8 मार्च : अन्तराष्ट्रीय श्रमिक महिला दिवस
मौजूदा दौर में महिलाओं की सबसे बड़ी समस्या उनके खिलाफ बढ़ती यौन हिंसा का है। समस्या तब और विकराल हो जाती है सत्ता पर बैठे लोग इसे परोक्ष तौर बढ़ावा देते है और कुछ तो खुद इसमें शामिल भी है । महिला व बल विकास मंत्री मेनका गांधी जब ये कहती है कि हार्मोनल बिस्फोट से बचाव को लक्षमण रेखा होनी चाहिए। तब यह शासकों की घटिया मानसिकता को व्यक्त करता है।
महिलाये किसी भी उम्र की हों घर या बाहर हर जगह असुरक्षित हैं। निर्भया कांड जैसी घटनाएं अब बढ़ती जा रही है।
लेकिन शासकों के पास इलाज के नाम पर वही नीम हकीमी नुस्खा है मज़बूत सरकार - कठोर कानून - मज़बूत क़ानून व्यवस्था ।
इस तर्क को करने वाले सशत्र बलों द्वारा सशत्र बल विशेषाधिकार क़ानून के तहत मणिपुर से कश्मीर तक महिलाओं पर किये गए यौन हिंसा को सुप्रीम कोर्ट की जांच के दायरे से भी बाहर करने को सही ठहराते है व इसे कोर्ट में भी चुनौती न दिए जा सकने को सही बताते है।
स्पष्ट है कि मामला कुछ व्यक्तियों का नहीं है बल्कि समूछे तंत्र का है व्यवस्था का है। यह पूंजीवादी व्यवस्था जिसकी बुनियाद शोषण और लूट पर टिकी है । जहाँ दिन रात महिला को यौन वस्तु मे बदल देने का प्रचार हो वहां यह मुमकिन नहीं कि लैंगिक बराबरी कायम हो, महिला मुक्ति हासिल हो।
महिलाओं के खिलाफ यौन हिंसा पूंजीवादी समाज के पूर्व के समाजों में भी मौजूद थी । यानी वर्गीय समाजों की उत्पत्ति के साथ यह यौन हिंसा प्रारंभ होने लगती है और आज यह व्यापक और विकराल रूप धारण करती जा रही है।
वर्गीय समाज की उत्पत्ति के साथ यौन हिंसा के दो संगठित और भिन्न रूप एकनिष्ठ विवाह और वेश्यावृत्ति सामने आये। दोनों रूप एक-दूसरे से विपरीत थे परंतु दोनों ही रूपों में स्त्री का कोई वज़ूद नहीं था वह कहीं नहीं थी।
उसकी हैसियत संपत्ति की सी थी । जिसे काबू में रखने के लिए तमाम नियम कानून बनाये गए । धर्म के जरिये इसे पवित्र व संस्थाबद्ध कर दिया गया।
इसलिए अक्टूबर क्रांति शताब्दी वर्ष पर समाजवादी क्रांति की उपलब्धियों को याद करते हुए यही कहना या स्थापित करना होगा कि महिला मुक्ति का रास्ता सिर्फ समाजवाद से होकर जाता है।
मौजूदा दौर में महिलाओं की सबसे बड़ी समस्या उनके खिलाफ बढ़ती यौन हिंसा का है। समस्या तब और विकराल हो जाती है सत्ता पर बैठे लोग इसे परोक्ष तौर बढ़ावा देते है और कुछ तो खुद इसमें शामिल भी है । महिला व बल विकास मंत्री मेनका गांधी जब ये कहती है कि हार्मोनल बिस्फोट से बचाव को लक्षमण रेखा होनी चाहिए। तब यह शासकों की घटिया मानसिकता को व्यक्त करता है।
महिलाये किसी भी उम्र की हों घर या बाहर हर जगह असुरक्षित हैं। निर्भया कांड जैसी घटनाएं अब बढ़ती जा रही है।
लेकिन शासकों के पास इलाज के नाम पर वही नीम हकीमी नुस्खा है मज़बूत सरकार - कठोर कानून - मज़बूत क़ानून व्यवस्था ।
इस तर्क को करने वाले सशत्र बलों द्वारा सशत्र बल विशेषाधिकार क़ानून के तहत मणिपुर से कश्मीर तक महिलाओं पर किये गए यौन हिंसा को सुप्रीम कोर्ट की जांच के दायरे से भी बाहर करने को सही ठहराते है व इसे कोर्ट में भी चुनौती न दिए जा सकने को सही बताते है।
स्पष्ट है कि मामला कुछ व्यक्तियों का नहीं है बल्कि समूछे तंत्र का है व्यवस्था का है। यह पूंजीवादी व्यवस्था जिसकी बुनियाद शोषण और लूट पर टिकी है । जहाँ दिन रात महिला को यौन वस्तु मे बदल देने का प्रचार हो वहां यह मुमकिन नहीं कि लैंगिक बराबरी कायम हो, महिला मुक्ति हासिल हो।
महिलाओं के खिलाफ यौन हिंसा पूंजीवादी समाज के पूर्व के समाजों में भी मौजूद थी । यानी वर्गीय समाजों की उत्पत्ति के साथ यह यौन हिंसा प्रारंभ होने लगती है और आज यह व्यापक और विकराल रूप धारण करती जा रही है।
वर्गीय समाज की उत्पत्ति के साथ यौन हिंसा के दो संगठित और भिन्न रूप एकनिष्ठ विवाह और वेश्यावृत्ति सामने आये। दोनों रूप एक-दूसरे से विपरीत थे परंतु दोनों ही रूपों में स्त्री का कोई वज़ूद नहीं था वह कहीं नहीं थी।
उसकी हैसियत संपत्ति की सी थी । जिसे काबू में रखने के लिए तमाम नियम कानून बनाये गए । धर्म के जरिये इसे पवित्र व संस्थाबद्ध कर दिया गया।
इसलिए अक्टूबर क्रांति शताब्दी वर्ष पर समाजवादी क्रांति की उपलब्धियों को याद करते हुए यही कहना या स्थापित करना होगा कि महिला मुक्ति का रास्ता सिर्फ समाजवाद से होकर जाता है।
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