यह हादसा नहीं व्यवस्थाजनित हत्या है !
अमृतसर में जोड़ा रेल फाटक के पास दशहरा का पर्व मनाने के दौरान ट्रेक पर दौड़ती ट्रेन की चपेट में आने से 62 से ज्यादा लोग मारे गए और 150 से ज्यादा लोग घायल हो गए। यह आम मेहनतकश नागरिकों के लिए दुखद ख़बर है। यह हम सभी को क्षोभ से भर देने वाली व आक्रोशित कर देने वाली खबर भी है। बताया जा रहा है कि यहां पर भीड़ मैदान की क्षमता से काफी ज्यादा थी और लोग ट्रेक पर भी खड़े थे। एक तरफ वी वी आई पी लोगों के लिए मैदान में मंच सजा था यो वहीं दूसरी ओर आम जन ट्रेक के इर्द गिर्द खड़े ही जाने को मजबूर हुए। साथ ही रेलवे प्रशासन से किसी प्रकार की अनुमति न लेने की बात भी उजागर हुई है। इस प्रकार भयानक लापरवाही व अयोजनाबद्धता के चलते आम नागरिक मारे गये। लेकिन मुख्य अतिथि के बतौर यहां शामिल कांग्रेस नेत्री नवजोत कौर सिंह ट्रेन की चपेट में आये लोगो की मदद के लिए प्रबन्ध करने के बजाय वहां से गायब हो गईं।
इसे हादसा घोषित कर सरकार व राजनीतिक पार्टियां अपने अपराध पर पर्दा डाल रही हैं। इस ढंग के "घोषित हादसे" साल दर साल अलग अलग मौक़ों पर धार्मिक आयोजनों के वक़्त होते रहे हैं। उत्तराखंड में 2014 में केदारनाथ से लेकर बिहार या फिर कहीं और लोग यूं ही मारे गए और घायल हुए।
दरअसल धर्म, अंधविश्वास आदि की जकड़ में आम जन के होने के चलते ऐसी जगहों पर भारी तादाद पर लोग इकट्ठे हो जाते हैं और फ़िर भयानक अराजकता, अव्यवस्था, अयोजनाबद्धता व लापरवाही के चलते भगदड़ मचने या फिर मौजूदा घटना की तरह आम लोग मारे जाते हैं। शासक अपना ढोंग करके थोड़ा मुआवजा फैंककर अपने गुनाहों पर पर्दा डाल देते हैं वास्तव में ये इनके द्वारा की जाने वाली परोक्ष हत्याएं हैं। ये आम जन को धार्मिक व अंधविश्वास की जकड़बंदी में जकड़े रखने के तमाम जतन करते हैं। आम जन इस जकड़बंदी में फंस कर तमाम तरीकों से इसका शिकार होता है। यदि शासक जनता के प्रति बेहद संवेदनशील होते और धर्मनिरपेक्ष राज्य को व्यवहार में भी कायम किया गया होता साथ ही इन जकड़बन्दियों से मुक्ति के लिए वैज्ञानिक चेतना का व्यापक प्रचार प्रसार कर जनता की चेतना को उन्नत किया गया होता तो ये निर्दोष नागरिक जो यहां मारे गए वह ज़िंदा होते।
इसे हादसा घोषित कर सरकार व राजनीतिक पार्टियां अपने अपराध पर पर्दा डाल रही हैं। इस ढंग के "घोषित हादसे" साल दर साल अलग अलग मौक़ों पर धार्मिक आयोजनों के वक़्त होते रहे हैं। उत्तराखंड में 2014 में केदारनाथ से लेकर बिहार या फिर कहीं और लोग यूं ही मारे गए और घायल हुए।
दरअसल धर्म, अंधविश्वास आदि की जकड़ में आम जन के होने के चलते ऐसी जगहों पर भारी तादाद पर लोग इकट्ठे हो जाते हैं और फ़िर भयानक अराजकता, अव्यवस्था, अयोजनाबद्धता व लापरवाही के चलते भगदड़ मचने या फिर मौजूदा घटना की तरह आम लोग मारे जाते हैं। शासक अपना ढोंग करके थोड़ा मुआवजा फैंककर अपने गुनाहों पर पर्दा डाल देते हैं वास्तव में ये इनके द्वारा की जाने वाली परोक्ष हत्याएं हैं। ये आम जन को धार्मिक व अंधविश्वास की जकड़बंदी में जकड़े रखने के तमाम जतन करते हैं। आम जन इस जकड़बंदी में फंस कर तमाम तरीकों से इसका शिकार होता है। यदि शासक जनता के प्रति बेहद संवेदनशील होते और धर्मनिरपेक्ष राज्य को व्यवहार में भी कायम किया गया होता साथ ही इन जकड़बन्दियों से मुक्ति के लिए वैज्ञानिक चेतना का व्यापक प्रचार प्रसार कर जनता की चेतना को उन्नत किया गया होता तो ये निर्दोष नागरिक जो यहां मारे गए वह ज़िंदा होते।
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