जंतर-मंतर का तमाशा अब खत्म हो चुका है। वहां से मदारी और जमूरे अब जा चुके हैं। तमाशाबीनों की जमात भी अब वहां नहीं है। लेकिन देश के पैमाने पर तमाशा अभी जारी है।
देश के बड़े पूंजीपतियों के अखबार टाइम्स ऑफ इंडिया ने, जो खुल्लमखुल्ला बड़े पूंजीपतियों का पक्ष लेता है, और जो, खुद उसके एक प्रबंधक की जुबान में, विज्ञापनों की पैकेजिंग का साधन मात्र है, यह घोषित कर दिया है कि देश में एक क्रांति हो चुकी है। देश और दुनिया की ज्यादातर आंखों में छिपी हुई यह क्रांति क्या है? यह है सरकार द्वारा एक नए लोकपाल विधेयक के लिए तैयार हो जाना। मजदूरों और किसानों को लूट कर उन्हें कंगाली की तरफ ढकेलने वाले पूंजीपतियों के लिए क्रांति का यही मतलब हो सकता है।
भ्रष्टाचार के हर मर्ज की दवा यह लोकपाल बिल क्या बला है? इस सारे तमाशे के एक संगठनकर्ता अरविंद केजरीवाल के अनुसार इस लोकपाल बिल से केवल इतना होगा कि सीबीआई और सीवीसी नामक दो संस्थाओं को, जो भ्रष्टाचार के मामलों की छान-बीन करती हैं, सरकार से स्वतंत्र कर दिया जाएगा। न इससे कम, न इससे ज्यादा। सरकार से स्वतंत्र होने पर ये संस्थाएं (या लोकपाल) नेताओं और अफसरों से स्वतंत्र काम कर सकेंगी। नेता और अफसर आज की तरह इन्हें अपने हिसाब से नहीं चला सकेंगे। ऐसा होने पर नेताओं और अफसरों को भ्रष्टाचार के लिए सजा दिला पाना संभव हो जाएगा। तब इनके भ्रष्टाचार पर रोक लग जाएगी। यह होने पर, अन्ना हजारे के अनुसार 90 प्रतिशत भ्रष्टाचार समाप्त हो जाएगा। रहा- सहा 10 प्रतिशत भ्रष्टाचार जन-प्रतिनिधियों को वापस बुलाने (उनके चुनाव को रद्द करने) के अधिकार से समाप्त हो जाएगा, जिसके लिए ये बाद में आंदोलन करेंगे।
लेकिन यदि हम मूर्खों के स्वर्ग में नहीं रहते हैं (जैसा कि जंतर-मंतर और इंडिया गेट के मदारी और जमूरे भारत और भारत की जनता को समझते हैं) तो सहज सा सवाल खड़ा हो जाता है कि इस सर्वशक्तिशाली लोकपाल पर कौन नियंत्रण रखेगा ? उसे भ्रष्टाचार में लिप्त होने से कौन रोकेगा ? आज सांसद और विधेयक (संसद और विधानसभा) सर्वाधिकार संपन्न हैं। वे भ्रष्ट हो चुके हैं। समय-समय पर होने वाले चुनावों में हार का भय भी उन्हें भ्रष्टाचार से नहीं रोकता। तब लोकपाल को कौन भ्रष्ट होने से रोक लेगा ? लोकपाल पर नेताओं और अफसरों का प्रभाव नहीं होगा, लेकिन उस पर पैसे का प्रभाव तो होगा। और पैसा ही तो मूल भ्रष्टकारी शक्ति है। नेता और अफसर लोकपाल को अपने राजनीतिक या सरकारी पद से नहीं डरा-धमका या ललचा पाएंगे, लेकिन ये पैसे के लालच से तो जरूर ही उसे डिगा देंगे। थाने के इंस्पेक्टर से लेकर प्रधानमंत्री तक और निचली अदालत से लेकर मुख्य न्यायाधीश तक सब आज इस पैसे से खरीदे जा रहे हैं। फिर लोकपाल क्यों नहीं खरीदा जाएगा ? यदि सारे भ्रष्टाचार का मतलब पैसे द्वारा पैसे के लिए नियमों-कानूनों की एैसी-तैसी करना है तो लोकपाल इससे कैसे बच जाएगा? क्या इससे उलट वह देश का सबसे भ्रष्ट निकाय नहीं बन जाएगा?
इस तरह देश की सारी समस्या का समाधान तो दूर, लोकपाल बिल स्वयं भी भ्रष्टाचार के मामले में केवल शिगूफा भर है। इससे भ्रष्टाचार जरा भी कम नहीं होगा।
फिर इतना बड़ा तमाशा जंतर-मंतर, इंडिया गेट से लेकर टी.वी. चैनलों तक क्यों खड़ा किया गया है? यह भारत के भ्रष्ट पूंजीवादी शासकों की सोची-समझी चाल है। इस चाल का खुलासा किरन-बेदी ने तब किया जब उन्होंने कहा कि वे अभी तक महाराष्ट्र में सिमटे अन्ना हजारे को देश के पैमाने पर ले आए।
असल में देश का शासक वर्ग बहुत बुरी तरह से भयभीत है कि मंहगाई, बेरोजगारी, भुखमरी और भ्रष्टाचार की वजह से भारत की जनता भी कहीं उसी तरह विद्रोह न करने लगे जैसे अरब देशों में जनता कर रही है। पिछले कुछ महीनों में तो भ्रष्टाचार के मामलों में आंधी आई हुई है। देश की जनता बेहद गुस्से में है। इसीलिए इसके पहले की जनता विद्रोह कर सड़कों पर उतरे, शासकों ने इस गुस्से को ठंडा करने की चाल चली।
सरकार, सभी पूंजीवादी पार्टियों, पूंजीपतियों की जूठन पर पलने वाले गैर सरकारी संगठनों (अरविंद केजरीवाल, अन्ना हजारे, किरन बेदी आदि) तथा पूंजीवादी प्रजातंत्रों (अखबार, टीवी) की मिली भगत से तब यह तमाशा आयोजित किया गया। यह सब पूर्व नियोजित था। इसका समय निश्चित था (क्रिकेट वर्ल्ड कप और आईपीएल के बीच का समय), इसका रूप निश्चित था ( तिरंगे, वंदे मातरम के साथ भूख हड़ताल व कैंडिल लाईट मार्च) और इसका परिणाम निश्चित था( कुछ दिनों बाद सरकार द्वारा बात मान लेना)। एक योजना के तहत अन्ना हजारे जैसे लगभग अनजान चेहरे को देश के पैमाने पर प्रोजेक्ट किया गया। इसी के तहत बाबा रामदेव जैसे एक अन्य तमाशेबाज व मजमेबाज को किनारे भी किया गया, क्योंकि उसका अपना एक आधार है और वह रंग में भंग डाल सकता था। बाबा रामदेव इससे नाराज भी हो गए। और तो और बाद में भी इस फर्जीबाड़े को कैसे लंबे समय तक खींचा जाए इसकी भी बारीकी से योजना बनाई गई। हमें आश्चर्य नहीं होगा यदि कुछ समय बाद पता चले कि इस पूरे तमाशे की योजना किसी इवेंट मैनेजमेंट कंपनी ने बनाई थी।
इस तमाशे के द्वारा देश के पूंजीपति वर्ग ने देश की आक्रोशित जनता को छलने का प्रयास किया है, खासकर आदर्शवादी नौजवानों को। पिछले दो-तीन महीनों में इस भ्रष्ट पतित व्यवस्था के समर्थकों ने बार-बार कहा है कि भारत में महंगाई, बेरोजगारी, गरीबी, भ्रष्टाचार के बावजूद अरब देशों की तरह विद्रोह नहीं होंगे क्योंकि यहां लोकतंत्र है, यहां जनता को विरोध करने का अधिकार है। पूंजीवादी व्यवस्था के इन समर्थकों ने इसका एक नमूना इस तमाशे द्वारा पेश भी कर दिया है। इससे पहले कि आक्रोशित जनता विद्रोह करे, वे इस तरह फर्जी विरोध प्रदर्शन आयोजित कर आक्रोश को क्षरित कर देना चाहते हैं।
लेकिन जैसा कि कहा गया है कुछ लोगों को एक समय के लिए और सब लोगों को कुछ समय के लिए बेवकूफ बनाया जा सकता है। परंतु सभी लोगों को सब समय के लिए बेवकूफ नहीं बनाया जा सकता है। भारत का पूंजीपति वर्ग और उसके लगुए-भगुए जल्दी ही इस सच्चाई का सामना करने के लिए मजबूर होंगे।
जनवादी अधिकारों के लिए संघर्षशील व साम्राज्यवाद विरोधी क्रांतिकारी संगठन
Sunday, 19 June 2011
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
चुनाव की आड़ में बिहार में नागरिकता परीक्षण (एन आर सी)
चुनाव की आड़ में बिहार में नागरिकता परीक्षण (एन आर सी) बिहार चुनाव में मोदी सरकार अपने फासीवादी एजेंडे को चुनाव आयोग के जरिए आगे...
-
काकोरी के शहीदों की स्मृति में अशफ़ाक़-बिस्मिल की राह चलो ! राम प्रसाद बिस्मिल, अशफ़ाक़ उल्ला खाँ...
-
23 मार्च के शहीदों की याद में भगत सिंह की बात सुनो, इंकलाब की राह चुनो ! ...
-
साम्प्रदायिक नागरिकता (संशोधन) कानून के ज़रिए भी फासीवादी निजाम की ओर बढ़े कदम आखिरकार संघी सरकार ने सी ए ए लागू कर ही दि...
-
‘आरक्षण के भीतर आरक्षण’ : आमजन के लिए आज महज झुनझुने के भीतर झुनझुना उच्चतम न्यायालय की सात सदस्यों की संविधान पीठ ने अपने बहुमत (6-...
-
The sixth conference of KRANTIKAREE LOK ADHIKAAR SANGATHN is going to be held on third and fourth oct. 2015 in Bareilley Utta...
-
Krantikari Lok Adhikar Sangathan support the Nation wide Bandh call from central trade unions for 28th February 2012. The bandh is against t...
-
भारत पाक सैन्य टकराव औ र युद्ध विराम 22 अप्रैल को कश्मीर के पहलगाम में कथित आतंकी हमले में 28 लोग मारे गए। इसमें अधिकतर हिंद...
-
क्रांतिकारी लोक अधिकार संगठन का आठवां सम्मेलन क्रालोस का आठवां सम्मेलन 24- 25 जून 2023 को उत्तर प्रदेश के...
No comments:
Post a Comment