मोदी का आभामंडल ध्वस्त, बैसाखी पर सवार मोदी सरकार
लोक सभा 2024 के चुनाव की एकतरफा जीत का मोदी का सपना मिट्टी में मिल गया। खुद को परमेश्वर का दूत कहने वाले मोदी को इस बार मुंह की खानी पड़ी। जितना आभामंडल पिछले 10 सालों में कॉरपोरेट मीडिया, भाजपा आई टी सेल और संघी संगठनों ने खड़ा किया था वह अबकी बार ध्वस्त हो गया। भाजपा 240 पर सिमट गई। मोदी शाह की जोड़ी को इस बार बैसाखी की जरूरत पड़ गई। तेलगु देशम पार्टी और जनता दल यूनाइटेड पार्टी मुख्य घटक पार्टियां है इसके अलावा और भी छोटी छोटी पार्टियों के कुल 24 सांसद है जिनका समर्थन भाजपा को है।
राम मंदिर का गरदो गुबार खड़ा करने, उद्घाटन करने और पहले चरण के चुनाव से ठीक दो दिन पहले रामनवमी का आयोजन भी किसी काम नहीं आया। चुनाव में जीत के लिए तमाम हथकंडे अपनाए गए। फर्जी वोटिंग से वोटिंग प्रतिशत का खेल खेला गया। विरोधी मत को रोका गया। यहां तक कि ई वी एम काउंटिंग को भी रोककर भाजपा उम्मीदवार को जिताने के आरोप लगे हैं। यह सब होने के बावजूद 240 पर सिमटना थी दिखाता है कि नाराजगी बड़े स्तर पर थी जिसकी क्षतिपूर्ति नहीं हो सकी।
भाजपा का वोट प्रतिशत भले ही 1 % की गिरावट मात्र को ही दिखाता है मगर भाजपा के केंद्रक इलाकों विशेषकर उत्तर भारत की वोट प्रतिशत 5 से लेकर 9 % तक गिरा है। ज्यादा सीट लड़ने और दक्षिण भारत के कुछ राज्य , केरल और पंजाब आदि में वोट प्रतिशत बढ़ने से, कुल वोट प्रतिशत लगभग स्थिर दिखता है।
मोदी शाह की निरंकुश कार्यशैली पर इस बार अंकुश लगेगा। मीडिया मोदी राग फिर भी गाता रहेगा मगर इस मोदी की खंडित, ध्वस्त आभामंडल को अब वह फिर से पुनर्जीवित नहीं कर सकता।
दूसरी ओर इस बार विपक्ष का दर्जा भी कांग्रेस को देने पर मोदी शाह को मजबूर होना पड़ेगा। इस तरह मनमर्जी से मोदी शाह और पी एम ओ कोई भी बिल पास करवाने की स्थिति में नहीं होगा।
तकरीबन 25 सालों से बहुमत की आड़ में निरंकुश और मनमर्जी से काम करने, रातों रात नोटबंदी जैसे तुगलकी फरमान सुनाने वाले मोदी को पहली बार गठबंधन सरकार के रूप में कार्य करना होगा।
एन डी ए के रूप में बना गठबंधन पहले नाम का था इसमें भाजपा को बहुमत था जबकि इस बार वास्तव में यह एक गठबंधन की सरकार होगी।
जहां तक इस गठबंधन सरकार में नई आर्थिक नीतियों का सवाल है इन्हें तेजी से लागू करने में मुश्किल खड़ी होने की संभावना कम है।
फासिस्ट एजेंडे को लागू करने पर ही टी डी पी और जे डी यू को दिक्कत होगी। यही से एक संभावना सरकार के गिरने की बनती है। दूसरा मोदी शाह की जोड़ी विपक्ष और गठबंधन में शामिल दलों को अपने में विलीन करने की कोशिश करें इसकी भी संभावना बनती है।
एक संभावना ये भी है कि किसी सी ए ए एन आर सी, यू सी सी आदि जैसे फासीवादी मुद्दे पर एक वक्त बाद मोदी शाह की जोड़ी सरकार गिरा दे और मध्यावती चुनाव करवा दे, इसमें बहुमत हासिल करने की कोशिश करे।
इस बात की संभावना कम ही है कि हिंदू मुस्लिम की नफरत भरी राजनीति कमजोर पड़े। मीडिया और संघी लंपट संगठन तथा भाजपा आई टी सेल इस काम को जोर शोर से अभियान के रूप में जारी रखेगा। अंधराष्ट्रवाद यानी चीन और विशेषकर पाकिस्तान के खिलाफ नफरत का अभियान चलता रहेगा। सरकार सीधे इस मामले में इंवॉल्व कम होगी। जैसा कि पहले कार्यकाल में दिखता था।
फासीवादी आंदोलन समाज में मौजूद है। सत्ता में भले ही कमजोर पड़ी हो मगर इसकी मौजूदगी हर स्तर पर है। इसलिए फासीवाद का खतरा टला नहीं है। यह हमारे सामने है। ऐसा भी हो सकता है कि यह कुछ समय के लिए कमजोर पड़ जाए। जनता में विशेषकर बहुसंख्यक हिंदुओं में इसकी अपील कमजोर पड़ जाय। और ये कुछ सालों के लिए सत्ता से भी बाहर हो जाएं। ऐसा भी हो सकता है आर्थिक संकट के गहराने और किसी विस्फोट ( जनसैलाब सड़कों पर हो) के होने पर तेजी से फासीवाद की बढ़ जाएं। इसी की संभावना ज्यादा दिखती है। क्यों दुनिया में आर्थिक संकट गहरा रहा है। अंतर्विरोध तीखे हो रहे हैं। कई देशों में फासीवादी पार्टियां बढ़ती पर हैं।
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