जलियावाला बाग हत्याकांड के शहीदों की स्मृति में
जलियांवाला बाग कांड के शहीदों की स्मृति में जलियांवाला बाग हत्याकांड आजादी के आंदोलन की बहुत बड़ी घटना है। 13 अप्रैल 1919 के दिन 'हिंदू-मुस्लिम-सिक्ख जनता' एकजुट होकर जलियांवाला बाग में सभा कर रही थी। ये हज़ारों लोग निहत्थे थे। इन्हें घेरकर अंग्रेज सरकार ने गोलियां चलवा दी। जिसमें सैकड़ों लोग मारे गए और घायल हो गए थे।
जनता के संघर्ष को कुचलने की यह भयानक कोशिश थी। मगर संघर्ष थमा नहीं। जोर-शोर से आगे बढ़ गया। जनता आज़ादी के लिए सड़कों पर उमड़ पड़ी। भगतसिंह, चंद्रशेखर आज़ाद, अशफ़ाक़, बिस्मिल, उधम सिंह जैसे क्रांतिकारी पैदा हुए। फिर वह वक्त करीब आया जब देश आजाद हो गया।
जलियांवालाबाग हत्याकांड हमें बर्बर अंग्रेजी राज की याद दिलाता है। भारत की जनता और संसाधनों की अंग्रेज शासकों द्वारा होने वाली क्रूर लूट-खसोट की याद दिलाता है। ब्रिटिश साम्राज्यवाद की दुनिया भर के गुलाम देशों की जनता के कत्लेआम की याद दिलाता है।
जलियांवालाबाग हत्याकांड हमें उन काले कानूनों की याद दिलाता है जिन्हें खत्म करवाने के संघर्ष में सैकड़ों लोग 13 अप्रेल 1919 को शहीद हो गए थे।
जलियांवाला हत्याकांड भारत की जनता की नग्न लूट-खसोट, शोषण-उत्पीड़न के खिलाफ हुए कई संघर्ष में एक कड़ी थी।
इसमें एक ओर कोल विद्रोह, संथाल विद्रोह, भील विद्रोह, मुंडा विद्रोह के रूप में आदिवासियों के संघर्ष थे। दूसरी ओर अंग्रेज सरकार और इनके एजेंट जमींदारों और सूदखोरों की भयानक लूट खसोट के खिलाफ किसान संघर्ष थे। नील, पाबना, मोपला, कूका आदि किसानों के विद्रोह थे। बाद में मजदूर भी यूनियन बनाकर पूंजीपतियों और अंग्रेज सरकार की लूट के खिलाफ जुझारू संघर्ष करने लगे।
इन संघर्षों में भारत का पहला स्वतंत्रता संग्राम भी था। इसमें किसान, सैनिक और कई राजा-रजवाड़े एकजुट होकर आज़ादी के लिए लड़े थे।
अंग्रेज साम्राज्यवादियों की भयंकर लूट-खसोट से भारत के करोड़ों दस्तकार खासकर जुलाहे तबाह-बर्बाद हो गए और मारे गए ; भारत में बड़े-बड़े अकाल पड़े जिसमें 3 करोड़ से ज्यादा आबादी मारी गई। लाखों लोग अंग्रेजों से मुक्ति की लड़ाई लड़ते हुए मारे गए।
इसी तरह की लूट-खसोट और हत्याएं साम्राज्यवादी देश दुनिया भर में कर रहे थे। इसी के चलते दुनिया में बड़ी उथल-पुथल होने लगी।
1910-20 का दौर दुनिया में बड़े उथल-पुथल का था। दुनिया के गरीब देशों की लूट-खसोट और इनके बंटवारे की होड़ में इंग्लैंड, फ्रांस, जर्मनी, इटली, जापान, अमेरिका जैसे ताकतवर मुल्कों के बीच पहला विश्व युद्ध हुआ। इस युद्ध के खर्चे का बोझ भी इन्होंने गुलाम देशों की जनता के कंधों पर लाद दिया।
अंग्रेज सरकार ने देश में जनता की लूट-खसोट खूब बढ़ा दी। जनता के क्रांतिकारी संघर्षों को कुचलने के लिए अंग्रेज सरकार ने रॉलेट एक्ट (काला कानून) बना दिया।
इस काले कानून से अंग्रेज सरकार अब किसी को भी केवल शक जताकर 'आतंकवादी ठहरा' सकती थी, बिना सुनवाई के 2 साल तक जेल में बंद कर सकती थी।
इसके विरोध में ही 'जलियांवाला बाग' में 20 हज़ार से ज्यादा लोग सभा कर रहे थे। जिन पर अंग्रेज सरकार ने गोलियां चलवाई।
जलियावाला बाग हत्याकांड के शहीदों ने अंग्रेजों की 'फूट डालो- राज करो' की नीति को पीछे धकेल दिया था।
1857 के स्वतंत्रता संग्राम में भी 'हिंदू-मुस्लिम' एकजुट होकर आज़ादी के लिए लड़े थे। इस संग्राम के लोगों ने अपना नेता 'बहादुर शाह जफर' को चुना था। इस संग्राम ने अंग्रेज सरकार को हिला दिया था।
अब अंग्रेज सरकार ने धर्म को हथियार बनाया। इस हथियार से 'हिंदू-मुस्लिम' जनता को बांटने व आपस में लड़ाने का काम किया। धार्मिक कट्टरपंथी संगठनों को पाला पोसा। इतिहास तो पहले से ही अंग्रेजों ने इस ढंग से लिखा था कि अलग-अलग धर्म की जनता आपस में लड़े और मर-कटे। इस तरह अंग्रेज सरकार, जमींदार, पूंजीपति और सूदखोर मजे से लूट-खसोट करते रहते। इनका राज लंबे समय तक बने रहता।
मगर ऐसा हुआ नहीं। एक तरफ दुनिया में साम्राज्यवादी लूट खसोट थी। उस दौर में पहला विश्व युद्ध हो रहा था। युध्द निपटते-निपटते रूस में मजदूर, किसान और मेहनतकश जनता ने क्रांति कर दी थी। पूंजीपतियों और जमींदारों से सत्ता छीन ली थी। अब जनता शासक बन गई। इसने शोषण-उत्पीड़न पर पाबंदी लगा दी। रोजगार की गारंटी की। मुफ्त शिक्षा और इलाज की व्यवस्था की। श्रम करना (मेहनत) हर स्वस्थ नागरिक के लिए अनिवार्य कर दिया।
जनता के इस राज ने दुनिया भर की जनता को ताकत दी। मजदूर मेहनतकश जनता ने अपने-अपने देशों में भी यही सब करने के लिए संघर्ष शुरू कर दिये। कुछ देशों में ही जनता सफल हुई। मगर 40-50 साल बाद फिर से साजिश रचकर पूंजीपति शासक बन गए। जनता का राज खत्म हो गया।
उस दौर में ज्यादातर देशों में देशी पूंजीपति, जमींदार जनता के संघर्षों पर सवार होकर सत्ता पर पहुंच गए। यही भारत में भी हुआ। देश आजाद हो गया। मगर यह जनता का राज नहीं था। यह पूंजीपतियों का राज था। सरकार और पार्टियां पूंजीपतियों की थी। जनता को इस सरकार को चुनने की आज़ादी भर थी।
यही वजह है कि 70 साल पहले जो वायदे थे, नारे थे, वही आज भी हैं। गरीबी हटाने की, रोजगार देने की बात हुई; महंगाई कम करने, महिलाओं को सुरक्षा देने, सबको सस्ता इलाज, सस्ती शिक्षा की और अधिकारों की बातें हुई।
आज बेरोजगारी के क्या हाल हैं? महंगाई कितनी है ? महिलाओं की सुरक्षा के क्या हाल हैं, सस्ती शिक्षा और इलाज की क्या व्यवस्था है ?
आज़ादी के बाद एक दौर में जनता को संघर्षो से जो थोड़ा बहुत हासिल हुआ भी था। वह सब भी पिछले 30 सालों से छीना जा रहा है। यह नयी आर्थिक नीति (निजीकरण-उदारीकरण की नीति) के जरिये हो रहा है।
इन नीतियों से अंबानी, अडानी, टाटा बिड़ला जैसे कॉरपोरेट पूंजीपति की दौलत को बहुत तेजी से बढ़ रही हैं। आम जनता की लूट खसोट को बेतहाशा बढ़ रही हैं। अमीरी और गरीबी के बीच खाई ज्यादा गहरी होती जा रही है।
सरकारों ने इन पूंजीपतियों पर लगने वाले संपत्ति कर को खत्म कर दिया। कॉरपोरेट टैक्स को बहुत कम कर दिया। जनता पर टैक्स का भारी बोझ लाद दिया है। जनता पर खर्च होने वाले बजट को भी पूंजीपतियों पर लुटाया है।
सरकारी नौकरियों में भर्ती पर रोक है या संविदा (ठेके) पर भर्ती हैं। सरकार खुद सरकारी विभागों में भोजन माता, आशा वर्कर आदि से बेगारी करवा रही है।
इसीलिए मार्च 2020 से नवंबर 2021 के बीच देश के इन पूंजीपतियों की दौलत 30 लाख करोड़ रुपये बढ़ गयी। जबकि लॉकडाउन के चलते 12 करोड़ लोगों का रोजगार चौपट हो गया। करोड़ों आबादी गरीबी में धकेल दी गयी।
जिस जनता ने आज़ादी के संघर्ष में कुर्बानियां दी; आज़ादी के बाद देश के निर्माण में अपना खून पसीना बहाया, आज वही कंगाल हैं मोहताज हैं। यह अब सम्मानजनक नागरिक नहीं बल्कि 'लाभार्थी' है। इनके अधिकार को सरकार ने खैरात बना दिया है।
'निजीकरण-उदारीकरण' की नीतियों के मामले में भाजपा, कांग्रेस, सपा, आम आदमी पार्टी, बसपा आदि सभी एकजुट हैं। सभी इन नीतियों को अपने-अपने तरीके से लागू करती हैं। ये सभी पार्टियां भ्रष्ट हैं। जनविरोधी हैं।
आज इन्हीं नीतियों को दुनिया में हर देश की सरकार अपनी जनता पर थोप रही है। ये नीतियां इंग्लैंड, अमेरिका, फ्रांस, रूस, जर्मनी जैसे लुटेरे (साम्राज्यवादी) देशों के शासकों ने थोपी हैं। हर देश के शासक पूंजीपति भी इन नीतियों के पक्ष में हैं। देशी-विदेशी शासक मिलजुलकर लूट खसोट मचा रहे हैं। हिस्सा बांट रहे हैं।
ये साम्राज्यवादी देश दुनिया की लूट-खसोट के लिए तो एकजुट हैं मगर लूट-खसोट में किसकी कितनी हिस्सेदारी हो, इसके लिए आपस में इनमें झगड़े हैं, टकराहटें हैं। युक्रेन पर हमला इसी टकराहट के कारण हैं। आने वाले समय में टकराहटें ज्यादा तीखी होंगी।
हमारे शासक जानते हैं इनकी यह लूट-खसोट जनता को तबाह-बर्बाद करेगी, कंगाल कर देगी। जिस तेज गति से महंगाई और बेरोजगारी बढ़ रही है कभी भी जनता का सैलाब सड़कों पर उमड़ सकता है। किसान एक साल तक संघर्ष में डटे रहे थे। बेरोजगारों ने पटना, इलाहाबाद में उग्र प्रदर्शन किए थे।
जनता के संघर्षों को कमजोर करने के लिए ही इनके पास 'हिंदू-मुस्लिम' की जहरीली राजनीति है। ये एक धर्म को दूसरे धर्म के लिए खतरा बता रहे हैं। धर्म के नाम पर हथियार उठाने की अपील कर रहे हैं।
आम जनता जो किसान हैं, मजदूर हैं, बेरोजगार हैं, छोटे दुकानदार और छोटे कारोबारी हैं इनकी आवाज को ये धर्म की आड़ में खामोश कर देना चाहते हैं। ये 'हिंदू-मुस्लिम' के नाम पर 'अमीर और गरीब', 'पूंजीपति और मजदूर', 'शोषक पूंजीपति और मेहनतकश जनता' के बीच के असली बंटवारे पर पर्दा डाल देना चाहते हैं।
जलियांवाला बाग के शहीदों को ऐसे वक्त में याद करना बेहद जरूरी है। इन शहीदों ने अंग्रेजों की चाल को समझ लिया था। इसलिये 'हिंदू-मुस्लिम-सिक्ख' जनता सभी एकजुट और एकजान होकर लड़ सके।
आइये ! जलियांवाला बाग के शहीदों की राह चलें। अपने अधिकारों के लिए आवाज बुलंद करें।
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