साथी कंचन को श्रद्धांजलि
प्रगतिशील सांस्कृतिक मंच, बरेली के नेता कामरेड कंचन का 16 सितम्बर 2021 को प्रातः बरेली में निधन हो गया। वे कैंसर से पीड़ित थे और बीते डेढ़ माह से कोमा में थे। करीब 4 माह पहले ही उन्हें सांस लेने में तकलीफ शुरू हुयी और उसके बाद शुरू हुए इलाज में जांचों के पश्चात यह सामने आया कि उन्हें फेफड़ों का कैंसर है और कैंसर शरीर के अन्य हिस्सों के साथ दिमाग में भी फैल गया है। 4 दिन पूर्व तक वे ऋषिकेश एम्स में भर्ती थे। कैंसर की पुष्टि व उसके फैलाव का पता चलने के पश्चात डॉक्टरों ने भी हाथ खड़े कर दिये थे।
कामरेड कंचन का यूं जाना उनको जानने वाले सभी लोगों को हतप्रभ कर गया। जिन्हें उनकी लाइलाज बीमारी का पता भी था वे भी उनके इतनी जल्दी जाने की उम्मीद नहीं कर रहे थे।
कामरेड कंचन का इंकलाबी जीवन लगभग ढाई दशक का रहा। इस दौरान वे क्रांतिकारी लोक अधिकार संगठन, इंकलाबी मजदूर केन्द्र, मेडिकल वर्कर्स एसो. व प्रगतिशील सांस्कृतिक मंच में विभिन्न जिम्मेदारियां उठाते रहे। सांस्कृतिक कर्म में उनकी संगठन में जुड़ने से पहले से ही रुचि थी। गीत गायन, तरह-तरह के वाद्य यंत्र बनाने, नाटक करने आदि में वे पहले से ही सिद्धहस्त थे। अपनी सांस्कृतिक प्रस्तुतियों व सहज व्यवहार के चलते, वे न केवल अपने संगठन में बल्कि बरेली शहर की तमाम ट्रेड यूनियनों, संगठनों में काफी लोकप्रिय थे। उनकी मांग शहर में होने वाली हर छोटी-बड़ी सभा-गोष्ठी-जलसों में सांस्कृतिक प्रस्तुति के लिए होने लगती थी।
उनकी सांस्कृतिक प्रतिभा को देखकर ही उन्हें एक सांस्कृतिक संगठन खड़ा करने का कार्यभार दिया गया। जिसे बखूबी निभाते हुए उन्होंने प्रगतिशील सांस्कृतिक मंच के गठन में नेतृत्वकारी भूमिका निभायी। इस मंच के गठन की प्रक्रिया में उनकी सांस्कृतिक प्रतिभा और निखरती गयी। उनकी प्रस्तुतियां अधिक लोकप्रिय होती गयीं। मंच के निर्माण के बाद उनके नेतृत्व में मंच के साथी बरेली शहर के बाहर भी विभिन्न बड़े जलसों, जनसंघर्षों में सांस्कृतिक प्रस्तुतियां देने लगे। अपनी बीमारी से पहले तक वे किसान आंदोलन में गाजीपुर बार्डर पर 3-4 माह तक लगातार मौजूद रहे। गाजीपुर बार्डर पर भी अपनी प्रस्तुतियों के चलते वे काफी लोकप्रिय हो चुके थे।
कामरेड कंचन सरल-सहज स्वभाव के व्यक्ति थे। साथियों के साथ घुल मिल जाने, लोगों को अपनी बातों से प्रभावित कर लेने, आम जन से उनकी भाषा में बातें करने में वे माहिर थे। वे पूरे दिल से गाते-बोलते नजर आते थे और उनकी जुबान ही नहीं आंखें भी बोलती नजर आती थीं। वे विभिन्न अन्य मुद्दों पर खुद गीत रचने की कोशिश करते थे, गीतों की नयी धुन इजाद करने का प्रयास करते थे। इस कोशिश में वे ज्यादातर सफल होते और उनकी ज्यादातर नयी प्रस्तुति पसंद की जाती। हालांकि कई दफा उन्हें नाकामयाबी भी मिलती। और लोग उनकी नयी धुन को पसंद नहीं करते लेकिन इसके बावजूद साथी कंचन निराश नहीं होते थे बल्कि अपनी लगन से नई धुन रचने में लगे रहते।
2006 से मजदूर संगठन ( इमके) में काम करने के बावजूद क्रालोस के कार्यक्रमो उनकी मौजूदगी रहती थी। कभी तकनीकी कामों में सहयोग के लिए तो कभी सांस्कृतिक विधा की प्रस्तुति हेतु।
2019 के क्रालोस के सम्मेलन में उनके गाये गए गीत और नाटक की प्रस्तुति बेहद सराहनीय थी। इस साल जुलाई में स्वास्थ्य खराब होने से पहले 4-5 माह तक वह लगातार ही गाज़ीपुर बॉर्डर पर किसानों के बीच मौजूद रहे। गीतों, मिमिक्री और एकल नाटक के जरिये वह किसानों के दुख दर्द, किसानों के आंदोलन को स्वर देते रहे।
क्रांतिकारी राजनीति में सक्रिय होने के बाद लम्बे वक्त तक तरह-तरह के काम करते हुए अपने परिवार का पालन करते रहे। ज़िन्दगी के इस कठिन संघर्ष में भी उनकी समाज बदलने की चाहत की लौ कभी मद्धिम नहीं हुई।
इस अंधेरे दौर में ऐसे साथी का अकस्मात हमारे बीच से चले जाना न केवल उनके परिवार के लिए क्षति है बल्कि प्रगतिशील सांस्कृतिक मंच के लिए यह काफी बड़ी क्षति है। इसके साथ साथ यह हम सभी लोगों व संगठनों के लिए जो समाज को पूंजी की जकड़न से मुक्त करने के संघर्ष में लगे हुए हैं उनके लिए भी गहरी क्षति है। साथी कंचन की कमी को हम जल्द भर सकें और मानवता की मुक्ति के उनके संघर्ष तथा सपने को शिद्दत से आगे ले जा सकें यही हमारी उन्हें सच्ची श्रद्धांजलि होगी।
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