Friday, 28 February 2020

नागरिकता(संशोधन) कानून, एन.आर.सी. व एन.पी.आर. पर


   नागरिकता(संशोधन) कानून, एन.आर.सी. व एन.पी.आर. पर
    मोदी सरकार ने नागरिकता कानून में संशोधन कर दिया। अब धर्म के आधार पर नागरिकता पड़ोसी मुल्क के पीड़ित अल्पसंख्यकों को दी जाएगी। यह केवल हिंदू, सिख जैन, पारसी, इसाई व बौद्ध धर्म के लोगों के लिए है।
       साफ है! कानून धर्म के आधार पर नागरिकता देने की बात करता है। यही नहीं ! सरकार के मंत्रियों ने बार-बार कहा कि एन आर सी पूरे देश में होगी। इसलिए संशोधित नागरिकता कानून व एन.आर.सी का चौतरफा विरोध हो रहा है। असम से लेकर दिल्ली व यू पी से लेकर पश्चिम बंगाल तक ।
      विरोध देशव्यापी है। सरकार ने जनसंघर्ष का बर्बर दमन किया। हजारों लोग गिरफ्तार हैं। इन पर संगीन मुकदमे दर्ज हुए हैं। 25-30 लोग मारे गए हैं। संघर्ष व दमनचक्र जारी हैं। जो प्रदर्शनकारी पीड़ित हैं। पुलिस की बर्बर हिंसा व जुल्म के शिकार हुए हैं। अब उन्हीं को बदनाम करने का, अपराधी बताने का अभियान शुरू हो चुका है। सरकार की बर्बर हिंसा, लम्पट तत्वों के हमलों व दमन चक्र पर खामोशी है। इसे जायज बताया जा रहा है। वक़्त बर्बर अंग्रेजी राज की याद दिला रहा है तब देश की आज़ादी के लिए लड़ने वालों को 'आतंकवादी' 'अपराधी' कहा जाता था।
         यह ऐसा वक़्त है जब जनता को भारी राहत की जरूरत थी। बढ़ती महंगाई, लाखों मज़दूरों की छंटनी, कर्मचारियों पर छंटनी की लटकती तलवार, भारी बेरोजगारी, छोटे कारोबारियों-दुकानदारों की खस्ता हालत, महिलाओं के खिलाफ बढ़ती यौन हिंसा! इन सबसे जनता त्रस्त थी। छात्र, किसान,कर्मचारी, मज़दूर, महिलाएं-आदिवासी सभी संघर्ष के मैदान में थे। सब राहत चाह रहे थे। मगर हुआ क्या ? राहत नही मिली। हमें मिला- 'नागरिकता कानून' ! विरोध करने पर बर्बर दमन! खौफ-दहशत कायम करने की भरपूर कोशिश !
    हकीकत यह है कि पड़ोसी मुल्क के अल्पसंख्यक पीड़ितों से इन्हें कोई हमदर्दी नहीं है। यह सिर्फ इनके फासीवादी एजेंडे का दांव है। वरना तो कानून सालों पुराना बना ही था कि पड़ोसी मुल्क में हिंसा, युद्ध से पीड़ित लोग भारत आ सकते हैं। शरण पा सकते हैं। कुछ सालों बाद नागरिक बन सकते हैं। यह धर्म के नाम पर लोगों को बांटता नहीं था।
         इन्हें बहुत डर लगता है! ये घबराते हैं!  यह कहने में कि जो हिन्दू हैं वे सबसे पहले इंसान है । वे मज़दूर हैं छात्र हैं कर्मचारी हैं मेहनतकश हैं। जो मुस्लिम है वे भी इंसान हैं वे भी मज़दूर हैं मेहनतकश हैं। ये जो मज़दूर मेहनतकश इंसान हैं। ये करोड़ों करोड़ हैं। ये करोड़ों करोड़ मज़दूर मेहनतकश एक हो गए तो फिर शासक कहां होंगे ? इनका खुद क्या होगा ? ये लोग यह जानते हैं समझते हैं।  इसीलिए ये तीन तलाक़, कश्मीर, राम मंदिर और फिर नागरिकता कानून लाते हैं।
    मोदी सरकार का यह कानून हिटलर की याद दिलाता है। हिटलर ने भी यहूदी विरोधी न्यूनबर्ग कानून बनाया था। फिर वहां जो कुछ भी हुआ। वह इतिहास में दर्ज है। इनका चाल चलन भी ऐसा ही है। पहले दूसरे धर्म के लोगों के खिलाफ सालों साल नफरत फैलाओ, अपने धर्म के लोगों को अपनी हिंसक भीड़ में बदल दो, इतिहास से छेड़छाड़ करो, उन्माद फैलाओ, इन्हें निशाना बनाओ, हमले करो फिर आतंकी तानाशाही कायम कर दो। आज यही देश में हो रहा है।
       यह अजीब है ! कि जिन्हें अपने देश की गरीब मेहनतकश जनता की कोई परवाह नहीं है। जो कर्मचारियों, छात्रों, किसानों, महिलाओं व मज़दूरों के आंदोलन का बर्बर दमन करते रहें हो। जिसमें अधिकांश हिंदू ही हैं। वे ही लोग पड़ोसी मुल्कों के पीड़ित हिन्दूओं से हमदर्दी जता रहे हैं !   
           एक तरफ देश में गहराता आर्थिक संकट है। मज़दूर मेहनतकशों की तबाही बर्बादी है। इसके खिलाफ उमड़ते आंदोलन हैं। दूसरी तरफ है इनका घृणित व घोर दमन ! जनता के जीवन की तबाही बर्बादी की कीमत पर अम्बानी-अदाणी जैसे कॉरपोरेट घरानों का लगातार बढ़ता मुनाफा। इस 'हमदर्दी' की मूल वजह यहीं हैं। इनकी 'चिंता' का असल रहस्य यहीं छुपा है। इन्हें सरेआम झूठ बोलने से भी गुरेज नहीं है।
        देश के मुखिया ने सरेआम तथ्यों से इंकार कर दिया। कहा कि एन.आर.सी की कोई चर्चा ही नहीं हुई। कि देश में कोई डिटेन्सन सेंटर (एक प्रकार की जेल) नहीं हैं। हकीकत क्या है ?  सरकार के मंत्री कई बार कह चुके हैं कि पहले नागरिकता कानून आएगा। फिर एन आर सी लागू होकर रहेगी। कि असम में 6 डिटेंसन सेंटर हैँ जहां हज़ार से ज्यादा लोग हैं जो खुद की नागरिकता साबित नही कर पाए।
       यह बात सही है कि अभी एन.आर.सी. केवल असम में हुआ है। देश में लागू नहीं हुआ है। मगर देर सबेर इसे लागू करने का इनका इरादा है। उमड़ते जनसंघर्षों से अभी इन्होंने कदम पीछे खींच लिए हैं। मगर अब इन्होंने एन.पी.आर. शुरू कर दिया है यह एन.आर.सी की ही दिशा में अगला कदम है।
     एन पी आर के जरिये व्यक्तिगत जानकारी घर-घर जाकर मांगी जाएगी। इन जानकारी पर संदेह जताकर आम नागरिक को पहले 'संदिग्थ नागरिक' की श्रेणी में डाल दिया जाएगा। फिर 'संदिग्थ' की श्रेणी में डाले गये व्यक्ति से नागरिकता के सबूत मांगे जाएंगे। मामला विदेशी ट्रिब्यूनल में जायेगा। नागरिकता के सबूत जुटाना बहुत मुश्किल हो जाएगा। अभी नागरिकता के मापदंड क्या होंगे? यह भी अस्पष्ट है। असम के कई मामले इस बात के गवाह हैं। यहां जो नागरिकता साबित नहीं कर पाएंगे वे अपने ही देश घुसपैठिया या शरणार्थी हो जाएंगे।
       असम में क्या हुआ था ? 6 साल में एन.आर. सी पूरी हुई। 19 लाख लोग अपने ही देश में घुसपैठिये हो गए, शरणार्थी बना दिये गये। इन 19 लाख में अधिकांश 'हिन्दू बंगाली' हैं। ऐसे में पश्चिम बंगाल के चुनाव भी एक वजह है कि तुरंत यह धर्म के नाम पर नागरिकता कानून लाया गया। ताकि चुनाव जीता जा सके। यदि यह देश भर में लागू होता है तो करोड़ो लोग नागरिकता से बाहर हो जाएंगे। क्योंकि आधार, वोटर कार्ड नागरिकता होने का सबूत नहीं है। सरकार कहती है कि ये तो कथित घुसपैठियों ने भी बनवा लिए हैं। 2-3 पीढी पुराने दस्तावेज खंगालने होंगे। तब तय मानिये ! करोड़ों लोग हिन्दू-मुस्लिम या अन्य खुद को नागरिक साबित नहीं कर पाएंगे। यह सब मज़दूर मेहनतकश जनता ही होगी। इस तरह अपने ही देश में लोग घुसपैठिये हो जायेंगे, शरणार्थी बना दिये जायेंगे। आज के शासकों की यही मंशा हैं यही इनका इरादा है।
          जिस जनता ने देश का निर्माण किया है। अपने खून पसीने से इसे सींचा है। आज़ादी के संघर्षों में अकूत कुर्बानियां दी हैं। संविधान में नागरिक होने के अधिकार को खून बहाकर हासिल किया है। उसी जनता पर 'घुसपैठिया' होने का संदेह किया जाता है। उसे बिना कहे 'अपराधी' मान लिया जाता है। फिर उनसे नागरिकता का 'सबूत' मांगा जाता है।
         दूसरी ओर पूंजी के मालिकों के लिए लाल कालीन बिछाई जाती हैं। पूंजी व पूंजी के मालिकों को देश के कोने-कोने में घुसपैठ करने की आज़ादी होती है। लूट खसोट मचाकर भाग जाने की खुली छूट होती है। कौन है जो अब भी भोपाल गैस कांड (1984) को नहीं जानता ! कि जब हज़ारों लोगों के हत्यारे अमेरिकी पूंजीपति एंडरसन को हमारे शासकों ने बाहर भगाने में पूरी मदद की थी।
       यदि देश में 'घुसपैठिये' हैं तो यह किसका दोष है? क्या जनता का ! क्या इसके लिए रोज़ी-रोटी-महंगाई-बीमारी से त्रस्त जनता को हैरान परेशान किया जायेगा ?  इस सबके लिए देश के शासक जिम्मेदार हैं। इनका शासन प्रशासन जिम्मेदार है।       
       आखिर ऐसा क्यों है ? कि रोज़ी- रोटी की तलाश में देश के एक कोने से दूसरे कोने जाने वाले मज़दूर मेहनतकशों को 'दुश्मन' बताया जाता है। 'घुसपैठिया' 'दीमक' कहा जाता है।  जरा याद कीजिये! भारत के लाखों मज़दूर मेहनकश दुबई, कुवैत से लेकर अमेरिका जैसे देशों में हैं ! क्या ये 'घुसपैठिये' हैं ? क्या ये 'दीमक' हैं ? नहीं ! इन्हें 'दीमक' 'घुसपैठिया' वही कह सकते हैं जिनकी आत्मा पूंजी की एजेंट हैं। जो बड़ी-बड़ी पूंजी के मालिकों के चरणों में लोट-पोट हैं। जिनकी ज़िंदगी लूट, शोषण, अन्याय पर ही टिकी है और इसे किसी भी कीमत पर बरकरार रखना चाहते हैं।
      आज बड़ी-बड़ी पूंजी के मालिक जनता पर अपनी मनमर्जी थोप देना चाहते हैं। अपने मुनाफे को किसी भी कीमत बढ़ाते जाना चाहते हैं। इसलिये जनता को पूरी तरह निचोड़ देने को ये बेचैन हैं। मगर ये डरते हैं। जानते हैं कि यह भयानक लूट-खसोट जनता के गुस्से को देशव्यापी संघर्षों में बदल सकता है।  इसलिए एक वक्त बाद इन्होंने कांग्रेस को पीछे कर दिया। मोदी-शाह व भाजपा संघ को आगे कर दिया। अपनी मीडिया व पैसे के चमत्कार से इन्हें सत्ता तक पहुंचा दिया। अब इनकी तैयारी खुल कर खेलने की है। यहां यही "देश" हैं यही "राष्ट्र" है 'राष्ट्रवाद',  'देशभक्ति' भी इन्हीं से है। मोदी-शाह के हिन्दू फासीवादी एजेन्डा इन्हीं के लिए है। इनके जरिये शासक खौफ व दहशत कायम कर देना चाहते हैं। विरोध को कुचल देना चाहते हैं। आतंकी तानाशाही कायम कर देना चाहते हैं। इसके निशाने पर पूरी मज़दूर मेहनतश जनता है।
जहां तक अन्य पूंजीपरस्त पार्टियों का सवाल है। कांग्रेस, सपा, बसपा ,आप जैसी पार्टियां भी भ्रष्ट हैं। जनविरोधी हैं। ये हमारी मददगार नहीं हो सकती। इनका विरोध प्रदर्शन अपना वोट बचाने के लिए है। वैसे भी कांग्रेस व भाजपा दोनों बड़े पूंजीवादी घरानों की हैं। 
      जरूरत है कि  मज़दूर मेहनतकश जनता को 'घुसपैठिया' 'शरणार्थी' बनाये जाने की साजिश का विरोध किया जाय। यही नहीं पूंजी के मालिकों व इनकी सरकार के हर फासीवादी एजेन्डे का पुरजोर विरोध किया जाय।

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