Sunday, 27 August 2017

भारतीय राज्य और बाबा राम रहीम



        भारतीय राज्य और बाबा राम रहीम
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पिछले कुछ समय से डेरा सच्चा सौदा के बाबा गुरुमीत उर्फ राम रहीम का मामला सुर्खियों में है। कुछ समय पहले  रामरहीम ने मैसेंजर ऑफ गॉड फ़िल्म भी बनाई थी जिसमें खुद को ईश्वरीय शक्ति के रूप में इसने प्रचारित किया था।  फिलहाल यह सुर्खिया यौन शोषण के मसले पर चल रहे मुकदमे व इसके बाद हुई हिंसा के चलते है। आज से तकरीबन 15 वर्ष पहले दो साध्वीयों ने यौन शोषण का आरोप राम रहीम पर लगाया था । इन लड़कियों ने अटल बिहारी बाजपेई की सरकार तथा उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों को भेजे गुमनाम पत्र में यह आरोप लगाये थे जिसमें यह भी कहा गया था कि ऐसा कई लड़कियों के साथ राम रहीम ने किया है। 
   पत्र में यह भी लिखा गया था कि सभी राम रहीम की ताकत व पहुंच के साथ ही घर वालों के अंधविश्वास के चलते कुछ न कर पाने को मजबूर हुए व चुप चाप सब कुछ सहते रहे रामरहीम अपनी पहुंच, हथियारों व गुंडों का खौफ इन सभी विरोध करने वालों को दिखाता था ।कुछ ऐसे भी थे जो घर वापस आ गए। इनके इस पत्र  को तब अखबार में छापने वाले पत्रकार की हत्या रामरहीम ने करवा दी। यौन शोषण के इस आरोप के बाद ही हाईकोर्ट के इसे स्वत:संज्ञान लेने से राम रहीम के खिलाफ मुकदमा दर्ज हुआ था।जिस पर सी बी आई जांच चल रही थी सी बी आई की कोर्ट में ही मामला चल रहा था। इन 15 सालों में राम रहीम ने अपनी दौलत, हैसियत एवं ताकत कई गुना इजाफा कर लिया था।         
         धार्मिक गतिविधियों के जरिये ,लोगों के अंधविश्वास व धार्मिक पूर्वाग्रहों का इस्तेमाल करके व लोगों के बीच कुछ राहत के काम करते हुए इसने अपने नेटवर्क को मजबूत किया । एक साम्राज्य खड़ा कर लिया। जिसके चलते लाखों की तादाद में लोग इसके अनुयायी बने थे। राजनीतिक पार्टियों से इसके गहरे संबंध रहे हैं  विशेषकर भाजपा से । 7 अक्टूबर 2014 को विधायक के लिए खड़े भाजपा के 44 उम्मीदवारों की बैठक रामरहीम के साथ सिरसा में होती है जिसमें कैलाश विजयवर्गीय भी शामिल थे। एक बैठक अमित शाह के साथ भी हुई थी तभी पिछ्ले विधान सभा चुनाव में रामरहीम ने खुलकर भाजपा का समर्थन दिया था।
 25 अगस्त पंचकुला की सी बी आई कोर्ट में राम रहीम की पेशी थी। हरियाणा की खट्टर सरकार ने 700 एकड़ के भब्य  क्षेत्र में रह रहे यौन शोषण के आरोपी राम रहीम से गुजारिश की कि वह पेशी पर जाए। राम रहीम ने अपने हवाई जहाज से कोर्ट जाने की बात की । लेकिन फिर फ़ासीवादी खट्टर सरकार ने जैसे तैसे गाड़ी से कोर्ट जाने के लिए बाबा को मनाया।अंततः 400-800 गाड़ियों का काफिला कोर्ट की ओर रवाना हुआ था भाजपा सरकार ने ऐसा करने की प्रशासनिक अनुमति भी दी । 
     इस बात की संभावना दिखने लगी थी की कोर्ट में फैसला पक्ष में न आने पर बाबा के लम्पट समर्थक विरोध या हिंसा कर सकते है। लेकिन भाजपा सरकार ने इन लाखों समर्थकों को रोकने के लिए व उनको एकजुट न होने देने के कोई विशेष प्रयास नहीं किये। धारा 144 लागू की तो वह भी केवल नाम के लिए। अंततः:कोर्ट के आदेश के बाद ही हरियाणा की भाजपा सरकार ने अर्धसैनिक बलों को बुलाया। लेकिन तब भी कोई सख्ती नही की गई। परिणाम फिर वही हुआ जैसा होने की संभावना जताई गई थी। जैसे ही कोर्ट ने धूर्त ,लम्पट व अपराधी राम रहिंम को यौन शोषण के दोषी होने का फ़ैसला सुनाया वैसे ही बाबा के लम्पट समर्थकों का तांडव शुरू हो गया। लगभग 32 लोगों की  26 अगस्त तक मौत हो गई। जबकि 250 से ज्यादा लोग घायल हो गए ।
       इसके अलावा बसों, गाड़ियों, व रेलों में आगजनी व तोड़ फोड़ की गई। अब एक ओर 5 राज्यों में अलर्ट जारी किया गया है जबकि कई शहरों में कर्फ्यू लगा दिया गया है इंटरनेट पर रोक लगा दी गई है। 
एक ओर हिंसा व इसमें मारे जाते लोग तो दूसरी ओर खट्टर सरकार से लेकर केंद्र की मोदी सरकार का सुर अपराधी रामरहीम के प्रति बहुत नरम है। "भारत का नक्शा मिटा देंगे" नारे लगाने वालों के खिलाफ आज फासिस्ट संघी राष्ट्रवादियों की जुबान को आज लकवा मार गया है। मोदी "शांति" संदेश के लिए ट्वीट कर रहे है। साक्षी महाराज कोर्ट को डरा रहे है। सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के पुरोधाओं के हिसाब से जो कोई भी अपराधी रामरहीम व उसके लम्पट दस्ते की आलोचना कर रहे है वह भारतीय संस्कृति को बदनाम कर रहे है। कुल मिलाकर फासिस्टों ने ख़ुद को बेनकाब करने के साथ साथ अपनी पक्षधरता भी साफ कर दी है। वह यह कि वह महिलाओं के खिलाफ अपराध को अंजाम देने वाले लम्पट व धूर्त संतो के साथ है जैसा कि अतीत में वे बलात्कार के आरोपी स्वामी नित्यानंद के साथ खड़े थे । 
दरअसल रामरहीम , आशाराम, नित्यानाद, स्वामी ओम, रजनीश, निर्मल बाबा  आदि आदि इसकी फेहरिश्त लंबी है इन सभी को राजनीतिक पार्टियों का भी संरक्षण प्राप्त रहता है। कोंग्रेस के साथ चंद्रास्वामी का नाम भी चिपका हुआ था। प्रधानमंत्री से चंद्रास्वामी के सीधे संबध थे। दूसरे रूप में कहा जाय तो यह कि भारतीय राज्य अपनी जहनियत में कभी भी धर्मनिरपेक्ष नहीं रहा है।  शासकों ने शुरू से ही अपने फ़ायदे में धर्म को अपनी गोद में पाला पोसा है इसे संरक्षण प्रदान किया है।
 इसने धर्म, धार्मिक संस्थाओं को नियंत्रित करने , सार्वजनिक जीवन में इसके दखल को खत्म करने तथा इसे निजी जीवन तक सीमित करने  के कोई भी कदम कभी नहीं उठाए। धर्म को राज्य के मामले में राजनीति में लाने पर रोक नहीं लगाई । इसके उलट इन दोनों का साथ शुरू से ही बना रहा।  पूंजीवादी राजनीतिज्ञ धर्म, धार्मिक त्योहारों कार्यक्रमों व संस्थाओं में आते जाते रहे व इसका इस्तेमाल करते रहे। इसी का नतीजा आज एक ओर रामरहीम के रूप में दिखाई देता है जो अपने लम्पट दस्तों के जरिये राज्य के कानूनों को चुनौति देने लगता है व खुद को राज्य आए ऊपर समझने का भरम पाल बैठता है । तो दूसरी तरफ फासिस्ट संघ परिवार है भाजपा जैसे है जिन्होंने साम्प्रदायिक ध्रूवीकरण के जरिए अपना प्रसार किया है और मौजूदा वक्त में इसे एकाधिकारी पूंजी ने सत्ता पर बिठाया है। इनकी ताकत राम रहीम जैसे जिनके लाखों अनुयायी हो से काफी बढ़ जाती है। इन दोनों की पैदा होने की जमीन एक ही है।







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