राजस्थान, मध्यप्रदेश व छत्तीसगढ़ में हालिया विधानसभा चुनाव
हिंदी हार्ट लैंड कहे जाने वाले क्षेत्र में मोदी_शाह की भाजपा हार गई और कांग्रेस जीत गई। यह " नागनाथ का हारना व सांपनाथ का जीतना" है। यह विकल्पहीनता की स्थिति को ही दिखाता है। जहां तक तीसरे मोर्चे की बात है यह भी कोई विकल्प नहीं है। यह भी सांपनाथ से कम नहीं हैं। ये सभी पूंजीपति वर्ग के अलग अलग हिस्सों को ही अभिव्यक्त करने वाले शेड्स है।
जहां तक भाजपा की पराजय का सवाल है इसके गिरते ग्राफ का सवाल है यह जारी है। भाजपा का मोदी की अगुवाई में मध्य प्रदेश में 2014 में प्राप्त वोट शेयर 54 % से गिरकर 44.3% , राजस्थान में 55 %से गिरकर 38.8 % , छत्तीसगढ़ में 49% से 32.9 % हो गई है। तेलंगाना में 10.7% से 7 % हो गई है। मिज़ोरम में थोड़ी वृद्धि हुई है। औसतन तीन राज्यों में लगभग 12 % की गिरावट हुई है। यह 2019 के लिहाज से मोदी शाह की जोड़ी को पीछे धकेलने वाला साबित हो सकता है।
जहां तक फासिस्ट आंदोलन का सवाल है। यह अभी भी मजबूत स्थिति में है। 2013 के वोट शेयर के लिहाज से भी इसमें विशेष गिरावट नहीं दिखती। वैसे भी देश की समग्र पूंजीवादी राजनीति अब दक्षिणपंथ की दिशा में झुकी हुई है। कांग्रेस के आने का यह अर्थ नही कि फासीवादी आंदोलन कमजोर होगा यहां तक कि केंद्र की सत्ता में कायम होने की स्थिति में भी यह असम्भव है।
जो 2014 से पहले कभी न हो सका उसकी उम्मीद पालना मूर्खता है। हां ! इनकी आक्रामकता पर बेशक असर पड़ेगा। वस्तुतः यह फासिस्ट आंदोलन एकाधिकारी पूंजीवादी घरानों की जरूरत है। हालांकि फासीवादी राज्य की इसे अभी जरूरत नहीं है। इसलिए इन चुनाव मात्र से फासीवादियों को हराने का ख्वाब देखना बिल्कुल भी सही नहीं है।
जहां तक विकल्प का सवाल है जनता के लिए विकल्प कोई क्रांतिकारी ही हो सकता है। जो अभी कहीं दिखता नहीं।
जहां तक भाजपा की पराजय का सवाल है इसके गिरते ग्राफ का सवाल है यह जारी है। भाजपा का मोदी की अगुवाई में मध्य प्रदेश में 2014 में प्राप्त वोट शेयर 54 % से गिरकर 44.3% , राजस्थान में 55 %से गिरकर 38.8 % , छत्तीसगढ़ में 49% से 32.9 % हो गई है। तेलंगाना में 10.7% से 7 % हो गई है। मिज़ोरम में थोड़ी वृद्धि हुई है। औसतन तीन राज्यों में लगभग 12 % की गिरावट हुई है। यह 2019 के लिहाज से मोदी शाह की जोड़ी को पीछे धकेलने वाला साबित हो सकता है।
जहां तक फासिस्ट आंदोलन का सवाल है। यह अभी भी मजबूत स्थिति में है। 2013 के वोट शेयर के लिहाज से भी इसमें विशेष गिरावट नहीं दिखती। वैसे भी देश की समग्र पूंजीवादी राजनीति अब दक्षिणपंथ की दिशा में झुकी हुई है। कांग्रेस के आने का यह अर्थ नही कि फासीवादी आंदोलन कमजोर होगा यहां तक कि केंद्र की सत्ता में कायम होने की स्थिति में भी यह असम्भव है।
जो 2014 से पहले कभी न हो सका उसकी उम्मीद पालना मूर्खता है। हां ! इनकी आक्रामकता पर बेशक असर पड़ेगा। वस्तुतः यह फासिस्ट आंदोलन एकाधिकारी पूंजीवादी घरानों की जरूरत है। हालांकि फासीवादी राज्य की इसे अभी जरूरत नहीं है। इसलिए इन चुनाव मात्र से फासीवादियों को हराने का ख्वाब देखना बिल्कुल भी सही नहीं है।
जहां तक विकल्प का सवाल है जनता के लिए विकल्प कोई क्रांतिकारी ही हो सकता है। जो अभी कहीं दिखता नहीं।
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