मुजफ्फरनगर दंगों की हकीकत
क्रालोस व प्रोमेफो की तथ्यान्वेषी रिपोर्ट
क्रांतिकारी लोक अधिकार संगठन के नेतृत्व में क्रालोस व प्रोग्रेसिव मेडिकोज फोरम के 6-8 कार्यकर्ता 8-9 नवम्बर को मुजफ्फरनगर के दंगा प्रभावित क्षेत्रों में गए। इस दौरे में टीम मुजफ्फरनगर से लगभग 25 किमी. दूर शाहपुर कस्बे व बुढाना क्षेत्र में सहायता शिविरों व कुछ गांवों में गई। टीम हिन्दू-मुस्लिम दोनों समुदाय के लोगों से मिली। हालांकि शासन-प्रशासन के लोगों से टीम नहीं मिली। तथ्यांे का स्रोत दोनों ही समुदाय के लोगों से बातचीत, दंगाग्रस्त स्थानों का भ्रमण, अखबार व एक तथ्यान्वेषी रिपोर्ट ईविल स्टाल्क्स आफ लैंड है जो कि 24 सदस्यीय एक दल ‘अनहद’ द्वारा तैयार की गई है।
सबसे पहले जब तथ्यान्वेषी टीम जब मुजफ्फरनगर पहुंची तो मुजफ्फरनगर शहर में जीवन सामान्य सा प्रतीत हो रहा था लेकिन शाहपुर पहुंचते ही माहौल में व्याप्त तनाव महसूस होने लगा। यहां पिछले 3 दिन से अनिश्चितकाल के लिए बाजार बंद था। यहीं सबसे पहले शाहपुर पुलिस चौकी के नजदीक तकरीबन 10 लोगों के समूह से टीम ने बातचीत की। इसमें कृष्णपाल सिंह, शाहपुर नगर पंचायत के वाइस चेयरमेन चंद्रवीर सिंह, विनोद कुमार, कंचन आदि आदि थे। इन सभी ने हमें बताया कि शासन-प्रशासन एकतरफा कार्यवाही कर रहा है। मुस्लिमों को प्रशासन का सहारा है। मुस्लिमों के प्रति एक नफरत इनमें दिखी। इन्होंने कहा कि साले मुस्लिमों को अमूल का दूध पीने को मिल रहा है कैंपो में, कैंप से मुस्लिम इसलिए अपने घरों को नहीं जा रहे हैं क्योंकि सभी को 12 लाख रुपया व नौकरी मिल रही है। बाजार बंद होने का कारण पूछने पर बोले कि 6 नवंबर को डा. हरवीर आर्या पर मुस्लिम समुदाय के लोगों ने जब वे गाड़ी में बैठे थे तब हमला किया और इसके अलावा बसों को जलाया गया, उसमें बैठी महिला यात्रियों को अपमानित किया गया। इसमें 15 नामजद व 150 गैरनामजद मुस्लिमों का नाम दर्ज है। इन सभी की गिरफ्तारी ना होने तक बाजार बंद रहेगा। तीन की गिरफ्तारी हो चुकी है लेकिन एक को विधायक के दबाव में छोड़ दिया गया। साथ ही इस समूह ने दंगों के लिए भाजपा को निर्दोष बताते हुए सपा को जिम्मेवार ठहराया। अन्य जगह यह पता लगा कि डा. हरवीर आर्या के यहां एक मुस्लिम कबाड़ी का शव मिला। जिसके विरोध में मुस्लिम समुदाय ने बसों पर पथराव किया।
इसी समूह से बातचीत में पता लगा कि डा. हरवीर आर्या राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के जिला प्रभारी हैं। आर.एस.एस. के कैंप शाहपुर में लगते रहे हैं। यह पूछने पर कि क्या किसी क्षेत्र में हिन्दुओं का पलायन भी हुआ है या इनके कैंप लगे हैं तो पता लगा कि 2-4 गांव के हिन्दू समुदाय के लोग पलायन का शिकार हुए व कमालपुर कैंपों में रह रहे हैं। यह पूछने पर कि क्या उनसे मिला जा सकता है तो बोले कि कुछ दिन कैंप में रहे थे उसके बाद वापस चले गए।
इसके बाद टीम शाहपुर में ईदगाह के पास लगे पलायन कर गए मुस्लिम सहायता शिविर में गये। इसमंे तकरीबन 1000 से ज्यादा स्त्री पुरुष व बच्चे रह रहे हैं। 10 बाई 10 के टैंट लगे हुए हैं जिसमें कई सदस्यों का एक परिवार रह रहा है। सरकार की ओर से इन्हें कोई भी मदद नहीं दी जा रही है। केवल कुछ दिन खाना दिया गया व 5 परिवार पर एक बाल्टी-प्लेट। इसके अलावा कुछ मृतकों के परिजनों को 10 लाख रुपये का मुआवजा व नौकरी मिली है। कई गांव मसलन कुटबा, कुटबी, काकड़ा, लाखबावडी, सीसोल आदि से पलायन कर गए मुस्लिम परिवार यहां पर शरण लिए हुए हैं।
ये सभी गरीब मजदूर पृष्ठभूमि के हैं। टैंट के आस-पास गंदगी कम है। बच्चे व वयस्क लोग बीमार भी हैं। बुखार, अमीबिक दस्त आदि से ग्रस्त हैं। महिलाओं को ज्यादा समस्याओं का सामना करना पड रहा है क्योंकि नहाने व शौच की सही व्यवस्था नहीं है। जो भी मदद आ रही है टेंट समेत खान-पान तक सभी जमीयत-ए-उलेमा-ए-हिन्द व जमात-ए-इस्लामी व नागरिकों से मिल रही है। सरकार के सारे दावे कागजी साबित हो रहे हैं।
सपा सरकार संपत्ति के नुकसान पर व घायलों को 5 लाख रुपये देने व मृतकों के परिजनों को 10 लाख रुपये मुआवजा देने व एक नौकरी देने की घोषणा कर चुकी है लेकिन हकीकत कोसों दूर है। मुआवजा दस्तावेज के बगैर नहीं मिल पाएगा। जबकि कईयों के पास दस्तावेज ना होने की संभावाना मौजूद है। साथ ही एक शपथ पत्र भी भरवाया जा रहा है जिसके सातवें बिन्दु में बेहद आपत्तिजनक बात की गई है। वह यह कि ‘मुस्लिम शरणार्थी को अन्यत्र जाने पर ही मुआवजा देने की शर्त है’।
इस शिविर में काकड़ा के आबिद, इस्लाम्मुद्दीन, महमूद तथा फजना, जुबेदा आदि से बात हुई। साथ ही यहां पर सपा के एक कार्यकर्ता अख्लाक कुरेशी से बातचित हुई। उन्होंने दंगों में सपा की भूमिका से साफ-साफ इंकार करते हुए भाजपा को दोषी ठहराया। उन्होंने बताया कि पंचायतें यहां पर काफी पहले से होती रही हैं। तब भारतीय किसान यूनियन के महेन्द्र सिंह टिकैत इसके नेता थे। इन पंचायतों में दोनों ही समुदाय के लोग शिरकत करते थे तथा हथियार के बिना ये पंचायत हुआ करती थीं। यह किसान संगठन धनी किसानों के हितों के लिए संघर्ष करता था।
यहीं बातचीत में पता लगा कि कवाल कांड के बाद जब 31 अगस्त को पंचायत(हिन्दू जाटों की) हुई तो प्रशासन इसे रोकने में नाकामयाब रहा। यह भी पता लगा कि 30 अगस्त को खालापार में नमाज अदा होने के बाद सभा की गई जिसे बी.एस.पी. विधायक कादिर राणा, सपा विधायक रशीद सिद्दीकी, बसपा विधायक मुरसालीन, कांग्रेस के पूर्व मंत्री शहीदुल अजम व मौलाना नजीर ने संबोधित किया जिसमें उन्होंने भडकाऊ व नफरत फैलाने वाले भाषण दिये।
5 सितंबर को एक महापंचायत हुई जिसे भाजपा व आर.एस.एस. द्वारा संगठित किया। जिसमें विश्व हिन्दू परिषद के बाबा हरकिशन, बाबा सीता राम व आर.एस.एस. कायकर्ता विजेंद्र मौजूद थे। यह ‘बेटी-बहू बचाओ’ महापंचायत थी। निषेधाज्ञा के बावजूद 7 सितंबर को नगला मंदौर में महापंचायत होनी थी। उत्तर प्रदेश के डी.जी.पी. जो कि भाजपा के विधायक हुकुम सिंह के नजदीकी रिश्तेदार प्रतीत होते हैं वह एक दिन पहले ही इस स्थल पर ओफिसियल हेलीकाप्टर लेकर गए। यह ऐसा वक्त था जब भयानक तनाव, दहशत व अफवाह का माहौल यहां चौतरफा व्याप्त था। इन महापंचायतों में मुस्लिम समुदाय के प्रति जमकर नफरत भरी गई। उत्तेजना व उन्माद के माहौल को और ज्यादा बढ़ाया गया। एम.एम.एस. व सी.डी.एस. के रूप में एक वीडियो भाजपा व आर.एस.एस. के कार्यकर्ताओं द्वारा फैलाई गई। भाजपा के विधायक संगीत सोम ने यह वीडियो अपलोड की थी। यह वीडियो फर्जी था।
जाट समुदाय के लोग ट्रेक्टर ट्रालियों में बैठकर हाथों में हथियारों को लहराते हुए मुस्लिमों के खिलाफ ‘मुस्लिमों का एक ही स्थान कब्रिस्तान या पाकिस्तान’, ‘देश, बहू और गाय को बचाना है तो नरेंद्र मोदी को लाना है’, ‘सोनी सोनी लड़कियों के सिंदूर भर देंगे और बाकियों को काट देंगे’ जैसे घृणित नारेबाजी करते हुए जब शाहपुर के देहात पलड़ा व बसीकलां से होते हुए शाहपुर को जा रहे थे तब रास्ते में यहीं पर इन्होंने बसीकलां की एक मुस्लिम महिला को भाला मार दिया जिसकी मृत्यु हो गई। इसके अलावा ये रास्ते में मारपीट करते जा रहे थे जिसमें चोटें र्भी आईं। इस सब के विरोध में मुस्लिम समुदाय के कुछ लोगों ने इन पर पथराव किया। जिससे जाट समुदाय(हिन्दू) के लोगो को चोटें भी आईं। चोट की स्थिति में ही ये महापंचायत में पहुंचे। जहां लाख की संख्या में लोग इकट्ठे थे। महापंचायत के इन दो-तीन दिनों के दौरान ही मुस्लिम समुदाय पर हमले शुरू हो गए। खौफ व दहशत में ही मुस्लिम समुदाय के लोग अपने-अपने घरों से अपनी जान बचाने के लिए भाग निकले। 6-9 सितंबर के बीच लगभग 50 हजार से ज्यादा मुस्लिम पलायन को मजबूर हुए हालांकि कुछ का यह आंकड़ा एक लाख तक का है। मुजफ्फरनगर, शामली आदि क्षेत्रों के कई-कई गांव से यह पलायन हुआ। जोकि शरणार्थियों के रूप में सहायता शिविरों में रहने को मजबूर हैं और कई ऐसे भी हैं जोकि अपने रिश्तेदारों के यहां शरण लिए हुए हैं। कई परिवार दिल्ली पलायन कर गए हैं।
इसी समूह से बातचीत में पता लगा कि डा. हरवीर आर्या राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के जिला प्रभारी हैं। आर.एस.एस. के कैंप शाहपुर में लगते रहे हैं। यह पूछने पर कि क्या किसी क्षेत्र में हिन्दुओं का पलायन भी हुआ है या इनके कैंप लगे हैं तो पता लगा कि 2-4 गांव के हिन्दू समुदाय के लोग पलायन का शिकार हुए व कमालपुर कैंपों में रह रहे हैं। यह पूछने पर कि क्या उनसे मिला जा सकता है तो बोले कि कुछ दिन कैंप में रहे थे उसके बाद वापस चले गए।
इसके बाद टीम शाहपुर में ईदगाह के पास लगे पलायन कर गए मुस्लिम सहायता शिविर में गये। इसमंे तकरीबन 1000 से ज्यादा स्त्री पुरुष व बच्चे रह रहे हैं। 10 बाई 10 के टैंट लगे हुए हैं जिसमें कई सदस्यों का एक परिवार रह रहा है। सरकार की ओर से इन्हें कोई भी मदद नहीं दी जा रही है। केवल कुछ दिन खाना दिया गया व 5 परिवार पर एक बाल्टी-प्लेट। इसके अलावा कुछ मृतकों के परिजनों को 10 लाख रुपये का मुआवजा व नौकरी मिली है। कई गांव मसलन कुटबा, कुटबी, काकड़ा, लाखबावडी, सीसोल आदि से पलायन कर गए मुस्लिम परिवार यहां पर शरण लिए हुए हैं।
ये सभी गरीब मजदूर पृष्ठभूमि के हैं। टैंट के आस-पास गंदगी कम है। बच्चे व वयस्क लोग बीमार भी हैं। बुखार, अमीबिक दस्त आदि से ग्रस्त हैं। महिलाओं को ज्यादा समस्याओं का सामना करना पड रहा है क्योंकि नहाने व शौच की सही व्यवस्था नहीं है। जो भी मदद आ रही है टेंट समेत खान-पान तक सभी जमीयत-ए-उलेमा-ए-हिन्द व जमात-ए-इस्लामी व नागरिकों से मिल रही है। सरकार के सारे दावे कागजी साबित हो रहे हैं।
सपा सरकार संपत्ति के नुकसान पर व घायलों को 5 लाख रुपये देने व मृतकों के परिजनों को 10 लाख रुपये मुआवजा देने व एक नौकरी देने की घोषणा कर चुकी है लेकिन हकीकत कोसों दूर है। मुआवजा दस्तावेज के बगैर नहीं मिल पाएगा। जबकि कईयों के पास दस्तावेज ना होने की संभावाना मौजूद है। साथ ही एक शपथ पत्र भी भरवाया जा रहा है जिसके सातवें बिन्दु में बेहद आपत्तिजनक बात की गई है। वह यह कि ‘मुस्लिम शरणार्थी को अन्यत्र जाने पर ही मुआवजा देने की शर्त है’।
इस शिविर में काकड़ा के आबिद, इस्लाम्मुद्दीन, महमूद तथा फजना, जुबेदा आदि से बात हुई। साथ ही यहां पर सपा के एक कार्यकर्ता अख्लाक कुरेशी से बातचित हुई। उन्होंने दंगों में सपा की भूमिका से साफ-साफ इंकार करते हुए भाजपा को दोषी ठहराया। उन्होंने बताया कि पंचायतें यहां पर काफी पहले से होती रही हैं। तब भारतीय किसान यूनियन के महेन्द्र सिंह टिकैत इसके नेता थे। इन पंचायतों में दोनों ही समुदाय के लोग शिरकत करते थे तथा हथियार के बिना ये पंचायत हुआ करती थीं। यह किसान संगठन धनी किसानों के हितों के लिए संघर्ष करता था।
यहीं बातचीत में पता लगा कि कवाल कांड के बाद जब 31 अगस्त को पंचायत(हिन्दू जाटों की) हुई तो प्रशासन इसे रोकने में नाकामयाब रहा। यह भी पता लगा कि 30 अगस्त को खालापार में नमाज अदा होने के बाद सभा की गई जिसे बी.एस.पी. विधायक कादिर राणा, सपा विधायक रशीद सिद्दीकी, बसपा विधायक मुरसालीन, कांग्रेस के पूर्व मंत्री शहीदुल अजम व मौलाना नजीर ने संबोधित किया जिसमें उन्होंने भडकाऊ व नफरत फैलाने वाले भाषण दिये।
5 सितंबर को एक महापंचायत हुई जिसे भाजपा व आर.एस.एस. द्वारा संगठित किया। जिसमें विश्व हिन्दू परिषद के बाबा हरकिशन, बाबा सीता राम व आर.एस.एस. कायकर्ता विजेंद्र मौजूद थे। यह ‘बेटी-बहू बचाओ’ महापंचायत थी। निषेधाज्ञा के बावजूद 7 सितंबर को नगला मंदौर में महापंचायत होनी थी। उत्तर प्रदेश के डी.जी.पी. जो कि भाजपा के विधायक हुकुम सिंह के नजदीकी रिश्तेदार प्रतीत होते हैं वह एक दिन पहले ही इस स्थल पर ओफिसियल हेलीकाप्टर लेकर गए। यह ऐसा वक्त था जब भयानक तनाव, दहशत व अफवाह का माहौल यहां चौतरफा व्याप्त था। इन महापंचायतों में मुस्लिम समुदाय के प्रति जमकर नफरत भरी गई। उत्तेजना व उन्माद के माहौल को और ज्यादा बढ़ाया गया। एम.एम.एस. व सी.डी.एस. के रूप में एक वीडियो भाजपा व आर.एस.एस. के कार्यकर्ताओं द्वारा फैलाई गई। भाजपा के विधायक संगीत सोम ने यह वीडियो अपलोड की थी। यह वीडियो फर्जी था।
जाट समुदाय के लोग ट्रेक्टर ट्रालियों में बैठकर हाथों में हथियारों को लहराते हुए मुस्लिमों के खिलाफ ‘मुस्लिमों का एक ही स्थान कब्रिस्तान या पाकिस्तान’, ‘देश, बहू और गाय को बचाना है तो नरेंद्र मोदी को लाना है’, ‘सोनी सोनी लड़कियों के सिंदूर भर देंगे और बाकियों को काट देंगे’ जैसे घृणित नारेबाजी करते हुए जब शाहपुर के देहात पलड़ा व बसीकलां से होते हुए शाहपुर को जा रहे थे तब रास्ते में यहीं पर इन्होंने बसीकलां की एक मुस्लिम महिला को भाला मार दिया जिसकी मृत्यु हो गई। इसके अलावा ये रास्ते में मारपीट करते जा रहे थे जिसमें चोटें र्भी आईं। इस सब के विरोध में मुस्लिम समुदाय के कुछ लोगों ने इन पर पथराव किया। जिससे जाट समुदाय(हिन्दू) के लोगो को चोटें भी आईं। चोट की स्थिति में ही ये महापंचायत में पहुंचे। जहां लाख की संख्या में लोग इकट्ठे थे। महापंचायत के इन दो-तीन दिनों के दौरान ही मुस्लिम समुदाय पर हमले शुरू हो गए। खौफ व दहशत में ही मुस्लिम समुदाय के लोग अपने-अपने घरों से अपनी जान बचाने के लिए भाग निकले। 6-9 सितंबर के बीच लगभग 50 हजार से ज्यादा मुस्लिम पलायन को मजबूर हुए हालांकि कुछ का यह आंकड़ा एक लाख तक का है। मुजफ्फरनगर, शामली आदि क्षेत्रों के कई-कई गांव से यह पलायन हुआ। जोकि शरणार्थियों के रूप में सहायता शिविरों में रहने को मजबूर हैं और कई ऐसे भी हैं जोकि अपने रिश्तेदारों के यहां शरण लिए हुए हैं। कई परिवार दिल्ली पलायन कर गए हैं।
‘अनहद’ द्वारा प्रस्तुत रिपोर्ट के मुताबिक पश्चिमी उत्तर प्रदेश में पिछले 2 वर्ष से संघ परिवार के सक्रियता बढ़ी है। जाट समुदाय के बेरोजगार युवकों व स्थानीय गुंडा तत्वों को सफलतापूर्वक अपने फासीवादी मंसूबों में शामिल करा लिया गया है। यह ऐसा क्षेत्र है जो कि 92 के दंगों से अछूता रहा। दोनों समुदाय के लोग मिल-जुल कर रहते थे। लगभग 8 माह पहले संघ परिवार ने लगभग हर गांव व कस्बे से 10 -15 युवकों की भर्ती की। महिलाओं के साथ छेड़छाड़ की घटनाएं कई गुना इनके संगठित व योजनाबद्ध प्रयासों से बढ़ गई। यह मुस्लिम वेश बनाकर भी होता था। और इस प्रकार संघ परिवार ‘लव जिहाद’ के अपने सिद्धान्त को आगे बढ़ाने में सफल हो गया।
यह ऐसे इलाके हैं जहां लिंगानुपात 863 (2011 के हिसाब से) है। घोर पितृसत्तात्मक मूल्य यहां अभी मौजूद हैं। महिलाओं का अपने अधिकारों के लिए सजग होने का मतलब इस पितृसत्तात्मक मूल्यों व इन मूल्यों से लैस संस्था पंचायत या खाफ पंचायत के खिलाफ जाना जो कि इनकी नजर में पाप है, घोर अपराध है। इन स्थितियों में ‘लव जिहाद’ का सिद्धान्त काफी असरकारक होना था। हमउम्र या सहपाठी हिन्दू लड़की का मुस्लिम लड़के से बातचीत करने को भी इसी रूप में प्रचारित कर सांप्रदायिक भावनाए भड़काने में इस्तेमाल किया गया।
8 माह पहले भाजपा द्वारा एक रैली भी यहां निकाली गई जो कि भाजपा विधायक उमेश मालिक व बिल्डर संजीव बलयान के नेतृत्व में हुई थी। इसमें त्रिशूल बांटे गए, नफरत फैलाने वाले भाषण दिये गए।
लिसाढ़ में 5 जून 2013 को एक 24 वर्ष की हिन्दू लड़की 16 वर्ष के मुस्लिम लड़के के साथ गायब हो गई। इसने साम्प्रदयिक तनाव को बढ़ाया। भाजपा ने इसके विरोध में खाफ पंचायत का आयोजन किया जिसमें त्रिशूल बंटे, घृणास्पद भाषण दिये गए। हिंसा हुई जिसके चलते मुस्लिम यहां से भाग गए। यहां पी.ए.सी. लगानी पड़ी। ऐसी घटनाएं बढ़ती रहीं।
मार्च 2013 में ही एक लड़के ने होलिका जिसका दहन अगले दिन होना था पहले ही दहन कर दिया। इसके तत्काल बाद मस्जिद पर हमला बोल दिया गया, इमाम को पीटा गया, कुरान जला दी गई, मुस्लिम परिवारों को यहां से पलायन करना पड़ा। एफ.आई.आर. दर्ज हुई। भाजपा के 30 लोग गिरफ्तार किए गए, 3 के खिलाफ रासुका लगी।
2 जून 2013 को हरिद्वार से एक हिन्दू लड़की शामली के एक मुस्लिम लड़के के पास पहुंची और ये एक होटल में ठहरे थे। भाजपा को जैसे ही यह खबर लगी उसने इस प्रेम प्रसंग को मुस्लिम युवक द्वारा हिन्दू लड़की के साथ बलात्कार करने के रूप में बदल दिया। इसके बाद भाजपा के हुकुम सिंह व सुरेश राणा अपने कार्यकर्ताओं व हजारों लोगों समेत स्थानीय पुलिस चौकी घेर ली और फिर मुस्लिम दुकानों को लूटा गया। हुकुम सिंह, सुरेश राणा व भारतेन्दु के नेतृत्व में बाजार, बस स्टाप व सड़क पर मुस्लिम स्त्री-पुरुषों पर हमला बोल दिया गया।
2 जुलाई 2013 को आर.के.पी.गी. कालेज शामली में भाजपा ने महापंचायत का आयोजन किया जहां हुकुम सिंह, सुरेश राणा, व भारतेन्दु पर लगे मुकदमे वापस लेने की मांग की गई। 21 अगस्त को दो बच्चों के झगड़े को साम्प्रदायिक हिंसा में बदल दिया गया जिसमें उमेश मलिक (भाजपा, आर.एस.एस.) समेत 14 लोगों को गिरफ्तार किया गया व 155 के खिलाफ मुकदमे दर्ज किए गए।
और फिर 27 अगस्त की खबर जिसे कि खूब कवरेज मिली। एक हिन्दू लड़की के साथ शहनवाज नाम के मुस्लिम लड़के द्वारा छेड़छाड़ की घटना पर सचिन व गौरव द्वारा शहनवाज की हत्या फिर इसके बदले में सचिन व गौरव की हत्या हुई। हकीकत में यह छेड़छाड़ की घटना न होकर आपसी बहसबाजी व इसके हिंसक हो जाने पर हुई हत्याएं थीं। बस इसके बाद संघ व भाजपा ने संयुक्त रूप से बड़ी हिंसा की तैयारी कर दी व 5 सितंबर को पंचायत का ऐलान कर दिया गया। पंचायत में शामिल लोगों ने एक इनसार नाम के मुस्लिम ड्राइवर (कांधला निवासी) की हत्या कर दी गई।
महापंचायत के दौरान ही आई.बी.एन. के पत्रकार की हत्या की खबर फैली जो कि हिन्दू था तथा यह खबर भी फैल गई कि जब हिन्दू ट्रैक्टरों से वापस जा रहे थे तब मुस्लिम समुदाय के लोगों द्वारा हमला कर दिया गया जिसमें 200 लोगों को मार दिया गया व 16 ट्रैक्टर जला दिये गए हैं। इन्हें जौली कैनाल में फेंक दिया गया है। जबकि यहां भोपा पुलिस स्टेशन में दर्ज एफ.आई.आर. में वास्तविक तौर पर 7 लोग मारे गए थे जिनमें से 3 हिन्दू(सोहनवीर, अजय व ब्रिजपाल) जबकि 4 मुस्लिम (नजर मोहम्मद, सुलतान, लताफत व मो. नाजिम) थे। यह एफ.आई.आर. गांव के लोगों की तरफ से नहीं थी। इसका मतलब था कि ये उस राह से गुजरने वाले व्यक्ति थे जहां से पंचायत से लौटते लोग ट्रैक्टर पर आ रहे थे और इनका निशाना बन गए। यहां केवल 2 ट्रैक्टर जले हुए थे बाकी पुराने व जंग लगे हुए थे।
टीम ने शाहपुर से 7-8 किमी अंदर कुटबा व कुटबी गांव की ओर प्रस्थान किया। गन्ने की ऊंची-ऊंची फसल के बीच रास्ते से होकर हम इस गांव में पहुंचे। यहां एक अजीब सा सन्नाटा व दहशत पसरी हुई थी। बड़े-बड़े घर खाली लग रहे थे। लगभग आधे किमी का सफर तय करने के बाद एक बड़े से घर के बाहर एक युवक दिखाई दिया जो कि जाट किसान परिवार से था। इसके अलावा दो लोग और थे बमुश्किल उससे बातचीत हुई। पंकज व राजेश नाम के इन दो लोगों ने बताया कि 7-8 सितंबर को तकरीबन 1500 मुस्लिम बच्चों समेत यहां से पलायन कर गए हैं हालांकि सी.आर.पी.एफ. ही अधिकतर लोगों को यहां से निकाल कर ला पाई।
आगे बढ़ने पर तीन चार मजदूर पृष्ठभूमि के हिन्दू लोग दिखाई दिये । इन्होंने कहा कि गांव में 4 लोग 7-8 सितंबर में मरे थे जिसमें दो हिन्दू थे। हालांकि हकीकत यह थी कि 7-8 सितंबर को यहां 8 मुस्लिम मारे गए। माहौल गरम होने पर हम यहां से लौट आए। यह दोनों गांव हिन्दू बहुल हैं। जिसमें जाट समुदाय के धनी किसान व अनुसूचित जाति के हिन्दू भी हैं। सभी मुस्लिम फेरी लगाने, खेत मजदूरी या अन्य मेहनत के काम करते थे। इस गांव में पसरे सन्नाटे व दहशत से समझ में आ रहा था कि पलायन कर गए मुस्लिम परिवार क्यों वापस यहां नहीं लौटना चाहते हैं। लोग अभी भी उन्माद की स्थिति में हैं। एस.एच.ओ. व एस.एस.पी. की गाड़ी व पुलिस पर भी यहां हमला बोल दिया गया था जिसमें एस.एच.ओ. घायल हो गया था। यहां अभी प्रशासन द्वारा दबिश दी जा रही है।
फिर वापस आते वक्त हम पलड़ा गांव पर रुके इसके पलड़ व बसीकलां गांव इसके आस पास हैं। ये सभी मुस्लिम बहुल गांव हैं और मुस्लिम पठानों के पास खेती है जबकि बाकी मुस्लिम मेहनतकश है। इन तीनों गांव में कोई दंगा नहीं हुआ। यहां यह भी पता लगा कि भाजपा के लोगों का कुट्मा-कुटमी गांव में लगातार आना जाना था। लोगों ने यह भी बताया कि कुछ हिन्दू लोग दहशत में यहां से चले गए थे लेकिन हम उन्हें वापस ले आए। यहां पर डा. मुकेश ने भी हिन्दू जाट के अत्याचार की तसदीक की कि किस प्रकार पंचायत को जा रहे जाट लोगों ने एक गर्भवती महिला को भाला भोंका। इसके अलावा अन्य के साथ मार काट की।
बसीकलां में लगे शिविर में भी हम लोग गए। यहां तकरीबन 250-300 मुस्लिम परिवार(1000 हजार लोग लगभग) शरण लिए हुए हैं। अन्य कैंपों की तरह यहां की स्थिति भी बेहद बुरी है। यहां पर कुटबा कुटबी, सिसौली, लाखबावडी, खेरी बड़ी व भैंसवाल गांव के मुस्लिम शरण लिए हुए हैं। सीसौली गांव वही है जहां भारतीय किसान यूनियन के नेता नरेश टिकैत व राकेश सिंह रहते हैं। सिसौली के यामीन पुत्र अलिहसन ने अपने सिर पर धारदार हथियार से लगे 6 घाव व पीठ पर लगे घाव दिखाये। यहीं अन्य लोगों से बातचीत में भी पता लगा कि राकेश टिकैत व नरेश टिकैत ने प्रशासन से कहा कि यहां सब कुछ ठीक है। जब दहशत में यामीन समेत अन्य लोग जीवन की सुरक्षा में पलायन कर रहे थे तब इनके द्वारा इन्हें रोका गया व मार काट की गई। ये सभी गांव हिन्दू बहुल हैं।
कैपों व अन्य जगहों पर कई लोगों से बातचीत में पता लगा कि लिसाढ़ व कुछ गांवों में कुछ महिलाओं व लड़कियों से बलात्कार हुए हैं जिन्हें जला दिया गया। लिसाढ़ में 13 मुस्लिम, लाखबावडी में 6 मुस्लिम फुगाना में 40-50 की हत्या 7-8 सितंबर को हुई। इसके अलावा और भी लोग मारे गए हैं। यह अभी भी जारी है। कई जगहों पर घरों को जला दिया गया। ये सभी घटनाएं गुजरात में भाजपा व संघ परिवार के नेतृत्व में कायम फासीवादी राज्य के अत्याचारों की ही तरह हैं।
टीम शाहपुर से 13-14 किमी दूर बुढाना के नहरबाई में लगे कैंप पर भी गई। यहां सिंचाई विभाग के गोदाम में यह शिविर लगा हुआ है। अब तकरीबन 450 -500 लोग शिविर में है जबकि बाकी लोग इसी बस्ती में मुस्लिम लोगों के यहां शरणार्थी के रूप में रह रहे हैं। इसके अलावा यहां लोई, कांदला, जोगिया खेडा, मदवाडा, हुसैनपुर, हर्षोली, खतौली तथा शामली में भी सहायता शिविर लगे हैं। सभी जगह पर लोगों ने बताया कि अनुसूचित जाति के हिन्दू लोगों ने उन पर हमला नहीं किया। जब उन पर बहुत दबाव डाला गया तभी कहीं-कहीं हमला किया गया। यहीं पर यह भी उमरदीन से पता लगा कि 8 सितंबर को लाखबावड़ी के एक हिन्दू नाई संजय ने मुस्लिमों पर हमले के वक्त उमरदीन की जान अपनी दुकान में बंद कर बचाई। लोगों ने यह भी बताया कि हमले में बाहर के लोग भी शामिल थे।
कुल मिलाकर इन दंगों को या मुस्लिमों पर जाट समुदाय द्वारा किए गए हमले इतनी बडी संख्या में गरीब मजदूर लोगों का पलायन, महिलाओं-लड़कियों के साथ यौन हिंसा व कुछ के साथ वीभत्स बलात्कार, हत्याकांड इस सबकी पृष्ठभूमि रचने में सपा, बसपा, भारतीय किसान यूनियन व कांग्रेस जिनमें कि मुस्लिम विधायक भी हैं, शामिल रहे हैं जबकि संघ परिवार-भाजपा तो समाज में अपने घृणित साम्प्रदायिक फासीवादी अभियान को गुजरात की सफलता के बाद दोहराने की कोशिश में हैं व यहां हुई तबाही के सूत्रधार हैं। सपा के घिनौने खेल को कैंप में रह रहे शरणार्थी कुछ-कुछ समझ रहे हैं लेकिन संघ परिवार लोगों को अपने एजेंडे पर अपने पक्ष में खड़ा करने में कामयाब रहा है जो कि निश्चित तौर पर आने वाले समय में खतरे का संकेत भी हंै।
यह ऐसे इलाके हैं जहां लिंगानुपात 863 (2011 के हिसाब से) है। घोर पितृसत्तात्मक मूल्य यहां अभी मौजूद हैं। महिलाओं का अपने अधिकारों के लिए सजग होने का मतलब इस पितृसत्तात्मक मूल्यों व इन मूल्यों से लैस संस्था पंचायत या खाफ पंचायत के खिलाफ जाना जो कि इनकी नजर में पाप है, घोर अपराध है। इन स्थितियों में ‘लव जिहाद’ का सिद्धान्त काफी असरकारक होना था। हमउम्र या सहपाठी हिन्दू लड़की का मुस्लिम लड़के से बातचीत करने को भी इसी रूप में प्रचारित कर सांप्रदायिक भावनाए भड़काने में इस्तेमाल किया गया।
8 माह पहले भाजपा द्वारा एक रैली भी यहां निकाली गई जो कि भाजपा विधायक उमेश मालिक व बिल्डर संजीव बलयान के नेतृत्व में हुई थी। इसमें त्रिशूल बांटे गए, नफरत फैलाने वाले भाषण दिये गए।
लिसाढ़ में 5 जून 2013 को एक 24 वर्ष की हिन्दू लड़की 16 वर्ष के मुस्लिम लड़के के साथ गायब हो गई। इसने साम्प्रदयिक तनाव को बढ़ाया। भाजपा ने इसके विरोध में खाफ पंचायत का आयोजन किया जिसमें त्रिशूल बंटे, घृणास्पद भाषण दिये गए। हिंसा हुई जिसके चलते मुस्लिम यहां से भाग गए। यहां पी.ए.सी. लगानी पड़ी। ऐसी घटनाएं बढ़ती रहीं।
मार्च 2013 में ही एक लड़के ने होलिका जिसका दहन अगले दिन होना था पहले ही दहन कर दिया। इसके तत्काल बाद मस्जिद पर हमला बोल दिया गया, इमाम को पीटा गया, कुरान जला दी गई, मुस्लिम परिवारों को यहां से पलायन करना पड़ा। एफ.आई.आर. दर्ज हुई। भाजपा के 30 लोग गिरफ्तार किए गए, 3 के खिलाफ रासुका लगी।
2 जून 2013 को हरिद्वार से एक हिन्दू लड़की शामली के एक मुस्लिम लड़के के पास पहुंची और ये एक होटल में ठहरे थे। भाजपा को जैसे ही यह खबर लगी उसने इस प्रेम प्रसंग को मुस्लिम युवक द्वारा हिन्दू लड़की के साथ बलात्कार करने के रूप में बदल दिया। इसके बाद भाजपा के हुकुम सिंह व सुरेश राणा अपने कार्यकर्ताओं व हजारों लोगों समेत स्थानीय पुलिस चौकी घेर ली और फिर मुस्लिम दुकानों को लूटा गया। हुकुम सिंह, सुरेश राणा व भारतेन्दु के नेतृत्व में बाजार, बस स्टाप व सड़क पर मुस्लिम स्त्री-पुरुषों पर हमला बोल दिया गया।
2 जुलाई 2013 को आर.के.पी.गी. कालेज शामली में भाजपा ने महापंचायत का आयोजन किया जहां हुकुम सिंह, सुरेश राणा, व भारतेन्दु पर लगे मुकदमे वापस लेने की मांग की गई। 21 अगस्त को दो बच्चों के झगड़े को साम्प्रदायिक हिंसा में बदल दिया गया जिसमें उमेश मलिक (भाजपा, आर.एस.एस.) समेत 14 लोगों को गिरफ्तार किया गया व 155 के खिलाफ मुकदमे दर्ज किए गए।
और फिर 27 अगस्त की खबर जिसे कि खूब कवरेज मिली। एक हिन्दू लड़की के साथ शहनवाज नाम के मुस्लिम लड़के द्वारा छेड़छाड़ की घटना पर सचिन व गौरव द्वारा शहनवाज की हत्या फिर इसके बदले में सचिन व गौरव की हत्या हुई। हकीकत में यह छेड़छाड़ की घटना न होकर आपसी बहसबाजी व इसके हिंसक हो जाने पर हुई हत्याएं थीं। बस इसके बाद संघ व भाजपा ने संयुक्त रूप से बड़ी हिंसा की तैयारी कर दी व 5 सितंबर को पंचायत का ऐलान कर दिया गया। पंचायत में शामिल लोगों ने एक इनसार नाम के मुस्लिम ड्राइवर (कांधला निवासी) की हत्या कर दी गई।
महापंचायत के दौरान ही आई.बी.एन. के पत्रकार की हत्या की खबर फैली जो कि हिन्दू था तथा यह खबर भी फैल गई कि जब हिन्दू ट्रैक्टरों से वापस जा रहे थे तब मुस्लिम समुदाय के लोगों द्वारा हमला कर दिया गया जिसमें 200 लोगों को मार दिया गया व 16 ट्रैक्टर जला दिये गए हैं। इन्हें जौली कैनाल में फेंक दिया गया है। जबकि यहां भोपा पुलिस स्टेशन में दर्ज एफ.आई.आर. में वास्तविक तौर पर 7 लोग मारे गए थे जिनमें से 3 हिन्दू(सोहनवीर, अजय व ब्रिजपाल) जबकि 4 मुस्लिम (नजर मोहम्मद, सुलतान, लताफत व मो. नाजिम) थे। यह एफ.आई.आर. गांव के लोगों की तरफ से नहीं थी। इसका मतलब था कि ये उस राह से गुजरने वाले व्यक्ति थे जहां से पंचायत से लौटते लोग ट्रैक्टर पर आ रहे थे और इनका निशाना बन गए। यहां केवल 2 ट्रैक्टर जले हुए थे बाकी पुराने व जंग लगे हुए थे।
टीम ने शाहपुर से 7-8 किमी अंदर कुटबा व कुटबी गांव की ओर प्रस्थान किया। गन्ने की ऊंची-ऊंची फसल के बीच रास्ते से होकर हम इस गांव में पहुंचे। यहां एक अजीब सा सन्नाटा व दहशत पसरी हुई थी। बड़े-बड़े घर खाली लग रहे थे। लगभग आधे किमी का सफर तय करने के बाद एक बड़े से घर के बाहर एक युवक दिखाई दिया जो कि जाट किसान परिवार से था। इसके अलावा दो लोग और थे बमुश्किल उससे बातचीत हुई। पंकज व राजेश नाम के इन दो लोगों ने बताया कि 7-8 सितंबर को तकरीबन 1500 मुस्लिम बच्चों समेत यहां से पलायन कर गए हैं हालांकि सी.आर.पी.एफ. ही अधिकतर लोगों को यहां से निकाल कर ला पाई।
आगे बढ़ने पर तीन चार मजदूर पृष्ठभूमि के हिन्दू लोग दिखाई दिये । इन्होंने कहा कि गांव में 4 लोग 7-8 सितंबर में मरे थे जिसमें दो हिन्दू थे। हालांकि हकीकत यह थी कि 7-8 सितंबर को यहां 8 मुस्लिम मारे गए। माहौल गरम होने पर हम यहां से लौट आए। यह दोनों गांव हिन्दू बहुल हैं। जिसमें जाट समुदाय के धनी किसान व अनुसूचित जाति के हिन्दू भी हैं। सभी मुस्लिम फेरी लगाने, खेत मजदूरी या अन्य मेहनत के काम करते थे। इस गांव में पसरे सन्नाटे व दहशत से समझ में आ रहा था कि पलायन कर गए मुस्लिम परिवार क्यों वापस यहां नहीं लौटना चाहते हैं। लोग अभी भी उन्माद की स्थिति में हैं। एस.एच.ओ. व एस.एस.पी. की गाड़ी व पुलिस पर भी यहां हमला बोल दिया गया था जिसमें एस.एच.ओ. घायल हो गया था। यहां अभी प्रशासन द्वारा दबिश दी जा रही है।
फिर वापस आते वक्त हम पलड़ा गांव पर रुके इसके पलड़ व बसीकलां गांव इसके आस पास हैं। ये सभी मुस्लिम बहुल गांव हैं और मुस्लिम पठानों के पास खेती है जबकि बाकी मुस्लिम मेहनतकश है। इन तीनों गांव में कोई दंगा नहीं हुआ। यहां यह भी पता लगा कि भाजपा के लोगों का कुट्मा-कुटमी गांव में लगातार आना जाना था। लोगों ने यह भी बताया कि कुछ हिन्दू लोग दहशत में यहां से चले गए थे लेकिन हम उन्हें वापस ले आए। यहां पर डा. मुकेश ने भी हिन्दू जाट के अत्याचार की तसदीक की कि किस प्रकार पंचायत को जा रहे जाट लोगों ने एक गर्भवती महिला को भाला भोंका। इसके अलावा अन्य के साथ मार काट की।
बसीकलां में लगे शिविर में भी हम लोग गए। यहां तकरीबन 250-300 मुस्लिम परिवार(1000 हजार लोग लगभग) शरण लिए हुए हैं। अन्य कैंपों की तरह यहां की स्थिति भी बेहद बुरी है। यहां पर कुटबा कुटबी, सिसौली, लाखबावडी, खेरी बड़ी व भैंसवाल गांव के मुस्लिम शरण लिए हुए हैं। सीसौली गांव वही है जहां भारतीय किसान यूनियन के नेता नरेश टिकैत व राकेश सिंह रहते हैं। सिसौली के यामीन पुत्र अलिहसन ने अपने सिर पर धारदार हथियार से लगे 6 घाव व पीठ पर लगे घाव दिखाये। यहीं अन्य लोगों से बातचीत में भी पता लगा कि राकेश टिकैत व नरेश टिकैत ने प्रशासन से कहा कि यहां सब कुछ ठीक है। जब दहशत में यामीन समेत अन्य लोग जीवन की सुरक्षा में पलायन कर रहे थे तब इनके द्वारा इन्हें रोका गया व मार काट की गई। ये सभी गांव हिन्दू बहुल हैं।
कैपों व अन्य जगहों पर कई लोगों से बातचीत में पता लगा कि लिसाढ़ व कुछ गांवों में कुछ महिलाओं व लड़कियों से बलात्कार हुए हैं जिन्हें जला दिया गया। लिसाढ़ में 13 मुस्लिम, लाखबावडी में 6 मुस्लिम फुगाना में 40-50 की हत्या 7-8 सितंबर को हुई। इसके अलावा और भी लोग मारे गए हैं। यह अभी भी जारी है। कई जगहों पर घरों को जला दिया गया। ये सभी घटनाएं गुजरात में भाजपा व संघ परिवार के नेतृत्व में कायम फासीवादी राज्य के अत्याचारों की ही तरह हैं।
टीम शाहपुर से 13-14 किमी दूर बुढाना के नहरबाई में लगे कैंप पर भी गई। यहां सिंचाई विभाग के गोदाम में यह शिविर लगा हुआ है। अब तकरीबन 450 -500 लोग शिविर में है जबकि बाकी लोग इसी बस्ती में मुस्लिम लोगों के यहां शरणार्थी के रूप में रह रहे हैं। इसके अलावा यहां लोई, कांदला, जोगिया खेडा, मदवाडा, हुसैनपुर, हर्षोली, खतौली तथा शामली में भी सहायता शिविर लगे हैं। सभी जगह पर लोगों ने बताया कि अनुसूचित जाति के हिन्दू लोगों ने उन पर हमला नहीं किया। जब उन पर बहुत दबाव डाला गया तभी कहीं-कहीं हमला किया गया। यहीं पर यह भी उमरदीन से पता लगा कि 8 सितंबर को लाखबावड़ी के एक हिन्दू नाई संजय ने मुस्लिमों पर हमले के वक्त उमरदीन की जान अपनी दुकान में बंद कर बचाई। लोगों ने यह भी बताया कि हमले में बाहर के लोग भी शामिल थे।
कुल मिलाकर इन दंगों को या मुस्लिमों पर जाट समुदाय द्वारा किए गए हमले इतनी बडी संख्या में गरीब मजदूर लोगों का पलायन, महिलाओं-लड़कियों के साथ यौन हिंसा व कुछ के साथ वीभत्स बलात्कार, हत्याकांड इस सबकी पृष्ठभूमि रचने में सपा, बसपा, भारतीय किसान यूनियन व कांग्रेस जिनमें कि मुस्लिम विधायक भी हैं, शामिल रहे हैं जबकि संघ परिवार-भाजपा तो समाज में अपने घृणित साम्प्रदायिक फासीवादी अभियान को गुजरात की सफलता के बाद दोहराने की कोशिश में हैं व यहां हुई तबाही के सूत्रधार हैं। सपा के घिनौने खेल को कैंप में रह रहे शरणार्थी कुछ-कुछ समझ रहे हैं लेकिन संघ परिवार लोगों को अपने एजेंडे पर अपने पक्ष में खड़ा करने में कामयाब रहा है जो कि निश्चित तौर पर आने वाले समय में खतरे का संकेत भी हंै।