अनपढ़ गरीब व वंचितों को चुने जाने के अधिकार को छीने जाने की साजिश का विरोध करो !
राजस्थान के बाद हरियाणा में संघी सरकार ने पंचायत चुनावों गरीब और अनपढ़ लोगों के चुनाव में चुने जाने यानी खड़े होने के अधिकार को छीन लिया है. इसे देश के सर्वोच्च न्यायालय ने सही ठहरा दिया है।
ब्रिटिश हुकमत के दौर में उच्च शिक्षा व संपत्ति रखने वाले संपत्ति धारी लोगो तक चुनाव को सीमित किया गया था पूंजीवाद जनवाद अपने शुरुवाती काल में इसी ढंग से आगे बढ़ा है। रूसी क्रान्ति के बाद सत्ता मज़दूर वर्ग के हाथ मैं आने के बाद दुनिया भर में शोषित उत्पीड़ित जनो के संघर्ष आगे बढे। हिन्दुस्तान की आज़ादी में इसी काम पढ़ी लिखी या अनपढ़ रखी गयी मज़दूर किसान आदिवासी जन की कुर्बानी व संघर्ष के दम पर ही वह स्थिति बनी कि देश आज़ाद हुआ। सत्ता पर शोषक उत्पीड़क वर्ग ही काबिज हो गया। लेकिन उसकी पार्टी को जनता को संविधान में अलग अलग जनवादी संस्थाओं में चुने जाने व चुनने का अधिकार घोषित करना पड़ा। लेकिन आज विशेषकर संघी ताकतें इस जनवादी अधिकार को को अनपढ़ या काम पढ़े लिखे जनसमुदाय के खिलाफ एक साजिश के तहत इसे छीन रही है।
हरियाणा सरकार ने पंचायत चुनाव प्रतिनिधियों के संबंध में यह नियम बना दिया है कि उन्हें एक न्यूनतम शैक्षिक योग्यता रखनी होगी। यानी इस योग्यता के न होने पर वे चुनाव में खड़े नहीं हो सकते। सर्वोच्च न्यायालय ने हरियाणा सरकार के जनवाद विरोधी कदम को सही करार दे डाला
राजस्थान की संघी सरकार ने यह नियम बनाया था कि पंचायत चुनाव वही लड़ सकते हैं जिनके घर में शौचालय हो तथा जो किसी भी तरह के कर्ज से मुक्त हों। इन कर्जो में बिजली का बिल भी शामिल है।
इन दोनों संघी सरकारों के फैसलों से सीधे तौर पर समाज के गरीब और वंचित प्रभावित होंगे। वे पंचायत चुनाव नहीं लड़ पायेंगे। इस प्रकार एक साजिश के तहत गरीब और वंचित लोगों को निशाना बनाया जा रहा संघ परिवार तो वैसे भी हमेशा से ही जनवाद विरोधी रहा है। वह देश में मुसलमान और इसाई अल्पसंख्यकों के जनवादी अधिकारों को कुचलने की बात तो खुलेआम करता ही रहा है, सामजिक असमानता जाति व्यवस्था को समाज मुफीद मानने वाला संघ में बराबरी का कोई स्थान नहीं रहा है।
पंचायती राज के तहत शासकों ने अपने लूट शोषण के तंत्र का गांवों और मोहल्लों तक विस्तार किया हैं। तथा इस तंत्र के अपने होने का भ्रम लोगों के बीच फैलाया है ।इसके जरिये पूंजीवादी पार्टियां गाँव गाँव तक एजेन्ट कायम कर लेती हैं। लेकिन इस सब के बावजूद यह जनवादी अधिकार से जुड़ा हुआ सवाल है लम्बे जनसंघर्षों से जनता को हासिल है। इसलिए इस अधिकार में कटौती खिलाफ आवाज बुलंद करनी होगी।
राजस्थान के बाद हरियाणा में संघी सरकार ने पंचायत चुनावों गरीब और अनपढ़ लोगों के चुनाव में चुने जाने यानी खड़े होने के अधिकार को छीन लिया है. इसे देश के सर्वोच्च न्यायालय ने सही ठहरा दिया है।
ब्रिटिश हुकमत के दौर में उच्च शिक्षा व संपत्ति रखने वाले संपत्ति धारी लोगो तक चुनाव को सीमित किया गया था पूंजीवाद जनवाद अपने शुरुवाती काल में इसी ढंग से आगे बढ़ा है। रूसी क्रान्ति के बाद सत्ता मज़दूर वर्ग के हाथ मैं आने के बाद दुनिया भर में शोषित उत्पीड़ित जनो के संघर्ष आगे बढे। हिन्दुस्तान की आज़ादी में इसी काम पढ़ी लिखी या अनपढ़ रखी गयी मज़दूर किसान आदिवासी जन की कुर्बानी व संघर्ष के दम पर ही वह स्थिति बनी कि देश आज़ाद हुआ। सत्ता पर शोषक उत्पीड़क वर्ग ही काबिज हो गया। लेकिन उसकी पार्टी को जनता को संविधान में अलग अलग जनवादी संस्थाओं में चुने जाने व चुनने का अधिकार घोषित करना पड़ा। लेकिन आज विशेषकर संघी ताकतें इस जनवादी अधिकार को को अनपढ़ या काम पढ़े लिखे जनसमुदाय के खिलाफ एक साजिश के तहत इसे छीन रही है।
हरियाणा सरकार ने पंचायत चुनाव प्रतिनिधियों के संबंध में यह नियम बना दिया है कि उन्हें एक न्यूनतम शैक्षिक योग्यता रखनी होगी। यानी इस योग्यता के न होने पर वे चुनाव में खड़े नहीं हो सकते। सर्वोच्च न्यायालय ने हरियाणा सरकार के जनवाद विरोधी कदम को सही करार दे डाला
राजस्थान की संघी सरकार ने यह नियम बनाया था कि पंचायत चुनाव वही लड़ सकते हैं जिनके घर में शौचालय हो तथा जो किसी भी तरह के कर्ज से मुक्त हों। इन कर्जो में बिजली का बिल भी शामिल है।
इन दोनों संघी सरकारों के फैसलों से सीधे तौर पर समाज के गरीब और वंचित प्रभावित होंगे। वे पंचायत चुनाव नहीं लड़ पायेंगे। इस प्रकार एक साजिश के तहत गरीब और वंचित लोगों को निशाना बनाया जा रहा संघ परिवार तो वैसे भी हमेशा से ही जनवाद विरोधी रहा है। वह देश में मुसलमान और इसाई अल्पसंख्यकों के जनवादी अधिकारों को कुचलने की बात तो खुलेआम करता ही रहा है, सामजिक असमानता जाति व्यवस्था को समाज मुफीद मानने वाला संघ में बराबरी का कोई स्थान नहीं रहा है।
पंचायती राज के तहत शासकों ने अपने लूट शोषण के तंत्र का गांवों और मोहल्लों तक विस्तार किया हैं। तथा इस तंत्र के अपने होने का भ्रम लोगों के बीच फैलाया है ।इसके जरिये पूंजीवादी पार्टियां गाँव गाँव तक एजेन्ट कायम कर लेती हैं। लेकिन इस सब के बावजूद यह जनवादी अधिकार से जुड़ा हुआ सवाल है लम्बे जनसंघर्षों से जनता को हासिल है। इसलिए इस अधिकार में कटौती खिलाफ आवाज बुलंद करनी होगी।
No comments:
Post a Comment