Wednesday, 9 October 2013

Seminar on uttarakhand disaster

       उत्तराखंड आपदा राहत मंच द्वारा सेमीनार का आयोजन सम्पन्न

     उत्तराखंड की राजधानी देहरादून में उत्तराखंड आपदा राहत मंच द्वारा 29 सितंबर 2013  को एक सेमीनार का आयोजन किया गया । इस मंच का गठन 16-17 जून की भीषण आपदा से राज्य के आपदा ग्रस्त पहाड़ी इलाकों में सरकार द्वारा बरती घोर संवेदनहीनता बरती गई गैर जवाबदेही व गैर जिम्मेदाराना व्यवहार का परिचय दिया गया । इस समय जब आपदा ग्रस्त इलाकों को राहत सामाग्री व स्वास्थ्य सुविधाओ की सख्त जरूरत थी तब शासकों का यह रुख बहुत बेशर्मी भरा था ।
      मंच का गठन इसी दौर में किया गया मंच के नेतृत्व में केदारनाथ के उखीमठ , गुप्तकाशी व कालीमठ क्षेत्रों में कई दिन तक मेडिकल कैंप लगाए गए ।उत्तरकाशी के भी कुछ इलाको में इस दौर में कुछ दिन तक चिकत्सीय सुविधाये आपदा प्रभावित लोगों को देने के प्रयास हुए । गुप्तकाशी व उखीमठ में गोष्ठी भी आयोजित की गई ।
    इसी कड़ी में मंच ने देहरादून में सेमीनार का आयोजन किया । सेमीनार का विषय था `उत्तराखण्ड आपदा से उपजे सवाल व उनका समाधान। सेमीनार में मंच के घटक संगठनो के कायकर्ता मौजूद थे। इसके अलावा महिला समाख्या कोटद्वार, अस्तित्व संस्था देहरादून,दिशा सामाजिक संगठन, महिला सुमंगला महासंघ कोटद्वार के प्रतिनिधि , जन कवि अतुल शर्मा, संवेदना से साहित्यकार जीतेन भारती व उत्तराखंड परिवर्तन पार्टी से युद्धवीर त्यागी,  शुक्रवार पत्रिका के दिल्ली से आए पत्रकार स्वतंत्र मिश्र केदारनाथ उखीमठ से संगीता नेगी, अखिलेश व पंकज जबकि रामनगर से गणेश ( ईको सेंसिटिव ज़ोन के मुद्दे पर काम कर रहे ) चेतना सामाजिक संगठन से तिरेपन सिंह चौहान व गोपाल कृष्णन, उत्तराखंड महिला मंच की अध्यक्षा कमला पंत व निर्मला बिष्ट शामिल थे ।
   16-17 जून की आपदा में मारे गए लोगो को श्रद्धाजंली अर्पित करने  के बाद कार्यक्रम की शुरुआत की गई। आपदा राहत मंच के गठन की पृष्ठभूमी पर बात चित करने के बाद उत्तराखंड राज्य के गठन के लिए चले संघर्ष के गीत `लड़ना है भाई ये तो लंबी लड़ाई है ` गीत की प्रस्तुति की गई । क्रालोस के महासचिव भूपाल ने सेमीनार का संचालन किया ।
    परिवर्तन कामी छात्र संगठन के अध्यक्ष साथी नितिन ने मंच द्वारा प्रस्तुत सेमीनार को आधार बनाते हुए वक्तव्य दिया गया ।  वक्तव्य में चिन्हित किया गया कि राज्य में हुई आपदा की असल वजह अंधाधूध , अनियंत्रित व लागत कम करने के फेर में पिछड़ी तकनीक के प्रयोग से हो रहे बांधो सडको सुरंगो बांधों आदि का निर्माण है । राज्य सरकार की संवेदनहीनता व गैर जिम्मेदाराना रुख के चलते मृतको का आकडा कई गुना बढ़ गया। वक्तव्य में कहा गया कि पूंजीवाद एक ओर अकूत मुनाफे की आंधी हवस में प्रकृति को तबाह करता करता है तो दूसरी ओर `पर्यावरण संरक्षण `का राग आलापता है , यह प्रकृति की तबाही – बरबादी अपनी बारी में आम इंसान के लिए आपदा बन जाती है । इसलिए जरूरी है कि इसे संघर्ष में निशाना बनाया जाये । समाजवादी अर्थव्यवस्था चुकीं निजी मालिकाने व सामाजिक उत्पादन के अंतर्विरोध को खत्म करके सामाजिक  मालिकाने को स्थापित करती है अत: मुनाफे की अंधी हवस के लिए अराजक,अनियंत्रित, अनियोजित उत्पादन व प्रकृति का भयानक दोहन व विनाश की परिस्थितियाँ यहाँ खत्म हो जाती है इस प्रकार समाजवाद अपने नियोजित, नियंत्रित व संतुलित विकास के दम पर प्रकृति व मनुष्य के बीच समांजस्य स्थापित करती है ।
    उखीमठ से आए पंकज व संगीता नेगी ने भीषण आपदा व उसके बाद गाव की स्थिति व महिलाओ की स्थिति को बया किया।
   चेतना सामाजिक संगठन के साथी तिरेपन सिंह चौहान ने विस्तार से उत्तराखंड में प्रकृतिक संसाधनों की लूट जिस प्रकार से देशी- विदेशी पूंजी की गठजोड़ ने मचा रखी है उस पर प्रकाश डाला।
   रामनगर से पहुंचे साथी गणेश ने विधायकों व उच्च अधिकारियों की संवेदनहीनता को तथ्यों के जरिये उजागर किया और ईको सेंसिटिव ज़ोन के संदर्भ में उन्होने कहा कि यह इन क्षेत्रों में रहने वाली आबादी के लिए खतरनाक है ।
   मंच द्वारा एक डॉक्यूमेंटरी पिक्चर भी तैयार की गई थी जीसका शीर्षक था `केदार के शोक । इस पिक्चर का प्रदर्शन लांच के बाद किया गया। डॉक्यूमेंटरी के माध्यम से दिखाया गया कि किस प्रकार सोनप्रयाग से ऊपर बने बांध के निर्माण के लिए कंपनी ने भयानक अनियमितताएँ बरते है वैज्ञानिक मानदंडो व तकनीकी के इस्तेमाल का अनदेखा किया है जो सोनप्रयाग की तबाही का बढ़ा कारण बना । सारकारों के दावो की पोल खोलती स्थिति व 16-17 की आपदा से अपनी जान बचाने के लिए ऊपर पहाड़ों की भाग रहे लोग भूख व लगातार हो रही बारिश में ठंड, व ऑक्सीज़न की कमी के कारण मारे गए ये वह लोग थे जिन्हे यदि उचित समय पर राहत मिल जाती तो बचाया जा सकता था इधर – उधर पड़ी मौत से जद्दोजहद करती अंत में मौत से हारती लाशें शासको की भयानक संवेदनहीनता को दिखा रही थी । साथ ही जिन्हे आर्मी द्वारा बचा लिया गया था वो लोग अब तक अपने परिजनो के पास नही पहुंचे थे डॉक्यूमेंटरी में सरकार के दावों पर प्रश्न चिह्न लगाए गए थे । गाव गाव में मेडिकल कैप के आयोजन के दौरान गाव की स्थितियों को  दिखाय गया व इसके माध्यम से भी सरकारी दावों की पोल खोली गई ।
   इस पिक्चर के बाद फिर नागरिक अखबार के संपादक मुनीष कुमार ने अपने वक्तव्य में पहाड़ो की जटिल व भयावह हो गई  स्थितियो का  जिक्र किया गया।
   शुक्रवार पत्रिका के दिल्ली से आये पत्रकार साथी स्वतंत्र मिश्र ने पूरे देश के स्तर पर चल रहे प्राकृतिक संसाधनो की लूट व इसमे पर्यावरण के विनाश व भोपाल गैस कांड का हवाला देकर बताया कि पूंजीपति वर्ग अपने मुनाफे की अंधी हवस में पर्यावरण को अपूरणीय क्षति पहुंचा रहा है।
     सेमीनार में जन कवि अतुल शर्मा द्वारा कविता पढ़ी गई जिसके बोल थे ` सहमी सी गंगा की धार ,कापे है बद्रि केदार ..... `। इस कविता के जरिये आपदा के बाद की पहाड़ के लोगो की मन:स्थिति को व्यक्त किया गया । साथ ही राहत के नाम पर हो रहे दावों की भी धज्जिया उड़ाई गई।
   इंकलाबी मजदूर केंद्र के महासचिव अमित ने उत्तराखंड के मैदानी इलाको विशेषकर लक्सर हरिद्वार में इस दौरान हुई बरबादी व यहा हो रहे सरकारी दावों की कलई खोली ।
   अगले वक्ता के रूप में क्रांतिकारी लोक अधिकार संगठन के अध्यक्ष प्रेम प्रसाद आर्या ने कहा कि इंसानियत को प्यार करने वालो के लिए जरूरी है कि वे वक्त को सुनें अब वक्त उनके जीतने का है।
  सेमीनार में दिशा सामाजिक संस्था की जाह्नवी , महिला समाख्या कोटद्वार की दीपा ,अस्तित्व संस्था से दीपा व उत्तराखंड परिवर्तन पार्टी के युद्धवीर त्यागी ने भी सेमीनार में अपने विचार रखे सभी ने उत्तराखंड में हो रहे भयानक लूट व दोहन पर चिंता व्यक्त की।  
           


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