Saturday, 23 May 2020

लॉकडाउन की आड़ में घोर निरंकुशता

लॉकडाउन की आड़ में घोर निरंकुशता

        लॉकडाउन की घोषणा के बाद ऐसा लगा जैसा मोदी सरकार को अपनी मन की मुराद मिल गयी हो। एक-एक करके सीएए एनपीआर विरोधी प्रदर्शन में शामिल लोगों को मोदी सरकार निशाने पर लेने लगी। विशेषकर यह खेल दिल्ली में सीधे सीधे गृह मंत्रालय के अधीन पुलिस के माध्यम से किया गया।
        दिल्ली में जिस दंगे के जरिये सीएए विरोधी प्रदर्शन को खत्म कर देने की साजिश रची गई थी, अब उसी की साजिश रचने का आरोप सीएए प्रदर्शनकारियों पर लगाये गए। कुछ लोगों पर गैरकानूनी गतिविधि रोकथाम अधिनियम यानी यूएपीए के तहत मुकदमा दर्ज कर दिया गया। यह इत्तेफाक नहीं कि इसमें सभी मुस्लिम हैं। अधिकांश नौजवान है। कॉलेज में पढ़ने वाले हैं।
       इन्हीं में एक है सफूरा जगर, जिनकी उम्र है 27 साल। वह अभी गर्भवती है इसके बाबजूद उन्हें तिहाड़ जेल में डाल दिया गया। इसके अलावा और भी है जिन्हें यूएपीए के तहत गिरफ्तार कर लिया गया।
     सफूरा के खिलाफ हिन्दू फासीवादी तथा लम्पट मीडिया चरित्र हनन से लेकर भयानक दुष्प्रचार में लगा हुआ है।
      इसके अलावा आपदा प्रबंधन एक्ट तथा महामारी रोग अधिनियम के तहत लोगों के, जनपक्षधर लोगों के तथा पत्रकारों की आवाज को भी खामोश किया जा रहा है। उन पर राजद्रोह से लेकर संगीन मुकदमे दर्ज किए गए हैं। आम लोगो के दुख तकलीफों का पता पूरे समाज को पता लगे, सरकार का घोर जनविरोधी रुख तथा संवेदनहीनता समाज को पता लगे, यह सरकार नहीं चाहती।
     यहीं से फिर वह जो कोई भी सरकार को बेनकाब कर रहा है उसकी आवाज को बंद कर दिया जा रहा है। द वायर के संपादक, ठेका मजदूर कल्याण एसोसिएशन के अध्यक्ष, पछास के एक कार्यकर्त्ता तथा कई पत्रकार इसी दमन के शिकार हुए। बाकि आम अवाम तो लॉकडाउन के उल्लंघन में पिट रहीं है अपमानित हो रही है तथा मुकदमे झेल रही है।
   साफ तौर पर यह स्थिति दिखाती है कि मोदी सरकार व इनकी राज्य सरकारें लॉकडाउन का इस्तेमाल अपने विरोधियों से निपटने तथा निरंकुशता की ओर बढ़ने के रूप में कर रही है।
   


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