भीड़ द्वारा हत्याएं और उसके समर्थक
अब तक त्रिपुरा से लेकर महाराष्ट्र तक भीड़ 27 लोगों की हत्याएं कर चुकी हैं। अब ये सिलसिला आगे बढ़ता ही जा रहा है। भाजपा के बहुमत से सत्तासीन होने के बाद ये घटनाएं बहुत तेजी से बढ़ती ही जा रही हैं। स्थिति यह पैदा कर दी गई है कि कोई कभी भी इनका शिकार हो सकता है।
दादरी में कुछ साल पहले अखलाक के घर से तलाशी लेने व गौमांस के आरोप में हत्या कर दी गई थी। उसके बाद यह संख्या अलग अलग मुद्दों के नाम से बढ़ती जा रही है। दादरी में हत्यारी भीड़ के कुछ लोगो का भाजपाइयों से सीधे सम्बन्ध था। गौरक्षा के नाम पर हो रही हत्याओं व मारपीट के लिए प्रत्यक्ष या परोक्ष तौर पर संघ परिवार व उसकी फ़ासीवादी राजनीति ही जिम्मेदार है।
भाजपा के मंत्री जयंत सिंह द्वारा हत्यारी भीड़ का फूल मालाओं से स्वागत करना व मिठाई खिलाना दिखलाता है कि असल में इनको भाजपा का खुला समर्थन हासिल है।झारखंड के रामगढ़ में गौरक्षक दल की हत्यारी भीड़ ने एक 55 साल के मुस्लिम की हत्या कर दी थी। इन्ही में से 11 को कोर्ट ने सजा सुनाई थी अभी ये जमानत पर आए ही थे कि केंद्रीय मंत्री जयंत सिंह इनका स्वागत करने वहां हाज़िर हो गए। इन 11 में बीजेपी के स्थानीय नेता नित्यानंद महतो, गौ-रक्षक समिति और बजरंग दल के कार्यकर्ता शामिल थे।भाजपाइयों के अन्य नेता भी कुछ अलग ढंग से इन्हें अपना समर्थन जाता चुके हैं।यह फ़ासीवादी ताकतों का इन्हें समर्थन ही है जो ऐसे फासिस्ट मनोवृत्ति वाली भीड़ को अगली हत्या या मारपीट की घटना को अंजाम देने के लिए प्रेरित करना है। और ये अपने कदम उस ओर बढ़ा लेते हैं।
विशिष्ट मामलों में भीड़ द्वारा नियम कानून से परे जो अपने नफरत व आक्रोश के हिसाब से अपराधी को दंडित करती है मार डालती है कि वजह यह भी होती है कि लंबे समय से अपराध अन्याय को झेलने हो और लंबे समय तक अपराधियों को कोई सजा न मिलने के चलते पुलिस व न्याय तंत्र से विश्वास खत्म हो जाने के चलते और फिर प्रतिक्रिया में अपराधी को सबक सिखाने की मानसिकता बन जाने से ये हमले होते हैं। लेकिन ऐसा बहुत कम ही होता है।
भीड़ द्वारा हत्याएं दुनिया में पहले भी हुई है। अमेरिका में 20 वीं सदी में भीड़ द्वारा हत्याओं को अन्जाम देने, फांसी पर लटका दिया जाता था। भीड़ द्वारा जो हत्याएं की जाती थी उनमें बड़ी संख्या में अफ्रीकी व अमेरिकी अश्वेत लोग होते थे। हमारे देश में भी कमजोर गरीब मेहनतकश ही इनका शिकार हो रहे हैं विशेषकर मुस्लिम और दलित।
मौजूदा वक्त में इंटरनेट के जरिये अफवाह फैलाकर फासिस्ट मनोवृत्ति वाले लॉगों को हत्या या किसी को सजा देने के लिए उकसाना व एक जगह पे एकजुट करना भी आसान हो गया है।
मोबलिंचिंग की घटनाएं, फासिस्ट संगठनों का फैलाव व इनका सम्बन्ध भी पूंजीवाद के संकट के साथ बढ़ता है नौकरी का संकट, तबाह बर्बाद होना अपनी जड़ों से उखड़ कर अन्यत्र पहुंचने को विवश होना, पुराने सामाजिक मूल्य मान्याताओं व पारिवारिक सम्बन्धों का तेजी से तबाही अन्य सामाजिक संकट आदि का गहराना।
शासक पूंजीपति वर्ग अपनी हितों के मद्देनज़र फासीवादियों को आगे बढ़ाता है। चूंकि ये फ़ासीवादी मनोवृत्ति वाली भीड़ यदि फासिस्टों से जुड़ी हुई नहीं हो तब भी ये फासिस्ट दस्तों की भूमिका आसानी से ग्रहण कर सकते हैं। यह फासीवादी जानते हैं। इसीलिए किसी भी प्रकार उनसे सम्बन्ध बनाये रखते हैं। इसीलिए जयंत सिंह से लेकर मोदी शाह तक सभी इन्हें ना नुकुर, आलोचना करते हुए समर्थन भी कर रहे हैं। हालांकि इनका एक बड़ा हिस्सा तो संघ परिवार की फ़ासीवादी राजनीति के तहत ही यह सब कर रहा है।
इसलिए आज जरूरी है कि मोबलिंचिंग की हर घटना का सख्ती से विरोध किया जाए। साथ ही पूंजीवाद की फ़ासीवादी राजनीति को बेनकाब किया जाए। फ़ासीवादी कदमों का दृढ़ता से विरोध किया जाए।
दादरी में कुछ साल पहले अखलाक के घर से तलाशी लेने व गौमांस के आरोप में हत्या कर दी गई थी। उसके बाद यह संख्या अलग अलग मुद्दों के नाम से बढ़ती जा रही है। दादरी में हत्यारी भीड़ के कुछ लोगो का भाजपाइयों से सीधे सम्बन्ध था। गौरक्षा के नाम पर हो रही हत्याओं व मारपीट के लिए प्रत्यक्ष या परोक्ष तौर पर संघ परिवार व उसकी फ़ासीवादी राजनीति ही जिम्मेदार है।
भाजपा के मंत्री जयंत सिंह द्वारा हत्यारी भीड़ का फूल मालाओं से स्वागत करना व मिठाई खिलाना दिखलाता है कि असल में इनको भाजपा का खुला समर्थन हासिल है।झारखंड के रामगढ़ में गौरक्षक दल की हत्यारी भीड़ ने एक 55 साल के मुस्लिम की हत्या कर दी थी। इन्ही में से 11 को कोर्ट ने सजा सुनाई थी अभी ये जमानत पर आए ही थे कि केंद्रीय मंत्री जयंत सिंह इनका स्वागत करने वहां हाज़िर हो गए। इन 11 में बीजेपी के स्थानीय नेता नित्यानंद महतो, गौ-रक्षक समिति और बजरंग दल के कार्यकर्ता शामिल थे।भाजपाइयों के अन्य नेता भी कुछ अलग ढंग से इन्हें अपना समर्थन जाता चुके हैं।यह फ़ासीवादी ताकतों का इन्हें समर्थन ही है जो ऐसे फासिस्ट मनोवृत्ति वाली भीड़ को अगली हत्या या मारपीट की घटना को अंजाम देने के लिए प्रेरित करना है। और ये अपने कदम उस ओर बढ़ा लेते हैं।
विशिष्ट मामलों में भीड़ द्वारा नियम कानून से परे जो अपने नफरत व आक्रोश के हिसाब से अपराधी को दंडित करती है मार डालती है कि वजह यह भी होती है कि लंबे समय से अपराध अन्याय को झेलने हो और लंबे समय तक अपराधियों को कोई सजा न मिलने के चलते पुलिस व न्याय तंत्र से विश्वास खत्म हो जाने के चलते और फिर प्रतिक्रिया में अपराधी को सबक सिखाने की मानसिकता बन जाने से ये हमले होते हैं। लेकिन ऐसा बहुत कम ही होता है।
भीड़ द्वारा हत्याएं दुनिया में पहले भी हुई है। अमेरिका में 20 वीं सदी में भीड़ द्वारा हत्याओं को अन्जाम देने, फांसी पर लटका दिया जाता था। भीड़ द्वारा जो हत्याएं की जाती थी उनमें बड़ी संख्या में अफ्रीकी व अमेरिकी अश्वेत लोग होते थे। हमारे देश में भी कमजोर गरीब मेहनतकश ही इनका शिकार हो रहे हैं विशेषकर मुस्लिम और दलित।
मौजूदा वक्त में इंटरनेट के जरिये अफवाह फैलाकर फासिस्ट मनोवृत्ति वाले लॉगों को हत्या या किसी को सजा देने के लिए उकसाना व एक जगह पे एकजुट करना भी आसान हो गया है।
मोबलिंचिंग की घटनाएं, फासिस्ट संगठनों का फैलाव व इनका सम्बन्ध भी पूंजीवाद के संकट के साथ बढ़ता है नौकरी का संकट, तबाह बर्बाद होना अपनी जड़ों से उखड़ कर अन्यत्र पहुंचने को विवश होना, पुराने सामाजिक मूल्य मान्याताओं व पारिवारिक सम्बन्धों का तेजी से तबाही अन्य सामाजिक संकट आदि का गहराना।
शासक पूंजीपति वर्ग अपनी हितों के मद्देनज़र फासीवादियों को आगे बढ़ाता है। चूंकि ये फ़ासीवादी मनोवृत्ति वाली भीड़ यदि फासिस्टों से जुड़ी हुई नहीं हो तब भी ये फासिस्ट दस्तों की भूमिका आसानी से ग्रहण कर सकते हैं। यह फासीवादी जानते हैं। इसीलिए किसी भी प्रकार उनसे सम्बन्ध बनाये रखते हैं। इसीलिए जयंत सिंह से लेकर मोदी शाह तक सभी इन्हें ना नुकुर, आलोचना करते हुए समर्थन भी कर रहे हैं। हालांकि इनका एक बड़ा हिस्सा तो संघ परिवार की फ़ासीवादी राजनीति के तहत ही यह सब कर रहा है।
इसलिए आज जरूरी है कि मोबलिंचिंग की हर घटना का सख्ती से विरोध किया जाए। साथ ही पूंजीवाद की फ़ासीवादी राजनीति को बेनकाब किया जाए। फ़ासीवादी कदमों का दृढ़ता से विरोध किया जाए।