Friday, 23 December 2016

नोटबंदी 'विशुद्द राजनीतिक स्टंट'


         नोटबंदी 'विशुद्द राजनीतिक स्टंट'

काले धन के खिलाफ जहर उगलने वाले मोदी जी काले धन पर सवार होकर ही सत्ता पर पहुंचे थे। अम्बानी -अदानी जैसो  के दम पर  सत्ता में  पहुंचने के बाद 15 लाख रूपये सबके खाते में पहुँचाने की बात को प्रधानमंत्री मोदी के जोड़ीदार अमित शाह ने राजनीतिक जुमला करार दिया था।  
   दिल्ली में बुरी तरह हारने व फिर बिहार में चुनाव हारने के बाद साफ़ था कि मोदी लहर का अब वो असर नहीं है। जबकि मोदी सरकार ने अपनी कैबिनेट तक चुनाव में झौंक दी थी।
   स्पष्ट था कि अम्बानी-अदानी के नायक का अब यह मेहनतकश जनता के बीच बेनकाब होने का दौर था।  इस दौर में मोदी व मोदी सरकार ने कॉर्पोरेट घरानों के पक्ष में आर्थिक सुधारों को तेजी से लागू करने की कोशिश की दूसरी और धार्मिक, सांस्कृतिक आदि  तमाम मुद्दों के जरिये फासीवादी आंदोलन को और ज्यादा मजबूत किया।।
 इस सबका ही मिला जुला असर था कि मोदी की छवि का ग्राफ गिरा। अब लोक सभा में तो मोदी सरकार को बहुमत हासिल है लेकिन राज्य सभा में अभी बहुमत से पीछे है ।
अब एक बार फिर भारी अवसर था कि उस प्रदेश में जहां से उनके 72 सांसद हैं तथा उत्तराखंड , पंजाब के चुनाव में एक बार मोदी की ऐसी छवि निर्मित की जाय कि न केवल राज्य सभा में बहुमत की दिशा में बढ़ा जा सके बल्कि एकतरफा हासिल वोट के दम पर उसे जनता का मेंडेट बता कर मोदी व मोदी सरकार  फासिस्ट मंसूबों की दिशा में तेजी से आगे बढ़ सके।
  काला धन ख़त्म करने के मुद्दे से और बेहतर कौन सा मुद्दा हो सकता था ? यही  तो 2014 में उनका चुनावी मुद्दा था। जनता के बीच फिर उम्मीद जगायी जा सकती थी कि उनके खाते में एक खास रकम तो अब पहुँचने ही वाली है और यह भी दिखाया जा सकेगा कि देश में मोदी ही एकमात्र व्यक्ति हैं  जो अमीरो को भी सबक सिखा रहे हैं।
 नोट बंदी के इस निर्णय से टाटा-अम्बानी जैसे एकाधिकारी घरानों को अंततः फायदा ही होना है । नेट बैंकिंग, डेबिट-क्रेडिट कार्ड ,पे टी एम आदि जैसे कदम भी और इसके जरिये  निगरानी बढ़ने के साथ -साथ कर संग्रह बढ़ना इनके पक्ष में ही है। सरकार द्वारा बताये गए काले धन के  3-4 लाख करोड़ रूपये यदि वापस नहीं आते तो सरकार इसके नए नोट जारी करके उसकी दावेदार बन जाती और इसे भी पूंजीपतियों पर ही लुटाती ।
 लेकिन 500- 1000 के जारी नोटों का अधिकांश हिस्सा तो जमा हो चुका है और बाकि हिस्सा भी जमा होने की संभावना है। यहाँ मोदी सरकार असफल हो गयी और दूसरी ओर इस नोटबंदी से मज़दूर - मेहनतकश लोग - महिलाएं , छोटे कारोबारी की तबाही साथ ही बीमारी के दौरान नकदी के चलते इलाज न मिलना , मेहनत से कमाये गए अपने पैसे से ही वंचित हो जाना या फिर पुराने नोटों के रूप में मिलती तनख्वाह को नए नोटों से डिस्काउंट ( नुकसान) में बदलना आदि-आदि के चलते मोदी सरकार यंहा भी असफल हो गयी।
मोदी व मोदी सरकार को यह अंदाजा नहीं था कि दांव उल्टा भी पड सकता है। यह भी स्पस्ट है कि काला धन तो रियल एस्टेट से लेकर तमाम तरीके के कारोबार में लगा हुआ है , साथ ही यह भी कि भारत सरकार या इस वक्त की मोदी सरकार भी उन पार्टिसिपेटरी नोट का कोई जिक्र नहीं करती जिनके जरिये सटोरिये निवेश करते है कमाई करते है गुमनाम रहकर ये सब करने का अधिकार उन्है है ही। यह भी ध्यान में रखने की जरूरत है कि काला धन कितना है इस संबंध में भी कोई सटीक आंकड़ा नहीं है ।
  अब जैसे जैसे 50 दिन की लिमिट नज़दीक आते गयी । मोदी व मोदी सरकार ने एक और काले धन के खिलाफ घोषित नोटबंदी को कैशलेस अर्थव्यवस्था की ओर भी मोड़ दिया । साथ ही वह रोज ब रोज हो रही धरपकड़ को मीडिया में खूब उछाल कर यह दिखाने की कोशिश में है कि उसकी योजना तो बिलकुल ठीक थी लेकिन बैंककर्मियों ने इस योजना पर पलीता लगा दिया है और यह भी कि मोदी अमीरो को नहीं बख्श रहा है । अब आने वाला वक्त ही बताएगा कि जनता इसका जवाब कैसे देती है।






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