Sunday, 2 August 2020

खामोश प्रतिरोध व भयानक यंत्रणा के बीच 5 अगस्त का शिलान्यास


        बीते साल जब अभी अर्थव्यवस्था के भीषण संकट को लेकर देश की मीडिया में हाहाकार मचा ही था कि तभी यकायक मोदी सरकार ने जम्मू-कश्मीर की पुरानी स्थिति खत्म कर दी। अनुच्छेद 370 को खत्म कर दिया गया। पुनर्गठन बिल के जरिये राज्य को दो हिस्सों में बांट दिया गया। जम्मू-कश्मीर की आम जनता इस फैसले के खिलाफ अपना प्रतिरोध, अपनी पीड़ा न व्यक्त कर सके इसके सारे घृणित प्रबंध किए गए।  कश्मीर को संगीनों के साये में कैद कर दिया गया। देश से इस हिस्से का अलगाव कर कश्मीरी अवाम को हर संपर्क से काट दिया गया। इंटरनेट भी पूरी तरह बंद कर दिया गया।
    जनता के उग्रप्रतिरोध का वह सिलसिला जो छल-कपट व घोर दमन के बावजूद उतार चढ़ाव के साथ निरन्तर बना हुआ था वह इस बार खामोश प्रतिरोध में बदल गया। यह खामोशी व अलगाव अब और ज्यादा गहन हो गया है। कश्मीरी अवाम की दुख, तकलीफें और भयावह यंत्रणा इस गुजरे एक साल में बढ़ती गई है। ऐसा नहीं कि प्रदर्शन सड़कों पर नहीं हुए। मगर बुनियादी तौर पर प्रतिरोध में गहन खामोशी थी और आज भी है।
         जो दावे मोदी सरकार द्वारा किये गए थे कि यह कश्मीरी अवाम की बेहतरी के लिए है कि 370 व 35 ए ने कश्मीर के विकास को रोका हुआ है कश्मीर पिछड़ा हुआ है 370 के खत्म हो जाने से कश्मीर व कश्मीरी अवाम का विकास होगा कि आतंकवाद का सफाया हो जाएगा, ये दावे खोखले थे और गुजरे एक साल ने साबित किया कि सब कुछ इसके विपरीत ही हुआ है
         कश्मीर से बाहर भी इन्हें निशाना बनाया गया। सी.ए.ए. विरोधी प्रदर्शनकारियों में भी विशेष तौर पर इन्हीं को निशाना बनाया गया, इन्हें 'गैरकानूनी गतिविधि रोकथाम अधिनियम' यू ए पी ए के तहत जेलों में ठूंस दिया गया। केंद्र सरकार से असंतोष जताने वाले व कश्मीरी अवाम के दुख तकलीफों को अपनी रिपोर्ट के जरिये दुनिया को बताने वाले ककश्मीरी पत्रकारों को ही यू ए पी ए के तहत जेलों में डाल दिया गया। कश्मीर की जनसांख्यिकी ( डेमोग्राफी ) बदलने की दिशा में कई कदम इस लौकडाऊन के काल में किये गए है।
         अब ठीक एक साल बाद 5 अगस्त को ही राम मंदिर का शिलान्यास की तिथि तय की गई है। पिछले साल 5 अगस्त को जम्मू-कश्मीर से 370 को खत्म करके अब इस साल 5 अगस्त को ही मंदिर शिलान्यास की तिथि घोषित करने का क्या मकसद है ? इसके जरिये क्या संदेश दिया जाना है ? इसका मकसद साफ है हिन्दू फासीवादी आंदोलन को समाज में निरंतर बरकरार रखना तथा इसे ज्यादा ऊंचाई की ओर ले जाना, नग्न आतंकी तानाशाही की दिशा में कदम और आगे बढ़ाना। इसका मूल मकसद है लौकडाऊन के चलते तबाह बर्बाद हो चुके आम अवाम को असन्तोष को डाइवर्ट करना तथा सार्वजनिक स्वास्थ्य व्यवस्था के तबाह कर दिए जाने के चलते कोरोना संक्रमण के चलते असमय मारे जा रहे आम लोगों के असन्तोष, आक्रोश को ध्वस्त करना।
        इस 5 अगस्त के शिलान्यास  के जरिये अघोषित तौर पर हिन्दू राष्ट्र के गठन के प्रतीक के तौर पर हिन्दू बहुसंख्यक आबादी में संदेश देना भी है। इसका मतलब है अघोषित तौर पर देश को हिन्दू राष्ट्र बताना। धर्मनिरपेक्षता का जो औपचारिक आवरण है उसे उतार फैंकने के बहुत करीब हिन्दू फासीवादी पहुंच चुके हैं। व्यवहार में अघोषित तौर पर दोयम दर्जे की स्थिति में धकेल दिए गए अल्पसंख्यक मुस्लिम आबादी और ज्यादा अलगाव की ओर बढ़ेगी दूसरी ओर देश के बहुसंख्यक मज़दूर मेहनत कशों की बदहाली और ज्यादा तेज़ी से आगे बढ़ेगी।
       मगर इतिहास या समाज, शासकों के चाहने या उनके अपने मन मुताबिक करतूतों से ढल जाने वाला होता तो फिर समाज या इतिहास वैसा नहीं होता जैसा आज है। वहीं ठहरा रहता। यही मोदी सरकार के तमाम फासीवादी प्रयासों के बावजूद होगा। इतिहास और समाज निश्चित तौर पर आगे बढ़ेगा। तब इतिहास अपने दोहराव के बावजूद ठीक वैसा ही नहीं होगा जैसा 100 साल पहले हुआ था। जब हिटलर व मुसोलिनी तथा इनके संगठनों को ध्वस्त कर दिया गया था मगर फिर भी फासीवाद को पालने पोसने जमीन मौजूद रही थी।  अब समाज व इतिहास वहां खड़ा होगा जहां फासीवाद का समूल नाश कर दिया जाएगा

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