Tuesday, 15 August 2017

बच्चों की हत्यारी योगी सरकार

बच्चों की मौत की जिम्मेदार भाजपा सरकार शर्म करो !
                       मुख्य मंत्री इस्तीफा दो !

          ये वक्त बहुत त्रासदी पूर्ण है दुखदायी है। एक तरफ धूर्त शासक आज़ादी का जश्न मनाने में मशगूल है और दूसरी तरफ गम शोक में डूबे हुए लोग हैं परिवार हैं जिनके देखते सुनते 63 मासूम बच्चों की अस्पताल में मौत हो चुकी है। इन बच्चों की मौत पर योगी व योगी सरकार को कोई अफसोस नही, दुख नहीं।  प्रधानमंत्री जी के लिए यह कोई ऐसा मुद्दा नहीं जिस पर ट्वीट करते। अडानी को 6000 करोड़ रुपये दिलवाने वाले , व अम्बानी के 'जिओ' के लिए सरकार की साख बेचने वाले इस मुद्दे पर खामोश है।
 सत्ता पर बैठी योगी-मोदी सरकार की संवेदनहीनता व बेशर्मी शीर्ष पर है। लेकिन ये तथ्य इन्हें कठघरे में खड़ा करने को पर्याप्त है कि प्राइवेट फर्म को ऑक्सिजन के लिए 70 लाख रुपये के भुगतान में देरी की असल वजह मुख्यमंत्री की बैठक थी। इसलिए इन मौतों के लिए साफ तौर पर योगी सरकार जिम्मेदार है। ये हत्याएं है जिसके जिम्मेदार योगी व उनकी सरकार है।
     मुख्य मंत्री योगी इस क्षेत्र से 5 बार सांसद रह चुके हैं। खुद संसद में इस मुद्दे पर उन्होंने पहले हंगामे किये है। "माँ गंगा ने बुलाया है" कहने वाले मोदी जी भी इस मर्ज को जानते रहे होंगे। इसलिए भी कि जापानी इन्सिफैलाइटिस कोई आज की बीमारी नही है। पिछले 20-30 सालों से पूर्वी उत्तर प्रदेश में गरीब मेहनतकश परिवारों से उनके बच्चे छीनती रही है।
      तब सवाल बनता है कि पिछले तीन सालों में मोदी सरकार ने इस 'बीमारी' को जड़ से खत्म करने को क्या विशेष योजना बनायी ? कितने करोड़ का बजट इस बीमारी पर शोध व इलाज के लिए रखा गया ? कितने डॉक्टर, नर्स , दवाओं आदि की व्यवस्था इस बीमारी के लिए की गई ? आदि आदि। जवाब मिलेगा कुछ नहीं। और फिर पिछले 4-5 माह में योगी सरकार ने क्या क्या किया ? यदि कुछ हुआ भी है तो बेहद मामूली है।       
 यही सवाल सपा, कांग्रेस, बसपा से भी है कि जब इनकी सरकार थी तब इन्होंने क्या क्या किया? इन सभी का काम है बस जब विपक्ष में रहो ; हंगामा खड़ा करो; वोट की फसल तैयार करो। और फिर जब जीत जाओ तो पूंजीपतियों को मालामाल करने वाली नीतियों को लागू करो , खुद भी मालामाल होओ। जैसा कि योगी जी व मोदी जी की अगुवाई में बी जे पी कर रही है। 
       देश भर में 'सार्वजनिक स्वास्थ्य' के हालात बेहद बदहाल हैं । कुल बजट का मात्र लगभग 1 % हिस्सा ही स्वास्थ्य पर खर्च होता है जबकि दुनिया का औसत लगभग 6 % है।'शिशु मृत्यु दर' 'मातृत्व मृत्यु दर' व 'बाल कुपोषण' देश में अभी भी बहुत ज्यादा है। इन मामलों में देश दुनिया के कई गरीब व कमजोर देशों से भी पीछे है। लेकिन हमारे शासकों का मुख्य एजेंडा सार्वजनिक जन स्वास्थ्य नही बल्कि "रक्षा" है, 'रक्षा' के नाम हथियारों को खरीदना है। स्वास्थ्य इनके लिए मुद्दा हो भी क्यों? इनके लिए तो अत्याधुनिक अस्पताल है ही, ये कम पड़े तो अमेरिका या यूरोप चले जाओ। बाजपेयी गए थे न घुटना बनवाने विदेश, सोनिया भी गयी थी। इसीलिए 'देशभक्ति का लाइसेंस बांटने' वाली मोदी-योगी सरकार का भी रक्षा बजट तो ढाई लाख करोड़ रुपये है लेकिन स्वास्थ्य बजट मात्र 48 हज़ार करोड़ रुपये का। यही शासकों की जरूरत है। पूंजीवादी दुनिया में यही होता है। पूंजीवादी समाज में पूंजीवादी शासकों के हित, इच्छा आकांक्षा ही सर्वोपरी होती है मेहनतकश नागरिक तो इसके मातहत ही होते है। पूंजी बढ़ते रहे, मुनाफा बढ़ते रहे किसी भी कीमत पर ! यही इस सिस्टम का मंत्र है। मासूम बच्चे मरें चाहे दंगो में हजारों मारे जाएं या लाखों मरवा दिए जाएं हुक्मरानों को क्या फर्क पड़ता है ।
      इसीलिए अब सरकारी स्वास्थ्य प्रणाली जो थोड़ा बहुत है भी उसे भी सरकार खत्म करने पर तुली हुई है इनका नारा है  स्वास्थ्य पी पी पी मोड के हवाले कर दो, प्राइवेट कर दो , स्वास्थ्य बीमा(इन्सुरेंस) करवाओ। और सब प्राइवेट खुले नर्सिंग होम के हवाले छोड़ दो। 
            इसलिए आज जरूरत है एकजुट होने की,  एकजुट होकर संघर्ष करने की, सरकार-शासकों को इस बात के लिए मजबूर कर देने के लिए कि देश के हर नागरिक को निःशुल्क व बेहतरीन चिकित्सा दी जाय। साथ ही साथ इस पूंजीवादी सिस्टम के खिलाफ भी खड़े होने की जरूरत है और एक नए समाज 'समाजवाद' लाने की  जिसके लिये शहीद भगत सिंह ने खुद को बलिदान कर दिया था।
   

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