2 सितम्बर 2015 की देशव्यापी
मज़दूर हड़ताल
पिछले
एक साल में मोदी सरकार देश के एकाधिकारी पूंजीपति घरानों के हित में
देश की मेहनतकश जनता पर खतरनाक हमला बोला है । मजदूर इस हमले के केंद्र में
हैं । आज तक संघर्ष और कुर्बानी से भारत के मजदूर वर्ग ने जो
भी अधिकार हासिल किए थे, श्रम कानूनों में लगातार मजदूर विरोधी बदलाव लागू करके पूंजीपतियों
की चाहत के अनुसार उसे एक के बाद एक खत्म किया जा रहा है। ‘सुधार’ के बहाने मोदी सरकार
श्रम कानून का पूरा ढांचा ही खत्म कर कर रही है। सरकार मौजूदा 44 श्रम कानूनों को
4 ‘श्रम संहिताओं’ में बदल रही है। और इस बहाने मज़दूर हित में
हासिल किए गए ढ़ेरों कानून खत्म हो जायेंगे।
पूँजीपतियों के हित में सरकार का मकसद है –
1- ट्रेड यूनियन खत्म करना, हड़ताल करने का अधिकार
छीन लेना।
2- श्रम कानून के अन्दर आने वाले संगठित क्षेत्र
के दायरा को काफी सीमित कर देना, ठेकाकरण को कानूनी मान्यता देना।
3- लेबर कोर्ट के अधिकार खत्म कर कानूनी लड़ाई
के रास्ते भी बन्द करना।
4- ‘हायर एंड फायर’ नीति से मनमर्जी रखने-निकालने
की खुली छूट देना।
5- काम का बोझ और ज्यादा बढ़ाना, स्थाई नौकरी के
रास्ते बन्द कर देना।
6- उत्पादन का ज्यादातर काम मामूली वेतन पर ‘अप्रेंटिस’
से लेना।
7- भारत के महत्वपूर्ण औद्योगिक क्षेत्रों के मजदूरों
को श्रम कानून के अधिकारों से बाहर कर देना।
9- बीमा, बैंक, रेल, डाक, रक्षा, बिजली, रोडवेज
आदि जनता की मेहनत से खड़े सार्वजनिक क्षेत्र को देशी-विदेशी मुनाफाखोरों के हवाले
कर देना।
केन्द्रीय
श्रम संगठनों/महासंघों/कर्मचारी संगठनों के आह्वान पर दो सितंबर को एकदिवसीय देशव्यापी
हड़ताल का आयोजन किया गया । जिसमें निम्न मागें रखी गई थी ।
1- न्यूनतम वेतन कानून सबके लिए एक समान किया जाए।
न्यूनतम वेतन 15,000 रु. प्रति माह हो और इसे मूल्य सूचकांक से जोड़ा जाये।
2- स्थाई/बारहमासी कामों के लिए ठेका प्रथा बन्द
हो। ठेका श्रमिकों को समान काम के लिए समान वेतन, भत्ते व हितलाभ दिया जाये।
3- बोनस एवं प्रावीडेण्ट फण्ड की अदायगी पर से
सभी बाध्यता हटाई जाये, ग्रेजुएटी में बढ़ोत्तरी हो।
4- सबके लिए पेंशन हो। नया पेंशन कानून वापस हो
व पुरानी नीति बहाल हो।
5- महँगाई पर रोक लगाने के लिए ठोस योजना बनाई
जाये।
6- श्रम कानूनों को सख्ती से लागू किया जाये। श्रम
कानूनों में मज़दूर विरोधी प्रस्तावित सभी संशोधनों को वापस लिया जाये।
7- असंगठित क्षेत्र के मज़दूरों के लिये सर्वव्यापी
सामाजिक सुरक्षा कानून बनाया जाये और एक राष्ट्रीय सामाजिक सुरक्षा कोष का निर्माण
किया जाये।
8- रोजगार सृजन के लिए ठोस कदम उठाये जायें।
9- केन्द्र व राज्य की सार्वजनिक इकाइयों के विनिवेश
पर रोक लगाई जाये।
10- टेड यूनियन का पंजीकरण 45 दिनों की सीमा में
अनिवार्य किया जाये।
11- आंगनबाड़ी, मिड-डे मील, आशा, रोलगार सेवक,
शिक्षामित्र आदि को मानदेय की जगह न्यूनतम वेतन दिया जाये व राज्य कर्मचारी घोषित किया
जाये।
दो सितंबर को हड़ताल की गई । जैसा कि कांग्रेस के जमाने में भी होता था कि
कॉंग्रेस का ट्रेड यूनियन सेंटर अपने को कई दफा हड़ताल से अलग कर लेता था । ठीक इसी
तर्ज पर एक तरफ संयुक्त देशव्यापी हड़ताल का आह्वान किया गया जिसमें संघ या भाजपा
का ट्रेड यूनियन सेंटर भी शामिल था । लेकिन ठीक हड़ताल से कुछ समय पहले भारतीय
मजदूर संघ ने अपने को अलग कर लिया । निश्चित तौर पर भारतीय मजदूर संघ का यह रवैया
शर्मनाक था । उसने खुद को इस प्रक्रिया में बेनकाब भी किया ।
एक तरफ केंद्र सरकार इस तरह यह संदेश देने की इस तरह कोशिश करने लगी कि
उसने हड़ताल को कमजोर कर दिया तो दूसरी तरफ हड़ताल के अगले दिन कई हज़ार करोड़ रुपए के
नुकसान की बात कहकर हड़ताल के विरोध में माहौल बनाने की कोशिश की गई ।
संगठित क्षेत्र के मजदूरों पर बढ़ते तेज
आर्थिक व राजनीतिक हमले के चलते पूंजीवादी पार्टियों द्वारा खड़े किए गए ट्रेड
यूनियनों की ये मजबूरी बन जाती है कि वह हड़ताल में आयें या हड़ताल करें । अब यह तेज
होते हमले के सम्मुख अपने आधार को बचाने की चुनौती भी है ।
नव उदारवाद के दौर में और वह भी आज के
दुनिया के मंदी के हालत के दौर में जब कि कॉर्पोरेट घराने फासीवादी ताकतों को आगे
कर रहा हो तब मजदूर वर्ग समेत मेहनतकश जनता के जनवादी अधिकारों की रक्षा व उसका
विस्तार केवल उसके क्रांतिकारी विचारों व संघर्षों के दम पर ही संभव हैं । लेकिन
इसके बावजूद मौजूदा 2 सितंबर की हड़ताल ने मोदी सरकार को अपनी एकजुटता की झलक तो
दिखला ही दी ।