Friday, 28 February 2020

नागरिकता(संशोधन) कानून, एन.आर.सी. व एन.पी.आर. पर


   नागरिकता(संशोधन) कानून, एन.आर.सी. व एन.पी.आर. पर
    मोदी सरकार ने नागरिकता कानून में संशोधन कर दिया। अब धर्म के आधार पर नागरिकता पड़ोसी मुल्क के पीड़ित अल्पसंख्यकों को दी जाएगी। यह केवल हिंदू, सिख जैन, पारसी, इसाई व बौद्ध धर्म के लोगों के लिए है।
       साफ है! कानून धर्म के आधार पर नागरिकता देने की बात करता है। यही नहीं ! सरकार के मंत्रियों ने बार-बार कहा कि एन आर सी पूरे देश में होगी। इसलिए संशोधित नागरिकता कानून व एन.आर.सी का चौतरफा विरोध हो रहा है। असम से लेकर दिल्ली व यू पी से लेकर पश्चिम बंगाल तक ।
      विरोध देशव्यापी है। सरकार ने जनसंघर्ष का बर्बर दमन किया। हजारों लोग गिरफ्तार हैं। इन पर संगीन मुकदमे दर्ज हुए हैं। 25-30 लोग मारे गए हैं। संघर्ष व दमनचक्र जारी हैं। जो प्रदर्शनकारी पीड़ित हैं। पुलिस की बर्बर हिंसा व जुल्म के शिकार हुए हैं। अब उन्हीं को बदनाम करने का, अपराधी बताने का अभियान शुरू हो चुका है। सरकार की बर्बर हिंसा, लम्पट तत्वों के हमलों व दमन चक्र पर खामोशी है। इसे जायज बताया जा रहा है। वक़्त बर्बर अंग्रेजी राज की याद दिला रहा है तब देश की आज़ादी के लिए लड़ने वालों को 'आतंकवादी' 'अपराधी' कहा जाता था।
         यह ऐसा वक़्त है जब जनता को भारी राहत की जरूरत थी। बढ़ती महंगाई, लाखों मज़दूरों की छंटनी, कर्मचारियों पर छंटनी की लटकती तलवार, भारी बेरोजगारी, छोटे कारोबारियों-दुकानदारों की खस्ता हालत, महिलाओं के खिलाफ बढ़ती यौन हिंसा! इन सबसे जनता त्रस्त थी। छात्र, किसान,कर्मचारी, मज़दूर, महिलाएं-आदिवासी सभी संघर्ष के मैदान में थे। सब राहत चाह रहे थे। मगर हुआ क्या ? राहत नही मिली। हमें मिला- 'नागरिकता कानून' ! विरोध करने पर बर्बर दमन! खौफ-दहशत कायम करने की भरपूर कोशिश !
    हकीकत यह है कि पड़ोसी मुल्क के अल्पसंख्यक पीड़ितों से इन्हें कोई हमदर्दी नहीं है। यह सिर्फ इनके फासीवादी एजेंडे का दांव है। वरना तो कानून सालों पुराना बना ही था कि पड़ोसी मुल्क में हिंसा, युद्ध से पीड़ित लोग भारत आ सकते हैं। शरण पा सकते हैं। कुछ सालों बाद नागरिक बन सकते हैं। यह धर्म के नाम पर लोगों को बांटता नहीं था।
         इन्हें बहुत डर लगता है! ये घबराते हैं!  यह कहने में कि जो हिन्दू हैं वे सबसे पहले इंसान है । वे मज़दूर हैं छात्र हैं कर्मचारी हैं मेहनतकश हैं। जो मुस्लिम है वे भी इंसान हैं वे भी मज़दूर हैं मेहनतकश हैं। ये जो मज़दूर मेहनतकश इंसान हैं। ये करोड़ों करोड़ हैं। ये करोड़ों करोड़ मज़दूर मेहनतकश एक हो गए तो फिर शासक कहां होंगे ? इनका खुद क्या होगा ? ये लोग यह जानते हैं समझते हैं।  इसीलिए ये तीन तलाक़, कश्मीर, राम मंदिर और फिर नागरिकता कानून लाते हैं।
    मोदी सरकार का यह कानून हिटलर की याद दिलाता है। हिटलर ने भी यहूदी विरोधी न्यूनबर्ग कानून बनाया था। फिर वहां जो कुछ भी हुआ। वह इतिहास में दर्ज है। इनका चाल चलन भी ऐसा ही है। पहले दूसरे धर्म के लोगों के खिलाफ सालों साल नफरत फैलाओ, अपने धर्म के लोगों को अपनी हिंसक भीड़ में बदल दो, इतिहास से छेड़छाड़ करो, उन्माद फैलाओ, इन्हें निशाना बनाओ, हमले करो फिर आतंकी तानाशाही कायम कर दो। आज यही देश में हो रहा है।
       यह अजीब है ! कि जिन्हें अपने देश की गरीब मेहनतकश जनता की कोई परवाह नहीं है। जो कर्मचारियों, छात्रों, किसानों, महिलाओं व मज़दूरों के आंदोलन का बर्बर दमन करते रहें हो। जिसमें अधिकांश हिंदू ही हैं। वे ही लोग पड़ोसी मुल्कों के पीड़ित हिन्दूओं से हमदर्दी जता रहे हैं !   
           एक तरफ देश में गहराता आर्थिक संकट है। मज़दूर मेहनतकशों की तबाही बर्बादी है। इसके खिलाफ उमड़ते आंदोलन हैं। दूसरी तरफ है इनका घृणित व घोर दमन ! जनता के जीवन की तबाही बर्बादी की कीमत पर अम्बानी-अदाणी जैसे कॉरपोरेट घरानों का लगातार बढ़ता मुनाफा। इस 'हमदर्दी' की मूल वजह यहीं हैं। इनकी 'चिंता' का असल रहस्य यहीं छुपा है। इन्हें सरेआम झूठ बोलने से भी गुरेज नहीं है।
        देश के मुखिया ने सरेआम तथ्यों से इंकार कर दिया। कहा कि एन.आर.सी की कोई चर्चा ही नहीं हुई। कि देश में कोई डिटेन्सन सेंटर (एक प्रकार की जेल) नहीं हैं। हकीकत क्या है ?  सरकार के मंत्री कई बार कह चुके हैं कि पहले नागरिकता कानून आएगा। फिर एन आर सी लागू होकर रहेगी। कि असम में 6 डिटेंसन सेंटर हैँ जहां हज़ार से ज्यादा लोग हैं जो खुद की नागरिकता साबित नही कर पाए।
       यह बात सही है कि अभी एन.आर.सी. केवल असम में हुआ है। देश में लागू नहीं हुआ है। मगर देर सबेर इसे लागू करने का इनका इरादा है। उमड़ते जनसंघर्षों से अभी इन्होंने कदम पीछे खींच लिए हैं। मगर अब इन्होंने एन.पी.आर. शुरू कर दिया है यह एन.आर.सी की ही दिशा में अगला कदम है।
     एन पी आर के जरिये व्यक्तिगत जानकारी घर-घर जाकर मांगी जाएगी। इन जानकारी पर संदेह जताकर आम नागरिक को पहले 'संदिग्थ नागरिक' की श्रेणी में डाल दिया जाएगा। फिर 'संदिग्थ' की श्रेणी में डाले गये व्यक्ति से नागरिकता के सबूत मांगे जाएंगे। मामला विदेशी ट्रिब्यूनल में जायेगा। नागरिकता के सबूत जुटाना बहुत मुश्किल हो जाएगा। अभी नागरिकता के मापदंड क्या होंगे? यह भी अस्पष्ट है। असम के कई मामले इस बात के गवाह हैं। यहां जो नागरिकता साबित नहीं कर पाएंगे वे अपने ही देश घुसपैठिया या शरणार्थी हो जाएंगे।
       असम में क्या हुआ था ? 6 साल में एन.आर. सी पूरी हुई। 19 लाख लोग अपने ही देश में घुसपैठिये हो गए, शरणार्थी बना दिये गये। इन 19 लाख में अधिकांश 'हिन्दू बंगाली' हैं। ऐसे में पश्चिम बंगाल के चुनाव भी एक वजह है कि तुरंत यह धर्म के नाम पर नागरिकता कानून लाया गया। ताकि चुनाव जीता जा सके। यदि यह देश भर में लागू होता है तो करोड़ो लोग नागरिकता से बाहर हो जाएंगे। क्योंकि आधार, वोटर कार्ड नागरिकता होने का सबूत नहीं है। सरकार कहती है कि ये तो कथित घुसपैठियों ने भी बनवा लिए हैं। 2-3 पीढी पुराने दस्तावेज खंगालने होंगे। तब तय मानिये ! करोड़ों लोग हिन्दू-मुस्लिम या अन्य खुद को नागरिक साबित नहीं कर पाएंगे। यह सब मज़दूर मेहनतकश जनता ही होगी। इस तरह अपने ही देश में लोग घुसपैठिये हो जायेंगे, शरणार्थी बना दिये जायेंगे। आज के शासकों की यही मंशा हैं यही इनका इरादा है।
          जिस जनता ने देश का निर्माण किया है। अपने खून पसीने से इसे सींचा है। आज़ादी के संघर्षों में अकूत कुर्बानियां दी हैं। संविधान में नागरिक होने के अधिकार को खून बहाकर हासिल किया है। उसी जनता पर 'घुसपैठिया' होने का संदेह किया जाता है। उसे बिना कहे 'अपराधी' मान लिया जाता है। फिर उनसे नागरिकता का 'सबूत' मांगा जाता है।
         दूसरी ओर पूंजी के मालिकों के लिए लाल कालीन बिछाई जाती हैं। पूंजी व पूंजी के मालिकों को देश के कोने-कोने में घुसपैठ करने की आज़ादी होती है। लूट खसोट मचाकर भाग जाने की खुली छूट होती है। कौन है जो अब भी भोपाल गैस कांड (1984) को नहीं जानता ! कि जब हज़ारों लोगों के हत्यारे अमेरिकी पूंजीपति एंडरसन को हमारे शासकों ने बाहर भगाने में पूरी मदद की थी।
       यदि देश में 'घुसपैठिये' हैं तो यह किसका दोष है? क्या जनता का ! क्या इसके लिए रोज़ी-रोटी-महंगाई-बीमारी से त्रस्त जनता को हैरान परेशान किया जायेगा ?  इस सबके लिए देश के शासक जिम्मेदार हैं। इनका शासन प्रशासन जिम्मेदार है।       
       आखिर ऐसा क्यों है ? कि रोज़ी- रोटी की तलाश में देश के एक कोने से दूसरे कोने जाने वाले मज़दूर मेहनतकशों को 'दुश्मन' बताया जाता है। 'घुसपैठिया' 'दीमक' कहा जाता है।  जरा याद कीजिये! भारत के लाखों मज़दूर मेहनकश दुबई, कुवैत से लेकर अमेरिका जैसे देशों में हैं ! क्या ये 'घुसपैठिये' हैं ? क्या ये 'दीमक' हैं ? नहीं ! इन्हें 'दीमक' 'घुसपैठिया' वही कह सकते हैं जिनकी आत्मा पूंजी की एजेंट हैं। जो बड़ी-बड़ी पूंजी के मालिकों के चरणों में लोट-पोट हैं। जिनकी ज़िंदगी लूट, शोषण, अन्याय पर ही टिकी है और इसे किसी भी कीमत पर बरकरार रखना चाहते हैं।
      आज बड़ी-बड़ी पूंजी के मालिक जनता पर अपनी मनमर्जी थोप देना चाहते हैं। अपने मुनाफे को किसी भी कीमत बढ़ाते जाना चाहते हैं। इसलिये जनता को पूरी तरह निचोड़ देने को ये बेचैन हैं। मगर ये डरते हैं। जानते हैं कि यह भयानक लूट-खसोट जनता के गुस्से को देशव्यापी संघर्षों में बदल सकता है।  इसलिए एक वक्त बाद इन्होंने कांग्रेस को पीछे कर दिया। मोदी-शाह व भाजपा संघ को आगे कर दिया। अपनी मीडिया व पैसे के चमत्कार से इन्हें सत्ता तक पहुंचा दिया। अब इनकी तैयारी खुल कर खेलने की है। यहां यही "देश" हैं यही "राष्ट्र" है 'राष्ट्रवाद',  'देशभक्ति' भी इन्हीं से है। मोदी-शाह के हिन्दू फासीवादी एजेन्डा इन्हीं के लिए है। इनके जरिये शासक खौफ व दहशत कायम कर देना चाहते हैं। विरोध को कुचल देना चाहते हैं। आतंकी तानाशाही कायम कर देना चाहते हैं। इसके निशाने पर पूरी मज़दूर मेहनतश जनता है।
जहां तक अन्य पूंजीपरस्त पार्टियों का सवाल है। कांग्रेस, सपा, बसपा ,आप जैसी पार्टियां भी भ्रष्ट हैं। जनविरोधी हैं। ये हमारी मददगार नहीं हो सकती। इनका विरोध प्रदर्शन अपना वोट बचाने के लिए है। वैसे भी कांग्रेस व भाजपा दोनों बड़े पूंजीवादी घरानों की हैं। 
      जरूरत है कि  मज़दूर मेहनतकश जनता को 'घुसपैठिया' 'शरणार्थी' बनाये जाने की साजिश का विरोध किया जाय। यही नहीं पूंजी के मालिकों व इनकी सरकार के हर फासीवादी एजेन्डे का पुरजोर विरोध किया जाय।

काकोरी के शहीद

                   काकोरी के शहीद

     एक दौर था जब देश अंग्रेजों का गुलाम था । तब जनता को 'आज़ादी' से बहुत प्यार था! गुलामी, गैरबराबरी से घोर नफरत! आज़ादी, बराबरी, अधिकार, इंसानियत इसके लिए जनता संघर्ष कर रही थी, लड़ रही थी और शहीद हो रही थी। इन्हीं में काकोरी के शहीद भी थे।   
      काकोरी के शहीदों का संगठन था -हिंदुस्तान गणतांत्रिक संघ (एच.आर.ए)। अशफाक़ उल्ला खां, राम प्रसाद बिस्मिल, राजिंद्र लाहिड़ी व रोशन सिंह इसी संघ के सदस्य थे। इनका मकसद था- आज़ाद, सेक्युकर, संघीय, गणतांत्रिक भारत।        
       अंग्रेज सरकार इन संघर्षों को 'षड्यंत्र' कहती थी। अशफ़ाक़-बिस्मिल-लाहिड़ी व रोशन सिंह पर भी 'काकोरी षड्यंत्र' का आरोप लगा! अंग्रेज सरकार ने इन्हें गिरफ्तार कर लिया । 1927 के दिसम्बर महीने में फांसी दे दी। यह साल जलियावाला बाग के शहीदों का भी 100 वां साल है जब दमनकारी कानून 'रॉलेट एक्ट' के खिलाफ हिन्दू-मुस्लिम-सिक्ख जनता ने एकजुट होकर विरोध किया था ! जिस पर चारों ओर से गोलियां चली थी! सैकड़ों लोग मार दिए गए थे।
      हमारी प्रेरणा काकोरी के शहीद हैं! अशफ़ाक़-बिस्मिल-लाहिड़ी व रोशन सिंह हैं! जलियावाला बाग के शहीद हिन्दू-मुस्लिम-सिक्ख हैं ! जिन्होंने हिन्दू-मुस्लिम के रूप में खुद को नहीं देखा। खुद को शोषित-उत्पीड़ित, गुलाम मेहनतकश इंसान के बतौर देखा था।
       ऐसे ही अनगिनत लोगों ने कुर्बानियां दी तब यह देश आजाद हुआ था। यह आज़ादी 'आधी-अधूरी' थी। जैसा कि शहीद भगत सिंह ने कहा था। अंग्रेज पूंजीवादी शासकों से तो हमें आज़ादी मिल गई मगर अब देशी पूंजीपति-जमींदार शासक बन गए, शोषक-उत्पीड़क बन बैठे।
      आज हालात क्या है ? तस्वीर बिल्कुल साफ-साफ है आज नफरत ही की बातें हो रही है। आज़ादी, अधिकारों की बात करते छात्रों से नफरत, दलितों से नफरत, महिलाओं की बराबरी के लिए आवाज उठाने से नफरत, मुस्लिनों से नफरत ! नफरत सबके जेहन में ठूंसी जा रही है। 'बांटो और राज करो' यही आज  खुलकर हो रहा है।
         हाल यह है कि आज देश आर्थिक संकट में है ! 10 लाख से ज्यादा मज़दूर नौकरी से निकाले जा चुके हैं। हज़ारों की तादाद में सरकारी कर्मचारियों की छंटनी होनी हैं। 45 सालों बाद देश में सबसे ज्यादा बेरोजगारी है! इधर छोटे कारोबारी परेशान हैं दुकानदार ग्राहकों के इंतजार में हैं। बाजार में सामान भरा पड़ा है मगर खरीददार गायब हैं !
         इसका जिम्मेदार कौन है ? जाहिर है ये पूंजीपति इनकी राजनीतिक पार्टियां,  नोटबंदी, जी एस टी जैसे इनके तुगलकी फरमान, और पूंजीवादी व्यवस्था !! मगर दूसरी ओर अम्बानी-अदाणी जैसों की पूंजी व दौलत इस संकट में भी खूब बड़ी है। दोनों देश के टॉप पूंजीपति बन चुके हैं।
       आज कौन है जो नहीं जानता? कि ये अम्बानी-अदाणी जैसे पूंजीपति ही हैं जो मोदी- शाह की ताकत हैं।  यही जो पहले कांग्रेस के साथ थे मगर आज मोदी-शाह के साथ हैं। हर कोई आज यह जानता है कि इनके मुनाफे को तेजी से बढ़ाने के लिये सरकार जनता के जीवन स्तर को और नीचे गिरा रही है। मज़दूर कर्मचारी विरोधी व जनविरोधी कानून तेजी से बना रही है।    
      ऐसा नहीं कि इसके खिलाफ चुप्पी हो। विरोध जारी है। एक ओर मज़दूर कारखानों में मालिकों व सरकार से लड़ रहे हैं। कर्मचारी राजधानियों में आंदोलन करते हैं। दूसरी ओर छात्र-नौजवान कॉलेजों में बढ़ती भारी फीस के खिलाफ आवाज उठा रहे हैं, किसान सड़कों पर उमड़ आते हैं! सब कुटते हैं पिटते हैं फर्जी मुकदमे झेलते हैं ! खबरों में इनकी कोई जगह नहीं। आती है तो नीचे पट्टी पर सरकती हुई सी खबर !!
        इन संघर्षों से सरकार कैसे निपटे ? तबाही-बर्बादी से कल सड़कों पर जनसैलाब उमड़ आये तो फिर क्या हो ? जैसा मिश्र, फ्रांस, लेबनॉन, ईरान, इराक में हो रहा है। इसीलिये देश में बड़ी बड़ी पूंजी के मालिकों ने हिन्दू फासीवादी ताकतों को सत्ता पर बिठाया है। इनके जरिए ये 'आतंकी तानाशाही' कायम कर देना चाहते हैं ताकि जनता के विरोध, संघर्ष, अधिकारों की हर आवाज को कुचल दिया जाय।
        सत्ता पर बैठे ये फासीवादी हिटलर-मुसोलिनी की ही तरह हैं। फासीवादी हिटलर व उसकी पार्टी ने 'जर्मन आर्यन राष्ट्र' का नारा दिया था, यहूदियों के खिलाफ नफरत, उन्माद पैदा किया था। फिर बड़ी-बड़ी पूंजी के मालिकों की आतंकी तानाशाही' कायम कर दी थी।       
       यही खतरा हमारे देश में भी बिल्कुल सामने है। यहां यह सब कुछ 'हिन्दू राष्ट्र' के नाम पर हो रहा है। नफरत भरी राजनीति जनता के दिमाग में ठूंसी जा रही है। समस्या की वजह लम्बे समय से ही मुस्लिम भी बताए जाते रहे हैं! इसीलिए फिर ऐसे मुद्दे लाये जाते है जिनसे यह खाई और चौड़ी हो, नफरत और गहरी हो। सत्ता पर बैठी फासीवादी ताकतें और ज्यादा मजबूत हों। तीन तलाक, राम मंदिर, 370, एन.आर.सी.अब धर्म के आधार पर नागरिकता सशोधन बिल। इन सबके जरिये यह हो रहा है।!
     हकीकत यह है कि इस फासीवादी राजनीति के निशाने पर देश के मज़दूर हैं किसान हैं कर्मचारी हैं छात्र-नौजवान हैं मेहनतकश महिलाएं हैं छोटे कारोबारी व दुकानदार हैं।
       मगर हो क्या रहा है ? हम खुद को शोषित-उत्पीड़ित नागरिक के बतौर नहीं देख रहे, मज़दूर मेहनतकश इंसान के रूप में नहीं देख रहे हैं बल्कि 'हिन्दू-मुस्लिम' के रूप में देख रहे हैं। फिर सरकार जब एक धर्म विशेष के लोगों को निशाने पर लेती है हमला करती है तो दूसरे धर्म विशेष के लोगों के कलेजे को ठंडक मिलती हैं। इस तरह वे सरकार के हथियार बन जाते हैं, एक मज़दूर ,कर्मचारी, दुकानदार, नागरिक के रूप में अपने ही अधिकारों को लात मार रहे होते हैं।
       इस तरह बेहद आसानी से हमारे जनवादी अधिकारों, संवैधानिक अधिकारों को खोखला कर दिया जाता है। संविधान को व्यवहार में खोखला बना दिया जाता है। जो लोग इसे समझ रहे हैं इसके खिलाफ आवाज उठा रहे हैं उन्हें अरबन नक्सल बताया जाता है देशविरोधी बताया जाता है।
अब एन.आर.सी देश भर में लागू करने की बात हो रही है। असम में क्या हुआ ? एन.आर.सी प्रक्रिया असम में हुई। हज़ारों करोड़ रुपये खर्च हुए। खुद को नागरिक साबित करने के लिए लोगों ने दर दर की खाक छानी। कुछ लोग सदमे में मर गए। अन्ततः 19 लाख लोगों की 'नागरिकता' खत्म हो गई। लाखों लोग बूढ़े, बच्चे, महिलाएं व पुरुष जो मेहनतकश इंसान हैं वे अचानक 'घुसपैठिये' हो गए ! 'दीमक' हो गये। ये लोग अपने ही देश में 'देशविहीन' हो गए 'नागरिकताविहीन' हो गये। इसमें हिन्दू-मुस्लिम दोनों ही हैं। 3000 लोग यातना केम्प में हैं। जिसमें 29 की रहस्यमय मौत हो चुकी है। यही अब देश भर में होना है। कहा जा रहा है कि 'हिंदुओं' को दिक्कत नहीं होगी। असल में यह जनता को अलग-थलग करके निपटा देने की महज साजिश है।
      यह कैसी घृणित, घटिया व नफरत भरी नज़र है जिन्हें गरीब मज़दूर मेहनतकश इंसान 'दीमक' नज़र आते हैं। ये विदेशों में दर-दर पूंजी की भीख मांग रहे हैं विदेशी पूंजी व पूंजी के मालिकों के लिए लाल कालीन बिछा रहे हैं यहां नफरत नहीं है यहां हिन्दू-मुस्लिम-ईसाई नहीं है पूंजी का मालिक कोई भी हो क्या फर्क है क्योकिं वह ताकतवर है सरकार उसी की दया पर है।
        मुट्ठी भर पूंजीपति जो परजीवी हैं जोंक हैं सब कुछ इनके हाथों में हैं नेता इनके, पार्टियां इनकी, देश के संसाधन इनके। सारे अधिकार इनके ही है। आज ये मोदी -शाह के जरिये अपने घृणित मंसूबे आगे बढ़ा रहे हैं। ये मेहनतकश नागरिकों को जानवरों की तरह कभी इधर तो कभी उधर हांक रहे हैं। अधिकारहीन बना रहे हैं।
      जो सोचते हैं कि कांग्रेस, आप या कोई और पूंजीवादी पार्टी इनके नेता इस संकट से बाहर निकाल लेगें ! तो वो गलत सोचते हैं। ये सारी पार्टियां पूंजीपतियों की ही हैं। इनके बीच केवल सत्ता के लिए संघर्ष है! ये भी जन विरोधी व भ्रष्ट हैं।  
     देश के असली निर्माता मेहनतकश नागरिक हैं चाहे हिन्दू हों या मुस्लिम! ये करोड़ों-करोड़ हैं। वे सबसे पहले मज़दूर हैं छात्र हैं किसान है कर्मचारी हैं छोटे-छोटे कारोबारी हैं दुकानदार हैं। रोजी-रोटी के बिना जीवन कहां? इसलिए अधिकार छीने जाने, कमजोर किये जाने की हर साजिश के खिलाफ आवाज बुलंद करनी होगी। हमें हर उस चीज के खिलाफ आवाज उठानी होगी जो हमें बांटती है हमारी एकता को कमजोर करती हैं संघर्ष को कमजोर करती है, संवैधानिक अधिकारों को खोखला बनाती है।
        काकोरी के शहीदों को हमारी यही सच्ची श्रद्धांजली होगी। शहीद भगत सिंह ने 'समाजवाद' की जो राह बताई थी अन्ततः उस दिशा में बढ़ा जाय तभी ऐसे संकटों से मुक्ति मिल सकती है।

चुनाव की आड़ में बिहार में नागरिकता परीक्षण (एन आर सी)

      चुनाव की आड़ में बिहार में नागरिकता परीक्षण (एन आर सी)       बिहार चुनाव में मोदी सरकार अपने फासीवादी एजेंडे को चुनाव आयोग के जरिए आगे...