Saturday, 20 June 2020

बढ़ते युद्धोन्माद व अन्धराष्ट्रवाद का विरोध जरूरी है


       भारत की सीमा पर गलवान घाटी में चीनी व भारतीय सैनिकों के बीच संघर्ष में तकरीबन 20 भारतीय सैनिकों के मारे गए हैं। इस घटना के बाद देश में अन्धराष्ट्रवादी उन्माद का शोर फिर चरम पर है। पिछले कई दिनों से चीनी व भारतीय शासकों के बीच लगातार अंतर्विरोध बढ़े है जिसकी परिणति के बतौर एक ओर सीमा पर तो दूसरी ओर देश के भीतर कॉरपोरेट मीडिया व संघी आई टी सेल द्वारा युद्धोन्माद व अन्धराष्ट्रवाद का माहौल बनाया गया।
    इस युद्धोन्माद व अन्धराष्ट्रवाद की कीमत मज़दूरों किसानों के बेटों को अपनी जान के रूप में सरहद पर चुकानी पड़ी है। यह बेहद दुःखद है। यह सीमा के इस व उस पार दोनों जगहों पर है।
    यह बेहद संगीन व दुखदायी स्थिति है कि एक तरफ देश के भीतर मजदूर मेहनतकश लोग, शासकों के घोर पूंजीपरस्त व घोर जनविरोधी होने के चलते मारे जा रहे हैं तो दूसरी तरफ उनके बेटे अन्धराष्ट्रवादी युद्धोन्माद में सरहदों पर मारे जाते हैं।
       अन्धराष्ट्रवादी युद्धोन्माद शासकों के लिए ऐसा मुद्दा है जहां पूँजीवादी शासक, चाहे वे उदारवादी हों या फिर फासीवादी, एक हो जाते हैं। मगर फासीवादी ताकतों के लिए तो यह कोर मुद्दा है। आज अन्धराष्ट्रवाद अमेरिका से लेकर दुनिया के अधिकांश मुल्कों में छाया हुआ है। इसके जरिये फासीवादी ताकतों को एकाधिकारी पूंजी आगे बढ़ा रही है।
     भारत जैसे मुल्कों के लिए अन्धराष्ट्रवाद व युद्धोन्माद के दो पहलू हैं एक तरफ कमजोर मुल्कों को सर्जीकल स्ट्राइक व घर में घुसकर मारने की धमकी देना तो दूसरी ओर अपने से ताकतवर पूँजीवादी मुल्कों के सामने दुम हिलाना, मालों के बाहिष्कार की खोखली धमकी देना।
      पड़ोसी मुल्कों के खिलाफ नफरत फैलाना, युद्ध के उकसावे की राजनीति, सैन्य महिमामंडन, छद्म युद्ध ! पूँजीवादी फासीवादी शासकों की यह अन्धराष्ट्रवादी राजनीति बहुसंख्यक नागरिकों के लिए बेहद खतरनाक है।  आम नागरिकों, मजदूर मेहनतकशों, निम्न मध्यम वर्ग व मध्यम वर्गीय लोगों, सभी के असन्तोष, संकट से ध्यान हटाने तथा इमके तमाम संघर्षों को ध्वस्त कर देने व डाइवर्ट कर देने में अन्धराष्ट्रवाद शासकों का बेहद मारक हथियार है।
      कोरोना महामारी ने संकट ग्रस्त पूंजीवाद के संकट को गहनतम कर दिया है जो विश्वअर्थव्यवस्था पहले ही संकट में थी व भारत की भी। वह धराशायी होने की ओर बढ़ी है। इस महामारी ने पूंजीवाद की सीमाओं को तीखे ढंग से उजागर किया है। इसने पूँजीवादी फासीवादी शासकों के नकाब लगे घृणित चेहरों को नंगा कर दिया है।
     इसलिये ऐसे दौर में अन्धराष्ट्रवाद व युद्धोन्माद जैसा माहौल बनाये रखना बेहद जरूरी हो जाता है।
        कोरोना जैसी महामारी या अन्य भीषण आपदा, ऐसे समाज में जिसकी बुनियाद शोषण पर टिकी हुई हो, जहां मुनाफा ही जीवन दर्शन हो, जहां पूंजी ही सब कुछ हो, जहां व्यक्ति व समाज के बीच दुश्मनाना द्वंद हो, जहां पूंजीपति-मजदूर, डॉक्टर-मरीज,वकील-क्लाइन्ट व अन्य रूप में दो परस्पर निरंतर विरोधी हितों में भयानक टकराहट हो ! पूंजीपति वर्ग ही समाज में हावी होता है। यहां समाज , सामाजिक हित नेपथ्य में चला जाता है व्यक्तिगत हित सर्वोपरी हो जाते हैं। यहां पूंजीपति वर्ग कहता है हर व्यक्ति अपने अपने लिए मेहनत करेगा तो समाज भी ऊपर उठ जाएगा, मगर ऐसा होता नहीं, पूंजीपतिवर्ग शेष समाज की तबाही बर्बादी की कीमत पर आगे बढ़ता जाता है ऐसे समाज में त्याग-समर्पण व बलिदान का भाव कहां से आये। जबकि भीषण आपदा व महामारी से निपटने में इन मूल्यों की भी सख्त दरकार होती है। यह पूँजीवाद की सीमा है। यह केवल समाजवाद में ही सम्भव है।
      पूंजीवाद बहुसंख्यक आम नागरिकों को आज के दौर में केवल और केवल तबाही बर्बादी दे सकता है। यह लूट खसोट के जरिये भी होता है यह सामाजिक व्यय में भारी कटौति व टेक्स की बढ़ोत्तरी के जरिये भी होता है तो यह अन्धराष्ट्रवाद व युद्धोन्माद के जरिये भी होता है। इसलिए बेहद जरूरी है कि इसका हर संभव विरोध किया जाय।

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