहुंचाने के दावे किए।
अभी तीसरा ही दिन था कि अधिकांश लोग युद्ध की ओर बढ़ जाने का अनुमान लगा रहे थे तभी ट्रंप के द्वारा दोनों देशों के बीच युद्ध विराम होने की बात आई। और इसके बाद भारत की ओर से भी युद्ध विराम लागू होने की बात उजागर हुई।
इस स्थिति ने मोदी शाह और भाजपाइयों के लिए स्थिति बेहद असहज कर दी। वैसे भी, पिछले कुछ समय से अमेरिकी साम्राज्यवादी लगातार ही इनके लिए विकट स्थिति पैदा कर दे रहे है। अमरीकी साम्राज्यवाद के इस दखलंदाजी ने भारतीय शासकों खासकर मोदी शाह और इनकी वाली सरकार की हैसियत को बेनकाब कर दिया। ऐसी फजीहत की मोदी शाह की जोड़ी को उम्मीद नहीं थी।
एक ओर पाकिस्तानी शासकों की तैयारी उनके जवाबी सैन्य हमले दूसरी ओर साम्राज्यवादी हस्तक्षेप में भारतीय शासकों के लिए अलगाव की स्थिति बन गई। कहां तो मोदी और सरकार का आंकलन था कि पाकिस्तानी कथित आतंकी ठिकानों पर हमले के बाद पाकिस्तानी हुक्मरान चुप रहेंगे। इस तरह मोदी शाह और इनकी सरकार अमेरिकी इजरायली शासकों की ही पंक्ति में खड़ी हो जाएगी। इस तरह इतिहास में नाम दर्ज हो जाएगा। मगर सारा दांव उल्टा पड़ गया। कहां तो पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर पर कब्जे की बात, पाकिस्तान के टुकड़े करने की बात और कहां मिली ये जग हंसाई।
अब युद्ध विराम हो चुका है। मगर अंधराष्ट्वाद बना रहेगा और फिर इसी तरह की स्थिति या छद्म युद्ध की संभावना फिर भी बनी रहेगी। यह, दोनों ही देशों के शासकों के लिए अपने देश के भीतर जनता के असंतोष, संघर्ष से निपटने का तरीका भी है। पूंजीवाद का संकट इसमें कमजोर और ताकतवर देशों की स्थिति, प्रभुत्व की चाह युद्ध की ओर ले जाती है। शासकों के लिए युद्ध एक कारोबार भी बन जाता है। आम तौर पर आतंकवाद को भी पूंजीवादी सरकारें ही खड़ा करती हैं पालती पोसती हैं। या यह राज्य / पूंजीवादी सरकारों की दमन उत्पीड़न की प्रतिक्रिया से उपजता है।
जहां तक आम जनता का सवाल है उसके लिए युद्ध हर दृष्टि से तबाही बर्बादी लाने वाला होता है। युद्ध में सेना में मरने वाले भी जनता के ही बेटे बेटियां होती हैं। युद्ध के खर्चे का बोझ भी जनता के ही कंधे पर पड़ता है।
इसलिए आम जनता को युद्धों की मुसीबतों से तभी छुटकारा मिल सकता है जब अन्यायपूर्ण पूंजीवादी व्यवस्था की जगह समाजवादी व्यवस्था कायम हो।