14 सितंबर को हाथरस में दलित लड़की के साथ वीभत्स घटना हुई। यह बलात्कार और हिंसा की घटना थी। यह हत्या थी। 30 सितंबर को लड़की की मौत हो गई। इस मौत पर जब आक्रोश फैला तो योगी-मोदी सरकार से लेकर मीडिया इसे दबाने में लगा रहा। यही नहीं! विरोध करने वालों को जेलों में ठूंस दिया गया, अपराधियों को बचाने के हर संभव प्रयास किये गए। मुद्दे को भटकाने के लिए कुतर्क किये गए।
16 दिसम्बर 2012 की घटना भी हम सभी को याद है। जब निर्भया हत्याकांड हुआ था। तब भी देश में जनता सड़कों पर थी, तब भी लाठीचार्ज हुआ था। तब सरकार कांग्रेस की थी। तब नया कानून भी बना। तमाम बातें भी हुई। मगर महिलाओं के खिलाफ अपराध नहीं रुके। कहा गया कि अपराधियों को फांसी देने से अपराध रुक जाएंगे। मगर अपराध रुके नहीं। बल्कि बढ़ते गए।
14 सितंबर, हाथरस की वीभत्स घटना, महिलाओं के खिलाफ बढ़ते अपराधों का ही प्रमाण है। जबकि इस बीच यू पी में और देश में महिलाओं के खिलाफ हिंसा और अपराध की घटना बढ़ती गई हैं। अक्सर जैसा होता है वही हाथरस मामले में भी हो रहा है। ऊंची पहुंच वाले लोगों को बचाने के लिए एफ.आई.आर तोड़ी-मरोड़ी जाती हैं, साक्ष्य मिटाए जाते हैं, केस कमजोर कर दिया जाता है, पीड़ित पक्ष को डराया धमकाया जाता है। जो भी मामला बाकी बच जाता है वह फिर कोर्ट में केस को सालों-साल लटकाकर, पूरा हो जाता है। अपराधियों का फिर कुछ नहीं बिगड़ता।
जब मामला गरीब, मेहनतकश दलितों या मुस्लिमों का होता है, तब तो सत्ता पर बैठे हुए घोर जातिवादी और फासीवादी शासकों के चलते, न्याय मिल पाना बिल्कुल ही असंभव हो जाता है। हाथरस की वीभत्स घटना ऐसा ही मामला है। पहले लड़की को गांव से ही गायब कर दिया गया। फिर ढूढंने पर लड़की बेहद घायल स्थिति में घरवालों को मिली। जब घर वाले रिपोर्ट लिखवाने थाने गए तो रिपोर्ट लिखने में आनाकानी हुई। लड़की को तत्काल किसी बड़े आधुनिक अस्पताल में पहुंचाने के बजाय इधर-उधर निचले स्तर के अस्पतालों में ही रखा गया। स्थिति गंभीर होने पर ही दिल्ली में एडमिट किया गया। जहां लड़की की मौत हो गई। इसके बाद भी शव घर वालों को नहीं दिया गया, पुलिस वालों ने शव को जला दिया। इस प्रकार दोबारा पोस्टमार्टम हो सके, इससे पहले ही साक्ष्य नष्ट करने का काम खुद पुलिस ने कर दिया। अपराधियों को बचाने का इतना बेशर्म व दुस्साहस भरा घृणित तरीका, ऐसे दौर में ही संभव है जब कि लम्पट फासीवादी शासक सत्ता पर बैठे हों। आज यही स्थिति है। हिटलर, मुसोलिनी का दौर हमने सुना था, पढ़ा था मगर आज हम खुद उस दौर में पहुंच रहे हैं। जो पीड़िता के पक्ष में न्याय की मांग कर रहे हैं उल्टा उन्हीं को गिरफ्तार किया जा रहा है जेलों में डाला जा रहा है।
आज तो न्याय के लिए आवाज उठाने की कोशिशों को ही खत्म कर दिया जा रहा है। संघर्षों को, आंदोलनों को 'अपराध करने' या 'षड्यन्त्र रचने' के रूप में पेश किया का रहा है। आज अपराधियों को खुलेआम बेशर्मी भरा संरक्षण हासिल है। कुलदीप सेंगर, चिन्मयानंद जैसों को कौन नहीं जानता।
ये यौन हिंसा व अपराध, हमें बताते हैं कि समाज पतन की ओर है समाज सड़ गल रहा है। यह समाज पूंजीवादी समाज है। इस समाज के मालिक पूंजीपति हैं, संसाधन इनके हैं, पार्टियां इनकी हैं, मीडिया इनका है। ये अपने हिसाब से जनता को हांकते हैं। जनता की आवाज और मुद्दे इसीलिए यहां से गायब है। यहां महिलाओं को 'सेक्स यानी यौन वस्तु' में बदल दिया गया है। यह सब अश्लील फिल्मों व विज्ञापनों तथा इंटरनेट की घटिया यौन हिंसक साइटों के जरिये किया गया है। यह सब हमारे लंपट शासकों ने जानबूझकर किया है ताकि आम जनता इसी के नशे में डूब जाये और शासक पूंजीपतियों की लूट पाट, शोषण-उत्पीड़न का राज हमेशा-हमेशा के लिए चलता रहे।
इसलिए अब जरूरत है महिलाओं के खिलाफ बढ़ते हर जुल्म के खिलाफ एकजुट हुआ जाय। लंपट फसीवादी शासकों के खिलाफ आवाज बुलंद की जाय ! महिलाओं को यौन वस्तु बनाने वाले समाज को बदलने के लिए एक हुआ जाय। समाजवादी समाज बनाने के लिए आगे बढ़ा जाय। जहां महिलाओं को बराबरी, सुरक्षा, रोजगार और सम्मान हासिल हो।
16 दिसम्बर 2012 की घटना भी हम सभी को याद है। जब निर्भया हत्याकांड हुआ था। तब भी देश में जनता सड़कों पर थी, तब भी लाठीचार्ज हुआ था। तब सरकार कांग्रेस की थी। तब नया कानून भी बना। तमाम बातें भी हुई। मगर महिलाओं के खिलाफ अपराध नहीं रुके। कहा गया कि अपराधियों को फांसी देने से अपराध रुक जाएंगे। मगर अपराध रुके नहीं। बल्कि बढ़ते गए।
14 सितंबर, हाथरस की वीभत्स घटना, महिलाओं के खिलाफ बढ़ते अपराधों का ही प्रमाण है। जबकि इस बीच यू पी में और देश में महिलाओं के खिलाफ हिंसा और अपराध की घटना बढ़ती गई हैं। अक्सर जैसा होता है वही हाथरस मामले में भी हो रहा है। ऊंची पहुंच वाले लोगों को बचाने के लिए एफ.आई.आर तोड़ी-मरोड़ी जाती हैं, साक्ष्य मिटाए जाते हैं, केस कमजोर कर दिया जाता है, पीड़ित पक्ष को डराया धमकाया जाता है। जो भी मामला बाकी बच जाता है वह फिर कोर्ट में केस को सालों-साल लटकाकर, पूरा हो जाता है। अपराधियों का फिर कुछ नहीं बिगड़ता।
जब मामला गरीब, मेहनतकश दलितों या मुस्लिमों का होता है, तब तो सत्ता पर बैठे हुए घोर जातिवादी और फासीवादी शासकों के चलते, न्याय मिल पाना बिल्कुल ही असंभव हो जाता है। हाथरस की वीभत्स घटना ऐसा ही मामला है। पहले लड़की को गांव से ही गायब कर दिया गया। फिर ढूढंने पर लड़की बेहद घायल स्थिति में घरवालों को मिली। जब घर वाले रिपोर्ट लिखवाने थाने गए तो रिपोर्ट लिखने में आनाकानी हुई। लड़की को तत्काल किसी बड़े आधुनिक अस्पताल में पहुंचाने के बजाय इधर-उधर निचले स्तर के अस्पतालों में ही रखा गया। स्थिति गंभीर होने पर ही दिल्ली में एडमिट किया गया। जहां लड़की की मौत हो गई। इसके बाद भी शव घर वालों को नहीं दिया गया, पुलिस वालों ने शव को जला दिया। इस प्रकार दोबारा पोस्टमार्टम हो सके, इससे पहले ही साक्ष्य नष्ट करने का काम खुद पुलिस ने कर दिया। अपराधियों को बचाने का इतना बेशर्म व दुस्साहस भरा घृणित तरीका, ऐसे दौर में ही संभव है जब कि लम्पट फासीवादी शासक सत्ता पर बैठे हों। आज यही स्थिति है। हिटलर, मुसोलिनी का दौर हमने सुना था, पढ़ा था मगर आज हम खुद उस दौर में पहुंच रहे हैं। जो पीड़िता के पक्ष में न्याय की मांग कर रहे हैं उल्टा उन्हीं को गिरफ्तार किया जा रहा है जेलों में डाला जा रहा है।
आज तो न्याय के लिए आवाज उठाने की कोशिशों को ही खत्म कर दिया जा रहा है। संघर्षों को, आंदोलनों को 'अपराध करने' या 'षड्यन्त्र रचने' के रूप में पेश किया का रहा है। आज अपराधियों को खुलेआम बेशर्मी भरा संरक्षण हासिल है। कुलदीप सेंगर, चिन्मयानंद जैसों को कौन नहीं जानता।
ये यौन हिंसा व अपराध, हमें बताते हैं कि समाज पतन की ओर है समाज सड़ गल रहा है। यह समाज पूंजीवादी समाज है। इस समाज के मालिक पूंजीपति हैं, संसाधन इनके हैं, पार्टियां इनकी हैं, मीडिया इनका है। ये अपने हिसाब से जनता को हांकते हैं। जनता की आवाज और मुद्दे इसीलिए यहां से गायब है। यहां महिलाओं को 'सेक्स यानी यौन वस्तु' में बदल दिया गया है। यह सब अश्लील फिल्मों व विज्ञापनों तथा इंटरनेट की घटिया यौन हिंसक साइटों के जरिये किया गया है। यह सब हमारे लंपट शासकों ने जानबूझकर किया है ताकि आम जनता इसी के नशे में डूब जाये और शासक पूंजीपतियों की लूट पाट, शोषण-उत्पीड़न का राज हमेशा-हमेशा के लिए चलता रहे।
इसलिए अब जरूरत है महिलाओं के खिलाफ बढ़ते हर जुल्म के खिलाफ एकजुट हुआ जाय। लंपट फसीवादी शासकों के खिलाफ आवाज बुलंद की जाय ! महिलाओं को यौन वस्तु बनाने वाले समाज को बदलने के लिए एक हुआ जाय। समाजवादी समाज बनाने के लिए आगे बढ़ा जाय। जहां महिलाओं को बराबरी, सुरक्षा, रोजगार और सम्मान हासिल हो।