Saturday, 18 March 2017

धुर प्रतिक्रियावादी एकाधिकारी पूंजी की जीत

 

धुर प्रतिक्रियावादी एकाधिकारी पूंजी की जीत


अंततः नोटबंदी के राजनीतिक स्टंट के जरिये अपने विरोधियों को चित करने की मोदी की मंशा यू पी जीत के साथ पूरी हो गयी। उत्तराखंड व यू पी में लगभग तीन चौथाई सीट हासिल करने के बावजूद मोदी का कॉन्ग्रेस मुक्त भारत का सपना अधूरा रह गया। शायद मोदी जी भूल गए कि जिन
ताकतों ने उन्हे पाल पोस कर दिल्ली के तख़्त पर बिठाया है वही ताकते कोंग्रेस की पीठ पर भी हाथ रखे हुए है।  

     पंजाब में कॉन्ग्रेस तीन चौथाई सीटें हासिल की तो मणिपुर व गोवा में सबसे बड़ी पार्टी रही उत्तराखंड में भा ज पा की वोट % 54 से 46 रह गयी (2014 की तुलना में ) जबकि 2012 की तुलना में लगभग 13 % बढ़ गया। यू पी में 2014 की तुलना में भाजपा का वोट % 42 से 40 के लगभग हो गया। जबकि 2012 के असेम्बली चुनाव की तुलना में 25 % बढ़ गए। पंजाब में भा ज पा का वोट शेयर 2014 के लगभग 9 % से गिरकर 5.4 % ही गया जबकि कोंग्रेस के 2014 के 33 % से बढ़कर 39 % ही गए। गोवा में भाजपा के वोट शेयर 2014 के 53 % से घटकर 33 % हो गए । कॉन्ग्रेस के 37 % से घटकर लगभग 28 % रह गए। यू पी व उत्तराखंड में मिली जीत को ही देश के लिए जनादेश के रूप में प्रचारित किया रहा है। यू पी में फासीवादी ताकतों के लिए सब कुछ दांव पर लगा था । 
      मीडिया की मोदी भक्ति के बावजूद माहौल पक्ष में नहीं था। इसके बावजूद इतने बड़े स्तर पर सीटों का मिलना इस आरोप में संदेह की पर्याप्त गुंजाइश छोड़ देता है कि ई वी एम में गड़बड़ी की गयी हो । यदि ऐसा नहीं है तो फिर दूसरे समीकरण जिसके लिए मोदी अमित शाह ने अपनी पूरी ताकत लगाई थी वह सफल हो गयी यानि जाति के भीतर सूक्ष्म स्तर के बंटवारे को इस्तेमाल करना , सांप्रदायिक ध्रुवीकरण को तेज करना, मीडिया में चौतरफा मोदी प्रचार, पूरे मंत्री मंड़ल को चुनाव में झौंक देना आदि।   
      मोदी की यू पी जीत के साथ अम्बानी अदानी जैसी प्रतिक्रियावादी एकाधिकारी पूंजी का वर्चस्व अब और बढ़ने की ओर है। दूसरी ओर फासीवादी ताकतों के हमले जनवादी प्रगतिशील व क्रांतिकारी ताकतों पर बढ़ने है। मज़दूर मेहनतकश अवाम समेत छोटी मझोली पूंजी की तबाही बर्बादी आने वाले वक्त में और तेज होनी है

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