Wednesday, 5 December 2018

बुलन्दशहर और फासिस्ट आन्दोलन

    बुलन्दशहर और फासिस्ट आन्दोलन

       दिसम्बर माह की शुरुवात में उत्तर प्रदेश में फिर फासिस्टों ने अपनी रणनीति को आगे बढ़ाया। बुलंदशहर के स्याना क्षेत्र में बजरंग दल, बी जे पी युवा मोर्चा व विश्व हिंदू परिषद द्वारा इस आंदोलन को आगे बढ़ाने की बातें सामने आ चुकी हैं। अखबारों के मुताबिक स्याना क्षेत्र में गोवंश के अवशेष पाए जाने की खबर गांव वालों से बजरंग दल के जिला संयोजक को मिली। फिर ट्रक्टर  इसे ले जाकर सड़क जाम कर दी गई। यह भी बात सामने आई है कि गांव के कुछ लोग बात यही खत्म कर देना चाहते थे। इन अवशेषों को खत्म कर देन चाहते थे।
       सड़क जाम की स्थिति में ही इंसपेक्टर द्वारा समझाए जाने पर इस अवशेष को जमीन में गाड़ देने और शांत हो जाने पर सहमति बन गयी लेकिन तभी फिर फासिस्ट लम्पटों ने पथराव किया। और  गोलियां भी चलाई गई। पुलिस वाले भाग गए। इंसेक्टर डटे रहे । अंततः इनकी हत्याहो गई। यह भी ध्यान में रखने की जरूरत है कि अखलाक मसले पर यही इंस्पेक्टर सुबोध जांच अधिकारी थे। यह फासीवादियों के फेवर में नहीं थे।
       यह बात भी नजरअंदाज नही की जा सकती है कि इस दौरान मुस्लिम समुदाय का एक धार्मिक कार्यक्रम भी चल रहा था। इसी क्षेत्र से कुछ किमी दूर जैनपुर गांव के लोगों ने मुस्लिमों के स्वागत में मंदिर वगैरह इनके लिए खोल दिये थे और इनका आतिथ्य सत्कार कर रहे थे। ये साम्प्रदायिक सौहार्द की मिसाल कायम कर रहे थे। इस धार्मिक कार्यक्रम के लिए 15 लाख से ज्यादा मुस्लिम समुदाय के लोग यहाँ शिरकत कर रहे थे। यह साम्प्रदायिक सौहार्द किनके लिए खतरनाक है निश्चित तौर पर तात्कालिक तौर पर साम्प्रदायिक पार्टियों व संगठनों के लिए ! अंततः शासकों के लिए।
        संघी प्रवक्ता और भाजपा के मंत्री आदि अब इस कार्यक्रम के प्रति ऐसा माहौल तैयार कर रहे हैं ताकि इस कार्यक्रम को संदेह, आशंका किसी षडयंत्र रचे जाने के रूप में देखा जाय। इस ढंग से भी यह अपने घृणित फ़ासीवादी आंदोलन को आगे बढ़ा रही हैं। फासिस्टों के तर्क के हिसाब से चला जाय तो कुम्भ, कांवड़ और अन्य मौकों जो लाखों करोड़ों लोग एक जगह एकजुट होते हैं तो वे षडयंत्र रचते हैं। षडयंत्र रचकर दंगे भड़काने वाले इसी नज़र से आम लोगो को देखते हैं। उनकी अपनी नज़र  और दिमाग ही इतना घृणित है।
       सतही तौर पर मामला इतना ही दिखता है। हकीकत में यह देश में खुलेआम और षडयंत्रकारी से आगे बढ़ते फ़ासीवादी आंदोलन का सूचक है। पुलिस अधिकारियों का शुरुवात में बजरंग दल के बचाव में आना, योगी और भाजपा का प्रत्यक्ष या परोक्ष तौर पर किंतु परन्तु वाले बयान इस षडयंत्र की ओर इशारा करने के लिए पर्याप्त है।
     फासिस्ट आंदोलन की एक आम विशेषता यह भी है फासिस्ट दस्तों के माध्यम से आतंक व दहशत का माहौल कायम करना। इस घटना के माध्यम से भी यही संदेश दिया गया है कि एक इंस्पेक्टर को निपटा सकते हैं तो आम जन की क्या औकात।
     इस मामले में दो एफ आई आर हुई है। एक में बजरंग दल, भजपा युवा मोर्चा क विश्व हिंदू परिषद केकार्यकर्ता समेत 87 लोग नामजद हैं। जबकि दूसरी एफ आई आर मुख्य आरोपी बजरंग दल के जिला संयोजक की ओर से है जो गौकशी करने वालों के खिलाफ है। इस शख्श ने पहले यह कहा था कि उसने गाय को काटते हुए कुछ लोगों को वहां देखा था। जबकि जिस स्थल पर गोवंशीय अवशेष पाए जाने का जिक्र है वहां के लोगों ने इससे इनका किया है साथ ही इसके कोई सबूत भी नही हैं। यही नहीं बाद में यह अपने इस गाय को काटे जाते देखने के आरोप से एक वीडियो के जरिये मुकर गया।
      तमाम अन्य मामलों विशेषकर जो मुस्लिमों से जुड़े हुए होते हैं उन पर मीडिया ट्रायल के माध्यम से बेगुनाह को अपराधी बना देने या आतंकवादी बना देने वाले अब कह रहे हैं कि सिट की जांच होने दीजिए। पता चल जाएगा कि इन्होंने ( आरोपियों) ने कुछ भी नहीं किया है। इन्हें पहले से ही पता होता है कि जांच एजंसियां इनके हाथों में है इन्ही के मुताबिक या तोड़ मरोड़कर फ़ैसला दबाव में करवाया जा सकता है।
अब तस्वीर साफ होते जा रही है कि जिस ढंग से पार्टी, सरकार व पुलिस के उच्च अधिकारी व्यवहार कर रहे हैं यह आरोपियों को बचाने की दिशा में ले जाएगा और गोकशी के मामले को केंद्र मानते हुए इसी को वजह बनाते हुए निर्दोषों को फंसाने की दिशा में बढ़ा जाएगा। ऐसा भी हो सकता है कि मामले को षडयंत्र में तब्दील कर इसे 'हिन्दू-मुस्लिम' के रूप में बदल दिया जाय। अब तथ्यों को झूठ में बदल देने का पूरा खेल जा रहा है। अभी भी बजरंग दल का जिला संयोजक गिरफ्तार नहीं है। जबकि अन्य मामलों में पुलिस का रुख, कुर्की करने, घर वालों को हिरासत में लेने व भयानक टॉर्चर करने का होता है।
      जो भी हो कुछ इनके अपने चिर परिचित अंदाज के अनुरूप ही होगा। फिलहाल ये जिस धार्मिक कार्यक्रम को निशाने पर ले रहे हैं यह घृणित, साम्प्रदायिक, नस्लवादी व्याख्या वाले तर्क फासिस्ट, दक्षिणपंथी राजनीतिज्ञ ही कर सकते हैं जो इसके जरिये अपने आका पूंजीपतियों की सेवा करते हैं। अमेरिकी साम्राज्यवादी और भारतीय फासिस्ट इस मामले में एक जुबान हो जाते हैं जबकि दोनों सऊदी अरब जैसे शेखशाहियों से  जुगलबंदी बढ़ाते हैं।

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