लाठी चार्ज के लिये जिम्मेदार अधिकारियों को बरखास्त
करो ! फ़र्जी मुकदमे वापस लो !! उत्तराखण्ड की कॉग्रेस सरकार ने विधान सभा के बाहर धरना प्रदर्शन कर रहे शिक्षा मित्रों का बेदर्दी से दमन किया। इन दिनों विधान सभा सत्र
चलने के चलते ये शिक्षा मित्र पिछले कई दिनों से यहां धरना प्रदर्शन कर रहे थे । इन
शिक्षा मित्रों की मुख्य मांग थी -इनके डी.ई.एल.एड के कोर्स को तय समय पर करवाया जाय
तथा मानदेय को 10 हज़ार से बढ़ाकर 22 हज़ार किया
जाय। ठीक 10 दिसम्बर को ‘मानवाधिकार दिवस’ के ही दिन महिला पुरूष शिक्षा मित्रों पर
लाठियां चलाकर घोड़े दौड़ाकर ‘मानवधिकारों’ को रौदां गया।जिसमें कुछ को गम्भीर चोटें
आयी हैं एक महिला शि्क्षा मित्र बेहोश भी हो गयी। इसके बाद भी जब लगा कि आन्दोलन नहीं
थमा तो 11 दिसम्बर की रात होते होते आईपीसी की धारा-147, 148, 323, 332, 353, 188 के
साथ ही सेवेन क्रिमनल ला अमेंडमेंट एक्ट के तहत मुकदमा भी दर्ज कर दिया गया। इसमें
ललित द्विवेदी, रविंद्र खाती, अनिल शर्मा, अमरा रावत, हीरा सिंह, संदीप रावत, हेम बोरा
समेत अन्य 350 लोगों को आरोपित बनाया गया है। इस लाठी चार्ज में शिक्षा मित्रों के
मुताबिक लगभग 100 को चोटें आयी है ।कोरोनेसन अस्पताल में 27 शिक्षा मित्र की मरहम पट्टी
की गयी जिसमें से तकरीबन 6 को गम्भीर चोटें भी आयी थी यह भी पता लगा कि इन्हें लाठीचार्ज
में घायल दिखाने के बजाय दुर्घटना दिखाया गया है। इसके अलावा दून अस्पताल में भी कई
शिक्षा मित्र इलाज करवाने गये थे कई ऐसे भी थे जो डर-भगदड़ की वजह से असपताल ही नहीं
गयी। पांच पुलिस्कर्मी भी अस्पताल में इस लाठीचार्ज में चोट आने की वजह से एडमिट थे
। शिक्षा मित्रों का आन्दोलन इस दमन के बावज़ूद अभी भी जारी है इस दमन ने इनमें और ज्यादा
एकता व जुझारूपन पैदा कर दिया है गौरतलब हो कि प्रदेश में लगभग दो वर्ष पहले भी
शिक्षा मित्र आन्दोलन कर रहे थे उस वक्त निशंक के नेतृत्व में भा.ज.पा. सरकार सत्ता
पर चला रही थी लगभग सवा पांच हज़ार शिक्षा मित्रों के भविष्य का तब सवाल था । भा.ज.पा. सरकार ने तब कई वर्षों से शिक्षण कार्य
कर रहे इन शिक्षकों को नियमित नियुक्ति देने के बजाय बड़ी चालाकी से बी.टी.सी. करवाने
का झुनझुना थमाया और इस प्रकार अधिकांश स्नातक ना होने के तर्क के आधार पर बाहर हो
जाते । बाद में लगभग 1200-1300 शिक्षा मितों को बी.टी.सी. ट्रेनिगं करवायी गयी। शेष
4000 से ऊपर शिक्षा मित्रों में से लगभग 2315 को जुलाई 2011 से दूरस्थ शिक्षा के तहत
इन्दिरा गांधी मुक्त विश्वविध्यालय से 2 वर्ष का ‘एलीमेन्ट्री एजुकेसन’ करवाने की बात
की गयी इसका पहला सत्र इस वर्ष अगस्त माह में ही पूरा हो जाना था जो कि अभी तक पूरा
नहीं हो पाया । अब यह भी पता लगा है इग्नु द्वारा
संचालित इस कोर्स के पाठ्यक्रम को को तब एन.सी.टी.ई.
का अनुमोदन ही नहीं था। इस कोर्स का पूरा पैसा शिक्षा मित्रों के मुताबिक उन्होंने
खुद ही अपनी जेब से दिया है और राज्य सरकार इस बात का दावा कर रही है कि पैसा सरकार
द्वारा दिया गया । राज्य सरकार यह भी कह रही है कि उसे नहीं पता कि कोर्स के पाठ्यक्रम
को एन.सी.टी.ई. का अनुमोदन नहीं था। जबकि दूसरी ओर जो भा.ज.पा. इस वक्त कॉग्रेस को कठघरे में खड़ा कर रही है उसने खुद
अपनी सत्ता के दौरान शिक्षा मित्रों योग प्रशिक्षकों आदि-आदि पर जो लाठियां चलवायी
व मुकदमे दर्ज कर दिये उसे भुलाने का नाटक कर रही है साथ ही शिक्षा मित्रों के आन्दोलन
को तोड़्ने के लिये बी.टी.सी. का लौलीपॉप थमाया।
जिन 1200-1300 शिक्षा मित्रों को बी.टी.सी.
का कोर्स करवाया गया उन्हें फ़िर से इस साल शिक्षा निदेशालय के सामने आन्दोलन करना पड़ा।
उत्तराखण्ड सरकार दवारा अब कहा जा रहा है कि इन बी.टी.सी.शिक्षा मित्रों को नियुक्ति
नहीं दी जा सकती क्योंकि इन्होंने टी.ई.टी पास नहीं किया है।
इस प्रकार
शासकों द्वारा जनता के साथ खिलवाड़ लगातार जारी
है। उनकी मांगों को लगातार अनसुना करना ताकि आन्दोलन निराशा में खुद ही बिखर
जाय अगर इसका उल्टा हुआ आन्दोलन और तेज हो
जाय तो इनकी हथियार पुलिस है ही जिसे ये बखुबी चलाना जानते हैं। इस प्रकार मामला पुलिस
बनाम जनता का बन जाय और सरकार पर्दे के पीछे रहकर अपने निर्दोष होने व दमन में शामिल
अधिकारियों-कर्मियों को द्ण्डित करने का नाटक करते रहे । पूंजीपतियों को कई लाख करोड़ रुपये का राहत पैकेज देने
वाली कॉंग्रेस पार्टी को जनता के काम के एवज में वेतन देने की मांग संकट व बोझ लगता
है।उत्तराखण्ड के सिडकुल में पूंजीपतियों को तमाम तरीके की रियायतें देने वाली ये पूंजीवादी
राजनीतिक पार्टियां व इनके मंत्री कहते हैं कि राज्य वित्तीय-आर्थिक संकट की कगार पर है। अपना नाकाफ़ी
दिखने वाला वेतन व सुविधायें बढ़ाने का प्रस्ताव सेकेन्डों में ध्वनि मत से पारित करने
वाले ये मंत्री फ़रमाते हैं कि शिक्षा मित्रों
का मानदेय अगर 15 हज़ार कर दिया जाता है तो सालाना 24 करोड़ रुपये का बोझ सरकारी कोष
पर पड़ेगा। ‘समान काम का समान वेतन’ की धज्जियां
उड़ाते इन मंत्रियों को संविदा कर्मचारियों
की मात्र 5000 रुपये की बढ़ोत्तरी बोझ लगती है । शिक्षा मित्रों के
जख्मों पर लगाने की कोशिश करते हुए मुख्य मंत्री बहुगुणा ने इस घटना की न्यायिक जांच
की बात कही और साथ ही अगले दिन 11 दिसम्बर को वार्ता का वक्त दिया लेकिन जब अगले दिन
शिक्षा मित्रों के प्रतिनिधि वार्ता के लिये गये निर्धारित वक़्त पर पहुंचे तो पता लगा कि मुख्य मंत्री के अलावा और कोई मंत्री
पहुंचा ही नहीं । इस प्रकार शाम होते-होते वार्ता केवल इन्तजार बनकर रह गयी। मुख्य
मंत्री ने यह आश्वासन शिक्षा मित्रों को दिया कि उनपर कोई भी मुकदमे नहीं लगेंगे। लेकिन
रात होते-होते किसी रणनीति के तहत सबक सिखाने व आन्दोलन को तोड़्ने के लिये मुकदमे संगीन
धाराओं के तहत मुकदमे दर्ज कर दिये गये। इस प्रकार शान्तिपूर्ण प्रदर्शनों का दमन करके पुलिसिया राज व आतंक कायम करके ये खुद ही ‘दुनिया के सबसे बड़े लोकतन्त्र’ होने के अपने दावे पर सवालिया निशान लगा देते हैं।
खुद ही जनता को संविधान में मिले मौलिक अधिकारों पर हमला कर गैरसंवैधानिक कृत्य करते
हैं व अपने ही संविधान के औचित्य पर प्रश्न-चिह्न लगा देते हैं। इस स्थिति में यह जरूरी बन
जाता है कि इस दमन का साथ ही साथ अन्य जगहों पर होने वाले दमन का तीखा विरोध किया जाय
व अपने जनवादी अधिकारों के लिये संघर्ष किया जाय।
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