दिल्ली हिंसा के नाम पर गिरफ्तार किये गए सीएए विरोधी प्रदर्शनकारियों को रिहा करो !
मोदी सरकार बिल्कुल षड्यंत्रकारी तरीके अपने विरोधियों को निशाने पर ले रही है। दो साल पहले भीमा कोरेगांव की तर्ज़ पर ही सीएए, एनआरसी व एनपीआर विरोधी आंदोलनकारियों को गिरफ्तार किया जा रहा है।
ऐसे वक़्त में जब एक तरफ कोरोना महामारी के खिलाफ 'जंग' का एलान किया गया है समस्त "देशवासियों" को एकजुट होकर इस 'जंग' में साथ होने का "आह्वान" किया गया तब "लॉकडाउन" की आड़ में मोदी सरकार सीएए विरोधी प्रदर्शनकारियों से निपट रही है।
ऐसा लगने लगा है कि मोदी सरकार की 'जंग' कोरोना महामारी से नहीं बल्कि अपने विरोधियों को फंसाने व गिरफ्तार करके जेल में डालने की है। इस तरह जेल में डालकर पूरे समाज में दहशत व खौफ पैदा कर देना चाहती है ताकि कोई भी अधिकारों की बात ना करे, अन्याय व जुल्म के खिलाफ खड़ा न हो।
मोदी सरकार ने दूसरे कार्यकाल में हिन्दू फासीवादी एजेंडों को खुलकर आगे बढ़ाया। अन्धराष्ट्रवादी, साम्प्रदायिक मुद्दों के जरिये मोदी सरकार ने गहन होते आर्थिक संकट से ध्यान हटाया तथा राजनीतिक ध्रुवीकरण को चरम की ओर ले बढ़े। कश्मीर मुद्दा, राम मंदिर, नागरिकता संशोधन कानून इसी की कड़ी हैं। एक-एक कार ये एजेंडे फैंके गए क्रमशः।
नागरिकता संशोधन कानून, एन आर सी तथा एन पी आर ऐसा फासीवादी एजेंडा था और है जो देश के करोड़ों मजदूर मेहनतकशों को गैरनागरिक होने की श्रेणी में डाल देता, इन्हें अपने ही देश में घुसपैठिया या शरणार्थी बना देता। विशेष तौर पर यह मुस्लिमों के खिलाफ लक्षित था।
इसके खिलाफ प्रतिरोध तो होना ही था। देश भर में इसके खिलाफ आवाज उठी। हिंदू फासीवाद के खिलाफ इतना सशक्त प्रतिरोध पहली बार हुआ था। इस आंदोलन ने फासीवादी ताकतों को अपने कदम पीछे खींचने पर मजबूर कर दिया।
सीएए, एनआरसी व एनपीआर के खिलाफ दिल्ली केंद्र बन गया था। शहीन बाग एक मॉडल बन चुका था। यहीं नहीं दिल्ली में कई जगह ऐसे ही शहीन बाग बन चुके थे। यहीं से फिर मोदी-शाह की सरकार ने साजिश रची। दिल्ली के दंगों का आयोजन किया गया। जिसमें कपिल शर्मा व अनुराग ठाकुर जैसे कुछ अन्य पर्दे के सामने थे जबकि पर्दे के पीछे पूरा संघी फासीवादी गिरोह। अन्ततः दिल्ली के प्रायोजित नरसंहार के आयोजकों ने 'दिल्ली हिंसा' के नाम पर उन्हीं को दंगे के लिए आरोपी बनाना शुरू कर दिया जो दंगों के शिकार थे, जो सीएए विरोधी प्रदर्शनों में शामिल थे या उसे लीड कर रहे थे। जे एन यू, जामिया , दिल्ली विश्वविद्यालय व अन्य कॉलेज के छात्रों की गिरफ्तारी की जा रही है। अभी तक 1300 लोगों की गिरफ्तारी की गई है। संगीन मुकदमे लगाए जा रहे हैं। यू ए पी ए, राजद्रोह या फिर कुछ और।
27 वर्षीय सफूरा जगरर जो कि जामिया की शोध विद्यार्थी हैं और गर्भवती है उन्हें यू ए पी ए यानी कथित आतंकवाद विरोधी कानून के तहत तिहाड़ जेल में ठूंस दिया गया। इसी प्रकार और भी हैं। कश्मीर से भी महिला पत्रकार समेत कुछ अन्य पर आतंकवाद विरोधी कानून के तहत मुकदमा ठोक दिया गया। दिल्ली में जामिया, जे एन यू व दिल्ली विश्वविद्यालय के उन छात्रों को निशाना बनाया जा रहा है जो सीएए विरोधी प्रदर्शन में शामिल थे। मीरान हैदर, उमर खालिद आदि ऐसे ही कई नाम हैं। अधिकांश मुस्लिमों को निशाने पर लिया जा रहा है।
अभी कुछ दिनों पहले दिल्ली विश्वविद्यालय के एक कॉलेज की छात्रा नताशा व देवांगना को भी दिल्ली हिंसा के नाम पर गिरफ्तार के लिया गया। बाद में जैसे ही इन्हें कोर्ट से जमानत मिली तत्काल ही दूसरे मुकदमे में पुलिस ने इन्हें फिर गिरफ्तार कर लिया। नताशा पर अब यू ए पी ए का मुकदमा दर्ज कर देनी की बात सामने आ रही है।
निश्चित तौर पर ऐसे वक्त में जब एक तरफ कोरोना से जंग के नाम पर लॉकडाउन किया गया हो, देश के नागरिकों से एकजुट होकर इससे लड़ने की अपील की गई हो, सोशल डिस्टेंसिग की बात की जा रही है तब ऐसे वक्त में मोदी सरकार का यह कृत्य घृणित, षड्यंत्रकारी व प्रतिशोधात्मक है यह घोर निंदनीय है। इन सभी को अविलंब रिहा किया जाय।
ऐसे वक़्त में जब एक तरफ कोरोना महामारी के खिलाफ 'जंग' का एलान किया गया है समस्त "देशवासियों" को एकजुट होकर इस 'जंग' में साथ होने का "आह्वान" किया गया तब "लॉकडाउन" की आड़ में मोदी सरकार सीएए विरोधी प्रदर्शनकारियों से निपट रही है।
ऐसा लगने लगा है कि मोदी सरकार की 'जंग' कोरोना महामारी से नहीं बल्कि अपने विरोधियों को फंसाने व गिरफ्तार करके जेल में डालने की है। इस तरह जेल में डालकर पूरे समाज में दहशत व खौफ पैदा कर देना चाहती है ताकि कोई भी अधिकारों की बात ना करे, अन्याय व जुल्म के खिलाफ खड़ा न हो।
मोदी सरकार ने दूसरे कार्यकाल में हिन्दू फासीवादी एजेंडों को खुलकर आगे बढ़ाया। अन्धराष्ट्रवादी, साम्प्रदायिक मुद्दों के जरिये मोदी सरकार ने गहन होते आर्थिक संकट से ध्यान हटाया तथा राजनीतिक ध्रुवीकरण को चरम की ओर ले बढ़े। कश्मीर मुद्दा, राम मंदिर, नागरिकता संशोधन कानून इसी की कड़ी हैं। एक-एक कार ये एजेंडे फैंके गए क्रमशः।
नागरिकता संशोधन कानून, एन आर सी तथा एन पी आर ऐसा फासीवादी एजेंडा था और है जो देश के करोड़ों मजदूर मेहनतकशों को गैरनागरिक होने की श्रेणी में डाल देता, इन्हें अपने ही देश में घुसपैठिया या शरणार्थी बना देता। विशेष तौर पर यह मुस्लिमों के खिलाफ लक्षित था।
इसके खिलाफ प्रतिरोध तो होना ही था। देश भर में इसके खिलाफ आवाज उठी। हिंदू फासीवाद के खिलाफ इतना सशक्त प्रतिरोध पहली बार हुआ था। इस आंदोलन ने फासीवादी ताकतों को अपने कदम पीछे खींचने पर मजबूर कर दिया।
सीएए, एनआरसी व एनपीआर के खिलाफ दिल्ली केंद्र बन गया था। शहीन बाग एक मॉडल बन चुका था। यहीं नहीं दिल्ली में कई जगह ऐसे ही शहीन बाग बन चुके थे। यहीं से फिर मोदी-शाह की सरकार ने साजिश रची। दिल्ली के दंगों का आयोजन किया गया। जिसमें कपिल शर्मा व अनुराग ठाकुर जैसे कुछ अन्य पर्दे के सामने थे जबकि पर्दे के पीछे पूरा संघी फासीवादी गिरोह। अन्ततः दिल्ली के प्रायोजित नरसंहार के आयोजकों ने 'दिल्ली हिंसा' के नाम पर उन्हीं को दंगे के लिए आरोपी बनाना शुरू कर दिया जो दंगों के शिकार थे, जो सीएए विरोधी प्रदर्शनों में शामिल थे या उसे लीड कर रहे थे। जे एन यू, जामिया , दिल्ली विश्वविद्यालय व अन्य कॉलेज के छात्रों की गिरफ्तारी की जा रही है। अभी तक 1300 लोगों की गिरफ्तारी की गई है। संगीन मुकदमे लगाए जा रहे हैं। यू ए पी ए, राजद्रोह या फिर कुछ और।
27 वर्षीय सफूरा जगरर जो कि जामिया की शोध विद्यार्थी हैं और गर्भवती है उन्हें यू ए पी ए यानी कथित आतंकवाद विरोधी कानून के तहत तिहाड़ जेल में ठूंस दिया गया। इसी प्रकार और भी हैं। कश्मीर से भी महिला पत्रकार समेत कुछ अन्य पर आतंकवाद विरोधी कानून के तहत मुकदमा ठोक दिया गया। दिल्ली में जामिया, जे एन यू व दिल्ली विश्वविद्यालय के उन छात्रों को निशाना बनाया जा रहा है जो सीएए विरोधी प्रदर्शन में शामिल थे। मीरान हैदर, उमर खालिद आदि ऐसे ही कई नाम हैं। अधिकांश मुस्लिमों को निशाने पर लिया जा रहा है।
अभी कुछ दिनों पहले दिल्ली विश्वविद्यालय के एक कॉलेज की छात्रा नताशा व देवांगना को भी दिल्ली हिंसा के नाम पर गिरफ्तार के लिया गया। बाद में जैसे ही इन्हें कोर्ट से जमानत मिली तत्काल ही दूसरे मुकदमे में पुलिस ने इन्हें फिर गिरफ्तार कर लिया। नताशा पर अब यू ए पी ए का मुकदमा दर्ज कर देनी की बात सामने आ रही है।
निश्चित तौर पर ऐसे वक्त में जब एक तरफ कोरोना से जंग के नाम पर लॉकडाउन किया गया हो, देश के नागरिकों से एकजुट होकर इससे लड़ने की अपील की गई हो, सोशल डिस्टेंसिग की बात की जा रही है तब ऐसे वक्त में मोदी सरकार का यह कृत्य घृणित, षड्यंत्रकारी व प्रतिशोधात्मक है यह घोर निंदनीय है। इन सभी को अविलंब रिहा किया जाय।
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