दलितों की धार्मिक समानता के अधिकार को ठेंगा दिखाते सवर्ण मानसिकता से ग्रस्त हिन्दू
उत्तराखन्ड के देहरादून जिले के सहिया क्षेत्र के गबेला पंचायत में स्थित कुकुरशी मंदिर में दलितों को मंदिर में प्रवेश से मनाही है । मंदिर में प्रवेश से मनाही के विरोध में अराधना ग्रामीण विकास समिति के नेतृत्व में जौनसार बावर परिवर्तन यात्रा को संगठित किया जा रहा था । संस्था के मुताबिक 16 लोगों का दल मंदिर में प्रवेश के लिए जा रहा था तब इस काफी संख्या में इस इलाके के सवर्ण जाति के लोगो ने उन्हें मंदिर में प्रवेश नहीं करने दिया ।
मंदिर में प्रवेश की मांग की स्थिति में धर्म परिवर्तन की धमकी भी दी गई । मंदिर में दलितों के प्रवेश को गलत मानने वाले ग्रामीणों ने एक तहरीर वहाँ राजस्व पुलिस को दी । प्रशासन ने हस्तक्षेप किया । धरने में उपस्थित लोगों के मुताबिक वहाँ शांति व्यवस्था बनाने के लिए पी ए सी लगाए जाने की बात प्रशासन द्वारा कही जा रही है जो कि गलत है । उन्होने प्रशासन से इसके आदेश की काफी की मांग भी की है ।
इनके मुताबिक प्रशासन ने उनसे मंदिर में प्रवेश कराने की बात कही । मंदिर में प्रवेश की कोशिश में इन सवर्ण जाति के दबंग लोगों ने उनके दल के लोगों के साथ फिर मार पीट की । प्रशासन व पुलिस भी सवर्ण जातिवादी मानसिकता से ग्रस्त थी । प्रशासन द्वारा उन्हें ही मंदिर परिसर के पास से वापस जाने की धमकी दी जाने लगी । धार्मिक समानता के अधिकार के तहत मंदिर में प्रवेश को लेकर चल रहे संघर्ष के पक्ष में काम करने के बजाय प्रशासन ने उल्टा काम किया । संघर्ष का दमन किया गया ।
परिवर्तन यात्रा के संयोजक के मुताबिक उनके व उनकी पत्नी के साथ पुलिस द्वारा बहुत मारपीट भी गई जबकि अन्य लोगों को बीच में रास्ते में ही इधर उधर जबरन छोड़ दिया गया । अगले दिन सभी एकजुट होकर देहरादून के परेड ग्राउंड में अनशन पर बैठ गए । फिलहाल 6 लोग अनशन पर बैठे गए । मंदिर में प्रवेश के अधिकार के साथ साथ इनकी मांग इस इलाके में मौजूद बंधुवा मजदूरी पर भी रोक लगवाने की है ।
परिवर्तन यात्रा के रूप में चल रहे इस संघर्ष के खिलाफ साहिया क्षेत्र के लोग मसलन पूर्व ग्राम प्रधान व कुछ अन्य लोगों की आवाजें भी उठ रही हैं इनके मुताबिक यह सब गाँव को बदनाम करने की साजिश हैं ; इस मंदिर में दलित भी प्रवेश कर सकते हैं ; वे लोग मंदिर में जाते हैं ; यहाँ किसी प्रकार का भेद भाव नहीं है यह राजनीति चमकाने की कोशिश है । इस विरोधी आवाज में संघी अनुषगिक संगठन सुर से सुर मिला रहे हैं । और इनहोने अपना अलग दल गठित कर मंदिर में अपने लोगों को प्रवेश कराकर संघर्ष को झुठलाने की घृणित कोशिश की है ।
इसके जवाब में परिवर्तन यात्रा के संयोजक का कहना है कि यदि पूर्व ग्राम प्रधान व अन्य दलित के मुताबिक मंदिर में प्रवेश में कोई रोक टोक नहीं है की बातें सहीं है तो ठीक , हम सभी उनके नेतृत्व में ही मंदिर के गर्भ गृह तक प्रवेश कर लेते हैं और हम आंदोलन खत्म कर देंगे ।
धरने में उपस्थित लोगों के मुताबिक जौनसार के गावों की स्थिति बदहाल है जब भी दलित जाति के लोगों ने अपने इस बराबरी के अधिकार के लिए कोई आवाज उठाई तो गाव के दबंग लोगों की पंचायत ने उनका सामाजिक बाहिष्कार करवा दिया व अर्थदण्ड दिया है । अब यदि गबेला की घटना को थोड़ा अलग रखकर बात पूरे जौनसार बावर के संदर्भ में की जाय तो स्थिति की गभीरता समझ में आ जाती है ।
देहरादून जिले की चकराता कालसी क्षेत्र में जौनसारी जनजाति निवास करती है । यह इलाका अभी भी पिछड़ा हुआ है । अभी भी ढेर सारी परम्परागत मूल्य मान्यताओं, रूढ़ियां यहाँ मौजूद हैं न्यायिक व्यवस्था में भी खाप की तर्ज पर ‘खुमड़ी’ व्यवस्था कमजोर होने के बावजूद मौजूद है । यह क्षेत्र 1967 से जनजाति घोषित हैं ।इसलिए एससी एस टी एक्ट न लागू होने की बात भी कही जा रही है । जनजाति क्षेत्र होने से यहाँ के सवर्ण भी जन जाति के दायरे में आते हैं । जन जाति आरक्षण का सबसे ज्यादा फायदा भी इन्हीं को मिला है ।
इस पूरे ही क्षेत्र में छूवांछूत -भेदभाव जैसी घृणित सोच के साथ साथ बंधुवा मजदूरी आज भी ठीक ठाक रूप में मौजूद है । दलितों में वे लोग जिनकी आर्थिक स्थिति ठीक है वह अपने अधिकारों के लिए ज्यादा सजग है व मुखर है । जबकि दलितों का वह हिस्सा जो कि गरीब है वह बंधुवा मजदूरी झेलने को अभिशप्त है । राज्य सरकार या कहें कि शासन प्रशासन औपचारिक तौर पर तो इसके खिलाफ है लेकिन व्यावहारिक तौर पर वही ढील ढाल है जैसा कि अन्य मामलों में । आम तौर पर सवर्णों की दबंगई व प्रशासन की निष्क्रियता के चलते यह अभी तक खत्म नहीं हो पायी है ।
छूवाछूत व भेदभाव भी किस कदर है इन तथ्यों से जाना जा सकता है । जबर सिंह बर्मा के जनादेश के लेख के मुताबिक कालसी गाँव में दलित प्रधान ध्यान चंद के वकील बेटे की सवर्ण युवती से शादी के विरोध में सवर्ण हिन्दू लोग उन पर टूट पड़े । बुजुर्ग महिला से लेकर बच्चे तक की पिटाई की गई , बुलडोजर से नया घर ज़मींदोज़ कर दिया गया । सवर्ण समुदाय के लोगों का नेतृत्व भाजपा का एक विधायक कर रहा था ।
इसी प्रकार जौनसार के लखवाड़ से दुल्हन लेकर लौट रहे बारात को सवर्ण ग्रामीणों ने दो घंटे तक घेर लिया । बस इनका अपराध यही था कि सवर्णों के लिए “आरक्षित” महासू मंदिर के उस हिस्से में जहां पर सवर्ण हिन्दू अपने जूते रखते थे, ये लोग वहाँ पर प्रवेश कर गए थे । इस अपराध के लिए माफी मांगने के अलावा एक बकरा व 501 रुपये देने पड़े साथ ही साथ यह आश्वासन भी देना पड़ा कि मंदिर में चांदी के सिक्के चढ़ाएँगे ।
कुछ साल पहले राखी नाम की दलित युवती के मंदिर में प्रवेश करने पर मंदिर के सवर्ण हिन्दू पूजारियों ने उसे अर्धनग्न व बेइज्जत कर भगा दिया गया । यह मामला भी तब मीडिया में चर्चा का विषय रहा ।
छूआछूत व बंधुवा मजदूरी समेत अन्य समस्याओं के निराकरण के लिए इस इलाके में अन्य गैर सरकारी सस्थाएं भी काम कर रही हैं । यह भी काफी समय से क्षेत्र में काम कर रही हैं । जौनसार बावर परिवर्तन यात्रा से ठीक पहले ही इन एन जी ओ में से कुछ अन्य लोगों के नेतृत्व में एक यात्रा निकालने की घोषणा की गई थी । तभी अराधना नाम की संस्था ने भी इससे पृथक यात्रा की घोषणा कर दी थी ।
एन ए पी एम ( नेसनल एलायंस ऑफ पीपल्स मूवमेंट ) के नेतृत्व में कुछ संगठन दलितों के भूमि अधिकार , बंधुवा मजदूरी , दलितों महिलाओं के मंदिर में प्रवेश पर रोक उत्पीड़न के खिलाफ 9 से 13 अक्तूबर के बीच जौनसार के अलग अलग इलाकों में यात्रा चला रहा है । जो 15 अक्तूबर को दलितों महिलाओं समेत नाथागत क्षेत्र के मंदिर में प्रवेश करेंगे ।
अब जौनसार बावर परिवर्तन यात्रा के लोग भी गाव के दलित लोगों के साथ मंदिर में प्रवेश करेंगे । इनका रुख दलितवादी है । इन्हें लगता है कि यदि प्रदेश में दलित मुख्यमंत्री होता तो तब उनके साथ यह अपमानजनक व भेदभावपूर्ण व्यवहार नहीं होता । ये शायद उत्तर प्रदेश में मायावती सरकार के राज में होने वाले गरीब मेहनतकश दलितों के उत्पीड़न की घटनाओं को भुला चुके हैं ।
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