जी 20 और भारत
जी 20 की इस साल की अध्यक्षता भारतीय शासक कर रहे हैं। इस समूह में दुनिया भर में लूटखसोट मचाने और कई देशों की संप्रभुता को तहस नहस करने वाले साम्राज्यवादी देशों तथा विकसित पूंजीवादी देशोंऔर पिछड़े पूंजीवादी देश हैं। इसमें 19 देश और एक यूरोपीय यूनियन है।
इस मंच को 1999 में गठित किया गया है। साम्राज्यवादी देशों ने 'निजीकरण उदारीकरण वैश्वीकरण' की नीतियों को आसानी से लागू कर सकने की मंशा से क्षेत्रीय पूंजीवादी ताकतों को लेकर इस समूह का गठन किया था। भारत, चीन, ब्राज़ील, दक्षिण अफ्रीका, तुर्की आदि जैसे देश इसमें शामिल हैं। आज स्थिति यह है कि एक ओर चीन एक नई साम्राज्यवादी ताकत के रूप में सामने है तो दूसरी तरफ इस समूह के भीतर तीखे विरोध भी हैं इसके साथ यह मुख्य चीज जिस पर सभी एकजुट है वह है दुनिया भर में अलग अलग देशों की संसाधनों की लूट खसोट को बढ़ाना है मजदूर मेहनतकश जनता की मेहनत को निचोड़ना है।
इस मंच के माध्यम से नई आर्थिक नीतियों के जरिए संसाधनों और मजदूर मेहनतकश आबादी की मेहनत की लूट खसोट मचाने, जनता के संघर्षों को कुचलने के लिए हर साल जी 20 की बैठकें बारी बारी से अलग अलग देशों में होती हैं। मोदी सरकार ने 2020 में आयोजित बैठक को 2024 के चुनाव के मद्देनजर व्यापक प्रचार के मौके में बदल डालने के लिए खिसकाकर 2023 में करने की योजना बनाई। इसी के तहत इस साल इसकी प्रकिया बैठक अलग अलग जगह देश भर में होनी है फिर सितंबर में दिल्ली में इसका सम्मेलन होना है।
मार्च के अंतिम सप्ताह में इसकी बैठक उत्तराखंड के नैनीताल जिले के रामनगर क्षेत्र में हुई। रामनगर तक पंतनगर हवाई क्षेत्र से विदेशी और देशी लुटेरे प्रतिनिधियों को पहुंचाने से पहले सड़क मार्ग पर पड़ने वाली दुकानों को बुलडोज़र से धवस्त कर दिया गया। इसी तरह के मामले आने वाले वक्त में और सामने आते जाएंगे।
आज दुनिया के जो हालात उसे इस मंच के भीतर अलग अलग देशों की टकराहटों, द्वन्दों तथा खुद देश के भीतर के आर्थिक आर्थिक राजनीतिक हालात से समझा जा सकता है।
भारत में मोदी सरकार ने एक ओर घोर पूंजीपरस्त नीतियों को सरपट भगाया है तो दूसरी तरफ हिंदू फासीवादी राजनीति के दम पर ध्रूवीकरण को तेजी से आगे बढ़ाया है। भारतीय समाज आज सबसे ज्यादा राजनीतिक तौर पर विभाजित है। मुस्लिमों को दोयम दर्जे की स्थिति में धकेला गया है। हिन्दू आबादी का ठीकठाक हिस्सा इस हिंदुत्व की राजनीति के साथ गोलबंद है।
एक ओर यह है तो दूसरी तरफ पाकिस्तान और चीन के शासकों के साथ अंतर्विरोध तीखे हुए हैं।
भारत से बाहर देखें तो दुनिया दो खेमे में बंटी हुई है एक ओर अमेरिका की अगुवाई में ब्रिटेन, फ्रांस, जर्मनी और कनाडा व जापान के साथ नाटो तो दूसरी तरफ रूस और चीन। अमेरिकी शासकों के अपने प्रभुत्व की मंशा के चलते दोनों खेमों में अंतर्विरोध तीखे हुए हैं। इसका नतीजा यूक्रेन में अमेरिका और रूस के बीच चल रहा युद्ध है। जिसमें दोनों ही आमने सामने नहीं मगर परोक्ष संघर्ष में है।
इससे इतर इन सभी देशों में मजदूर वर्ग और बाकी जनता से शासकों के अंतर्विरोध तीखे हुए हैं। फ्रांस, जर्मनी और ब्रिटेन में इस वक़्त बड़ी हड़तालें और संघर्ष सामने हैं। शासक वर्ग जनता पर हमलावर है। सभी जगह दक्षिणपंथी या फासीवादी पार्टियां उभार पर हैं।
जी 20 की बैठक इसी घोर जनविरोधी आर्थिक नीति के साथ घोर जनवाद विरोधी दक्षिणपंथी या फासीवादी राजनीति को आगे बढ़ा रही है। एक ओर भारत में फासीवादी मोदी सरकार में व्यवहार में अघोषित निरंकुशता की स्थिति बना दी है तो दूसरी तरफ रूस में पुतिन अंधराष्ट्रवाद के दम पर विपक्ष और जन विरोध को ध्वस्त करते हुए निरंकुशता की स्थिति कायम कर चुके हैं।
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