Wednesday, 29 May 2019

आम चुनाव 2019 , भाजपा की जीत और इसके मायने

आम चुनाव 2019 , भाजपा की जीत और इसके मायने
      2019 के चुनाव ने अन्ततः मोदी शाह की भाजपा को फिर बहुमत से सत्ता पर पहुंचा दिया है।  इस जीत से मोदी भक्त मीडिया पूरी तरह उन्मादग्रस्त है  अब इन्होंने खुलेआम घोषित कर दिया है कि उन्हें मोदी मीडिया होने पर गर्व है। इस जीत को भी इन्होंने प्रचण्ड बहुमत करार दिया है। हकीकत क्या है ?
       हकीकत यह है कि इस बार कुल वोट प्रतिशत 67 .11 % रहा। पिछली दफा भाजपा को कुल वोटों का 31 प्रतिशत वोट हासिल हुए थे इस बार यह आंकड़ा 37.4 प्रतिशत पहुंचा है । दोनों ही बार मतो के हिसाब से यह अल्पमत की सरकार है । यह भारतीय पूंजीवादी संसदीय प्रणाली के एफ टी टी पी प्रणाली का कमाल है कि इतने कम प्रतिशत (37 %) के वावजूद यह पार्टी कुल सीटों का 56 प्रतिशत सीट हासिल कर ले गई । जबकि कांग्रेस का वोट प्रतिशत अभी भी लगभग 20 है सीटों के लिहाज से इसे केवल 10 प्रतिशत सीट हासिल हुई । बहुजन समाज पार्टी को भी वोट प्रतिशत लगभग 20 % हासिल हुआ लेकिन सीट मिली 10 यानी कि कुल सीटों का मात्र 1.8 प्रतिशत।
       इस जीत को मीडिया द्वारा मोदी के व्यक्तितव का करिश्मा बताया जा रहा है कहा जा रहा है कि मोदी है तो कुछ भी मुमकिन है । लेकिन हकीकत ठीक इनके उलट है । अगर मीडिया सभी पूंजीवादी पार्टियों व इनके नेताओं के प्रति निष्पक्ष रहकर काम करता और मोदी के भाषणों व अन्य बातों को उसी तरह रखता जैसे कि राहुल से लेकर अन्य के मसले पर किया गया तो वास्तव में होता यह कि मोदी कभी भी यहां नही पहुंचते जिस मुकाम पर आज वह हैं। लेकिन ऐसा होना मुमकिन नही है यह पूंजीवाद की अपनी गति, दौर व संकटो पर निर्भर करता है । आज के दौर में साफ है एकाधिकारी पूंजी की पहली व मुख्य पसदं मोदी हैं फासीवादी ताकतें है धुर दक्षिणपंथी लोग है। यह दुनिया भर के लिए भी सच है। इसीलिए इनके द्वारा संचालित मीडिया मोदी मोदी धुन में नाच रहा है। यह अपने मत को जनमत में बदल रहा है।
           इस चीज को केजरीवाल के उदाहरण से ढंग से समझा जा सकता है जब इस पूंजी द्वारा केजरीवाल को आगे करना था तो केजरीवाल हीरो थे नायक थे लेकिन जब मोदी को इस पूंजी द्वारा प्रमोट व प्रोजेक्ट किया गया तो देखते ही देखते केजरीवाल को नायक से जोकर ( उपहास का पात्र) बना दिया गया।
         इसलिए मोदी की अगुवाई में फासीवादी ताकतों की यह जीत एकाधिकारी पूंजी के सामज पर पूरे वर्चस्व को दिखाता है । यह कहना ज्यादा  सही होगा कि  एकाधिकारी पूंजी के मालिकों ने अपनी इच्छा व आकांछा को अंततः जनादेश में बदलवा ही दिया है ! उनकी इच्छा थी मोदी की अगुवाई में फासीवादी गिरोह सत्ता पर बैठे ! इसके लिए तमाम प्रपंच रचे गए ! अरबों खरबो रुपया पानी की तरह बहाया गया ! 'मोदी नही तो कौन' की धारणा बनाई गई । पुलवामा के जरिये, अंधराष्ट्रवाद का उन्माद खड़ा किया गया । आतंकवाद व देश की सुरक्षा के लिए मोदी मात्र के ही सक्षम होने के बतौर प्रचार किया गया। साध्वी प्रज्ञा के जरिये उग्र हिंदुत्व व भगवा आतंक के रूप में ध्रुवीकरण किया गया। किसानों , बेरोजगारों को जाल में  फांसने के लिए 6000 रुपये देने , धड़ाधड़ पोस्ट निकालने का काम ऐसे ही अन्य कृत्य किये गए। चुनाव के बीच इंटरव्यू देना ऐसे ढेरों प्रपंच  नाटक किये गए।बहुत सी चीजें साफ दीखी थी जो इनके द्वारा अपनी जीत को हासिल करने को की गई। चुनाव आचार संहिता की जमकर धज्जियां उड़ाई गई।
        इनकी इस जीत में षडयंत्र से इंकार नहीं किया जा सकता ! ऐसा इसलिए की ऐसा माहौल जमीन पर नहीं दिखा। यही अधिकांश का मानना भी था। कुछ चीज़ें साफ दिखी थी कुछ चीजें अंदरूनी स्तर पर की गई है जिनकी कभी कभार चर्चा भी हुई है जैसे फरीदाबाद में भाजपा पोलिंग एजेंट द्वारा महिलाओं के भी वोट खुद ही कमल पर डाल देना, चुनाव के पहले दिन पैंसे बटवाकर व अंगुलियों पर निशान लगवा देना ताकि इनके नाम पर अगले दिन खुद ही अपनी पसंद का बटन दबा दिया जाय, ई वी एम की उन इलाकों में खराबी जहां विरोधी वोटर हों ! फर्जी वोटिंग! आदि आदि ! इनमें से कुछ अन्य पार्टियां भी कर सकती हैं व करती है मगर उनके लिए स्कोप बहुत ही कम है। चूंकि इसका कोई सटीक आंकड़ा नहीं होता लेकिन ये नतीजों को उलट पलट सकता है।
 चुनाव आयोग का जहां तक सवाल है वह तो पूरी तरह से मोदी के पक्ष में काम करता रहा। मीडिया का 90 प्रतिशत हिस्सा मोदी का प्रचार चेनल बन गया। चुनावों में इस मीडिया हर जगह मोदी ही मोदी था बाकि तो यहां से गायब थे।  इस तथ्य को भी नही भुलाया जा सकता कि इनकी अगुवाई में समाज एक फासीवादी आंदोलन मौजूद है यह ताकतवर स्थिति में मौजूद है ! आर एस एस का अपना पूरा सांगठनिक नेटवर्क मोदी के पीछे खड़ा था।
       यह बात बिल्कुल साफ थी कि धुर प्रतिक्रियावादी एकाधिकारी पूंजी की टॉप प्राथमिकता मोदी व इनका फासीवादी गिरोह था व है ! तब यह कैसे मुमकिन होता कि जब यह पूंजी 2014 रच चुकी हो तब 2019 न रच पाती ।
जहां तक कांग्रेस का सवाल है वह वैसे भी देश के एकाधिकारी पूंजी की ही सबसे पुरानी पार्टी है। फिलहाल इसकी जरूरत इस पूंजी के मालिकों को नहीं है। इसीलिये एकाधिकारी पूंजी द्वारा बहुत कम फण्ड ही इसे दिया गया।
        यह चुनाव अपने आप में अभूतपूर्व था यह इंदिरा के गरीबी हटाओ नारे से भी अलग था। यह चुनाव फासीवादी ताकतों द्वारा आने विशुद्ध रूप में अपने फासीवादी एजेंडे पर लड़ा गया था जो अब चुनाव जीत कर अपनी वैधता व वैधानिकता भी ग्रहण कर चुका है इस मायने में यह 2014 के के चुनाव से भी भिन्न है। यह स्थिति निश्चित तौर पर अभूतपूर्व ढंग से देश के मज़दूर वर्ग, जनवाद पसन्द लोग जनपक्षधर लोगो , मेहनतकशजन, आम दलितों मुस्लिमों व महिलाओं के लिए खतरनाक है।
         इस चुनाव में विपक्ष कमजोर था अपने अंतर्विरोधों से ग्रस्त था। यह खुद भ्रष्टाचार में सना हुआ है जनविरोधी व दमनकारी है। जनता को देने के लिए इनके पास कुछ नही है ये उन्हीं नई आर्थिक नीतियों की पैरोकार है व इन्हें लागू कर रही है जिन्हें कांग्रेस व भाजपा लागू कर रही है जिनसे अवाम तबाह बर्बाद हो रही है। तब स्वाभाविक सवाल है कि जनता इनको अपने विकल्प के रूप में कैसे देखती। एक तरफ विकल्पहीनता और दूसरी तरफ कमजोर व बिखरा विपक्ष के चलते भी मोदी की सत्ता में वापसी होने की संभावना थी।
       वैसे भी कॉरपोरेट घरानों तथा कांग्रेस व भाजपा की लम्बे समय से यह ख्वाहिश रही है कि देश में सिर्फ दो पार्टिया हो एक भाजपा दूसरी कांग्रेस। राजनीतिक तौर पर स्थिति ऐसी बनाने की कोशिश भी चल रही है।
          वामपंथी तथा ढेर सारे संगठन व लोग चुनाव के जरिये फासीवादी ताकतों को सत्ता से बाहर करना चाहते थे ! जहां तक सी पी आई व सी पी एम का सवाल है इनकी स्थिति और ज्यादा खराब हुई है अब इनकी कुल 5 सीटें रह गयी है। अन्य पार्टियों की तरह ये भी जनता के लिए विकल्प नहीं बनते। जहां तक जनता के लिए विकल्प का सवाल है इसमें कोई भी पार्टी जनता के लिए विकल्प नही बनती।  इसीलिए कभी सांपनाथ तो कभी नागनाथ वाली बनी हुई है। साथ ही यह भी सच है कि फासीवादी ताकतों के सत्ता में रहने से हालात ज्यादा भयावह होंगे।
        यदि फासीवादी ताकतें सत्ता से बाहर होती या कमजोर हो जाती ! यह केवल उसी सूरत होता में जब एकाधिकारी पूंजी के मालिक ऐसा चाहते तथा अपनी पुरानी वफादार पार्टी कांग्रेस को लाना चाहते! अन्यथा तो केवल और केवल फासीवाद विरोधी सशक्त क्रांतिकारी आंदोलन ही इसे अब जमींदोज कर सकता है।

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