Sunday, 18 October 2015

 सफलतापूर्वक सम्पन्न हुआ क्रांतिकारी लोक अधिकार संगठन का छठा सम्मेलन

            क्रालोस का छठा सम्मेलन  3-4 अक्तूबर को बरेली में सम्पन्न हुआ । सम्मेलन में अलग अलग जगहों से प्रतिनिधि पहुंचे थे । इसके अलावा अन्य संगठनों की ओर से पर्यवेक्षक पहुंचे थे ।
            3 अक्तूबर को सुबह क्रालोस के अध्यक्ष पी पी आर्या द्वारा झंडारोहण किया गया । इसके बाद मेरा रंग दे बसंती चोला क्रांतिकारी गीत प्रस्तुत किया गया । इसके बाद सम्मेलन के संचालन हेतु तीन सदस्यीय संचालक मण्डल चुना गया ।
            सम्मेलन की शुरुवात में देश व दुनिया भर में पिछले सवा तीन सालों समाजवाद के निर्माण के लिए चले संघर्षों में शहीद हुए क्रांतिकारियों , जनवाद के लिए व जनवादी अधिकारों के लिए चले संघर्षों में में शहीद हुए लोगों , वैज्ञानिक चिंतन को बढ़ावा देने व अंधविश्वास के खिलाफ लड़ते हुए कट्टरपंथी ताकतों के हाथों मारे गए लोगों तथा आतंकवाद आदि आदि  के नाम पर मारे गए बेगुनाह नागरिकों को श्रद्धांजली दी गई । शहीदों व मारे गए लोगों की स्मृति में दो मिनट का मौन रखा गया ।
            इसके बाद राजनीतिक रिपोर्ट पर बहस मुहावसे का दौर चला । राजनीतिक रिपोर्ट के अंतराष्ट्रीय परिस्थितियों वाले हिस्से पर  यह बात सम्मेलन ने पारित की कि 2007-8 से जारी आर्थिक मंदी अन और अधिक गहन होती जा रही है इस गहराती मंदी से निपटने में  साम्राज्यवादी शासक नीम हकीमी नुस्खे पेश कर रहे हैं उनके पास इसका कोई हल नहीं है । शासक अपने इस संकट का बोझ भी मजदूर मेहनतकश नागरिकों के कंधे पर ही डाल रहे हैं ।
            जिन नए आर्थिक सुधारों ने समस्या को बढ़ाया था उसे ही नुस्खे के रूप में पेश किया जा रहा है दुनिया के अन्य पूंजीवादी मुल्कों पर इसे तेजी से लागू करते जाने  का  दबाव बहुत बढ़ गया है । यही नहीं विकसित मुल्क इटली ग्रीस की चुने हुए प्रधानमन्त्री को इसने सत्ता से हटाकर अपनी मन पसंद का व्यक्ति बिठा दिया । कटौती कार्यक्रम लागू किया जा रहा है । इससे आम मेहनतकश नागरिकों की तबाही बढ़ रही है । इस सबके खिलाफ जनता के लग अलग हिस्सों के संघर्षों को सम्मेलन ने चिन्हित किया ।
            संकटों के इस दौर में दुनिया भर में साम्राज्यवादी पूंजीवादी शासकों ने जनवाद व जनवादी अधिकारों की कमजोर स्थिति को और ज्यादा कमजोर कर दिया है यह तानाशाही व फ़ासिज़्म की दिशा में बढ़ रही है  । यही नहीं अब नव नाजीवादी- फासीवादी या धार्मिक कट्टरपंथी या दक्षिण पंथी ताकतों को आगे किया जा रहा है ।  
            राष्ट्रीय परिस्थितियों पर चर्चा करते हुए सम्मेलन हेतु प्रस्तावित रिपोर्ट को पारित करते हुए चिन्हित किया गया  कि भारतीय अर्थव्यस्था भी आर्थिक संकट से मुक्त नहीं है । 2007-08 से चल रहे संकट ने इसे अपनी गिरफ्त में लिया है । निर्यात में लगातार गिरावट , ओद्योगिक उत्पादन में गिरावट , फैक्ट्रियों का अपनी उत्पादन क्षमता से कम उत्पादन इसकी तस्दीक करते हैं ।
            भारतीय एकाधिकारी पूंजीपति वर्ग ने अपने मनमाफिक तेज गति से नए आर्थिक सुधारों को नही लागू कर पाने इसे धीमी गति से लागू करने के चलते  कांग्रेस के सत्ता से हटाकर फासिस्ट ताकतों को सत्ता पर बिठाया । नरेंद्र मोदी ने मुख्य मंत्री के बतौर अपने कार्यकाल में गुजरात में जिस ढंग से अदानी अंबानी टाटा आदि की सेवा की थी वही देश के स्तर पर करवाने के लिए एकाधिकारी पूंजी ने मोदी को सत्ता के शीर्ष पर बैठा दिया ।
            अब साता पर बैठने के 16-17 माह बीतते बीतते मोदी व उनकी सरकार इन पूंजीवादी घरानों के हित में श्रम क़ानूनों ट्रेड यूनियन क़ानूनों व पर्यावरण कानून आदि आदि में बदलाव की दिशा में बढते हुए कई फैसले कर चुकी है । भूमि अधिग्रहण कानून में बदलाव के संबंध में तो तीन बार   अध्यादेश लाया गया । लेकिन चौतरफा विरोध के बाद व बिहार चुनाव को देखते हुए इसे वापस लिया गया लेकिन चुपके से राज्य सरकारों के हावाले कर इसमें बदलाव करने अधिकार उन्हें दे दिया गया ।
             मोदी व उनकी सरकार बजट में 6 लाख करोड़ रुपए की राहत इन पूंजीपतियों को  दे चुकी हैं जबकि सामाजिक मद में व्यय होने वाले बजट में 2 लाख करोड़ के लगभग कटौती कर चुकी है । सम्मेलन ने यह भी चिन्हित किया कि मोदी के नेतृत्व में सत्ता का केन्द्रीकरण  काफी बढ़ा हैं सत्ता की सारी ताकत अब मंत्रीमंडल में न होकर प्रधानमंत्री व उनके 6 नौकरशाहों से बने पी एम ओ में केन्द्रित हो चुकी है । सर्वोच्च नेतृत्वकारी व नीतिनिर्धारक निकाय अब मंत्रीमंडल नहीं बल्कि पी एम ओ बन चुका है ।
            मंत्रीमंडल व मंत्रियों के प्राधिकार व हैसियत को बेहद कमजोर कर दिया गया है । दूसरी ओर देश के जनवादी सस्थाओं को कमजोर किया जा रहा है । सभी संस्थाओं में फासिस्ट संघी लोगों को बिठाया जा रहा है । धर्म, संस्कृति, आतंकवाद आदि भांति भांति के मुद्दों के जरिये समाज को फासीवाद की ओर धकेला जा रहा है । 
            सम्मेलन में आए प्रतिनिधियों ने यह भी चिन्हित किया कि अर्थव्यवस्था को सुधारने के नाम  पर जनता की जेबों से पैसे वसूलने समेत अन्य तमाम कोशिश के बावजूद अर्थव्यस्था डांवाडोल हैं ।
            सांगठनिक रिपोर्ट पर इस बुनियादी कमी को चिन्हित कर दूर करने का संकल्प प्रतिनिधियों ने लिया कि आज के गंभीर होते जाते माहौल में जबकि फासीवादी ताक़तें लगातार जनता पर आर्थिक व राजनीतिक हमले कर रही हैं तथा जनता के जनवादी अधिकारों , जनवाद जनवादी सोच व चेतना को कुंद  कर रही हैं समाज को फासीवाद की दिशा में धकेल रही हैं तब इन स्थितियों में अपनी राजनीतिक समझदारी को बढ़ाने तथा अपने समर्पण व त्याग के भाव को अत्यधिक बढ़ाते हुए जनता को इसके विरोध में एकजुट करने की जरूरत है ।
            सम्मेलन के अंत में राजनीतिक प्रस्ताव लिए गए । राजनीतिक प्रस्ताव : सत्ता के बढ़ते केन्द्रीकरण का विरोध करो , श्रम कानूनों में बदलाव के विरोध में, जनसंघर्षों के दमन के खिलाफ , भूमि अधिग्रहण के खिलाफ , कन्नड विद्वान कलबुर्गी की हत्या का विरोध करो , अफ्रीकी पश्चिमी एशियाई देशों में साम्राज्यवादी दुश्चक्रों के विरोध में तथा फासीवाद के बढ़ते खतरे के विरुद्ध लिए गए ।
            अंत में चुनाव की प्रक्रिया सम्पन्न हुई जिसमें अध्यक्ष पी पी आर्या चुने गए जबकि महासचिव  के बतौर भूपाल चुने गए । सम्मेलन के इस कार्यवाही के बाद खुले सत्र का आयोजन किया गया । इसमें इंकलाबी मजदूर केंद्र के अध्यक्ष कैलाश , प्रगतिशील महिला एकता केंद्र की अध्यक्षा शीला , परिवर्तन कामी छात्र संगठन के महेंद्र , बरेली ट्रेड यूनियन फ़ैडरेसन के संजीव मेहरोत्रा , बरेली कालेज कर्मचारी यूनियन के जितेंद्र आदि ने आज के गंभीर होते जाते हालात में एकजुटता व संघर्ष की जरूरत को बताया ।
            खुले सत्र के आयोजन के बाद अंत में एक जुलूस प्रदर्शन का आयोजन किया गया । जो संजय नगर बरेली के सड्को व चौराहों से गुजरते हुए , नारे व गीतों के साथ अंत में सम्मेलन स्थल पर पहुंचा । इसके बाद सम्मेलन की खुले सत्र की औपचारिक समापन के साथ सभी प्रतिनिधियों ने नए संकल्प व जज्बे व संघर्ष के संकल्प के साथ  विदा ली ।   


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