मेरठ के भुसामंडी में लगी आग:
तथ्यान्वेषी रिपोर्ट
क्रांतिकारी लोक अधिकार संगठन के कार्यकर्ताओं की टीम मेरठ के उस क्षेत्र में 13 मार्च को गई जहां 6 मार्च को लगभग 200 घर जलकर खाक हो गए थे। यहां मजदूर मेहनतकश अल्पसंख्यक परिवारों की सालों की मेहनत से जुटाया गया हर सामान उन्हीं के सामने जलकर खाक हो गया।
मेरठ में दिल्ली बस अड्डे से तकरीबन 1 किमी की दूरी पर भूसामंडी जगह पड़ती है। इसी इलाके में तकरीबन 1-2 एकड़ की जगह है, जो तीन तरफ से बंद है, बाहर निकलने का रास्ता सिर्फ एक ओर से है। अंदर शुरूवात में एक छोटा कारखाना था फिर तीन-चार लाइन में अल्पसंख्यक परिवार बसे हुए थे जबकि अन्त में हिंदू समुदाय के परिवार हैं। तकरीबन 200 मेहनतकश मुस्लिम परिवार पिछले अलग-अलग वक्त से यहां रहते हैं। कोई 20 साल से कोई 10 से तो कोई 3-4 साल से। ये सभी यहीं आस-पास के हैं न कि बांग्लादेशी। जैसा कि मीडिया प्रचार कर रहा है। इनमें से अधिकांश लोग झुग्गी-झोंपड़ी बनाकर रहते थे। जबकि कुछ लोगों ने कुछ पक्का मकान बनाया था। यहीं तकरीबन 10-15 परिवार हिन्दू समुदाय के भी रहते हैं जिनके घर पक्के व सही सलामत हैं। एक घर जो कि मुस्लिम परिवार के घर से लगा हुआ था उसके दरवाजे व टंकी जलने के अलावा कोई नुकसान नहीं हुआ। तथ्यान्वेषी टीम ने दोनों ही समुदाय के लोगों से बातचीत की।
यहां अधिकांश मुस्लिम परिवार मेहनत मजदूरी कर परिवार का गुजारा करते हैं। झुग्गी झोंपड़ी बनाकर, प्लास्टिक की पन्नियां डालकर अपनी गुजर-बसर कर रहे थे। लोगों से बातचीत करने पर पता चला कि इस 1-2 एकड़ जमीन को मनोज शर्मा नाम के शख्स ने 3-4 लोगों को बेचा था जो कि मुस्लिम थे। फिर इन 3-4 लोगों ने जमीन गरीब मजदूर मेहनतकश मुस्लिमों को बेच दी। इन सभी के पास कोई दस्तावेज नहीं था जिससे साबित होता हो कि मालिकाना इन्हीं का है। छावनी बोर्ड इस जमीन को अपनी बताता रहा है। ये साफ है कि जमीन के मालिकाना सम्बन्धी दस्तावेज किसी के पास भी नहीं हैं। कुछ का कहना था कि अंग्रेजों के जमाने से ही ये जमीन लीज पर थी।
इसी का फायदा उठाकर छावनी बोर्ड व पुलिस अवैध जमीन तथा अतिक्रमण का डर दिखाकर आये दिन वसूली करती रहती थी। लोगों ने बताया कि जब कभी भी कोई पक्के निर्माण की कोशिश करता था, पुलिस आ धमकती थी और अवैध वसूली करती थी। ऐसा नहीं कि केवल एक बार वसूली हो बल्कि यह बार-बार होता था। पुलिस ने इस आरोप से इंकार किया है।
जैसा कि आम तौर पर गरीब बस्तियों में होता है, यहां भी कोई मुस्लिम परिवार अवैध शराब का छोटा कारोबार करता था। लोगों ने बताया कि 6 मार्च यानी आग लगाए जाने वाले दिन से कई दिन पहले पुलिस रात के 1-2 बजे उस अवैध कारोबारी समेत कुछ घरों में गैरकानूनी तरीके से घुस गई। कुछ लोगों से मारपीट की। दहशत में एक महिला बेहोश हो गई व एक नौजवान की दहशत के चलते हार्ट अटैक से मौत हो गई। पुलिस के इस अत्याचार के विरोध में इन लोगों ने पुलिस थाने पहुंचकर एक तहरीर दर्ज की थी। हमें यह बताया गया कि पुलिस इस तहरीर के चलते बहुत चिढ़ गई थी।
6 मार्च को शाम 4 बजे के लगभग छावनी बोर्ड के लोग व पुलिस के लोग यहां पहुंच गए। लोगों ने बताया कि एक मजदूर जो पक्का निर्माण करवा रहा था, उससे वसूली करने आये थे। चूंकि इसने कुछ हजार रुपये कुछ दिन पहले ही पुलिस वालों को दिए थे इसलिए इस मजदूर परिवार ने इसका विरोध करते हुए पैसे देने से मना कर दिया। इसी पर झड़प शुरू हुई। इस वक्त अधिकांश पुरुष काम से बाहर थे। लड़के, महिलाएं व अन्य सदस्य ही घर पर थे। इसी झड़प में मामला आगे बढ़ा। पथराव हुआ। लाठीचार्ज हुआ। मौजूद लोगों में भगदड़ मची। इसी वक्त एक जगह से आग लगी व फैल गई। यह आग फैलती चली गई। प्लास्टिक ने आग पकड़ी, घर में रखा सामान आग की चपेट में आया फिर गैस सिलेंडर ने आग पकड़ ली, विस्फोट होने लगे। इस दौरान सभी लोग अपनी-अपनी जान बचाने के लिए बच्चों को लेकर बाहर सड़क पर निकल गए। जान बचाने के लिए एक ओर की दीवार भी तोड़ी गई।
लोगों का कहना है कि यह आग पुलिस ने लगाई। न केवल आग लगाई गई बल्कि पेट्रोल बोतलों में भर कर छत पर फेंके गए। रबड़ के टायर भी छतों पर फेंके गए। इस दौरान जब फायर बिग्रेड की गाड़ी आग बुझाने आई तो पुलिस ने उसे आगे बढ़ने नहीं दिया फिर इसे दूसरे रास्ते से ले जाकर आग बुझाई गई लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी। पुलिस की इन हरकतों से लोगों ने आक्रोश में विरोध व जाम किया। कुछ तोड़-फोड़ भी हुई। अब आग लगाने के लिए भी पुलिस-प्रशासन ने अवैध शराब बेचने वाले मुस्लिम परिवार को जिम्मेदार ठहराया है साथ ही विरोध-सड़क जाम व तोड़-फोड़ करने के लिए भी मुस्लिम युवकों को निशाने पर लेकर जेल में डाला जा रहा है। इन परिवारों को मजबूर किया जा रहा है कि ये सभी को गिरफ्तार करवाएं।
एक तरफ पुलिस का यह दबाव और दूसरी तरफ तन के कपड़ों के अलावा सब कुछ राख बन जाने, बहुत मेहनत व जतन से सालों की मेहनत स्वाहा हो जाने का सदमा। इस स्थिति में जिस सहारे की जरूरत थी वह है नहीं। शासन-प्रशासन का रुख सबक सिखाने का है। कांग्रेस, सपा जैसी पार्टियां इस वक्त नदारद हैं। बसपा के एक मुस्लिम सांसद हाजी याकूब व पूर्व मेयर हाजी शाहिद अशफाक ने आर्थिक मदद की है और खाने-रहने की वहीं पर व्यवस्था की है।
यहां अधिकांश मुस्लिम परिवार मेहनत मजदूरी कर परिवार का गुजारा करते हैं। झुग्गी झोंपड़ी बनाकर, प्लास्टिक की पन्नियां डालकर अपनी गुजर-बसर कर रहे थे। लोगों से बातचीत करने पर पता चला कि इस 1-2 एकड़ जमीन को मनोज शर्मा नाम के शख्स ने 3-4 लोगों को बेचा था जो कि मुस्लिम थे। फिर इन 3-4 लोगों ने जमीन गरीब मजदूर मेहनतकश मुस्लिमों को बेच दी। इन सभी के पास कोई दस्तावेज नहीं था जिससे साबित होता हो कि मालिकाना इन्हीं का है। छावनी बोर्ड इस जमीन को अपनी बताता रहा है। ये साफ है कि जमीन के मालिकाना सम्बन्धी दस्तावेज किसी के पास भी नहीं हैं। कुछ का कहना था कि अंग्रेजों के जमाने से ही ये जमीन लीज पर थी।
इसी का फायदा उठाकर छावनी बोर्ड व पुलिस अवैध जमीन तथा अतिक्रमण का डर दिखाकर आये दिन वसूली करती रहती थी। लोगों ने बताया कि जब कभी भी कोई पक्के निर्माण की कोशिश करता था, पुलिस आ धमकती थी और अवैध वसूली करती थी। ऐसा नहीं कि केवल एक बार वसूली हो बल्कि यह बार-बार होता था। पुलिस ने इस आरोप से इंकार किया है।
जैसा कि आम तौर पर गरीब बस्तियों में होता है, यहां भी कोई मुस्लिम परिवार अवैध शराब का छोटा कारोबार करता था। लोगों ने बताया कि 6 मार्च यानी आग लगाए जाने वाले दिन से कई दिन पहले पुलिस रात के 1-2 बजे उस अवैध कारोबारी समेत कुछ घरों में गैरकानूनी तरीके से घुस गई। कुछ लोगों से मारपीट की। दहशत में एक महिला बेहोश हो गई व एक नौजवान की दहशत के चलते हार्ट अटैक से मौत हो गई। पुलिस के इस अत्याचार के विरोध में इन लोगों ने पुलिस थाने पहुंचकर एक तहरीर दर्ज की थी। हमें यह बताया गया कि पुलिस इस तहरीर के चलते बहुत चिढ़ गई थी।
6 मार्च को शाम 4 बजे के लगभग छावनी बोर्ड के लोग व पुलिस के लोग यहां पहुंच गए। लोगों ने बताया कि एक मजदूर जो पक्का निर्माण करवा रहा था, उससे वसूली करने आये थे। चूंकि इसने कुछ हजार रुपये कुछ दिन पहले ही पुलिस वालों को दिए थे इसलिए इस मजदूर परिवार ने इसका विरोध करते हुए पैसे देने से मना कर दिया। इसी पर झड़प शुरू हुई। इस वक्त अधिकांश पुरुष काम से बाहर थे। लड़के, महिलाएं व अन्य सदस्य ही घर पर थे। इसी झड़प में मामला आगे बढ़ा। पथराव हुआ। लाठीचार्ज हुआ। मौजूद लोगों में भगदड़ मची। इसी वक्त एक जगह से आग लगी व फैल गई। यह आग फैलती चली गई। प्लास्टिक ने आग पकड़ी, घर में रखा सामान आग की चपेट में आया फिर गैस सिलेंडर ने आग पकड़ ली, विस्फोट होने लगे। इस दौरान सभी लोग अपनी-अपनी जान बचाने के लिए बच्चों को लेकर बाहर सड़क पर निकल गए। जान बचाने के लिए एक ओर की दीवार भी तोड़ी गई।
लोगों का कहना है कि यह आग पुलिस ने लगाई। न केवल आग लगाई गई बल्कि पेट्रोल बोतलों में भर कर छत पर फेंके गए। रबड़ के टायर भी छतों पर फेंके गए। इस दौरान जब फायर बिग्रेड की गाड़ी आग बुझाने आई तो पुलिस ने उसे आगे बढ़ने नहीं दिया फिर इसे दूसरे रास्ते से ले जाकर आग बुझाई गई लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी। पुलिस की इन हरकतों से लोगों ने आक्रोश में विरोध व जाम किया। कुछ तोड़-फोड़ भी हुई। अब आग लगाने के लिए भी पुलिस-प्रशासन ने अवैध शराब बेचने वाले मुस्लिम परिवार को जिम्मेदार ठहराया है साथ ही विरोध-सड़क जाम व तोड़-फोड़ करने के लिए भी मुस्लिम युवकों को निशाने पर लेकर जेल में डाला जा रहा है। इन परिवारों को मजबूर किया जा रहा है कि ये सभी को गिरफ्तार करवाएं।
एक तरफ पुलिस का यह दबाव और दूसरी तरफ तन के कपड़ों के अलावा सब कुछ राख बन जाने, बहुत मेहनत व जतन से सालों की मेहनत स्वाहा हो जाने का सदमा। इस स्थिति में जिस सहारे की जरूरत थी वह है नहीं। शासन-प्रशासन का रुख सबक सिखाने का है। कांग्रेस, सपा जैसी पार्टियां इस वक्त नदारद हैं। बसपा के एक मुस्लिम सांसद हाजी याकूब व पूर्व मेयर हाजी शाहिद अशफाक ने आर्थिक मदद की है और खाने-रहने की वहीं पर व्यवस्था की है।
हिन्दू समुदाय से जुड़े परिवारों के पास भी टीम गई। इनका कहना था कि वे खुद (हिन्दू समुदाय) यहां सालों से रह रहे हैं। तब यहां खेत थे। मुस्लिम समुदाय के लोग यहां बाद में आये। मुस्लिमों के प्रति नफरत की झलक इनकी आखों में साफ देखी जा सकती थी। इनका कहना था कि पुलिस व छावनी बोर्ड ने इनका (हिन्दू परिवारों) साथ दिया है व पुलिस ने आग नहीं लगाई। सरकार तो बहुत अच्छा काम कर रही है। हमें इन मुस्लिमों के बीच से गुजरने वाले एकमात्र रास्ते से जाना पड़ता है। हमें बाहर निकलने का अलग रास्ता चाहिए। ये लोग (मुस्लिम) पता नहीं कहां से आ गए। जिस दिन आग लगी उस दिन हम सभी को जान बचाने के लिए भागना पड़ा।
कुल मिलाकर कुछ बातें साफ देखी समझी जा सकती हैं। मूल बात यही लगती है कि इस जमीन की कीमत आज करोड़ों में है जिस पर ये मुस्लिम परिवार सालों से रह रहे हैं। अब तक यह जमीन पुलिस व छावनी बोर्ड के लोगों के लिए अवैध कमाई का जरिया बनी हुयी थी। लेकिन इस बात की संभावना बनती है कि इस जमीन पर किसी की गिद्ध दृष्टि लगी हुई हो। इसमें छावनी बोर्ड के लोगों व पुलिस के लोगों को मोटी रकम मिल गयी हो। फिर आग लगाकर, खौफ पैदा कर इस जगह को छोड़ देने की परिस्थितियां निर्मित कर देने की सोच से साजिश रची गई हो। इसमें साम्प्रदायिकता से ग्रसित होने के चलते साथ ही गरीब मेहनतकशों के प्रति हिकारत का भाव होने के चलते पुलिस व छावनी बोर्ड द्वारा इस काम को बेझिझक, घोर संवेदनहीनता व अमानवीयता से अंजाम दिया गया हो। साथ ही यह संघ परिवार के लिए मुस्लिमों को सबक सिखा ध्रुवीकरण को आगे बढ़ाने का जरिया भी हो सकता है। यह सुनने को मिला कि यहीं बाहर शांति फार्म हाउस में एक बैठक उसी दिन हुई थी जिसमें कुछ भाजपाई भी शामिल रहे थे। जिस ढंग से हिदू समुदाय के परिवारों ने पुलिस को क्लीन चिट दी, सरकार को बहुत अच्छा काम करने वाला बताया तथा पुलिस से संरक्षण मिलने की बात कही, उससे भी यह संदेह गहराता है।
कुल मिलाकर कुछ बातें साफ देखी समझी जा सकती हैं। मूल बात यही लगती है कि इस जमीन की कीमत आज करोड़ों में है जिस पर ये मुस्लिम परिवार सालों से रह रहे हैं। अब तक यह जमीन पुलिस व छावनी बोर्ड के लोगों के लिए अवैध कमाई का जरिया बनी हुयी थी। लेकिन इस बात की संभावना बनती है कि इस जमीन पर किसी की गिद्ध दृष्टि लगी हुई हो। इसमें छावनी बोर्ड के लोगों व पुलिस के लोगों को मोटी रकम मिल गयी हो। फिर आग लगाकर, खौफ पैदा कर इस जगह को छोड़ देने की परिस्थितियां निर्मित कर देने की सोच से साजिश रची गई हो। इसमें साम्प्रदायिकता से ग्रसित होने के चलते साथ ही गरीब मेहनतकशों के प्रति हिकारत का भाव होने के चलते पुलिस व छावनी बोर्ड द्वारा इस काम को बेझिझक, घोर संवेदनहीनता व अमानवीयता से अंजाम दिया गया हो। साथ ही यह संघ परिवार के लिए मुस्लिमों को सबक सिखा ध्रुवीकरण को आगे बढ़ाने का जरिया भी हो सकता है। यह सुनने को मिला कि यहीं बाहर शांति फार्म हाउस में एक बैठक उसी दिन हुई थी जिसमें कुछ भाजपाई भी शामिल रहे थे। जिस ढंग से हिदू समुदाय के परिवारों ने पुलिस को क्लीन चिट दी, सरकार को बहुत अच्छा काम करने वाला बताया तथा पुलिस से संरक्षण मिलने की बात कही, उससे भी यह संदेह गहराता है।
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