` ‘जनआन्दोलनों के दमन’ के विषय पर खुले सत्र
के आयोजन के साथ - क्रान्तिकारी लोक अधिकार
संगठन का पाँचवा सम्मेलन समाप्त 30 जून-1
जूलाई 2012
को तय कार्यक्रम के अनुसार क्रा.लो.स. का दो दिवसीय सम्मेलन दिल्ली के नाहरपुर क्षेत्र के
अम्बेडकर सभागार में सफ़लतापूर्वक सम्पन्न हुआ। सम्मेलन में उत्तराखन्ड, उत्तर प्रदेश
व दिल्ली से संगठन के प्रतिनिधियों ने शिरक़त की । सम्मेलन की शुरुआत झन्डारोहण कार्यक्रम
के साथ हुई। संगठन के अध्यक्ष प्रेम प्रशाद आर्या ने क्रा.लो.स. का ध्वज फ़हराया । ‘मेरा रंग दे
बसन्ती चोला’
गीत जोश-ओ-खरोश से कार्यकर्ताओं
ने इस मौके पे गाया । इसके बाद गत 4-5 वर्षों
के दौरान अपने नागरिक व जनवादी अधिकारों के लिये व अपने शोषण-उत्पीड़न के विरोध में संघर्ष करते हुए शासकों के बर्बर दमन में शहीद हुए साथियों
को श्रद्धांजली दी गयी। अध्यक्षीय भाषण के बाद तथा सम्मेलन के संचालन के लिये तीन सदस्यीय
संचालक मंडल का प्रस्ताव पारित होने के बाद सम्मेलन के भीतरी सत्र की शुरुआत हो गयी। सम्मेलन के पहले दिन घोषणा पत्र, संविधान राजनीतिक-सांगठनिक रिपोर्ट पर खूब विचार-विमर्श हुआ। नागरिक व जनवादी अधिकारों के
संदर्भ में विस्तारपूर्वक बहस हुई। एतिहासिक-सैद्धान्तिक बातचित
इस सम्बन्ध में हुई। अन्तत: घोषणा पत्र व संविधान पारित हुआ।
इसके बाद सम्मेलन प्रतिनिधियों ने विस्तार से देश-दुनिया के हालात
पर चर्चा की। पिछ्ले 4-5 वर्षों मे हमारे
देश व वैश्विक पटल पर अर्थव्यवश्था में आये संकट पर संज़ीदगी व शिद्दत से चर्चा की।
इसके साथ-साथ राजनीति के क्षेत्र में फ़ेरबदल पर बातें हुई। मध्य-पूर्व के मुल्कों, ग्रीस, स्पेन, इटली में महंगाई, बेरोजगारी व
भ्रष्टाचार से त्रस्त अवाम के संघर्षों व उसके निर्मम दमन, तथा साम्राज्यवादी
मुल्कों की दखलअंदाज़ी पर गहराई से चर्चा हुई। अन्त में राजनीतिक-सांगठनिक रिपोर्ट कुछ संशोधनों के बाद पारित हो गये। सम्मेलन के अन्तिम दिन 7 प्रस्ताव लिये गये। प्रस्ताव
‘जनआन्दोलनों
के दमन’ के विरोध
में, ‘राष्ट्रीय
आतंकवाद निरोधी केन्द्र’ के गठन के विरोध में तथा इसे रद्द करने के संदर्भ
में, ‘राजद्रोह
की धारा-124
A' को रद्द करने के सम्बन्ध में, ‘उत्पीड़ित राष्ट्रीयताओं के आत्मनिर्णय
के अधिकार’ के तहत
किये जा रहे संघर्षों के दमन के विरोध तथा इस मांग के समर्थन में, देश-दुनिया भर में अपने जनवादी व नागरिक अधिकारों के लिये तथा अपने शोषण-उत्पीड़न के विरोध में संघर्षों के दौरान शहीद हुए साथियों को याद करते हुए
‘शहीदों
को श्रद्धांजली’,
‘बथानी टोला नरसंहार मामले में न्यायपालिका की भूमिका’ का विरोध करने
के सम्बन्ध में तथा भारतीय समाज में जनवाद के विस्तार के लिये ‘जनप्रतिनिधियों
को वापस बुलाने के अधिकार’ को लागू करने की मांग के संदर्भ में सर्वसम्मति से
लिये गये। सम्मेलन के दूसरे सत्र में
पदाधिकारियो व नीति निर्धारक निकाय का चुनाव सम्पन्न हुआ। 17 सदस्यीय सर्वोच्च परिषद तथा 7 सदस्यीय कार्यकारिणी का
गठन किया गया। प्रेम प्रशाद आर्या को अध्यक्ष चुना गया जबकि भूपाल को महासचिव। अपराह्न 2:30 से सम्मेलन का ‘खुला सत्र’ शुरू हुआ। खुले
सत्र का विषय- जनवादी अधिकारों के दमन का विरोध करो’ था। खुले सत्र
का संचालन साथी कमलेश व फ़ैसल ने किया। अलग-अलग संगठन से आये लोगों
ने इसमें भागेदारी की। क्रान्तिकारी गीत व नारों के साथ खुले सत्र की शुरूआत हुई। पी.डी.एफ़.आई. से प्रतिनिधि के रूप में आये साथी अर्जुन प्रसाद ने जनवाद की स्थिति की चर्चा
की, मध्य
भारत में प्राकृतिक संसाधनों की खुली लूट की छूट तथा यहां पर जनप्रतिरोध को कुचलने
के मकसद से ऑपरेशन ग्रीन हन्ट अभियान के तहत तैनात 1 लाख { लगभग } की फ़ौज की चर्चा
विस्तार से की। दिल्ली विश्वविध्यालय से आये इतिहास के प्रोफ़ेसर संजय ने कहा कि एक
विषमता भरे समाज में, वर्गों मे बंटे समाज में या अमीरी-गरीबी वाले समाज में जनवादी अधिकार समान नहीं हो सकते। एतिहासिक संदर्भों का
हवाला देते हुए विस्तार से उन्होंने बताया कि पूंजी के मालिक, उत्पादन के साधनों
के मालिकों को विशेषाधिकार प्राप्त होते हैं जब कि इससे वंचित लोगों को मात्र कुछ सीमित
अधिकार। इसके अलावा खुले सत्र के इस कार्यक्रम में क्रा.लो.स. के अध्यक्ष प्रेम प्रसाद
आर्या,
क्रान्तिकारी नौजवान सभा, प्रगतिशील महिला एकता केन्द्र, क्रान्तिकारी
युवा संगठन,
इंक़लाबी मज़दूर केन्द्र से आये प्रतिनिधियों व पाक्षिक अखबार नागरिक अधिकारों को समर्पित के सम्पादक मुनीस ने भी खुले सत्र मे
अपने-अपने विचार रखे। इस्के अलावा पी.यू.डी.आर. व क्रान्तिकारी जनवादी मोर्चा
के साथियों ने भी कार्यक्रम मे भागेदारी की।
इस दौरान
बीच-बीच में क्रान्तिकारी गीत प्रस्तुत किये गये तथा बच्चों ने बाबा
नागार्जुन की व्यंग्य कविता ‘ ॐ शब्द ही ब्रह्म है........’ पर बेहतरीन नृत्य
प्रस्तुत किया। इसके बाद खुले सत्र के कार्यक्रम के समापन की घोषणा के साथ सम्मेलन
जनवादी अधिकारों के हनन, जनवादी अधिकारों के विस्तार के लिये तथा धर्म-लिंग-जाति-क्षेत्र के आधार पर किये
जा रहे किसी भी प्रकार के भेदभाव के विरोध में व साम्राज्यवादी हस्तक्षेप का विरोध
करने के संकल्प के साथ सम्पन्न हो गया।
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